जिन खोजा तिन पाईया, गहरे पानी पैठि।
यद्यपि “सतकबीर” यूटयूब चैनल मैंने खोजा नहीं, बल्कि उसके एक भजन वीडियो पर निगाह जाते ही अनायास संयोगवश मिल गया।
दरअसल मैं कुछ ऐसी भजन आदि सामग्री की तलाश में था, जिसे मुझसे सम्पर्क करने वाले सन्तमत के आध्यात्म जिज्ञासुओं को सहज उपलब्ध करा सकूँ।
वैसे ‘सतकबीर’ मिलने से पहले मुझे यूटयूब पर श्री प्रहलाद सिंह टिपाणिया के गाये भजन मिल चुके थे, और तुलनात्मक उपलब्ध अन्य से, वह बेहतर थे।
फ़िर भी, क्योंकि टिपाणिया जी के शब्दों और गायकी दोनों में ही राजस्थानी लहजे का पुट था।
अतः वे मेरी दृष्टि में सभी हिन्दीभाषियों के लिये उतने उपयोगी नहीं थे।
तब इसी दौरान मुझे ‘सतकबीर’ मिला, जिसकी शान्त, शीतल, मधुर मीठी गायकी और कर्णप्रिय मद्धिम संगीत ने जैसे मन मोह लिया, मन्त्रमुग्ध कर दिया।
यहाँ तक होता, फ़िर भी ठीक था।
लेकिन सतकबीर ने वीडियो दृश्यांकन करने में आधुनिक और मनोरंजन पूर्ण विधा, कल्पना को संयुक्त किया है। जिसके बारे में कहना उचित नही।
वह आप स्वयं देखें।
https://www.youtube.com/channel/UCzwKhQ5yUo4k9b__AVqj3cA/videos
विशेष बात यह कि यहाँ ‘कबीर सागर’ (सम्पूर्ण) अनुराग सागर, बीजक, दोहावली, शब्दावली आदि की वृहद आडियो वीडियो श्रंखला है तथा कबीर के जीवन से सम्बन्धित कई अन्य वीडियो हैं।
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तब ‘हाथ कंगन को आरसी क्या’
स्वयं इस चैनल के वीडियो का अवलोकन करते हुये एक सुखद अनुभव करें।
जो कि बहुत कुछ मैं कम शब्दों के कारण लिख न सका।
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स्पष्टीकरण - न तो ये चैनल मेरा है, और न ही मैं चैनल से सम्बन्धित किसी को भी दूर-दूर तक जानता हूँ ।
बस एक अच्छे स्थान और सामग्री को पारमार्थिक भाव से सूचित कर रहा हूँ।
सतकबीर चैनल का लिंक, जहाँ सभी वीडियो लिस्टेड हैं।
https://www.youtube.com/channel/UCzwKhQ5yUo4k9b__AVqj3cA/videos
मन ही मन को पकड़ता, किस विध आवै हाथ।
ज्ञान घोड़े असवार हो, फिर देखो इसकी जात॥
मन बिन ज्ञान न उपजे, मन बिन मिटे न बांस।
मन ही काटे जाल को, और मन ही मन को फांस॥
यद्यपि “सतकबीर” यूटयूब चैनल मैंने खोजा नहीं, बल्कि उसके एक भजन वीडियो पर निगाह जाते ही अनायास संयोगवश मिल गया।
दरअसल मैं कुछ ऐसी भजन आदि सामग्री की तलाश में था, जिसे मुझसे सम्पर्क करने वाले सन्तमत के आध्यात्म जिज्ञासुओं को सहज उपलब्ध करा सकूँ।
वैसे ‘सतकबीर’ मिलने से पहले मुझे यूटयूब पर श्री प्रहलाद सिंह टिपाणिया के गाये भजन मिल चुके थे, और तुलनात्मक उपलब्ध अन्य से, वह बेहतर थे।
फ़िर भी, क्योंकि टिपाणिया जी के शब्दों और गायकी दोनों में ही राजस्थानी लहजे का पुट था।
अतः वे मेरी दृष्टि में सभी हिन्दीभाषियों के लिये उतने उपयोगी नहीं थे।
तब इसी दौरान मुझे ‘सतकबीर’ मिला, जिसकी शान्त, शीतल, मधुर मीठी गायकी और कर्णप्रिय मद्धिम संगीत ने जैसे मन मोह लिया, मन्त्रमुग्ध कर दिया।
यहाँ तक होता, फ़िर भी ठीक था।
लेकिन सतकबीर ने वीडियो दृश्यांकन करने में आधुनिक और मनोरंजन पूर्ण विधा, कल्पना को संयुक्त किया है। जिसके बारे में कहना उचित नही।
वह आप स्वयं देखें।
https://www.youtube.com/channel/UCzwKhQ5yUo4k9b__AVqj3cA/videos
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मेरे अनुसार ‘सतकबीर’ में वही सब विशेषता है, जिसे एक आध्यात्मिक जिज्ञासु खोजता है।विशेष बात यह कि यहाँ ‘कबीर सागर’ (सम्पूर्ण) अनुराग सागर, बीजक, दोहावली, शब्दावली आदि की वृहद आडियो वीडियो श्रंखला है तथा कबीर के जीवन से सम्बन्धित कई अन्य वीडियो हैं।
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तब ‘हाथ कंगन को आरसी क्या’
स्वयं इस चैनल के वीडियो का अवलोकन करते हुये एक सुखद अनुभव करें।
जो कि बहुत कुछ मैं कम शब्दों के कारण लिख न सका।
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स्पष्टीकरण - न तो ये चैनल मेरा है, और न ही मैं चैनल से सम्बन्धित किसी को भी दूर-दूर तक जानता हूँ ।
बस एक अच्छे स्थान और सामग्री को पारमार्थिक भाव से सूचित कर रहा हूँ।
सतकबीर चैनल का लिंक, जहाँ सभी वीडियो लिस्टेड हैं।
मन ही मन को पकड़ता, किस विध आवै हाथ।
ज्ञान घोड़े असवार हो, फिर देखो इसकी जात॥
मन बिन ज्ञान न उपजे, मन बिन मिटे न बांस।
मन ही काटे जाल को, और मन ही मन को फांस॥