09 जनवरी 2014

प्रथम पुरुष को सत पुरुष कहा जाता है

साधक, साधु, मंहत, बाबा, मुनि, महामुनि, योगी, धर्मगुरु, आदिगुरु, ऋषि, महर्षि, ब्रह्मऋषि, सिद्ध, देवता, भगवान, हंस, ईश्वर, संत, तत्वदर्शी संत, योगेश्वर, परमहंस, संत शिरोमणि, फक्कड़ संत, सतगुरु, सतपुरुष, अलख पुरुष, अगम पुरुष, अनामी पुरुष । कृपया इन सभी की सही सही ( क्रमवार ) स्थिति बता दीजिये । एक पाठक ।
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इन सभी को सामान्यतः कोई निश्चित कृम देना सम्भव नहीं । क्योंकि इनमें से कोई भी बीच की कुछ भूमिका को या कई भूमिका को छोङकर एकदम बङी भूमिका में अपने पूर्व पुण्य लगन मेहनत आदि से जा सकता है । और भावना विचारों का रुझान बदलने से पतन या तामसिक पदों लक्ष्यों की ओर उन्मुख हो सकता है ।

सामान्यतः - पूर्व जन्म के पुण्य़ से धार्मिक या आत्मिक जिज्ञासु । फ़िर साधारण भक्ति भाव इंसान । फ़िर किसी प्रारम्भिक गुरु से मन्त्र आदि लेकर छोटा साधक । फ़िर कुछ अच्छे ज्ञान से बङा साधक । फ़िर अपने ज्ञान का साधु, ये कृम होता है ।
मंहत ( मन्दिर मठ आदि के प्रमुख को कहते हैं ) बाबा ( बाबा का अर्थ वाह वाह यानी उत्तम ग्रहण करने वाले से पङा । तब ये इनमें से किसी भी स्थिति वाला हो सकता है । ) मुनि ( मुनि शब्द प्राप्त सिद्धांतों या प्रकृति रहस्य पर आधारित कल्पनाओं पर मनन करने वाले को कहते हैं ) महामुनि ( मुनि की वरिष्ठता ( सीनियरटी ) के आधार पर महामुनि कहा जाता है )  योगी ( योग अनगिनत ही होते हैं । उनमें से किसी भी सफ़ल योग करने वाले को योगी कहा जा सकता है । वैसे प्रमुखतया योगी द्वैत या कुण्डलिनी के सफ़ल साधक को कहते हैं ) धर्मगुरु ( धर्मगुरु की भी कोई एक निश्चित परिभाषा नहीं दी जा सकती ) आदिगुरु ( आदि शब्द का अर्थ शुरु होता है । अतः किसी भी गुरुता को सबसे पहले शुरू करने वाले को

आदि गुरु कहा जा सकता है ) ऋषि ( ऋषि शब्द से ही रिसर्च यानी शोध शब्द बना है । आध्यात्मिक और प्राकृतिक दैवीय रहस्यों पर शोध करने वाले को ऋषि कहते हैं । महर्षि ( ऋषि की वरिष्ठता को ही महर्षि कहते हैं ) ब्रह्मऋषि ( ब्रह्म को जानने वाले शोधरत को ब्रह्मऋषि कहते हैं ) सिद्ध ( किसी भी तन्त्र मन्त्र यौगिक स्थिति को सिद्ध कर चुके व्यक्तित्व को उसका सिद्ध कहते हैं ) देवता ( अपने पुण्य फ़ल स्वरूप देवत्व को प्राप्त हुये जीवात्मा को देवता कहा जाता है । जिसका अर्थ देने वाला । इनकी उच्च निम्न मध्य असंख्य कोटियां हैं ) भगवान ( भगवान एक उपाधि है । या ऐसा पद अर्थ है । जिसका अर्थ भग यानी योनि ( प्रकृति ) के किसी विशेष भाग का नियंता होना । अपने पद अर्थ को लेकर इनकी भी बहुत सी श्रेणियां बन जाती हैं । इसीलिये धर्मशास्त्रों में कई लोगों को भगवान कहा गया है । और वहाँ उनके बहुत से अर्थ निकलते हैं )
हंस ( हंस उस जीवात्मा को कहते हैं । जो अपनी पहचान के प्रति लक्षित हो चुका है । और जो - ज्ञान भक्ति समर्पण, नामक प्रतीक रूपी तीन पंखों से युक्त है । पूर्ण हंस मूलतयाः बृह्माण्ड के सभी सार को जानने वाले को भी कहा जाता है ) ईश्वर ( ये सृष्टि कृमशः सबसे ऊपर - विराट, मध्य में - हिरण्य़गर्भ और उससे भी निम्न ईश्वर नाम के आवरण से युक्त है । इसी ईश्वरीय आवरण में स्थूल सृष्टि है । किसी भी ऐश्वर्य के मालिक को भी उसका ईश्वर कहा जाता है ) संत ( प्रमुख तौर पर समदृष्टा और चेतना को निरन्तर जानने वाले को सन्त कहा जाता है )

