tag:blogger.com,1999:blog-67003437606419171352024-03-15T18:09:31.117-07:00searchoftruth सत्यकीखोजसहज समाधि आश्रमhttp://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.comBlogger865125tag:blogger.com,1999:blog-6700343760641917135.post-30969458459815039332021-11-14T21:58:00.004-08:002021-11-14T21:58:31.806-08:00सबसे अमीर आदमी का अनुभव
जॉन
डी रॉकफेलर दुनिया के सबसे अमीर आदमी और पहले अरबपति थे। 25 साल की उम्र में, वे अमेरिका में सबसे बड़ी तेल
रिफाइनरियों में से एक के मालिक बने। और 31 साल की उम्र में, वे दुनिया के सबसे बड़े तेल रिफाइनर बन गए। 38 साल उम्र तक उन्होंने यू. एस.
में 90% रिफाइंड तेल की कमान संभा ली। और 50 की उम्र तक, वह
देश के सबसे अमीर व्यक्ति हो गए थे। जब उनकी मृत्यु हुई, तो
वह दुनिया के सबसे अमीर सहज समाधि आश्रमhttp://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6700343760641917135.post-52212737095810674512021-04-28T20:44:00.002-07:002021-04-28T20:44:23.272-07:00आक्सीजन है क्या? आक्सीजन है क्या?सबल चेतना शक्ति, जल और वायु तत्व को प्राण-क्रिया द्वारा स्पन्दनशील करके जो जीवनदायनी प्राण उर्जा रूपी यौगिक अणु समूह बनाती है। वही आक्सीजन है। शुद्ध अवस्था में यह निर्धूम (धुंआं, कार्बन रहित, स्वच्छ) है। उत्पन्न होने के बाद शरीर के अन्दर अपनी व्यवहारिक क्रिया करके ये शुद्ध आक्सीजन, धूम्र (धुयें सहित, कार्बन युक्त, अशुद्ध) में बदल कर कार्बन डाई आक्साइड हो जाती है।मतलब शरीर सहज समाधि आश्रमhttp://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6700343760641917135.post-53513769843724762342021-04-25T21:47:00.002-07:002021-04-25T21:47:30.069-07:00करोना के कारण फेफड़ों में संक्रमण गुरुजी, करोना के कारण लोगो के फेफड़ों में संक्रमण हो रहा है। सांस फूल रही है। कृपया मानवता के लिए सभी को यह समझाए।प्राकृतिक स्रोतों में - पीपल, नीम के वृक्ष, भीगी कच्ची जमीन पर लेटना, सिर, चेहरे एवं छाती पर ठंडे पानी के छींटे (यदि सर्दी का असर न हो), देशी गाय के पास खङा होना, नदी, झील आदि जलस्रोत का किनारा, भक्क सफ़ेद झागदार प्रकाश देखना, आज्ञाचक्र पर खुली आँखों के साथ नल से जुङे पाइप से दो सहज समाधि आश्रमhttp://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6700343760641917135.post-8392032299720755522021-03-17T20:55:00.000-07:002021-03-17T20:55:03.374-07:00मन को खुद से अलग करना जिस पुरूष को विदेह मुक्ति प्राप्त हो जाती है। उसका फ़िर कभी न उदय (वृद्धि) होता है और न ह्वास (समाप्त) होता है। वह न तो शान्त ही होता है और न अशान्त ही होता है। वह व्यक्त भी नहीं है अव्यक्त भी नही है। दूरस्थ भी नही है और निकटस्थ भी नही है अर्थात सर्वव्यापी है। वह आत्मरूप नही है। यह भी नही कह सकते। अर्थात वह आत्मरूप ही है। और आत्मा से भिन्न देह, इन्द्रिय आदि रूप नही है। यह भी नही कह सकतेसहज समाधि आश्रमhttp://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6700343760641917135.post-56645019821985797512021-03-17T20:52:00.005-07:002021-03-17T20:52:38.963-07:00 मल त्याग महत्वपूर्ण है मल त्याग महत्वपूर्ण है।जैसे आँख, कान, नाक, जीभ, त्वचा, पेट (आंतों) आदि का मल प्रतिदिन साफ़ करना (डिटाक्सिफ़िकेशन) अति आवश्यक है। (अन्यथा उनसे रोग उत्पन्न होंगे) वैसे ही “मन का मैल” भीप्रतिदिन किसी योग-क्रिया या समाधि क्रिया से करना अति आवश्यक है। अन्यथा इससे भी पहले “सूक्ष्म के रोग” उत्पन्न होंगे। और बाद में स्थूल रोगों में बदल जायेंगे। जैसे टीबी, अस्थमा, हार्ट अटैक आदि बीमारियाँ।