05 मार्च 2012

YOGA AND SEX

सन्त ( भक्ति ज्ञान चाहने वाले इंसान को ) वैध ( रोगी को ) मन्त्री ( राजा को ) यदि उनके अनुकूल ( जो  उनके मन को अच्छी लगे ) सलाह देता है । तो वो उनका शुभचिंतक नहीं । बल्कि बहुत बङा दुश्मन है । लेकिन  इस दुनियाँ का यही रवैया है । यहाँ लोगों को वही लोग पसन्द आते हैं । जो उनको गढ्ढे में ले जाते हैं । अब उदाहरण से भी समझिये ।
सन्त - जीवों को बताता है । मनुष्य शरीर दुर्लभ है । ये आत्म उन्नति प्रयास बिना बेकार गया । तो 84 लाख योनियाँ । नरक । प्रेत आदि में बहुत कष्ट होगा । इसलिये समय रहते उपाय कर लो । अब क्योंकि इस उपाय में मन के प्रतिकूल कार्य और परहेज हैं । तो आदमी को ये बात बहुत बुरी लगती है । दूसरे वह डर जाता है । अपने प्रति उसे ये बात ही बुरी लगती है कि - मृत्यु के बाद उसकी ये दयनीय स्थिति होगी । वह शुतुरमुर्ग की तरह रेत में गरदन छुपाकर अपने को सुरक्षित मान लेता है । इसीलिये वह ऐसे पाखण्डी साधुओं पर विश्वास कर उन्हें पूजता है । जो उसे आसान और मनमाना तरीका बता देते हैं । अर्थात उसके 


मन को अच्छी लगने वाली बात कहते हैं - झूठा को झूठा मिला । हाँ जी हाँ जी होय । दोनों को ही मालूम है । दोनों ही झूठ बोल रहे हैं । फ़िर भी वे इसी झूठी तसल्ली में प्रसन्न रहते हैं । क्योंकि ये ( मगर अभी और सिर्फ़ धोखा ) उनके मन को अच्छी जो लग रही है कि - आगे वे सीधे स्वर्ग ही जाने वाले हैं ?
वैध - कोई भी वैध डाक्टर रोगी को पूर्ण स्वस्थ करने के लिये कङवी कसैली औषधियाँ देता है । और तमाम चटखारे युक्त मनपसन्द खाने की चीजों पर रोक लगा देता है । उस समय तो आपको बहुत बुरा मालूम होता है । पर वैध का उद्देश्य आपको पूर्ण निरोगी करना है ।
मन्त्री - एक अच्छा मन्त्री राजा को - भोग विलास में संयम । चाटुकारिता से बचने की सलाह । राज कार्यों पर ध्यान देना आदि उत्तम सलाह देता है । अब जाहिर है । ये मन के विपरीत बातें हैं । सबको मौज करना ही अच्छा लगता है । पर मौज और संयम दोनों के बीच संतुलन न रहने पर विनाश होना निश्चित है ।
इसलिये तो कबीर साहब ने कहा है - सांच कहो जग मारन धावे । झूठन को पतियावे ।
यानी लोगों को उनका ही ? सच बता दो । तो वो मारने को दौङते हैं । और झूठ बोलने वालों को पूजते हैं । ऊपर के

