01 मार्च 2012

पीपल का भूत

ये मेरी स्पेशल जिन्दगी की अजीव कहानी ही है कि भूत प्रेत मेरे आसपास हमेशा ही रहे । जबकि ये भी ठोस हकीकत है कि मैंने उनमें किसी भी प्रकार की दिलचस्पी कभी नहीं ली । सिवाय छोटी उमर की कुछ उत्सुकताओं के । कारण यही था । अशरीरी बिना किसी प्रयत्न के साधारणतया मुझे खुली आँखों से बचपन से ही दिखते रहे । इसलिये वे मेरी आदत में आ गये । ऐसा भी नहीं है कि भूत प्रेत आम जीवन में लोगों के आसपास मौजूद नहीं होते । निसंदेह लगभग बहुत स्थानों पर होते हैं । बस वे नजर नहीं आते । और सत्ता के नियम से बंधे वे बिना बात किसी के जीवन में हस्तक्षेप नहीं करते । इसलिये प्रेत और मनुष्य का एक अदभुत संतुलन बना हुआ है । पर कोई भी अनोखी बात जो आम जीवन से हटकर हो । उसका जानने वाला उसको शेयर करता ही है । मेरे घर से 100 मीटर की ही दूरी पर । घर के ठीक पीछे । पीपल के दो बङे वृक्ष हैं । जिनमें 


पहला 50 मीटर की दूरी पर बीच में है । जो दूसरे के अपेक्षाकृत जवान है । और दूसरा पुराने उजङे जीर्ण शीर्ण सरकारी पार्क में पगडण्डी नुमा रास्ते पर 100 मीटर की दूरी पर है । जो बूढा है । आम लोग ऐसे भारी और अधिक आयु के पीपल वृक्षों को वरम देव या उसका स्थान मानते हैं । और प्रायः जानकार लोग हाथ जोङकर प्रणाम भी करते हैं ।
मेरे कमरे का 5 फ़ुट लम्बा और 4 फ़ुट ऊँचा बङा जंगला उत्तर दिशा में है । ठीक इसी जंगले से लगा हुआ मेरा तखत बिछा हुआ है । जंगले के बाद । बाहर काफ़ी बङी जगह खाली पङी हुयी है । और बहुत से बङे बङे वृक्ष नजर आते हैं । उत्तर दिशा का खास जिक्र मैंने इसलिये किया कि दूर क्षितिज में थोङा ही ऊपर आसमान में स्थिति नीचा लोक यमपुरी जो उत्तर दिशा में है । जंगले की सीध से साफ़ नजर आता है । तब गर्मियों की रात मेरे लिये बङी सुहावनी सी होती 


है । जब खासकर खिङकी खुली होती है । और झिलमिलाते तारों से सजा नीला आसमान साफ़ नजर आता है । योगियों की रात । जिसका बहुत हिस्सा जागते हुये बीतता है । दुखिया दास कबीर है जागे और रोवे ।
स्वतः ही मेरी निगाह पीपल के रहस्यमय खङे शान्त वृक्षों पर जाती है । ये दरअसल गूढ अर्थों में वे अभिशप्त आत्मायें हैं । जो किसी पूर्व जन्म में जङ ज्ञान से जुङी रहीं । और निकृष्ट मनमुखी हठ योग जैसी मूढ मति या जङ मति द्वारा मनमाना योग करती रहीं । और परिणाम स्वरूप एक पीङादायी लम्बा जङ जीवन जीने पर विवश है । लेकिन सभी वृक्षों पर ये बात लागू नहीं होती । ऐसे पीपल के वृक्ष कुछ ही होते हैं । बाकी साधारण ही होते हैं । लेकिन ये दोनों वरम देव के ही स्थान हैं । बहुत से लोग छोटा वरम देव बङा वरम देव इस तरह भी मानते हैं ।


