14 नवंबर 2021

सबसे अमीर आदमी का अनुभव

 


 

जॉन डी रॉकफेलर दुनिया के सबसे अमीर आदमी और पहले अरबपति थे। 25 साल की उम्र में, वे अमेरिका में सबसे बड़ी तेल रिफाइनरियों में से एक के मालिक बने। और 31 साल की उम्र में, वे दुनिया के सबसे बड़े तेल रिफाइनर बन गए। 38 साल उम्र तक उन्होंने यू. एस. में 90% रिफाइंड तेल की कमान संभा ली। और 50 की उम्र तक, वह देश के सबसे अमीर व्यक्ति हो गए थे। जब उनकी मृत्यु हुई, तो वह दुनिया के सबसे अमीर आदमी थे।

 

एक युवा के रूप में वे अपने प्रत्येक निर्णय, दृष्टिकोण और रिश्ते को अपनी व्यक्तिगत शक्ति और धन को बढ़ाने में लगाते थे। लेकिन 53 साल की उम्र में वे बीमार हो गए। उनका पूरा शरीर दर्द से भर गया। और उनके सारे बाल झड़ गए।

 

नियति को देखिए,उस पीड़ादायक अवस्था में, दुनिया का एकमात्र अरबपति जो सब कुछ खरीद सकता था। अब केवल सूप और हल्के से हल्के स्नैक्स ही पचा सकता था।

 

उनके एक सहयोगी ने लिखा - वह न तो सो सकते थे। न मुस्कुरा सकते थे। और उस समय जीवन में उसके लिए कुछ भी मायने नहीं रखता था। 

 

उनके व्यक्तिगत और अत्यधिक कुशल चिकित्सकों ने भविष्यवाणी की कि वह एक वर्ष ही जी पाएंगे।

उनका वह साल बहुत धीरे-धीरे, बहुत पीड़ा से गुजर रहा था।

 

जब वह मृत्यु के करीब पहुंच रहे थे। एक सुबह उन्हें अहसास हुआ कि वह अपनी संपत्ति में से कुछ भी, अपने साथ अगली दुनिया में नहीं ले जा सकते। जो व्यक्ति पूरी व्यापार की दुनिया को नियंत्रित कर सकता था। उसे अचानक एहसास हुआ कि उसका अपना जीवन ही उसके नियंत्रण में नहीं है।

 

उनके पास एक ही विकल्प बचा था। उन्होंने अपने वकीलों, एकाउंटेंट और प्रबंधकों को बुलाया। और घोषणा की कि वह अपनी संपत्ति को अस्पतालों में, अनुसंधान के कार्यो में और धर्म-दान के कार्यों के लिए उपयोग में लाना चाहते हैं।

 

जॉन डी. रॉकफेलर ने अपने फाउंडेशन की स्थापना की। इस नई दिशा में उनके फाउंडेशन के अंतर्गत, अंततः पेनिसिलिन की खोज हुई। मलेरिया, तपेदिक और डिप्थीरिया का इलाज ईजाद हुआ।

 

लेकिन शायद रॉकफेलर की कहानी का सबसे आश्चर्यजनक हिस्सा यह है कि जिस क्षण उन्होंने अपनी कमाई का हिस्सा धर्मार्थ देना शुरू किया। उसके शरीर की हालात आश्चर्यजनक रूप से बेहतर होती गई।

एक समय ऐसा लग रहा था कि वह 53 साल की उम्र तक ही जी पाएंगे। लेकिन वे 98 साल तक जीवित रहे।

 

रॉकफेलर ने कृतज्ञता सीखी। और अपनी अधिकांश संपत्ति समाज को वापस कर दी। और ऐसा करने से वह न केवल ठीक हो गए। बल्कि एक परिपूर्णता के अहसास में भर गए। उन्होंने बेहतर होने और परिपूर्ण होने का तरीका खोज लिया।

 

ऐसा कहा जाता है के रॉकफेलर ने जन-कल्याण के लिए अपना पहला दान स्वामी विवेकानंद के साथ बैठक के बाद दिया। और उत्तरोत्तर वे एक उल्लेखनीय परोपकारी व्यक्ति बन गए। स्वामी विवेकानंद ने रॉकफेलर को संक्षेप में समझाया कि उनका यह परोपकार, गरीबों और संकटग्रस्त लोगों की मदद करने का एक सशक्त माध्यम बन सकता है।

