जय श्री गुरुदेव की । राजीव जी ! इसके साथ साथ आपको सादर प्रणाम । मैं आपका सदा ही आभारी रहूँगा । क्योंकि आप यदि ब्लॉग न लिखते । तो मै न पढ़ पाता । न इतने सारे अध्यात्मिक गहराइयों को जान पाता । मेरे साथ साथ न जाने कितने लोगों को आपके ब्लॉग द्वारा लाभ मिल रहा है ।
मैं पेशे से चिकित्सक हूँ । मेरा जीवन शुरू से ही संघर्षमय रहा है । मेरे माता पिता जी ने बड़े कठिनाइयों से हम चार भाई और एक बहन की परवरिश की ।
शिक्षा दिलाई । मेरे बड़े भाई कालीन का काम करते हैं । और छोटे दो भाइयों में एक सी ए की अंतिम वर्ष की पढाई कर रहे हैं । और सबसे छोटे प्रदीप घर पर पढाई के साथ माता पिता की देख रेख कर रहे हैं ।
मैं आपके ब्लॉग के सम्पर्क में 13 sept 2011 को एकाएक इन्टरनेट पर फोटो सर्चिंग के दौरान एक फोटो के नीचे लिखे - ब्लैक विडो यानि काली विधवा का रहस्य । पढ़ कर आपके ब्लॉग तक पहुंचा । और ये कहानी पढ़ी । कहानी पढ़कर हमें लगा
कि मैं जैसी सत्यता अंतर्जगत की जानना चाहता हूँ । बहुत कुछ इस कहानी में है । कुछ नई बातें पता चली । क्योंकि मै तंत्र मार्ग में 5 सालों से लगा हुआ था । लेकिन इतनी गहराइयों की बातें मुझे पता न थी ।
इसलिए इस कहानी का मुझ पर बड़ा फर्क पड़ा । मै इसके पहले कुछ हिन्दू धर्म ग्रन्थों जैसे सुख सागर । प्रेम सागर । भागवत । देवी भागवत । रामचरित मानस । दुर्गा सप्तसती और तंत्र की कुछ गुप्त पुस्तकें । जैसे कुछ को पढ़ा था । और कई के बारे में सुना था । सब में अपने देवों को ही सुपर पावर बताया है । मैं इसको लेकर हमेशा शंका में था । जिस भी गुरु से पूछता । वो कहते । हमारे देव ही सबसे बड़े हैं । विश्वास करो । जरुर फल मिलेगा । मै कहता - कोई तो 1 होगा । जो सबसे ऊपर होगा ।
कुछ गुरु लोग कहते । सब एक ही का रूप है । तो मै कहता । जब सब एक ही हैं । फ़िर अलग अलग रूपों में पूजा क्यों ? और बिरोधाभास क्यों ?
लेकिन मेरे प्रश्नों का समुचित उत्तर न मिल पाता । मैं ज्योतिष और तंत्र सम्बंधित अपनी जानकारी बढ़ाने हेतु इन्टरनेट पर खोजता रहता कि एकाएक राजीव जी के ब्लॉग पर ब्लैक विडो की कहानी मिली । मैंने सोचा कि कुछ बात सही मिली ।
लेकिन इसके दूसरे ही दिन कम्प्यूटर में खराबी आ जाने के कारण सारे प्रोग्राम डिलीट हो गए । कम्प्यूटर बनने के बाद मैं दुबारा राजीव जी का ब्लॉग खोजने लगा । लेकिन पता भूल जाने के कारण खोजते खोजते 15 दिन लग गए ।
जब दुबारा ब्लॉग मिला । तो एक एक करके राजीव जी के सारे लेखों को पढ़ा । बहुत ही अच्छी अच्छी बातें पता चली । रहस्यमय बातें पता चली । मुझे लगा कि मुझे अपनी मंजिल मिल गयी है । और फिर मैंने राजीव जी से फ़ोन पर बात की ।
राजीव जी ने हमारी बात गुरुदेव जी से कराई । गुरुदेव जी बहुत ही स्नेहशील है । मैंने अभी तक सभी लोगों से ज्ञान की सिर्फ बातें सुनी थी । लेकिन प्रक्टिकल करके कोई बताने वाला नहीं मिला । फिर मैंने निर्णय लिया कि हमें इस सनातन ज्ञान का दीक्षा लेकर प्रक्टिकल करना चाहिए ।