उदाहरण मैंने - वास्तविक सच क्या होता है ? उसको समझाने हेतु कहे हैं । जिनका निम्नलिखित बातों से सीधा सम्बन्ध है । मैंने पहले लिखा था । योग और काम वासना । या भक्ति और काम वासना में गहरे आपसी सम्बन्ध पर आगे लिखूँगा । आज यही बात करते हैं ।
सबसे पहले अपनी ही बात करता हूँ । मैं आपसे पूछता हूँ कि - क्या मैने अब तक कहीं भी किसी भी रूप में जाहिर किया कि मैं बहुत बङा बृह्मचारी हूँ । स्त्रियों को देखता भी नहीं । या मेरा प्रेम प्रसंग नहीं रहा । या आगे नहीं होगा । या मैं कोई आदरणीय हूँ । पूज्य हूँ । जैसा कि तमाम पाखण्डी साधु नकली रूप से  create कर लेते हैं । जबकि मैं चाहता । तो ये सब छुपाकर अपनी पूज्य इमेज बना सकता था । आखिर मेरे अन्दर भी कुछ इंसानी भाव हैं ? मेरे शरीर में भी कुछ भौतिक गुण हैं ।
चलिये मगर वैसे ऐसा है नहीं । फ़िर भी थोङी देर को मान लीजिये । मैं बहु स्त्री भोगी हूँ । शराब पीता हूँ । दुर्गुणी हूँ । तब इससे मेरे ज्ञान जानकारी पर क्या असर है ? जिसको मैं यहाँ ब्लाग पर सिद्ध भी कर चुका हूँ । और जिससे आप आकर्षित हुये । वरना धार्मिक साइटस की भरमार है । हाँ ! मैं इस बात के लिये आपको प्रेरित करता हूँ । खास आपसे कोई लाभ उठाता हूँ । आपसे मुझे कोई लालच है । फ़िर आप आपत्ति कर सकते हैं । वो उचित बात होगी । सुन्दर स्त्री । धन । और ऐश विलास के ढेरों अन्य विकल्प मौजूद हैं । आगरा में भी इन सबकी कमी नहीं । समर्थ के लिये किसी जगह कमी नहीं । वो जंगल में मंगल कर सकता है । तब उसका पूर्ति माध्यम भक्ति ज्ञान को बनाना बेहद मूर्खता की ही बात है । अब जैसा कि मैंने एक बार challenge भी किया था । आप ज्ञानियों की तमाम भीङ में से सिर्फ़ मेरा 1 विकल्प ही खोज कर बताओ ।

कुछ लोग सोचते हैं । मेरा बस किताबी ज्ञान है ? चलिये यही मान लेते हैं । तब इस स्तर का कोई किताबी ज्ञानी ही बतायें ? तमाम प्रोफ़ेसर दार्शनिक आदि उच्च पदों पर आसीन किताबी ज्ञान या उच्च विचारों से ही लाखों कमाते हैं । शानदार जीवन प्राप्त करते हैं । इसलिये किताबी ज्ञान ( थ्यौरी ) होना भी कोई आसान बात नहीं ।
फ़िर मैं थ्यौरी के साथ साथ । उसके बाद का चरण । आपको प्रयोग कैसे होगा । क्रिया के लक्षण क्या होंगे । अनुभव क्या होंगे ? परेशानियाँ क्या होंगी । आदि आदि बारीकी से समझाता हूँ । किसी किताबी ज्ञान वाले के लिये ये सम्भव है ? आज तक कोई मिला आपको ऐसा ? दूर दूर तक एक भी याद आता हो । तो मुझे बतायें ।
अब 3 वस्तुओं के उदाहरण से इसको सिद्ध करता हूँ । आग । प्रकाश । वैक्यूम क्लीनर । क्योंकि ठीक इन्हीं चीजों की तरह ज्ञान में क्रिया होती है ।
सबसे पहले ये समझिये । आग । प्रकाश और वैक्यूम क्लीनर । अपनी मूल अवस्था में शुद्ध साफ़ निर्दोष होते हैं । ठीक यही स्थिति सच्चे आंतरिक ज्ञानी की होती है ।
आग - किसी स्थान पर बेहद बदबू सङांध फ़ैली हुयी हो । आप वहाँ आग जला दीजिये । धीरे धीरे बदबू खत्म होने लगेगी । क्योंकि आग का ताप ( यहाँ योग किरणें ) उसको आव्जर्व करके गन्दी वायु ( दूषित वासना ) को नष्ट कर देगा । और स्थान ( जीवात्मा ) शुद्ध हो जायेगा ।
अब थोङा गौर करिये । बीच में कुछ क्षण ऐसे बन गये थे । जब योग किरणें ( ताप ) और दूषित वासना ( बदबू ) मिले हुये थे । उनका सम्भोग हो रहा था । उसी को आप योगी की काम वासना ? समझ लेते हैं । जबकि ये दूसरे की वासना थी । और उसका  शुद्धिकरण हो रहा था । क्योंकि आग के दूषित होने का कोई प्रश्न ही नहीं । असंभव । उदाहरण के लिये कबीर और गणिका ( वैश्या ) सम्बन्ध ।