दूसरे, मल सहज समाधि आश्रमhttp://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6700343760641917135.post-84683170179289842702020-08-05T21:05:00.004-07:002020-08-05T21:05:50.707-07:00जीव की ज्ञान, अज्ञान अवस्थायेंसामान्य अज्ञान स्थिति में (मनुष्य) जीव की स्वयं-प्रकाश स्थिति, धूसर बादलों में एक “काले कण” जैसी होती है। एक चमकीले सफ़ेद प्रकाश कण पर चढ़ा काला आवरण। गुरू द्वारा या कभी-कभी स्वयं की योग-भक्ति, ज्ञान के प्रयास से यह काला आवरण हट जाता है और वह स्वच्छ आकाश में चमकीला सूक्ष्म अणु हो जाता है। ऐसा और यहाँ तक होना सामान्य ही है। इसके बाद गुरू, ज्ञान और योग-भक्ति (करने) की सामर्थ्य और पहुँच के अनुसारसहज समाधि आश्रमhttp://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-6700343760641917135.post-14941675093677201882020-07-21T06:05:00.002-07:002020-07-21T06:05:36.325-07:00आंतरिक उर्जा
एक पूर्ण स्वस्थ आत्मिक जीवन के लिये मनुष्य को प्रचुर मात्रा में तीवृ वेगवान उर्जा की आवश्यकता तो है ही, योग क्रियायें एवं आत्मिक यात्रा के लिये भी यह अति आवश्यक है। लेकिन सुखद बात यह है कि अष्टांग योग एवं सहज योग में आवश्यकतानुसार उर्जा स्वयं उत्पादित होती रहती है। जबकि तन्त्र, मन्त्र आदि क्रियाओं में उर्जा बेहद क्षीण एवं उष्मा बेहद अधिक होती है।
(इसी कारण से तांत्रिक, मांत्रिकों के नेत्र लाल, सहज समाधि आश्रमhttp://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6700343760641917135.post-72419718220408138942020-07-09T20:10:00.002-07:002020-07-09T20:10:18.826-07:00योगी को सपने नहीं आते
स्वपन, मनुष्य की गहरी, अतृप्त, दबी हुयी वासनाओं के परिणाम स्वरूप हैं जो अर्धनिद्रा (सुषुप्ति) की अवस्था में मन की अवचेतन स्थिति में अनुभूत होते हैं। लेकिन ये क्रिया सामान्य मनुष्य के (भौहों से नीचे) पिंड से नीचे तक ही रहने की विवशता के कारण होती है। और कंठ स्थित चित्रणी नाङी में जमा “कारण” संस्कारों से होती है।
कारण में जाय, नाना संस्कार देखे।
जबकि एक सफ़ल योगी का (भौंहों के मध्य स्थित) सहज समाधि आश्रमhttp://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6700343760641917135.post-3783853120396572772020-06-25T05:30:00.002-07:002020-06-25T05:30:46.441-07:00शक्ति का स्रोत क्या है?
सभी के लिये यह एक सहज प्रश्न होना चाहिये कि आखिर जीव को शरीर संचालन क्रियाओं के लिये जो शक्ति प्राप्त होती है उसका “मुख्य स्रोत” क्या है? मोटे तौर पर, क्या भोजन से मिलने वाली उर्जा या इससे और ऊपर की योग-व्यायाम या प्राणायाम जैसी क्रियायें, या कुछ-कुछ ऐसी ही मंत्र-तंत्र आदि की वैज्ञानिक सिद्धियां।
यदि इनमें से किसी एक या सभी को भी हम स्वीकार कर लें तो भी यह प्रश्न बना रहेगा कि भोजन, योग या सहज समाधि आश्रमhttp://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6700343760641917135.post-14388227153383458842020-03-31T20:25:00.000-07:002020-03-31T20:25:02.584-07:00चार उद्यमी पुरूषार्थ कर्म
अकाल पुरूष
2+2=4 ये मानक, कालक्रम के अंतर्गत स्रष्टि का हेतु है एवं 2+2=7 (य़ा कुछ भी अन्य) जैसा अमानक अकाल-प्रवाही सत्व है। काल, अकाल दोनों से ही परे अनिर्वचनीय आत्मा है। कालक्रम सिर्फ़ सही कर्म से नियन्त्रित होता है। अकाल प्रवाह, ज्ञानयुक्त कर्म एवं ज्ञानयुक्त स्थितियों, साधनों से साध्य और गम्य है।