 

अपनी मृत्यु से पहले, उन्होंने अपनी डायरी में लिखा - मुझे जीवन ने काम करना सिखाया।

मेरा जीवन एक लंबी, सुखद यात्रा है। काम और आनंद से भरपूर, मैंने राह की चिंता छोड़ दी।

और ईश्वर ने मुझे हर रोज एक अच्छाई से नवाजा।

 

देने का सुख ही जीवन जीने का सुख है। दुनिया की सारी दौलत से ज्यादा जरूरी है मन की शांति। 

आप वो काम भले न करे जिससे खुदा मिले। पर वो काम जरूर करें जिससे दुआ मिले। तप-सेवा, सुमिरन की त्रिस्तरीय मानस योग सिद्धांत यह बात विस्तार से समझाती है।

 

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28 अप्रैल 2021

आक्सीजन है क्या?

 आक्सीजन है क्या?


सबल चेतना शक्ति, जल और वायु तत्व को प्राण-क्रिया द्वारा स्पन्दनशील करके जो जीवनदायनी प्राण उर्जा रूपी यौगिक अणु समूह बनाती है। वही आक्सीजन है। शुद्ध अवस्था में यह निर्धूम (धुंआं, कार्बन रहित, स्वच्छ) है। उत्पन्न होने के बाद शरीर के अन्दर अपनी व्यवहारिक क्रिया करके ये शुद्ध आक्सीजन, धूम्र (धुयें सहित, कार्बन युक्त, अशुद्ध) में बदल कर कार्बन डाई आक्साइड हो जाती है।


मतलब शरीर में जल और वायु की शुद्धता, सही मात्रा, अनुपात सही होने पर, और प्राणक्रिया को सबल बनाये रखने से शरीर में आक्सीजन लबालब रहेगी। उर्जा भरपूर रहेगी।

अधिक विस्तार से लिखना संभव नहीं। उपरोक्त शब्दों का सही अर्थ समझ कर आप समस्या हल कर सकते हैं। या फ़िर फ़ोन कर सकते हैं।



योग जानने वाले जल, वायु तत्व का ध्यान करके दो मिनट में आक्सीजन स्तर सही कर लेते हैं।


राम शब्द का सही अर्थ और महिमा जानने वाले एक क्षण में सब कुछ ठीक कर लेते हैं।



निम्न दोहों पर ध्यान दें

सभी रसायन हम किये, नहीं “नाम” सम कोय।

रंचक तन में संचरै, सब तन कंचन होय॥

तात स्वर्ग अपवर्ग सुख, धरिय तुला एक अंग।

तूल न ताहि सकल मिल, जो सुख “लव सतसंग॥


सहज समाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था

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बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) 


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25 अप्रैल 2021

करोना के कारण फेफड़ों में संक्रमण

 गुरुजी, करोना के कारण लोगो के फेफड़ों में संक्रमण हो रहा है। सांस फूल रही है। कृपया मानवता के लिए सभी को यह समझाए।


प्राकृतिक स्रोतों में - पीपल, नीम के वृक्ष, भीगी कच्ची जमीन पर लेटना, सिर, चेहरे एवं छाती पर ठंडे पानी के छींटे (यदि सर्दी का असर न हो), देशी गाय के पास खङा होना, नदी, झील आदि जलस्रोत का किनारा, भक्क सफ़ेद झागदार प्रकाश देखना, आज्ञाचक्र पर खुली आँखों के साथ नल से जुङे पाइप से दो मिनट धार मारना, इनसे आक्सीजन स्तर एकदम बढ़ता है। 