थोङा सा केन्द्रित होते ही मुझे वृक्ष के स्थान पर उतनी ही बङी एक मनुष्याकार काली छाया जैसी आकृति दिखती है । कैसी अजीव और विलक्षण सृष्टि है । मैं अक्सर सोचता हूँ । इन दोनों ही वृक्षों पर बाहर से दूसरे प्रेत प्रेतनियाँ भी कभी कभी आते रहते हैं । खूबसूरत निशा के काले आंचल में इन रात्रिचर आत्माओं को देखना आकर्षित करता है । कभी कभी मन होता है । इनसे बातचीत की जाये । फ़िर नहीं करता । कोई जिम्मेदारी बन सकती हैं । उन्हें भी दुनियादारी की तरह बहुत से झंझट लगे होते हैं । उनके भी आपसी  झगङे हैं । समस्यायें हैं । इसलिये मैं उन्हें छेङता नहीं । दूर कभी कभी यमपुरी की तरफ़ की हलचल देखने लगता हूँ । या फ़िर दूर गहरे अंतरिक्ष में चले जाना । रात कुछ कुछ ऐसे ही गुजरती है ।
ऐसे ही क्षणों में सोचता हूँ । सच्चाई क्या है । और इंसान को किस तरह पता है ? भूत । प्रेत । यम । वरम आदि के बारे में लोगों को कैसे पता चला ? जाहिर है । अधिकतर ने उन्हें कभी देखा तो नहीं । कुछ उपलब्ध इतिहास से । कुछ अंतर दृष्टि वालों से । और कुछ परम्परा से सुनी बातों के आधार पर । और कोई कोई इनके चपेटे में आकर पीङित हो जाता है उससे । ज्यादातर यही स्रोत है ।
- राजीव जी ! मुझे 14 साल पहले हनुमान मन्दिर से रहने वाली उस साधु पत्नी की बात याद आती है - आप यकीन नहीं करोगे । मैं रोज ही मसान को जाता हुआ देखती हूँ ।..हाँ मुझे मालूम है । तुम पढे लिखे लोग हो । यही कहोगे कि भूत प्रेत कुछ नहीं होते । पर तुम सुबह आकर खुद देख लेना । वह मदार गेट वाले शमशान से इस गली से ( उसने उँगली घुमाई ) होकर गुजरता हुआ । इस रास्ते से ( उसने उँगली को मोढा ) पीपरा घाट वाले शमशान (  टेम्पररी ) को प्रतिदिन जाता है । और वो समय यही कोई सुबह 4 से 5 के बीच का होता है ।
कैसा है दिखने में ?..वह सफ़ेद कपङे पहने । कमर से मामूली झुका हुआ । और मुँह एकदम काला । और हाथ पैर

भी एकदम काले ही है । जैसे बहुत काला इंसान हो । एक बार क्या हुआ । उत्सुकता से मैंने उसको राम राम भैया बोल दिया । तब उसने चौंक कर मेरी तरफ़ देखा । उसकी आँखों में सफ़ेदी के स्थान पर पीलिया रोग जैसा पीलापन छाया हुआ था । और एकदम मुर्दा जैसी आँखें थी । जैसे कोई मुर्दा उठकर चलने लगा हो । तब मैं कुछ कुछ डर गयी । मैंने बाबाजी ( अपने पति ) को ( बाद में ) बताया । उन्होंने भी ( अगले दिन ) देखा । और मसान बताया ।
जिस स्थान की वह बात कर रही थी । वह मेरा जाना पहचाना था । मदार गेट शमशान पुराने शहर से एकदम लगा हुआ था । उससे चन्द कदम दूर ही बस्ती और छोटा बाजार सा भी था । शमशान में भैरों मन्दिर था । और वहाँ के पुराने वृक्षों के कोटर में छोटे बङे घूरती आँखों वाले उल्लूओं की भरमार थी । शमशान के आम रास्ते से ( जिस पर शब ले जाते हैं ) हटकर एक कच्ची पगडण्डी थी । जो कुछ घूमकर बने इस हनुमान मन्दिर के सामने गली से जुङती थी । जिसकी तरफ़ उसने इशारा किया था । और सामने वाली गली हनुमान 