तत्वदर्शी ( किसी भी तत्व या किसी भी रहस्य को तत्व से जानने वाले को तत्वदर्शी कहा जाता है ) योगेश्वर ( द्वैत योग की सर्वोच्च स्थिति को प्राप्त हुये को योगेश्वर कहा जाता है ) परमहंस ( जो हंस ज्ञानी जीवात्मा हंस को पार कर परम की ओर उन्मुख हो जाता है उसे भी । और परम अवस्था में प्राप्त हुये को भी परमहंस कहा गया है ) संत शिरोमणि ( संतो में सर्वोच्च को संत शिरोमणि कहा गया है ) फक्कड़ संत ( सही अर्थों में तो पूर्ण परमात्मा को जानने वाले मगर सभी तरह से निरुद्देश्य को कहा जाता है ) सतगुरु ( शाश्वत सत्य का ज्ञाता, अधिकारी ही सिर्फ़ सदगुरु कहा जाता है ) सतपुरुष ( आत्मा का मूल चेतन और प्रथम पुरुष को सत पुरुष कहा जाता है ) अलख पुरुष ( अलख का अर्थ जिसको देखा न जा सके ) अगम पुरुष ( अगम का अर्थ जहाँ गम्य यानी जाया न जा सके ) अनामी पुरुष ( इसको अन्तिम यानी आत्मा ही कहा गया है )
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मैं कौन हूँ ? क्या आप जानते हैं ? शायद नहीं - मैं बांग्ला देश । मैं ही नेपाल हूँ । मैं भूटान । मैं ही बर्मा हूँ । मैं तिब्बत । मैं ही लंका हूँ । मैं अफगानिस्तान । मैं ही पाकिस्तान हूँ । हाँ हाँ ! मैं भारत हूँ । मैं ढाका । काठमांडू हूँ । मैं थिम्फू । रंगून हूँ । मैं ल्हासा । कोलम्बो हूँ । मैं काबुल, कंधार, लाहौर, कराची हूँ । हाँ हाँ ! मैं ही वो बिखरा हुआ आर्यवर्त हूँ । Uttam Bhushan
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http://theextinctionprotocol.wordpress.com/2014/01/09/as-u-s-shivers-northern-europe-waits-for-winter-to-arrive/

06 जनवरी 2014

आस्तिक नास्तिक में कोई भेद नहीं

आस्तिक और नास्तिक में जरा भी भेद नहीं है । 
एक विधायक रूप से भयभीत है । एक नकारात्मक रूप से भयभीत है  बस ऋण और धन का फर्क है । मगर भय दोनों का है । 
नास्तिक डर के कारण कह रहा है - ईश्वर नहीं है । क्योंकि ईश्वर को मानना तो फिर उसके पीछे और बहुत कुछ मानना पड़ता है । जो उसे कंपाता है । आस्तिक कह रहा है - ईश्वर है । विधायक रूप से भयभीत है । वह कह रहा है - ईश्वर है  अगर मैं उसको न मानूं । उसकी स्तुति न करूं प्रार्थना पूजा न करूं । उसको मनाऊं न तो सताया जाऊंगा ।
धार्मिक व्यक्ति कहता है - ईश्वर के दोनों रूप हैं । ईश्वर आस्तिक और नास्तिक दोनों की धारणाओं और विश्वासों के पार है ।
बसती न सुन्यं - न तो वह है ऐसा कह सकते न कह सकते कि नहीं है ।