और मैंने गुरुदेव जी से बात की । दीक्षा लेने के लिए । उस समय काफी ठंडक पड़ रही थी । तो गुरुदेव जी ने थोडा और समय बीत जाने को कहा । ठंडक के कारण ।
होली के कुछ दिन पहले गुरुदेव जी ने आदेश दे दिए । और हमने अपने पूरे परिवार के साथ दीक्षा लेने की योजना बनायीं । इस साल हम होली पर घर न जाकर ( क्योंकि हम घर से दूर रहते हैं । और हर साल होली को जरुर घर जातें हैं । ) गुरुदेव जी के आश्रम पर चल दिए ।
आश्रम तक पहुंचने में कोई खास दिक्कत नहीं आयी । क्योंकि जाने के लिए वाराणसी से आगरा तक का आरक्षण कराया था । आगरा से पहले टूंडला स्टेशन पर रुक कर वहां से गाड़ी से फिरोजाबाद आया । फिर वहां से फ़रिहा के लिए बस पकड़ी । उसी बस से कौरारी तक गए ।
वहां से नगला भादों आश्रम 2 किमी. था । वहां से कोई साधन नहीं था । तो हमने गुरुदेव जी को फ़ोन किया । तो उन्होंने तुरंत ही आश्रम पर रहने वाले पंची जी ( पंचम ) को भेजा । और वो हमें बाइक पर आश्रम तक लिवा गए ।
पहली बार गुरुदेव जी का दर्शन हुआ । दर्शन पाकर मन बहुत ही हर्षित हुआ ।
क्योकि इतने उच्च कोटि के जानकार । अलौकिक विद्या के जानकार । और इतनी साधारण वेशभूषा । इतना साधारण रहन सहन ।
आश्रम पहुँच कर वहां का वातावरण काफी शांत । आसपास दूर दूर तक सिर्फ खेत झाड़ी नजर आ रही थी । यहाँ पर मोर बहुतायत की संख्यां में है । उनका वहां पर विचरण काफी अच्छा लगा । आसपास थोड़ी दूर दूर कम आबादी वाला गाँव है । जहाँ के लोग आश्रम पर गुरुदेव जी मिलने के लिए आतें रहते हैं । उन लोगों से भी हमारी परिचय हुआ । वे लोग भी सरल स्वाभाव के थे ।
सभी प्रेम पूर्वक बातें करते । सम्मान देते । अतः हम लोगों कोई दिक्कत नहीं थी ।
हंस दीक्षा के बारें में अभी ज्यादा नहीं बता सकता । क्योंकि उसका अनुभव अभी बहुत ज्यादा नहीं है । और अनुभव बताये भी नहीं जाते । पर हमने सत्य को देखा जाना । जो भी सत्य है । हमारे अन्दर ही है । न कि मन्दिर मस्जिद में । अभी अभी हमने गुरुदेव जी से दीक्षा ली है । इसके बारे में हमने ज्यादातर बातें राजीव जी से ही पता चली है । जो उन्होंने अपने ब्लॉग के माध्यम से सबके लिए सुलभ कराया है । लेकिन एक बात जरुर है कि - ज्ञान व दीक्षा के बारें में गुरुदेव जी का कहना है कि - ये प्रक्टिकल की बात है न कि सिर्फ मानने की । उनका कहना है - पहले जानो । फिर मानो । और ये ज्ञान जानने के लिए दीक्षा लेना जरुरी है । क्योंकि तभी आप उसके अधिकारी हो सकते हैं ।
दीक्षा के लिए बहुत कुछ करने की जरुरत नहीं है ।
जैसा कि राजीव जी ने अपने ब्लॉग में बताया था कि पांच फ़ूल से लेकर कुछ रुपयों तक में ये दीक्षा हो सकती है । हमसे पैसे का कोई भी बिलकुल मांग नहीं की गयी । और हम लोगो की थोड़े से ही खर्चे में दीक्षा हो गयी ।
राजीव जी आप हमारे मार्गदर्शक भी है । और इस समय आप हमारे बड़े गुरु भाई भी बन गए । आप हमारा मार्गदर्शन करते रहें । यह मन की आवाज लिखने में जो कुछ त्रुटि हुयी हो । उसे क्षमा करने की कृपा करें ।
आपका - डा.संजय केशरी । वाराणसी ।