15 अगस्त 2018

पवित्र किताबों का बोझ


=पवित्र किताबों का मनुष्य की आत्मा पर भारी बोझ है=

मुसलमानों की पवित्र किताब कुरआन इतनी बचकानी है, इतनी आदिम है।
उसका कारण है मोहम्मद अनपढ़ थे। वह खुद लिख नहीं सकते थे।
उन्होंने कहा होगा, और किसी और ने लिखा होगा।
उन्हें खुद धक्का लगा था जब उन्होंने आवाज सुनी थी।

वे पहाड़ पर अपनी भेड़ों बकरियों को चरा रहे थे। उन्हें सुनाई पड़ा - लिखो। 
उन्होंने सब तरफ देखा कोई नजर नहीं आया। दुबारा उन्होंने सुना - लिखो।

उन्होंने कहा - मैं निरक्षर हूँ, मैं लिख नहीं सकता। और तुम कौन हो?
वहाँ कोई नहीं था। वे बहुत कंप रहे थे, बहुत भयभीत हो गये थे।

और यह एक अस्थिर-मन का लक्षण है। 
जो अपने अचेतन से आ रही आवाज को बाहर से आ रही आवाज समझने की गलती कर रहा था।
यह उनका खुद का अचेतन था। 
परंतु चेतन के लिए अचेतन बहुत दूर है।
वह भीतर ही है। परंतु यदि मन असंतुलित हो।

और मोहम्मद का चित्त असंतुलित था।
इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि उनका पूरा जीवन एक धर्मांध का जीवन रहा है। लोगों को मारना, और मारकर धर्मांतरित करना।
“या तुम अनुयायी बनो, नहीं तो मरने के लिए तैयार रहो।”

इस्लाम ने दुनियां के एक तिहाई लोगों को धर्मांतरित किया है, तर्क से नहीं बल्कि तलवार से। वे तर्क करने के लिए सक्षम नहीं थे, और ना ही उनकी क्षमता थी पढ़ने, लिखने या विचार करने की।

तो जब उन्होंने इस अचेतन आवाज को सुना तो वे कंपते हुए, ज्वरग्रस्त और भयभीत होकर घर की तरफ दौड़े। वे बिस्तर में घुस गये, और अपनी पत्नी से कहा - मैं किसी से नहीं कह सकता कि खुद ईश्वर ने मेरे साथ बातचीत की है, मैं खुद भरोसा नहीं कर पा रहा हूँ। लगता है मैं पागल हुआ हूँ। शायद रेगिस्तान और पहाड़ियों की बहुत ज्यादा गर्मी में टहलने के कारण मैं भ्रांति में हूँ, या ऐसा ही कुछ है। मैंने सुना..और मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ ताकि मैं भारमुक्त हो जाऊँगा।

उस स्त्री ने उसे विश्वास दिलाया।

इसलिए मैं तुमसे बारबार कहता हूं, कि नेताओं को अनुयायियों की जरूरत होती है। खुद को यह विश्वास दिलाने के लिये कि वे नेता हैं।

उस स्त्री ने उसे विश्वास दिलाया कि वह सच में ईश्वर ही था। तुम पागल नहीं हो, ईश्वर सच में तुमसे बोला है।

वह स्त्री निश्चित ही मोहम्मद से प्रेम करती थी, क्योंकि उसकी उम्र चालीस साल की थी, और वह सिर्फ छब्बीस साल का था। और वह गरीब, असंस्कृत, अशिक्षित था। फिर भी उस अमीर स्त्री ने उससे शादी की थी। तो निश्चित ही वह स्त्री उस आदमी के प्रेम में थी।

उसने उसे विश्वास दिलाया - तुम चिंता मत करो, और आवाजें आयेगी। यह निश्चित ही शुरूआत है, इसलिए ईश्वर ने कहा ‘लिखो’ अगर तुम लिख नहीं सकते, तो फिकर मत करो। तुम सिर्फ इतना बता दो कि तुम्हें क्या कहा गया है, हम उसे लिखेंगे।

इस तरह कुरआन लिखी गई। और यह एक दिन, एक महीने, या एक साल में नहीं लिखी गई है, क्योंकि मोहम्मद सुस्पष्ट व्यक्ति नहीं थे। उसे पूरी जिंदगी लगी। कभीकभार कोई बात निकलती थी और वह कहता था - लिखो।

कुरआन को लिखने में कई साल लगे है, और उसमें से जो निकला है, वह करीब-करीब निरर्थक है। यह एक समझदार मनुष्य से भी नहीं निकली है, ईश्वर का तो क्या कहना। अगर कहीं कोई ईश्वर है तो?