सुन्यं न बसती - न कह सकते कि शून्य है  न कह सकते कि पूर्ण है । अगम अगोचर ऐसा ।
ऐसा अगम्य है । हमारा कोई शब्द उसको माप नहीं सकता । हमारे शब्द छोटी छोटी चाय की चम्मचों जैसे हैं । वह सागर जैसा है । इन चाय की चम्मचों में सागर को नहीं भरा जा सकता और न सागर को नापा जा सकता है । हमारे सब माप बड़े छोटे हैं । हमारे हाथ बड़े छोटे हैं हमारी सामर्थ्य बड़ी छोटी है । उसका विस्तार अनंत है । वह असीम है अगम अगोचर ऐसा ।
रहिमन बात अगम्य की । कहनि सुननि की नाहिं ।
जे जानति ते कहति नहिं । कहत ते जानति नाहिं ।
रहिमन बात अगम्य की ।
वह इतना अगम्य है । अगम्य शब्द का अर्थ समझना । अगम्य का अर्थ होता है - जिसकी हम थाह न पा सकें, अथाह । लाख करें उपाय और थाह न पा सकें क्योंकि उसकी थाह है ही नहीं और जो उसकी थाह लेने गये हैं । वे धीरे धीरे उसी में लीन हो गये हैं ।
कहते हैं 2  नमक के पुतले 1 बार सागर की थाह लेने गये थे । छलांग लगा दी सागर में । भीड़ इकट्ठी हो गयी थी । मेला भरा था सागर के तट पर । सारे लोग आ गये थे । फिर दिनों तक प्रतीक्षा होती रही । फिर मेला धीरे धीरे उजड़ भी गया । वे नमक के पुतले न लौटे । सो न लौटे । नमक के पुतलों को थाह भी न मिली और खुद भी मिट गये ।
हेरत हेरत हे सखी, रहा कबीर हिराइ ।
गये थे खोजने, खो गये । नमक के पुतले सागर की खोज में जायेंगे । कब तक बचेंगे ? गल गये होंगे । सागर के ही हिस्से थे । इसलिये नमक के पुतले का खयाल है । हम भी नमक के पुतले हैं । वह सागर है । उसे खोजने जायेंगे । खो जायेंगे ।
अगम्य का अर्थ होता है - सिर्फ अज्ञात नहीं । क्योंकि अज्ञात वह है जो कभी ज्ञात हो जाएगा । आज जो ज्ञात हो गया है । कभी अज्ञात था । चांद पर आदमी नहीं चला था । अब आदमी चल लिया । अभी तक चांद अज्ञात था । अब ज्ञात हो गया । हमें अणु का रहस्य पता नहीं था अब पता हो गया ।
परमात्मा अज्ञात नहीं है । यही धर्म और विज्ञान का भेद है ।
धर्म कहता है - जगत में 3 तरह की बातें हैं -
ज्ञात, जो जान लिया गया । 
अज्ञात, जो जान लिया जाएगा । 
और अज्ञेय, जो न जाना गया है और न जाना जायेगा । 
विज्ञान कहता है - जगत में सिर्फ 2 ही चीजें हैं । ज्ञात और अज्ञात ।
विज्ञान 2 हिस्सों में बांटता है - जगत को । जो जान लिया गया और जो जान लिया जाएगा । बस उस 1 अज्ञेय शब्द में ही धर्म का सारा सार छुपा है । कुछ ऐसा भी है । जो न जाना गया और न जाना जाएगा । क्योंकि उसका राज यह है कि उसे खोजने वाला खो जाता है उसमें ।
रहिमन बात अगम्य की, कहनि सुननि की नाहिं ।
और जब खोजने वाला ही खो गया । तो कौन कहे  क्या कहे कैसे कहे ? 
सब शब्द बड़े छोटे हैं । बड़े ओछे हैं । तुम जीवन में भी अनुभव करते हो तो पाओगे । उठे सुबह सुबह, बगीचे में सूरज उगने लगा । वृक्ष जगने लगे । धरती की सौंधी सौंधी सुगंध उठने लगी । अभी अभी वर्षा हुई होगी । घास के पत्तों पर ओस की बूंदें मोतियों जैसी चमकने लगीं । पक्षी गीत गाने लगे । कोई मोर नाचा । कोई कोयल कूकी । फूल खिले । कमलों ने अपनी पंखुड़ियां खोल दीं । 
यह सब तुम देख रहे हो यह अगोचर भी नहीं है गोचर है । यह अज्ञात भी नहीं है  तुम्हें, ज्ञात है । यह सारा सौंदर्य तुम अनुभव कर रहे हो । तुमसे कोई पूछे । कह डालो 1 शब्द में । क्या कहोगे ? 
इतना ही कहोगे - सुंदर था । बहुत सुंदर था । 
मगर यह भी कोई कहना है ? इस "बहुत सुंदर" में न तो सूरज की कोई किरण है । न माटी की सौंधी सुगंध है  न कमल की खिलती हुई पंखुड़ियां हैं न पक्षियों के गीत हैं न शबनम के मोती हैं । न वृक्षों की हरियाली है न मुक्त आकाश है । कुछ भी तो नहीं ।
बहुत सुंदर में क्या है ?
कुछ भी तो नहीं । वर्णमाला के थोड़े से अक्षर हैं ।
ओशो