मन्दिर वाली गली से जुङती थी । फ़िर मन्दिर वाली गली एक मेन रोड से । और उस मेन रोड से एक कच्चा रास्ता पीपरा घाट पर जाता था ।
यानी उसकी बात में दम था । वह बङे से मन्दिर की अल सुबह उठते ही झाङू लगाती थी । इसलिये सच ही बोल रही थी । उसने उसको अक्सर सामने वाली गली से आकर पीपरा घाट वाले कच्चे रास्ते पर गुम होते देखा था । लेकिन शायद उसका भी ध्यान इस बात पर नहीं था । पीपरा घाट वाले कच्चे रास्ते के शुरू में ही एक बङा वरम देव स्थान था । और वहाँ तीन चार रहस्यमय वृक्षों का समूह खङा था ।
इस स्थान ( पीपरा घाट के आसपास ) से जुङे कुछ मेरे भी अनुभव थे । लेकिन मदार गेट से थोङा बाजार की तरफ़ घूम जाने वाले रास्ते पर हलवाई की दुकान वालों ने बताया ।
- कभी कभी हमें मिठाई के लिये खोआ आदि तैयार करने में रात देर तक काम करना होता है । कारीगरों को रात के दो दो बज जाते हैं । और कभी त्यौहार आदि सीजनों पर तो सारी रात काम होता है । तब एक  दो बार ऐसा हुआ कि - रात 1 बजे के करीब सफ़ेद चादर ओढे एक या दो आदमी आये । उन्होंने अपना मुँह चादरे से छुपा रखा था । उन्होंने अजीव सी खरखराती आवाज में मिठाई देने को कहा । हमें ताज्जुब तो बहुत हुआ । पर मना कैसे कर सकते थे । उन्होंने एकदम नये कङक नोट दिये । लेकिन सुबह हमें गुल्लक में राख नजर आयी । और वो नोट गायब थे ।  तब हमने बहुत दिन काम बन्द कर दिया । या अन्दर से दुकान बन्द करके काम करते थे ।
अब फ़िर मेरे घर के पीछे वाले पीपल की बात सुनिये । इसमें अपने से जुङी आधी बात मैंने किसी कारण वश गोल कर दी है । मेरी माँ इसी पीपल से और 150 मीटर आगे कालोनी में सुबह 5-6 बजे दूध लेने जाती हैं । टहलना और दूध लाना एक साथ हो जाता है । गर्मियों में तो ये समय कोई खास मायने नहीं रखता । पर सर्दियों में 6 बजे का समय भी सुनसान वाला होता है । उन्होंने कई बार जिक्र किया । पुराने बङे पीपल के नीचे से गुजरते ही एक अजीव सी भय युक्त सिहरन शरीर में दौङ जाती है । ऐसा लगता है । वहाँ कोई है ? एक रहस्यमय सरसराहट वृक्ष के आसपास होती है । श्श्श्श्श्श्श.. कोई है ?
पर मजबूरी ये थी कि वहाँ जाने के लिये उस पीपल के नीचे से गुजरना जरूरी था । दूसरा रास्ता बेहद लम्बा था । 


ये बात जब उन्होंने कही । मैं सङक पर ही था । और वह पीपल ठीक मेरी आँखों के सामने । मैंने आती हुयी हँसी को आने से पहले ही रोक दिया । जी हारर शो .. मैंने सामान्य ही कहा ।
इसके दो तीन दिन बाद माँ को ज्यादा ही डर लग गया । वे घबरा सी गयी । पर उन्होंने नामदान उपदेश लिया हुआ है । सो तुरन्त आपात स्थिति में नाम प्रभावी हो गया । और वे सामान्य होती हुयी ही आगे बङ गयीं । ठीक इसी समय मैं तखत पर लेटा हुआ जाग रहा था । और बिना आवाज जोरदार हँस रहा था । मेरी हँसी रुकने का नाम ही न ले रही थी ।
सामान्य प्रेत अनुभव इसी तरह के होते हैं । और बहुत लोगों को होते हैं । ये इतने सामान्य होते हैं कि लोग इन्हें भूल ही जाते हैं । इसलिये जरूरी नहीं कि किसी की प्रेत से मुलाकात हो जाये । तो उसे कोई मुसीबत लग ही जाये । समय समय पर ऐसे ही कई अन्य सच्चे प्रेत अनुभव आपको बताता रहूँगा । आज इतना ही ।

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326