अगर यह किताबें उस ईश्वर का प्रमाण है तो वह ईश्वर सच में नासमझ है। अब कुरआन अजीब चीजों के बारे में कहती है, जिनका मुसलमान अनुगमन करते है क्योंकि वह एक पवित्र किताब है।

मोहम्मद की खुद की नौ पत्नियां थी। वह गरीब था। उसमें एक पत्नी संभालने का भी सामर्थ्य नहीं था। परन्तु चूंकि एक अमीर स्त्री उसके प्रेम में पड़ी थी, वह चालीस साल की थी, और वह छब्बीस साल का, वह स्त्री जल्दी ही मर जायेगी फिर उसे उसका सारा धन मिलेगा। इसलिए उसने किसी भी तरह की सुंदर स्त्री से शादी करने की शुरुआत की जो उसे मिल सकती थी।

और उसने कुरआन में कहा कि - हर मुसलमान को चार पत्नियां करने का अधिकार है। यह ईश्वर का मुसलमानों को दिया गया विशेष उपहार है।

दूसरा कोई भी धर्म चार पत्नियां करने की अनुमति नहीं देता है। अब तुम्हें चार पत्नियां कहां मिलेंगी? प्रकृति में पुरुष और स्त्री हमेशा लगभग समान अनुपात में होते हैं, लिहाजा एक पुरूष, एक पत्नी यह बहुत ही प्राकृतिक व्यवस्था लगती है क्योंकि उनका अनुपात समान है। परन्तु यदि एक पुरुष चार पत्नियों से शादी कर रहा है, वह दूसरे तीन पुरूषों की पत्नियां ले रहा है। अब वे दूसरे तीन आदमी, वे क्या करेंगे?

यह इस्लाम की अच्छी कूटनीति बनी। इन दूसरे तीन मुसलमानों ने दूसरों की पत्नियों छीनना, मुस्लिम की नहीं, बल्कि गैर-मुस्लिमों की, और उन्हें इस्लाम में धर्मांतरित करना।

वस्तुत: जब भी कोई स्त्री मुसलमान से शादी करती है, तब वह भी मुसलमान बनती है, किसी विशेष धर्मांतरण की आवश्यकता नहीं होती है। और खासतौर से भारत से उन्होंने हजारों स्त्रियों को पकड़ा। हिंदू समाज संकट में था, और यहूदियों की तरह हिंदू भी धर्मांतरण में विश्वास नहीं करते हैं।

यह दो सबसे पुराने धर्म हैं, जो धर्मांतरण में विश्वास नहीं करते हैं। यहूदी जन्म से यहूदी बनता है, और हिंदू जन्म से हिंदू बनता है। और एक बार कोई हिंदू स्त्री मुसलमान बन गई, तो वह पतित हो जाती है। वह अछूत बन गई, उसको हिंदू धर्म में वापस नहीं लिया जा सकता है।

तो उन्होंने हर जगह से स्त्रियों को खोजा जिससे उन्हें उनकी आबादी अत्यधिक रूप से बढ़ाने में मदद मिली। आप तथ्य देखते हो? अगर ज्यादा स्त्रियां उपलब्ध हो तो आदमी चाहे जितने बच्चे पैदा कर सकता है, परन्तु एक स्त्री एक साल में एक ही बच्चे को जन्म दे सकती है। उसे दूसरे बच्चे को जन्म देने के लिए एक साल और लगता है। मुसलमानों की आबादी जल्द बढ़ी क्योंकि हर मुसलमान को चार पत्नियां करने का अधिकार दिया गया है।

और तलवार से..यह बहुत आश्चर्यजनक है कि लोग इसमें विश्वास करते है।

कुरआन कहती है कि - अगर आप किसी को इस्लाम में धर्मांतरित नहीं कर सकते हो, तो बेहतर होगा कि उसे मार डालो, क्योंकि आपने उसे मुक्ति दिलाई है, एक गलत जिंदगी जीने से, जो वह जीने जा रहा था। उसकी भलाई के लिए उसे मुक्त कर दो।

इस तरह उन्होंने बेहिसाब लोगों को मुक्ति दिलवायी, और मुक्ति दिलवाते गये। दोनों में से किसी भी एक तरीके से आप मुक्त हो सकते हैं, अगर आप इस्लाम धर्म स्वीकार करते हैं तब भी, क्योंकि ईश्वर दयालु है।

मुसलमान होने के लिए तीन चीजों में आस्था होनी चाहिए - एक ईश्वर, एक पैगंबर मोहम्मद, और एक पवित्र किताब कुरआन। बस यह तीन आस्थायें, और आप बच जाते हैं। अगर आप इन तीन आस्थाओं से बचना नहीं चाहते हो, तो तलवार तुरन्त आपको छुटकारा देगी।

परन्तु वे आपको गलत जीवन जीने की अनुमति नहीं देते। वे जानते हैं सही जीवन क्या है, और उनके जीवन जीने के तरीके के अलावा बाकी सब जीवन जीने के तरीके गलत हैं।

यह सब पवित्र किताबें हैं। इन पवित्र किताबों का मनुष्य की आत्मा पर भारी बोझ है। तो सबसे पहले मैं तुम्हें कहना चाहता हूँ कि मेरी सहित कोई भी किताब पवित्र नहीं है। सब मनुष्य निर्मित है। हाँ, वहाँ कुछ अच्छी तरह लिखी गई किताबें, और कुछ अच्छी तरह ना लिखी गई किताबें है। परन्तु वहाँ पवित्र और अपवित्र जैसी श्रेणियों में कोई किताब नहीं है।

--ओशो-- 
=फ्रॉम अनकांशसनेस टू कांशसनेस= 
प्रवचन - 17

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