अणुदीक्षा वास्तव में ‘सुरति शब्द योग’ और ‘कुण्डलिनी योग’ का ही एक सूक्ष्म अंग है । जो कुण्डलिनी ज्ञान के गुरु या सहज योग के सदगुरु द्वारा (उनकी इच्छा से) दिये जाने पर द्वैत अद्वैत योग दोनों में अनभूत है ।
ये साधक की सूक्ष्मता और तीक्ष्ण बुद्धि से शीघ्र अनुभव में आता है ।
यदि अनन्त अलौकिक (लय योग के) आत्मज्ञान को मोटे तौर पर 4 प्रमुख भागों में बाँटा जाये ।
तो सबसे पहले -
1 मन्त्र दीक्षा
2 अणु दीक्षा
3 हँसदीक्षा (समाधि दीक्षा - गुरु इच्छा होने पर)
4 परमहँस दीक्षा (शक्ति दीक्षा - गुरु इच्छा होने पर)
5 सार शब्द दीक्षा (जीव और परमात्मा का एकीकरण)
ये कृम बनता है ।
मन्त्र दीक्षा - में मन के मल कषाय (मलिन आवरण, दोष, विकार) आदि दोष निवृत होते हैं । ये वृति और सुरति दोनों तरह के सन्तों (गुरुओं) द्वारा दी जाती है । इसमें पंचाक्षरी (ॐ नमः शिवाय आदि) से लेकर द्वादशाक्षरी मन्त्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय आदि) और रं लं ह्यीं क्लीं श्रीं आदि बीज मन्त्र गुरु अनुसार कुछ भी हो सकते हैं (आत्मज्ञान या सुरति शब्द योग में ‘मन्त्र दीक्षा’ नही दी जाती)
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अणु दीक्षा - में प्रकृति के अणुओं को जानना, उनका व्यवहार नियन्त्रण आदि सिद्ध किया जाता है । प्रकृति संयोगी गुण आधारित पदार्थ का रूप धरने से पूर्व का आणविक परमाणविक और चेतन, उर्जा के मिलने से जो दृव्य सा बनता है । वह दृश्य होता है । इसके संयम से योगी पदार्थ रूपान्तरण आदि क्रियायें करते हैं ।
सिर्फ़ परमात्मा को छोङकर सृष्टि या बाकी सभी कुछ चेतन अणु परमाणुओं से जङ प्रकृति के विभिन्न पदार्थों और चेतन उर्जा द्वारा तीन गुणों से तालमेल, संयोग करता हुआ विलक्षण सृष्टि का निर्माण कर रहा है । अतः अणु दीक्षा में किसी भी साधक को मिले गुरु अनुसार यही सब कुछ ज्ञान साधन और सिद्ध कराया जाता है ।
वास्तव में अणु दीक्षा अलग से देने का कोई विधान नहीं हैं । क्योंकि सर्वोच्च ‘सुरति शब्द योग’ या सहज योग या ‘राजयोग’ या आत्मज्ञान योग एक ऐसी भक्ति साधना है । जिसको दूसरे अर्थों में ‘लय योग’ भी कहा जाता है । अर्थात इसमें सभी प्रकार के योग, ज्ञान, अलौकिक विद्यायें स्वतः साधना अनुसार ‘लय’ होती जाती है ।
एकहि साधे सब सधे, सब साधे सब जायें ।
रहिमन सीचों मूल को, फ़ूलहि फ़लहि अघाय ।
अणु दीक्षा ज्ञान में हम स्वयं के शरीर या किसी अंग विशेष या मन या प्रकृति या सृष्टि में आने वाले सभी पदार्थ आदि के अणुओं को परस्पर क्रिया करते हुये देखते, जानते, सिद्ध करते हैं । किसी भी उच्चस्तरीय योगी का समस्त ज्ञान अणु ज्ञान या अणु सिद्धि के बिना बेकार ही है । यदि वो स्थूल रूप से उसके आंतरिक स्वरूप घटकों क्रियाओं आदि को जाने बिना स्थूल पदार्थ आदि रूप में सिद्ध कर व्यवहारित करता है ।