फ़िर ज्ञान, अज्ञान से भी शून्य आत्मा है, जिससे यह सब कुछ है, हुआ है। लेकिन समष्टि लय या अनन्त सहज समाधि आश्रमhttp://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6700343760641917135.post-71459283588391282782020-03-28T20:28:00.002-07:002020-03-28T20:28:53.432-07:00आधी शताब्दी तक बुरा हाल रहेगा
ब्रह्म-शूल
ब्रह्म संकल्पित (त्रय-) शूल, ब्रह्म-ज्ञान द्वारा ही निवारण किये जा सकते हैं। ब्रह्म-ज्ञान सिर्फ़ दो हैं - क्रिया योग एवं आयुर्वेद। आत्मबोध (सहज योग) इससे अलग और सर्वोच्च है, पर वह सभी को सुलभ नहीं होता। अतः क्रिया योग या आयुर्वेद अथवा दोनों के योग से कोई भी आपदा नाश की जा सकती है।
क्रिया योग के बिना, अकेला आयुर्वेद समर्थ नहीं होता लेकिन क्रिया योग को आयुर्वेद की तनिक भी आवश्यकता सहज समाधि आश्रमhttp://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6700343760641917135.post-54533332257992308822020-03-20T21:22:00.002-07:002020-03-20T21:22:42.958-07:00कोरोना विषाणु
सत्व-गुण की पूर्णता, या वृद्धि, क्षीण दोषों से उत्पन्न सभी घातक विषाणुओं का स्वतः सिद्ध काल है। यह उर्जा की मुख्यधारा से विकेन्द्रित होने के कारण होता है। कुण्डलिनी योग द्वारा “मुख्यधारा” से जुङाव अथवा सहज समाधि का आत्मबोध भाव किसी भी प्रकार के विनाशी रक्तबीजों (विषाणु आदि) का तुरन्त और स्वतः नाश कर देता है।
अर्थात योगी इनसे ऐसे ही अप्रभावित रहता है, जैसे कीचङ में कमल।
हे अविनाशी! सहज योग सहज समाधि आश्रमhttp://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6700343760641917135.post-87047911772065336542020-02-25T19:48:00.002-08:002020-02-25T19:48:38.798-08:00इन्द्रियों का लय
अपने
श्रोत्रेन्द्रिय का दिशाओं में, त्वगिन्द्रिय का विद्युत
में लय कर दे। चक्षुरिन्द्रिय का सूर्य
में तथा रसनेन्द्रिय का जल के देवता वरूण
में लय कर दे। प्राण का वायु में,
वाणी का अग्नि में,
और हस्तेन्द्रिय का इन्द्र में
लय कर दे। अपने पादेन्द्रिय का विष्णु में
तथा गुदा-इन्द्रिय का मित्र में लय कर दे। उपस्थेन्द्रिय का कश्यप में लय करके, उसके बाद मन का चन्द्रमा में लय
कर दे। इसी तरह बुद्धिसहज समाधि आश्रमhttp://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6700343760641917135.post-20904609181219210772020-02-23T20:59:00.002-08:002020-02-23T20:59:44.668-08:00अन्तःकरण की शुद्धि ही मन्त्र दीक्षा
बेहद ध्यान से पढ़िये
(श्रीमद भागवत स्कन्ध 12, अध्याय 11)
शौनक ने कहा - सूत जी! हम क्रिया-योग
का यथावत ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं क्योंकि उसका कुशलता पूर्वक ठीक-ठीक आचरण
करने से मरणधर्मा पुरूष अमरत्व प्राप्त कर लेता है। अतः हमें बतलाइये कि पांचरात्र
आदि तन्त्रों की विधि जानने वाले भगवान की आराधना करते समय किन-किन तत्वों
से उनके चरण आदि अंग, गरूड़ आदि उपांग,
सुदर्शन आदि आयुध और कौस्तुभसहज समाधि आश्रमhttp://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6700343760641917135.post-35694949471335818372019-11-22T17:46:00.001-08:002019-11-22T17:46:29.766-08:00एकलौ बीर
क्षण भर में ही क्रमश: एक देश से दूसरे अत्यन्त दूर देश तक प्राप्त संवित (ज्ञान) का दोनों देशों के बीच में जो निर्मल, निर्विषयक रूप है वही पर-ब्रह्म परमात्मा का वह सर्वोत्कृष्ट अक्षुब्ध रूप है।
देशाद्देशान्तरं दूरं प्राप्ताया: संविद: क्षणात।
यद्रूपममलं मध्ये परं तद्रूपमात्मन:॥