भूत प्रेत सब बकवास है

तुमने खयाल किया । अनेक लोग हैं । जो भूत प्रेत को इनकार करते हैं । सिर्फ डर के कारण । तुम्हारा उनसे परिचय होगा ..कि नहीं नहीं, कोई भूत प्रेत नहीं । लेकिन जब वे कहते हैं - नहीं नहीं कोई भूत प्रेत नहीं । जरा उनके चेहरे पर गौर करो ।
1 महिला 1 बार मेरे घर मेहमान हुई । उसे ईश्वर में भरोसा नहीं । वह कहे - ईश्वर है ही नहीं । मैंने कहा - छोड़ ईश्वर को, भूत प्रेत को मानती है ? उसने कहा - बिलकुल नहीं ! सब बकवास है ।
मैंने कहा - तू ठीक से सोच ले । क्योंकि आज मैं हूं । तू है । और यह घर है । भगवान को तो मैं नहीं कह सकता कि तुझे प्रत्यक्ष करवा सकता हूं । लेकिन भूत प्रेत का करवा सकता हूं ।
उसने कहा - आप भी कहां की बातें कर रहे हैं । भूत प्रेत होते ही नहीं । लेकिन मैं देखने लगा । वह घबड़ाने लगी । वह इधर उधर देखने लगी । रात गहराने लगी ।
मैंने कहा - फिर ठीक है । मैं तुझे बताये देता हूं ।
उसने कहा - मैं मानती ही नहीं । आप क्या मुझे बतायेंगे ? मैं बिलकुल नहीं मानती । मैंने कहा - मानने न मानने का सवाल नहीं है । यह घर जिस जगह बना है । यहां कभी 1 धोबी रहता था । पहले महायुद्ध के समय । उसकी नई नई शादी हुई । बड़ी प्यारी दुल्हन घर आयी । और सब तो सुंदर था दुल्हन का । एक ही खराबी थी कि कानी थी । गोरी थी बहुत । सब अंग सुडौल थे । बस 1 आंख नहीं थी ।
उसका चित्र मैंने खींचा । धोबी को युद्ध पर जाना पड़ा । पहले ही महायुद्ध में भरती कर लिया गया । चिट्ठियां आती रहीं - अब आता हूं । तब आता हूं । और धोबिन प्रतीक्षा करती रही । करती रही । करती रही । वह कभी आया नहीं । वह मारा गया युद्ध में । धोबिन उसकी प्रतीक्षा करते करते मर गयी । और प्रेत हो गयी । और अभी भी इसी मकान में रहती है । और प्रतीक्षा करती है कि शायद धोबी लौट आये । एक ही उसकी आंख है । गोरी चिट्टी औरत है । काले लंबे बाल हैं । लाल रंग की साड़ी पहनती है ।
वह मुझसे कहे - मैं मानती ही नहीं । मगर मैं देखने लगा कि वह घबड़ाकर इधर उधर देखने लगी । मैंने कहा - मैं तुझे इसलिये कह रहा हूं कि तू पहली दफ़ा नई इस घर में रुक रही है आज रात । इस घर में जब भी कोई नया आदमी रुकता है । तो वह धोबिन रात आकर उसकी चादर उघाड़ कर देखती है कि कहीं धोबी लौट तो नहीं आया ?
तो उसके चेहरे पर पीलापन आने लगा । उसने कहा - आप क्या बातें कह रहे हैं ? आप जैसा बुद्धिमान आदमी भूत प्रेत में मानता है ।
मैंने कहा - मानने का सवाल ही नहीं है । लेकिन तुझे चेताना भी जरूरी है । नहीं तो डर जायेगी ज्यादा । अब तेरे को मैंने बता दिया है । अगर कोई कानी औरत, गोरी चिट्टी, लाल साड़ी में तेरी चादर हटा दे । तो तू घबड़ाना मत । वह नुकसान किसी का कभी नहीं करती । चादर पटक कर पैर पटकती हुई वापस चली जाती है । और 1 लक्षण और उसका मैं बता दूं ।