इसको सरल उदाहरण से ऐसे समझ सकते हैं । जैसे कोई कम्प्यूटर का सिर्फ़ फ़ंडामेंटल जैसा ही ज्ञान रखता हो । और कोई साफ़्टवेयर हार्डवेयर इंजीनियर जैसा ज्ञान रखता हो ।
अणु दीक्षा से बहुत प्रकार के लाभ भी हैं । अगर किसी योगी की चेतना वांछित स्तर तक सशक्त है । तो वह किसी भी व्यक्ति, पदार्थ या प्रकृति आदि तत्वों में चेतना के संयोग से अणुओं में इच्छित परिवर्तन कर सकता है ।
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हँस दीक्षा - में जीवात्मा सार, असार, सत, असत (नीर-क्षीर विवेक) को जानकर सार को ग्रहण करने लगता है । यह दीक्षा पाँच शब्दों (धुनों) और पाँच मुद्राओं के ज्ञान पर आधारित है । हंस की पहुँच ब्रह्म शिखर तक होती है ।
(पूर्ण जानकारी हेतु हंसदीक्षा लेख देखें - क्लिक करें)
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समाधि दीक्षा - सन्तमत की ‘चेतन समाधि’ और ‘विदेह अवस्था’ के अनुभव, स्वयंभव और ध्यान की सरलता हेतु समाधि दीक्षा दी जाती है । इसका कोई निश्चित समय नही है । न ही हंसदीक्षा की भांति कोई नामदान (उपदेश) या दीक्षा आयोजन आदि होता है । गुरु दीक्षा सूत्र बताते हैं और दीक्षा आदेशित कर देते हैं ।
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परमहंस दीक्षा - जब बृह्माण्ड की चोटी को सफ़लता पूर्वक पार किया हुआ हंस उपदेशी परमहंस दीक्षा का अधिकारी हो जाता है (हँस अविनाशी जीव को कहा जाता है और परम शब्द सृष्टि से परे परमात्मा का द्योतक है) तब इसका सीधा सा अर्थ है कि - ऐसा हँस परमात्मा के क्षेत्र में पहुँचने लगता है । और यदि उसकी श्रद्धा, भक्ति, लगन, गुरु सेवा आदि सब कुछ पूर्ण उत्तम श्रेणी का है । तो वह परमात्मा के साक्षात्कार तक पहुँचता है ।
अतः पारब्रह्म क्षेत्र में प्रवेश के लिये ‘परमहंस दीक्षा’ सिर्फ़ सदगुरु द्वारा दी जाती है । गुरु इसका अधिकारी नही होता ।
दीक्षा का समय और सामग्री, तरीका लगभग हंसदीक्षा वाला ही है । इसमें ध्यान का तरीका, स्थान हंसदीक्षा से भिन्न है । इस दीक्षा में तीन अन्य भिन्न चीजें भी हैं जो सिर्फ़ दीक्षा पात्र को बतायी जाती हैं ।
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सार शब्द दीक्षा - इसके बारे में सब कुछ गुप्त है । यह सिर्फ़ अधिकारी शिष्य हेतु है जो गिने चुने हो पाते हैं ।
phone - 82188 43911
Guru Purnima Pravachan by Sri Shivanand ji Maharaj Paramhans
https://www.youtube.com/watch?v=Az5wG24V4uI
https://www.youtube.com/watch?v=ZyDUVcl44hQ
https://www.youtube.com/watch?v=Az5wG24V4uI&feature=youtu.be
This video is captures on 2nd & 3rd of July at Chintaharan Ashram, Nangla Bhadon, Mustafabad Road, Ferozabad, Uttar Pradesh.