प्रकाश - कोई 500 वाट का बल्ब ( योगी ) है । उसको साफ़ स्वच्छ कमरे में जलायें । भरपूर रूप से प्रकाशित होगा । मगर किसी गहन अंधेरे सीलन युक्त ( दूषित वासना ) स्थान ( जीव ) में जलायें । उसका प्रकाश ( वहाँ की स्थिति % के अनुसार ) बहुत कम रह जायेगा । या कहिये । कम मालूम होगा । अब बताईये । इसमें बल्ब का क्या दोष है ? वह तो उतना ही प्रकाशित है । वह ठीक वैसा ही जल रहा है । जैसा साफ़ स्थान पर । यहाँ वो अंधेरे को दूर कर रहा है । जितना हो सके ।
वैक्यूम क्लीनर - भी सबसे सटीक उदाहरण है । कमरा ( जीव ) धूल आदि से गन्दा ( दूषित वासनाओं से भरा ) है । क्लीनर उसकी धूल को अपने अन्दर खींच लेता है । कमरा स्वच्छ होने लगता है । कमरे की गन्दगी उसके अन्दर आने लगती है । तब आप कमरे को निर्दोष बताते हो । और वैक्यूम क्लीनर को गन्दा । क्योंकि वैक्यूम क्लीनर ( योगी ) द्वारा उस गन्दगी को अपने अन्दर से हटाने के बीच कुछ क्षण ऐसे थे । जब गन्दगी उसके अन्दर थी ।
साधु और जीव के उद्धार के बीच ठीक ऐसी ही क्रिया घटित होती है । जब जीव के दूषित लक्षण साधु को अपने ऊपर लेने होते है । और तब अक्सर लोगों को भ्रांति हो जाती है । साधु ऐसा है । वैसा है ?
अब बताईये । कौन ऐसा हुआ । जिसके जीवन में पत्नी स्त्री या प्रेमिका नहीं थी ? कबीर । रैदास । नानक । ओशो । विवेकानन्द । रामकृष्ण । बुद्ध । महावीर । मीरा । जे कृष्णामूर्ति । श्रीकृष्ण आदि आदि ? या इनमें से किसको लोगों ने बदनाम नहीं किया ?
चलिये । इनमें अधिकतर के बारे में शायद आप न जानते हों । पर श्रीकृष्ण के बारे में आप सब जानते ही होंगे । क्या आपको मालूम है । गोपियाँ जब उनके प्रेम में मगन दौङी चली आती थी । तो उनके घर वाले और पति इस

बात से बहुत खफ़ा होते थे । और उन पर प्रतिबन्ध भी लगा दिया था । क्योंकि कोई पति । कोई माँ बाप ये नहीं चाहता कि उनकी पत्नी या लङकी इस तरह का काम करे । लेकिन ये पति और घर वाले सिर्फ़ इस शरीर की सांस चलने तक ही उनके काम आ सकते थे । उनके मरने पर श्रीकृष्ण उनका जो कल्याण कर सकते थे । वो उनके घर वाले वहाँ कोई सहायता कर सकते थे ? जबकि श्रीकृष्ण का आदेश यहाँ और वहाँ दोनों जगह चलता है । और श्रीकृष्ण भी कोई तोप नहीं थे । सिर्फ़ परमहँस द्वैत योगी थे । ठीक इसी तरह । कोई सच्चा सन्त होने पर उसका आदेश यहाँ वहाँ दोनों जगह चलता है । किसी के माँ बाप पति पत्नी आदि वहाँ कभी नहीं मिलते । और आगे ( उस  रूप सम्बन्ध में ) कभी मिलने वाले भी नहीं हैं । पर एक सच्चा सन्त आपको अनन्त जन्म भी उसी रूप में मिलेगा । और आपकी भावना के अनुसार सहायक भी होगा । फ़िर आप अखिल सृष्टि के किसी कोने में पहुँच जायें ।

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326