जिनके घर में उन दिनों मेहमान था । उनको रात दांत पीसने की आदत है । रात में वे कोई 10-5  दफा दांत पीसने लगते हैं । तो मैंने कहा - उस औरत की 1 आदत और तुझे बात दूं । जब वह आयेगी कमरे में । तो दांत पीसती हुई आती है । स्वभावत: कितनी प्रतीक्षा करे ? जमाने बीत गये । उस औरत का प्रेम है । क्रोध से भरी आती है । धोबी धोखा दे गया । अब तक नहीं आया । तो वह दांत पीसती है । तुझे दांत पीसने की आवाज सुनाई पड़ेगी पहले ।
उसने कहा - आप क्या बातें कर रहे हैं ? मैं मानती ही नहीं । आप बंद करें यह बातचीत । आप व्यर्थ मुझे डरा रहे हैं ।
मैंने कहा - तू अगर मानती ही नहीं । तो डरने का कोई सवाल ही नहीं । ऐसी बात चलती रही । और रात 12 बज गये । तब मैंने उसको कहा - अब तू जा । कमरे में सो जा । वह कमरे में गयी । संयोग की बात । वह कमरे में लेटी कि उन सज्जन ने दांत पीसे । वह बगल के कमरे में सो रहे थे । मुझे पक्का भरोसा ही था । उन पर आश्वासन किया जा सकता है । 10 दफे तो वे पीसते ही हैं रात में कम से कम । वे पीसेंगे कभी न कभी । वह जाकर बिस्तर पर बैठी । प्रकाश बुझाया । और उन्होंने दांत पीसे । चीख मार दी उसने । मैं भागा, पहुंचा । प्रकाश जलाया । वह तो बेहोश पड़ी है । और कोने की तरफ मुझे बता रही है -वह खड़ी है । उसको मैंने लाख समझाया कि कोई भूत प्रेत नहीं होता । उसने कहा - अब मैं मान ही नहीं सकती । होते कैसे नहीं ? वह सामने खड़ी है । और जो आपने कहा था - 1 आंख, गोरा चिट्टा रूप, काले बाल, लाल साड़ी और दांत पीस रही है ।
रात भर परेशान होना पड़ा मुझे । क्योंकि वह न सोये । न सोने दे । वह कहे - अब मैं सो ही नहीं सकती । अब मैं सोऊंगी । वह फिर आयेगी । और आप कहते हैं - चादर उठायेगी । इतने पास आ जायेगी ? मैं उसको कहूं कि कहीं भूत प्रेत होते हैं ? सब कल्पना में । मैं तो कहानी कह रहा था तेरे से । तुझे सिर्फ...।
उसको तो रात बुखार आ गया । रात को डाक्टर बुलाना पड़ा । और जिनके घर मैं मेहमान था । वे कहने लगे कि आप भी फिजूल के उपद्रव खड़े कर लेते हैं । वह महिला दूसरे दिन सुबह चली गयी । फिर कभी नहीं आयी । उसको मैंने कई दफे खबर भिजवाई कि भई ! कभी तो आओ । वह कहे कि उस घर में पैर नहीं रख सकती हूं । मैं उसको समझाऊं । कहीं भूत प्रेत होते हैं ? वह कहे - आप छोड़ो यह बात । किसको समझा रहे हैं ? मुझे खुद ही अनुभव हो गया ।
खयाल करना अक्सर ऐसा हो जाता है कि तुम जिस चीज से डरते हो । उसको इनकार करते हो । इनकार इसीलिये करते हो । ताकि तुम्हें यह भी याद न रहे कि मैं डरता हूं । है नहीं । तो डरना क्या है ? ओशो 