ये साधक की सूक्ष्मता और तीक्ष्ण बुद्धि से शीघ्र अनुभव में आता है ।
यदि अनन्त अलौकिक (लय योग के) आत्मज्ञान को मोटे तौर पर 4 प्रमुख भागों में बाँटा जाये ।
तो सबसे पहले -
1 मन्त्र दीक्षा
2 अणु दीक्षा
3 हँसदीक्षा (समाधि दीक्षा - गुरु इच्छा होने पर)
4 परमहँस दीक्षा (शक्ति दीक्षा - गुरु इच्छा होने पर)
5 सार शब्द दीक्षा (जीव और परमात्मा का एकीकरण)
ये कृम बनता है ।
मन्त्र दीक्षा - में मन के मल कषाय (मलिन आवरण, दोष, विकार) आदि दोष निवृत होते हैं । ये वृति और सुरति दोनों तरह के सन्तों (गुरुओं) द्वारा दी जाती है । इसमें पंचाक्षरी (ॐ नमः शिवाय आदि) से लेकर द्वादशाक्षरी मन्त्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय आदि) और रं लं ह्यीं क्लीं श्रीं आदि बीज मन्त्र गुरु अनुसार कुछ भी हो सकते हैं (आत्मज्ञान या सुरति शब्द योग में ‘मन्त्र दीक्षा’ नही दी जाती)
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अणु दीक्षा - में प्रकृति के अणुओं को जानना, उनका व्यवहार नियन्त्रण आदि सिद्ध किया जाता है । प्रकृति संयोगी गुण आधारित पदार्थ का रूप धरने से पूर्व का आणविक परमाणविक और चेतन, उर्जा के मिलने से जो दृव्य सा बनता है । वह दृश्य होता है । इसके संयम से योगी पदार्थ रूपान्तरण आदि क्रियायें करते हैं ।
सिर्फ़ परमात्मा को छोङकर सृष्टि या बाकी सभी कुछ चेतन अणु परमाणुओं से जङ प्रकृति के विभिन्न पदार्थों और चेतन उर्जा द्वारा तीन गुणों से तालमेल, संयोग करता हुआ विलक्षण सृष्टि का निर्माण कर रहा है । अतः अणु दीक्षा में किसी भी साधक को मिले गुरु अनुसार यही सब कुछ ज्ञान साधन और सिद्ध कराया जाता है ।
वास्तव में अणु दीक्षा अलग से देने का कोई विधान नहीं हैं । क्योंकि सर्वोच्च ‘सुरति शब्द योग’ या सहज योग या ‘राजयोग’ या आत्मज्ञान योग एक ऐसी भक्ति साधना है । जिसको दूसरे अर्थों में ‘लय योग’ भी कहा जाता है । अर्थात इसमें सभी प्रकार के योग, ज्ञान, अलौकिक विद्यायें स्वतः साधना अनुसार ‘लय’ होती जाती है ।
एकहि साधे सब सधे, सब साधे सब जायें ।
रहिमन सीचों मूल को, फ़ूलहि फ़लहि अघाय ।
अणु दीक्षा ज्ञान में हम स्वयं के शरीर या किसी अंग विशेष या मन या प्रकृति या सृष्टि में आने वाले सभी पदार्थ आदि के अणुओं को परस्पर क्रिया करते हुये देखते, जानते, सिद्ध करते हैं । किसी भी उच्चस्तरीय योगी का समस्त ज्ञान अणु ज्ञान या अणु सिद्धि के बिना बेकार ही है । यदि वो स्थूल रूप से उसके आंतरिक स्वरूप घटकों क्रियाओं आदि को जाने बिना स्थूल पदार्थ आदि रूप में सिद्ध कर व्यवहारित करता है ।
इसको सरल उदाहरण से ऐसे समझ सकते हैं । जैसे कोई कम्प्यूटर का सिर्फ़ फ़ंडामेंटल जैसा ही ज्ञान रखता हो । और कोई साफ़्टवेयर हार्डवेयर इंजीनियर जैसा ज्ञान रखता हो ।
अणु दीक्षा से बहुत प्रकार के लाभ भी हैं । अगर किसी योगी की चेतना वांछित स्तर तक सशक्त है । तो वह किसी भी व्यक्ति, पदार्थ या प्रकृति आदि तत्वों में चेतना के संयोग से अणुओं में इच्छित परिवर्तन कर सकता है ।
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हँस दीक्षा - में जीवात्मा सार, असार, सत, असत (नीर-क्षीर विवेक) को जानकर सार को ग्रहण करने लगता है । यह दीक्षा पाँच शब्दों (धुनों) और पाँच मुद्राओं के ज्ञान पर आधारित है । हंस की पहुँच ब्रह्म शिखर तक होती है ।
(पूर्ण जानकारी हेतु हंसदीक्षा लेख देखें - क्लिक करें)