विशेष - लेकिन इनमें से पानी से सम्बन्धित उपाय सर्दी से पीङित लोग न करें।


शारीरिक क्रियाओं द्वारा - नाभि स्थान के पेट को मांसपेशियों द्वारा ही जितना हो सके अन्दर दबाना, मांसपेशियों से न होने पर हाथ/तकिये आदि बाहरी उपायों से दबाना। दबाव सामान्यता सहनीय हो, अधिक न दबायें। दौङ सकते हों तो दौङें। अन्य कसरती क्रियायें भी ह्रदय/फ़ेफ़ङों की गति/क्षमता बढ़ाकर आक्सीजन स्तर सुधारती हैं। दर्द से कराहने जैसी आवाज ऊं-ऊं और छोटे बच्चे की रोते-रोते थकने के बाद के रोने जैसी क्रिया करना, शरीर के तन्त्र में कई सुधार कर देती है।


मन्त्र/ध्यान द्वारा - किसी भी बीज मन्त्र में अनुस्वार (अं-ग, बिन्दी) को यथासंभव दीर्घ करना।


गुरू द्वारा - जो गुरू से जुङे हैं। उनको ये समस्यायें नहीं आतीं।  

17 मार्च 2021

मन को खुद से अलग करना

 जिस पुरूष को विदेह मुक्ति प्राप्त हो जाती है। उसका फ़िर कभी न उदय (वृद्धि) होता है और न ह्वास (समाप्त) होता है। वह न तो शान्त ही होता है और न अशान्त ही होता है। वह व्यक्त भी नहीं है अव्यक्त भी नही है। दूरस्थ भी नही है और निकटस्थ भी नही है अर्थात सर्वव्यापी है। 

वह आत्मरूप नही है। यह भी नही कह सकते। अर्थात वह आत्मरूप ही है। और आत्मा से भिन्न देह, इन्द्रिय आदि रूप नही है। यह भी नही कह सकते। क्योंकि सर्व-स्वरूप होने से सब कुछ वही है।  

जहां नहीं मन मनसा दोई, आसा-तृष्णा लखै न कोई।

पाप-पुन्य तहां एक न होई, निर्भय नाम जपो नर सोई।।

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परमात्मा दूर भी नहीं है, नजदीक भी नही है। सुलभ भी नही है, दुर्लभ भी नही है। और किसी दुर्गम स्थान में स्थित भी नही है। किन्तु विस्मृत सोने के हार कि भांति ज्ञान कौशल से अपने शरीर में ही प्राप्त होता है। 

परमात्मा की प्राप्ति में तपस्या, दान, व्रत, तीर्थ आदि कुछ भी सहयोग नहीं करते। केवल स्वरूप में विश्रान्ति को छोङकर, उसकी प्राप्ति में और कुछ भी साधन नही है।

यह गुन साधन से नहि होई।

तुम्हरी कृपा पावे कोई कोई॥

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मन को खुद से अलग करना

ज्ञानी का आतिवाहिक (सूक्ष्म, प्रातिभासिक) शरीर भी नहीं है फ़िर उसका आधिभौतिक (स्थूल, दिखने वाला) शरीर कैसे हो सकता है? ब्रह्मा के आकार को धारण करने वाले, मन नामक मनुष्य का मनोराज्य, यह जगत सत्य रूप सा स्थित है। मन ही ब्रह्मा है। वह संकल्पात्मक अपने शरीर को विपुल बनाकर मन से इस जगत की रचना करता है। ब्रह्मा, मन स्वरूप है और मन, ब्रह्म स्वरूप है। मन में प्रथ्वी आदि नहीं है। मन से प्रथ्वी आदि आत्मा में अध्यस्त है। बीज में वृक्ष के समान ह्रदय के अन्दर सम्पूर्ण द्रश्य पदार्थ विद्यमान हैं।

मन और द्रश्य तथा इन दोनों का द्रष्टा ( साक्षीभूत आत्मा), इन दोनों का विवेक (अलग करना) कभी किसी ने नहीं किया। अतः जब तक उनका विवेक नहीं होगा। तब तक अज्ञान रहने से मन में द्रश्य बना ही रहेगा। 

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यथार्थ ज्ञान 

पहले आर्यों (श्रेष्ठ व्यक्ति) के संसर्ग से प्राप्त उपदेश, आचरण, शिक्षण और युक्ति द्वारा बुद्धि को बढ़ाना चाहिये। इसके बाद महापुरूष के लक्षणों से अपने में महापुरूषता का सम्पादन करना चाहिये। यदि सम्पूर्ण गुण एक पुरूष में न मिलें तो इस संसार में जो पुरूष, जिस गुण के द्वारा उन्नत प्रतीत होता है, वह उसी गुण के द्वारा दूसरे पुरूषों से विषिष्ट गिना जाता है। अतः उस पुरूष से शीघ्र उस गुण को प्राप्त कर अपनी बुद्धि को बढ़ाना चाहिये। 