04 जनवरी 2014

तस्वीरों से प्रत्युत्तर नहीं आते

ऐसे ही समझो । जैसे दीया शब्द लिखकर और दीवाल पर टांग दो । तो रात कोई प्रकाश थोड़े ही हो जायेगा । अंधेरी रात है । सो अंधेरी रहेगी । दीये की बातों से रोशनी तो नहीं होती ।
पिकासो से 1 महिला ने कहा कि कल आपके द्वारा बनाई गई आपकी ही तस्वीर, सेल्फ पोट्रेंट, मैंने 1 मित्र के घर में देखा । इतना सुंदर, इतना प्यारा कि मैं अपने को रोक न पायी । मैंने उसे चूम लिया ।
पिकासो ने कहा - फिर क्या हुआ ? उस तस्वीर ने तुम्हें चूमा या नहीं ?
उस स्त्री ने कहा - आप भी क्या बात करते हैं । नहीं चूमा ।
तो पिकासो ने कहा - फिर वह मेरी तस्वीर न रही होगी ।
मुल्ला नसरुद्दीन को उसके पड़ोसी ने कहा कि आपके साहबजादे को सम्हालो । अभी से ज्या है । कल मेरी पत्नी को पत्थर मारा ।
मुल्ला ने पूछा - लगा ? उसने कहा कि नहीं । तो उसने कहा - वे किसी और के साहबजादे होंगे । मेरे साहबजादे का निशाना तो लगता ही है । वे किसी और के होंगे । तुम गलती समझे । ऐसा ही पिकासो ने कहा कि फिर वह मेरी तस्वीर न रही होगी । मैं तो नहीं था वह । चुंबन का उत्तर ही न आया । तो क्या खाक बात बनी । प्रत्युत्तर आना चाहिए ।
तस्वीरों से प्रत्युत्तर नहीं आते । इसलिये तस्वीरे भी छोटी पड़ जाती हैं । हमारे गीत भी छोटे पड़ जाते हैं । हमारे शब्द भी, शास्त्र भी छोटे पड़ जाते हैं । इस जगत में जो हम जानते हैं । वह भी कहा नहीं जा सकता । किसी मां ने अपने बेटे को प्रेम किया । कैसे कहो । प्रेम शब्द में क्या है ? कोई भी दोहराता है । कहो कि मुझे अपने बेटे से बहुत प्रेम है । या अपनी पत्नी से बहुत प्रेम है । क्या मतलब ? यहां तो लोग हैं । जो कहते हैं - आइस्क्रीम से प्रेम है । कोई कहता है - मुझे मेरी कार से बहुत प्रेम है । जहाँ आइस्क्रीम और कारों से प्रेम चल रहा है । प्रेम शब्द का अर्थ क्या रह गया ? जब तुम कहते हो - मुझे अपनी पत्नी से बहुत प्रेम है । तुम्हारी पत्नी है या आइस्क्रीम ? प्रेम का अर्थ क्या रहा ? हमारे शब्द छोटे हैं । उन्हीं छोटे शब्दों का हम सब तरह से उपयोग करते हैं । सीमा है उनकी । जगत में जो अनुभव में आता है । वह भी उनमें नहीं समाता । तो वह जो परम अनुभव है । आत्यंतिक अनुभव है । जहां सब विचार शून्य 0 हो जाते हैं । शांत हो जाते हैं । जहां व्यक्ति भाषा के पार निकल जाता है । जहाँ तर्क जाल पीछे छूट जाते हैं । जहा निर्विचार होता है । उसमें जिसकी प्रतीति होती है । उसे कह न सकोगे ।
जे जानति ते कहति नहिं - इसलिये जिन्होंने जाना है । वे नहीं कह पाये । आज तक कोई भी नहीं कह पाया । तुम सोचते हो । मैं तुमसे रोज कहता हूं । कह पाता हूं ? नहीं । और सब कह लेता हूं । मगर वह अगम्य अगम्य ही रह जाता है । उसके आसपास बहुत कुछ कह लेता हूं । लेकिन कोई तीर शब्द का उस निशान पर नहीं लगता । और सब कहा जा सकता है । लेकिन सब कहना इशारों से ज्यादा नहीं है ।
जो मैं कहता हूं । उसको मत पकड लेना । जो कहता हूं । वह तो ऐसा ही है । जैसे मील का पत्थर । और उस पर तीर का निशान लगा है कि दिल्ली 100 मील दूर है । उसी को पकड़कर मत बैठ जाना कि आ गए दिल्ली । मैं जो कहता हूं । वह तो ऐसे ही है । जैसे कोई अंगुली से चांद दिखाये । अंगुली को मत पूजने लगना । सारे शास्त्र चांद को बताई गयी अंगुलियां हैं । चांद को कोई अंगुली प्रगट नहीं करती । लेकिन जो समझदार हैं । वे इशारे को पकड़ लेते हैं । समझदार को इशारा काफी । ओशो