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समाधि दीक्षा - सन्तमत की ‘चेतन समाधि’ और ‘विदेह अवस्था’ के अनुभव, स्वयंभव और ध्यान की सरलता हेतु समाधि दीक्षा दी जाती है । इसका कोई निश्चित समय नही है । न ही हंसदीक्षा की भांति कोई नामदान (उपदेश) या दीक्षा आयोजन आदि होता है । गुरु दीक्षा सूत्र बताते हैं और दीक्षा आदेशित कर देते हैं ।
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परमहंस दीक्षा - जब बृह्माण्ड की चोटी को सफ़लता पूर्वक पार किया हुआ हंस उपदेशी परमहंस दीक्षा का अधिकारी हो जाता है (हँस अविनाशी जीव को कहा जाता है और परम शब्द सृष्टि से परे परमात्मा का द्योतक है) तब इसका सीधा सा अर्थ है कि - ऐसा हँस परमात्मा के क्षेत्र में पहुँचने लगता है । और यदि उसकी श्रद्धा, भक्ति, लगन, गुरु सेवा आदि सब कुछ पूर्ण उत्तम श्रेणी का है । तो वह परमात्मा के साक्षात्कार तक पहुँचता है ।
अतः पारब्रह्म क्षेत्र में प्रवेश के लिये ‘परमहंस दीक्षा’ सिर्फ़ सदगुरु द्वारा दी जाती है । गुरु इसका अधिकारी नही होता ।
दीक्षा का समय और सामग्री, तरीका लगभग हंसदीक्षा वाला ही है । इसमें ध्यान का तरीका, स्थान हंसदीक्षा से भिन्न है । इस दीक्षा में तीन अन्य भिन्न चीजें भी हैं जो सिर्फ़ दीक्षा पात्र को बतायी जाती हैं ।
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सार शब्द दीक्षा - इसके बारे में सब कुछ गुप्त है । यह सिर्फ़ अधिकारी शिष्य हेतु है जो गिने चुने हो पाते हैं ।
phone - 82188 43911
Guru Purnima Pravachan by Sri Shivanand ji Maharaj Paramhans
https://www.youtube.com/watch?v=Az5wG24V4uI
https://www.youtube.com/watch?v=ZyDUVcl44hQ
https://www.youtube.com/watch?v=Az5wG24V4uI&feature=youtu.be
This video is captures on 2nd & 3rd of July at Chintaharan Ashram, Nangla Bhadon, Mustafabad Road, Ferozabad, Uttar Pradesh.
2 टिप्पणियां:
राजीव जी I love you
राजीव भैया मुझे श्री आनंदपुर से हँस दीक्षा मिली श्री परमहंसों जी में मेरा अटल विश्वास है बस में मानव जन्म में भक्ति करू आशीर्वाद देवें आप सभी महपुरुरुषो के श्री चरणों में मेरा दास का सादर प्रणाम..... सार शब्द से बहुत भर्मित हुआ खास कर रामपाल जी महराज जी के वीडियो से अपने श्री गुरुमहाराज जी पर ऐसा विश्वास था के चाहे जो हो उन्हें कभी ना त्यागु चाहे भजन भक्ति भी नियमित नहीं हो रही हो पर मेरे आत्मा मन का बस एक ही मालिक एक टेक प्रभु आपकी नहीं भरोसा आन..... अतः जहाँ चाह वहाँ राह अचानक परम संत फ़क़ीर चंद जी के सतसंग मिले और सुनते सुनते पाता चला सार शब्द क्या है वो तो संत मत की अंतिम अवस्था अपना आत्मा परमात्मा है जहाँ ना तू ना मैं ना गुरु न चेला बहुत कुछ परम संत कबीर साहिबजी की बानी को परम संत फ़क़ीर चंद जी अपने अनुभवों के प्रत्यक्ष प्रणाम से तुलना करके सत्य सवीकार वर्ना उन्होंने वचन दिया था के यदि साधन अभ्यास के बाद भी संतो की बानी झूठी निकली तो वे उनका विरोध कर जायेंगे... चाहे उन्हें नरक मिले पर ऐसा नहीं सच निकली एक सच्चे संत जो सभी गुरुओ को खरी खोटी सुना गए जिन्होंने अपनी कमियां तक नहीं छिपाई में उनको भी प्रणाम करता हूँ
आप जी के श्री चरणों में कोटि कोटिन दंडवत वंदना
आपका राजेश सबका दास
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