शम आदि गुणों से परिपूर्ण यह महापुरूषता “यथार्थ ज्ञान के बिना” किसी प्रकार की सिद्धि से प्राप्त नहीं होती।  

मानुष-मानुष सबै कहावै। मानुष-बुद्धि कोई बिरला पावै। 

मानुष-बुद्धि बिरला संसारा। कोई जाने जाननहारा।।

राह बिचारि क्या करे, जो पंथी न चले सम्हाल।

अपनि मारग छोड़ कर, फिरे उजार-उजार॥

मल त्याग महत्वपूर्ण है

 मल त्याग महत्वपूर्ण है।

जैसे आँख, कान, नाक, जीभ, त्वचा, पेट (आंतों) आदि का मल प्रतिदिन साफ़ करना (डिटाक्सिफ़िकेशन) अति आवश्यक है। (अन्यथा उनसे रोग उत्पन्न होंगे) वैसे ही “मन का मैल” भी

प्रतिदिन किसी योग-क्रिया या समाधि क्रिया से करना अति आवश्यक है। अन्यथा इससे भी पहले “सूक्ष्म के रोग” उत्पन्न होंगे। और बाद में स्थूल रोगों में बदल जायेंगे। जैसे टीबी, अस्थमा, हार्ट अटैक आदि बीमारियाँ।

दूसरे, मल रहित शुद्ध शरीर के बिना, कोई भी योग पूर्ण रूप से नहीं किया जा सकता। सुन्दर, सुविधाजनक घर भी सफ़ाई के अभाव में, कूङे का ढेर बनकर सिर्फ़ परेशानी ही देता है। 

काल हमारे संग हैं, नहीं जीवन का आस।

पल-पल नाम सम्हारिया, जब लग घट में स्वास।।

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प्रगट चार पद धर्म के, कलि में एक प्रधान। 

येन-केन विधि दीन्हे, दान करे कल्याण।।

निश्चय ही अपने द्वारा किये गए शुभ-अशुभ कर्मों का फल, बिना विचार किये, विवश होकर भोगना पड़ता है। परन्तु किसी भी प्रकार से किया गया दान हमेशा सुखदायक व मंगलकारी ही होता है। विभिन्न आवश्यकता की वस्तुओं का जरूरतमन्दों को दान, फूलों के बगीचे लगवाना, देव मन्दिर का निर्माण, सन्यासियों के लिए आश्रम और देवालयों का निर्माण, गौ दान तथा सोना रत्नों के दान करने वाले, मनुष्य सुखपूर्वक यमलोक जाते हैं, और स्वर्ग में नाना प्रकार के भोग प्राप्त करते है।

सुवर्ण, तिल, हाथी, कन्या, दासी, गृह, रथ, मणि तथा कपिला गाय, यह दस महादान माने गए है। तुलादान (अपने वजन बराबर अन्न, वस्त्र आदि वस्तुओं का दान) भी सर्वश्रेष्ठ दानों में आता है। जो मनुष्य न्याय पूर्वक अर्जित किये गए धन से, अपनी शक्ति भर, शास्त्रोक्त विधि-विधान से यह दान करता है। वह यम मार्ग की भयावहता से त्रस्त नहीं होता है और उसे भीषण नरकों को नहीं देखना पड़ता है।

पुरूष प्रकृति सनातन जान। संतत स्वतः स्वभाव समान॥

स्वतः स्वभाव नहीं मिटै मिटाय। संतत जोई सोई प्रगटाय॥

पाँचों तत्वों (प्रकृति) ओर पुरूष (चेतन) का स्वभाव मूल रूप से कभी नहीं मिटता। चेतन ज्ञान युक्त है। आकाश खाली जगह है। शेष चारो तत्वों में गति युक्त है इनमें सिर्फ परिवर्तन होता है। मूल गुण-धर्म कभी नहीं बदलते।

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326