02 जनवरी 2014

कालपुरुष, माया और कालदूत

अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का सरल सुलभ माध्यम इंटरनेट जहाँ सूचना सम्पर्क की क्रांति में एक विस्फ़ोट की तरह अवतरित हुआ है । भावना के आदान प्रदान और अन्य सहूलियतों को लेकर यह मनुष्य के लिये वरदान की तरह है । वहीं इसके दुरुपयोग मुझे 90% दिखाई दिये । वैसे इंटरनेट पर फ़ैली सामग्री को मैं उस कचङे के ढेर के समान मानता हूँ । जिसमें बहुत थोङा ही ग्रहण करने योग्य है । क्योंकि इंटरनेट पर अच्छे लोगों की कम बुरे लोगों की भरमार है । जो अपनी अति महत्वाकांक्षा, कुंठा, हीनभावना, जलन आदि मनोवृतियों की विकारी मनोग्रन्थियों को विभिन्न तरह से इंटरनेट के माध्यम से न सिर्फ़ व्यक्त करते हैं । बल्कि बेमतलब ही दूसरे सभ्य अनजान लोगों को अपनी कुंठा का निशाना बनाते हैं । जबकि इस तरह की गतिविधियों का समय धन स्वास्थय आदि की दृष्टि से कोई लाभ न होकर बहुत तरह से हानि अवश्य होती है । इसके अतिरिक्त मन विकारी होकर पाप का घोर संचय कर लेता है । जो न जाने कितने जन्मों तक दीन हीन स्थिति अवस्था में पाप कर्मफ़ल के रूप में भुगतना पङे । मुझे नहीं लगता । इसका उन्हें सिवाय कुत्सित भावना को पोषण देने के अतिरिक्त परोक्ष अपरोक्ष रूप से कुछ भी लाभ होता हो । या कभी होगा ।
पिछले दो साल के अरसे में इस ब्लाग, महाराज जी, स्वयं मुझे और ब्लाग से जुङे कुछ लोगों को भी ऐसी गतिविधियों का मूर्खतापूर्ण तरीके से निशाना बनाया गया । क्योंकि छुपकर और अनर्गल बेबुनियाद तरीके से यह सब किया गया । मैंने कभी इसका नोटिस नहीं लिया । आपने देखा होगा । गली में से जब कोई हाथी