एकलौ बीर दुसरौ धीर, तीसरौ खटपट चोथौ उपाध।
दस-पंच तहाँ, बाद-बिबाद॥
---------------------------------------------
सहज समाधि आश्रमhttp://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6700343760641917135.post-8670981710447292612019-11-15T19:24:00.002-08:002019-11-15T19:24:56.202-08:00बिदेही ब्रह्म निरंजन
सृष्टि का सबसे ऊपरी आवरण (खोल, अंडा) ‘विराट’ कहलाता है। इसी विराट के अन्दर का खोल ‘हिरण्यगर्भ’ कहलाता है। हिरण्यगर्भ के भी अन्दर का खोल (जिसमें सभी जीव आदि स्थूल सृष्टि है) ‘ईश्वर’ कहलाता है। मुख्यतः हिरण्यगर्भ का अर्थ ‘सूक्ष्म प्रकृति’ या कारण-शरीरों से है। यह गुह्य ज्ञान ग्रन्थों में रूपक अन्दाज में लिखा है, और कुछ शास्त्रकारों के अपने शब्दों के कारण भिन्नता सी प्रतीत होती है।
हंसा-बगुला सहज समाधि आश्रमhttp://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6700343760641917135.post-52152572207584340182019-11-04T19:13:00.003-08:002019-11-04T19:13:29.277-08:00मैं जिस पर कृपा करता हूँ
मैं
जिस पर कृपा करता हूँ, उसका धन छीन लेता हूँ। क्योंकि जब मनुष्य धन के मद
से मतवाला हो जाता है, तब मेरा और लोगों का तिरस्कार करने लगता
है। यह जीव अपने कर्मों के कारण विवश होकर अनेक योनियों में भटकता रहता है,
जब कभी मेरी बड़ी कृपा से मनुष्य का शरीर प्राप्त करता है।
मनुष्य
योनि में जन्म लेकर यदि कुलीनता, कर्म, अवस्था, रूप, विद्या, ऐश्वर्य और धन आदि के कारण घमंड न हो जाये तो समझना चाहियेसहज समाधि आश्रमhttp://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6700343760641917135.post-39355970894046473852019-10-31T19:08:00.000-07:002019-10-31T19:08:36.808-07:00घोसी-कमरिया वाद। कमरिया उच्च क्यों?
महाभारत
घोसी-कमरिया वाद। कमरिया उच्च क्यों? विवाह आधारित तीन तथ्य।
अहीर (आभीर)
महाभारत, विष्णु-पुराण के अनुसार जय-विजय में से एक हिरण्यकशिपु, फ़िर रावण, फ़िर (श्रीकृष्ण के फ़ूफ़ा, चेदि देश के ‘दमघोष’ का पुत्र
होकर) शिशुपाल हुआ। इसके तीन आँखें, चार हाथ थे,
और जनमते ही गधे की तरह रेंकने लगा था।
(म. प्र. के जिला अशोकनगर (बुंदेलखंड)
में है चेदि (चंदेरी)। किंवदंती है कि यहां द्वापर-युग में सहज समाधि आश्रमhttp://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6700343760641917135.post-23687437318010839212019-08-17T20:17:00.001-07:002019-08-17T20:17:19.566-07:00बाणासुर राक्षस बना महाकाल
=धर्म-चिन्तन= महाकाल बाणासुर
ब्रह्मा के पुत्र मरीचि के पुत्र कश्यप
की बङी पत्नी दिति से दो पुत्र हिरण्यकशिपु, हिरण्याक्ष
पैदा हुये। हिरण्यकशिपु के चार पुत्रों में सबसे छोटे प्रह्लाद थे। प्रह्लाद के
विरोचन के बलि के बाण नाम का पुत्र हुआ। बाण ने शोणितपुर को राजधानी बनाया।
बाणासुर की कन्या उषा ने शंकर के कामवश होने पर गिरिजा का रूप धर कर भोग करना चाहा
पर गिरिजा के आ जाने से सफ़ल न हुयी।
सहज समाधि आश्रमhttp://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6700343760641917135.post-5104868306772562752019-08-15T20:44:00.001-07:002019-08-15T20:44:35.829-07:00साधू होय तो पक्का ह्वै के खेल
जिस प्रकार अनर्गल खाद्यों से अधिक भरा उदर, शारीर-व्याधि का हेतु तथा अनर्गल विचारों से भरा मन/अंतःकरण, जीव-विकार का हेतु है। उसी प्रकार पंच-विकारों से ग्रसित, आवरित हुआ आत्मा भव-विकारों का हेतु है।
क्रमशः आहार शोधन ही विकार निदान का हेतु
है।
शब्द-आत्म से ही पूर्ण विकारों का निदान संभव
है।
अति