गुजरता है । तो तमाम कुत्ते भौंकते हुये भागने लगते हैं । लेकिन हाथी पर उसका कोई फ़र्क नहीं पङता । कर्म और ज्ञान का शाश्वत सिद्धांत जानने वाला कभी गलत कर्म कर ही नहीं सकता । क्योंकि कोई भी एकबारगी पूरी दुनियां को धोखा दे सकता है । मगर खुद को और परमात्मा को कभी नहीं । खुद के किये पाप जब अन्तर में सङे घाव की तरह किलबिलाते हैं । तब कोई चारा नहीं बचता ।
इसके भी अलावा एक नियम के तहत जब भी कोई सच्ची भक्ति या तप आदि में सक्रिय होता है । तो विरोधी शक्तियों कालदूतों द्वारा इस प्रकार की ऊटपटांग हरकतें करना प्रकृति का विधान है । और जब मैं ऐसा जानता हूँ । फ़िर मुझे क्या फ़र्क पङ सकता है ? या मेरा कोई भी कार्य एक क्षण भी रुका हो । या कोई नुकसान हुआ हो । हाँ ये काल माया और कालदूत जिन जीवों को आवेशित कर अप्रत्यक्ष रूप से अपना कार्य करते हैं । वे तरह तरह के कष्ट परेशानियां संकटों आदि में मूर्खता पूर्ण तरीके से अवश्य फ़ंस जाते हैं । और कई बार तो बेहद बुरी अकाल मृत्यु के शिकार भी हो जाते हैं ।
मैं हमेशा ही कहता रहा । आप लोग जैसा अजीब समय चल रहा है । उसके अनुसार मुझ पर भी कभी आँख मूँद कर विश्वास न करें । बल्कि यदि कुछ पाना चाहें । तो परखें । मैं आपको निमन्त्रण या प्रेरित भी नहीं करता कि आप आयें । या मेरी बात मानें । क्योंकि इस दुनियां में अच्छे और विवेकी लोगों की भी कमी नहीं । और ऐसे लोग बङी सख्यां में मुझसे मिलते ही रहते हैं । इसलिये सात अरब की जनसंख्या में एक अरब लोग भी मुझे नहीं समझ पाते । तो मेरी सेहत पर क्या असर है ? वैसे भी बङे से बङा सन्त पूर्ण जीवन में बमुश्किल दस हजार जीवात्माओं की डोर प्रभु से जोङ पाता है । और वह भी तब जब उनके पुण्य भाग्य लगन भाव आदि पहले से ऐसे हों । अतः इधर सबका आ पाना मुमकिन ही नहीं । और जब बहुत कुछ पहले से ऊपर वाले द्वारा तय हो । तब मुझे क्या फ़ायदा और क्या नुकसान ? अतः ऐसे बेफ़िजूल प्रकरणों से मुझ पर कभी कोई असर नहीं होता ।
हाँ हम से जुङे उन लोगों की श्रद्धा भावना आदि अवश्य आहत होती है । जो हमसे सीधे जुङे नहीं होते । बाकी जो हमसे या आश्रम आते जाते रहते हैं । उन पर कोई असर नहीं होता । ऐसे लोगों से मेरा कहना है - जब भी आप सच्ची और उद्धारक भक्ति की ओर उन्मुख होते हैं । काल पुरुष, माया और कालदूत आपको निशाना बनाकर अपना कार्य करने लगते हैं । इसलिये किसी भी बात पर पूर्ण विवेक से सोच विचार कर ही कोई बात तय करें । क्योंकि इसमें आपका ही हित अहित जुङा है । मेरा नहीं ।
आप सभी को नववर्ष 2014 की बहुत बहुत शुभकामनायें ।
2014 में ही सिर्फ़ अंग्रेजी जानने वालों के लिये हमने अपनी बेवसाइट शुरू की है । यधपि इसमें हिन्दी में भी लेखन होगा ।
सर्वोच्च " सुरति शब्द योग " के नाम से प्रसिद्ध आत्मज्ञान और सन्तमत का एकमात्र ज्ञान सहज योग, राजयोग, लययोग, आत्मयोग आदि नामों से भी जाना जाता है । खास अंग्रेजी ही जानने वाले वैश्विक जिज्ञासुओं के लिये इस बेवसाइट का निर्माण किया गया है । इस पर आपको दुर्लभ सहज योग के बारे में सभी जानकारी और आपकी सभी शंकाओं भ्रांतियों का समाधान आसानी से होगा । अधिक जानकारी हेतु लाग इन करें ।

http://www.supremeblissresearchfoundation.org/
और मेरे मार्गदर्शन और सरंक्षण में चलने वाली संस्था ।
सनातन धर्म और मानव उत्थान के लिये सतत प्रयत्नशील हमारी समर्पित संस्था " ज्ञानयोग धर्म चेतना समिति ( पंजी ), विनायक पुर, करहल जिला मैंनपुरी " द्वारा देश विदेश के सभी प्रेमी जनों को नववर्ष 2014 की बहुत बहुत शुभकामनायें । प्रभु आपके जीवन को सुख समृद्धि की रोशनी से सदा समृद्ध रखें । विनीत - सर्वेश शास्त्री ।
आपका नववर्ष मंगलमय हो । आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें ।
Happy new Year 2014 to all
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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326