आहार इंद्री बल करै, नासै ग्यांन मैथुन चित धरै।
व्यापै
न्यंद्रा झंपै काल, ताके हिरदै सदा सहज समाधि आश्रमhttp://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6700343760641917135.post-55039631091980193682019-08-12T19:20:00.001-07:002019-08-12T19:20:24.635-07:00सर्वव्यापी सत्ता शब्द-वीर
एक सोऽहं वीर सौ के, हंऽसो हजार एवं परमहंस लाख वीरों के समान है। शब्द-वीर सर्वव्यापी सत्ता है।
महामन्त्र, अजपा सोऽहं (बीज) निर्वाणी सिद्ध होने पर क्रमशः हंऽसो,
परमहंस एवं शब्दवीर तक भेदता है।
सोऽहं-सार से शब्द-सत्ता तक शक्ति है।
शब्द के पार विलक्षण आपही आप है।
कासी मुक्ति हेतु उपदेसू।
महामंत्र जोइ जपत महेसू।
उल्टा-नाम जपा जग जाना।
वाल्मीकि भये ब्रह्म समाना।
=धर्म-चिंतन=
सहज समाधि आश्रमhttp://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6700343760641917135.post-86464845286402143092019-08-10T20:00:00.000-07:002019-08-10T20:00:16.024-07:00अचल आत्मा, सचल प्रकृति
भूत एवं भविष्य तथा उनके समय एवं स्थान को
खत्म कर सकने वाला, निरंतर प्रकृति-प्रवाह से जुङा,
वर्तमान क्षण में सक्रिय/सचेत/जाग्रत योगी, इच्छामात्र
से समस्त प्रारब्ध/शरीरी/स्रष्टिक गतिविधियों का कुशल नियंता होता है।
यह “है” में “होना” का योग है।
अतः अचल आत्मा, सचल प्रकृति को यथावत जानो।
तासो ही कछु पाइये, कीजै जाकी आस।
रीते सरवर पर गये, कैसे बुझे पियास॥
आपा छिपा है आप में, आपही ढूंढे सहज समाधि आश्रमhttp://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6700343760641917135.post-47423808384063861082019-08-07T18:58:00.003-07:002019-08-07T18:58:43.893-07:00सुदामा से शंखचूङ दैत्य तक
साइकिल टयूब में वायु
भरने की भांति “हूँ” को कंठ से नाभि तक छोङना, ब्रह्म-मंत्र। एवं तदैव निर्वाणी
(“हूँ” रहित) क्रिया में एक चमत्कारी गूढ़-रहस्य है, जो साधक को
(भव)सागर का कुशल तैराक बना देता है।
यह “होना” एवं “है” दोनों
में प्रविष्टि है।
हंसा अब लख आप अपारा।
जो “सतनाम” साधु नहिं
जाना।
सो साधु भये जिवत मसाना॥
कलियुग साधु कहैं, हम जाना।
झूठ-शब्द मुख करहिं बखाना॥
वहाँसहज समाधि आश्रमhttp://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6700343760641917135.post-40037830008518396392019-08-06T20:28:00.001-07:002019-10-07T04:48:20.052-07:00सारशब्द प्रवचन लिंक
1. https://www.youtube.com/watch?v=4E_ft2lDDeM
2. https://www.youtube.com/watch?v=Ne3VLPusEMA&t=10s
3. https://www.youtube.com/watch?v=OrL3AKivepk
4. https://www.youtube.com/watch?v=rmCOYmCvkDI
5. https://www.youtube.com/watch?v=EsLh3LYAVKY&feature=youtu.be
6. https://www.youtube.com/watch?v=l8sV0DOwz48
7. &सहज समाधि आश्रमhttp://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6700343760641917135.post-89518852750535494132019-08-04T19:56:00.000-07:002019-08-04T19:56:39.391-07:00गुप्त भगवान एवं मोक्ष क्या है?
बाह्य सुधार/खोज भी
अंतर द्वारा ही है। भिन्न ये कि बाह्य भिन्न और अंतर अभिन्न है। बाह्य भ्रांति एवं
अंतर निर्भ्रांति है। निर्भ्रांति ही सत्य है। अंतर का भी अन्तर, अन्त हो जाना, शाश्वत, परम,
अविनाशी, घन-चैतन्य है।
अंतर से निरंतरता ही सर्वव्यापी
“हहर” है।
घट में है सूझै नहीं, लानत
ऐसी जिन्द।
तुलसी या संसार को, भओ मोतियाबिंद॥
सदगुरू पूरे वैदय हैं, अंजन
है सतसंग।
ज्ञान सराई जब लगे, तोसहज समाधि आश्रमhttp://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.com0