A ( ए ) अ B ( बी ) ब C ( सी ) क स D ( डी ) द E ( ई ) इ F ( एफ़ ) फ़ G ( जी ) ग H ( एच ) ह I ( आई ) ई J ( जे ) ज K ( के ) क L ( एल ) ल M ( एम ) म N ( एन ) न O ( ओ ) अ ओ P ( पी ) प Q ( क्यू ) क R ( आर ) र S ( एस ) स T ( टी ) त ट U ( यू ) उ V ( वी ) व W ( डवल्यू ) व X ( एक्स ) क्ष Y ( वाइ ) य Z ( जेड ) ज
अंग्रेजी वर्णमाला में कुल 26 अक्षर हैं । जबकि हिन्दी में 52 अक्षर हैं । अब इनके उच्चारण पर गौर करिये । अंग्रेजी के अधिकतर अक्षर ई और ए का आधार लिये है । अंग्रेजी के पास मुख से निकलने वाली अन्य ध्वनियों जैसे - ख घ ङ छ झ ञ ठ ढ ण थ भ ध श ष ऊ ऋ औ आदि के लिये कोई मुक्त अक्षर ही नहीं है । अंग्रेजी विपन्नता का
इतिहास तो यहीं से शुरू हो जाता है कि - नींव ही कमजोर है । फ़िर अंग्रेजी वर्णमाला का उच्चारण हीनता दोष देखिये । जो मनुष्य ( ध्यान रहे । विदेशी भाषा भाषी भी मनुष्य ही हैं ) के स्वर तंत्र । अक्षर धातुओं । और ( अलग अलग ) शरीरस्थ चक्रों से पूर्ण सम्बन्ध ही नहीं बना पाती ( शायद आप न जानते हों । ये सभी अक्षर शरीर स्थित अलग अलग कुण्डलिनी चक्रों से उत्पन्न होते हैं ) जबकि हिन्दी के सिर्फ़ स्वर अ आ से अं अः तक ही पूरा स्नायु हिला देते हैं । और इसके बाद सिर्फ़ अ को आधार लेकर क से ज्ञ तक व्यंजनों में कितनी अक्षर धातुयें निकलती हैं । जो शरीर स्थित सनातन ज्ञान की सम्पूर्णता का द्योतक हैं । मेरी जहाँ तक जानकारी है । विश्व की किसी भी वर्णमाला में यह विशेषता नहीं है । और आप खूब ताकत लगा लीजिये । इन 52 अक्षरों के अतिरिक्त आप कोई भी ध्वनि मुख से नहीं निकाल पायेंगे ।
चलिये । इसको सिद्ध करने के बाद मुख्य बात पर आते हैं । आज बहुत से धर्म , धार्मिक व्यक्ति , धर्म पुस्तक किसी न किसी तरह से खुद को बङा बताने ( बनाने ) में लगे हुये हैं । लेकिन क्या किसी के पास हर वस्तु या पदार्थ के लिये उचित शब्द ( या अक्षर ) भी हैं । और क्या मुस्लिम ईसाई और अन्य अहिन्दी भाषियों को ख ठ भ जैसे अक्षरों की आवश्यकता नहीं होती ? क्या एक ही प्रकार की सृष्टि में ये सम्भव है ? जब मनुष्य की मूल ध्वनियां अक्षर धातुओं की पूर्ण क्रिया प्रक्रिया तक तुम्हारे पास नहीं है । फ़िर किस आधार पर तुम्हारा ज्ञान सर्वोच्च है ? ध्यान रहे । अभी तो ज्ञान का क ख ग घ भी शुरू नहीं हुआ । अभी तो उपलब्ध ज्ञान वस्तु की ही बात हो रही है ।
पर फ़िलहाल मुझे उर्दू या अन्य किसी भी भाषा से कोई लेना देना नहीं है । क्योंकि इनका ज्ञान क्या है ? ये इनके अलावा और सभी को पता है ? मुझे सिर्फ़ अंग्रेजी की बात करनी है । जिसको कुछ मूर्ख भारतीय भी श्रेष्ठ या सर्वश्रेष्ठ भाषा मानते हैं । और सर्वश्रेष्ठ संस्कृत ( या हिन्दी ) की उपेक्षा कर ये लंगङी लूली कुरूप अंग्रेजी भाषा बोलकर गर्व महसूस करते हैं ।
मेरी हमारे शिष्य साहिल से एक बार विज्ञान पर चर्चा हो रही थी । जो अंग्रेजी का अच्छा जानकार है । तब मैंने कहा - कोई भी विदेशी खोजकर्ता अपने शोध को बहुत आगे तक या पदार्थ की सूक्ष्म गति तक साधारण तरीके से इसीलिये नहीं पहुँचा पाता । क्योंकि उन्हें हिन्दी शब्दों का ज्ञान नहीं है । और यदि थोङा बहुत सीख सुनकर है भी । तो वे उसका मूल भाव ग्रहण नहीं कर पाते ।
जैसे उदाहरण के लिये सबसे बङा सवाल - विदेशी वैज्ञानिक सृष्टि की उत्पत्ति किसी MATTER से मानते हैं । यानी कोई वस्तु , पिंड आदि कुछ भी कैसा भी । और लगभग मजबूरी में ही वे ये मानने को विवश हैं कि - कोई न कोई चीज ( MATTER ) ऐसी है । जो उत्पन्न नहीं हुयी । बल्कि पहले से थी । मजबूरी में इसलिये क्योंकि उन्हें हर बात में क्यों ? लगाने की आदत पङी हुयी है । अब क्योंकि मुझे अंग्रेजी का बहुत ज्यादा ज्ञान नहीं है । अतः मैं MATTER शब्द से उनका क्या आशय है । क्या भाव आता है ? या उसका सन्धि विच्छेद क्या होगा ? मैं नहीं जानता । लेकिन मैं इतना अवश्य जानता हूँ कि अंग्रेजी का MATTER हिन्दी में मसाला , सामग्री या शुद्ध अन्दाज में " पदार्थ " होता है । अब सामग्री या कई वस्तुयें । या फ़िर पदार्थ को सुनकर किसी भी हिन्दी भाषी का क्या भाव बनेगा ? क्या भाव चित्र बनेगा । यह सहज ही जाना जा सकता है । और यदि कोई बुद्धिमान विद्वान व्यक्ति हुआ । तो वो पदार्थ को पद + अर्थ में विभक्त कर मामले की तह तक पहुँच जायेगा । पद + अर्थ । पद यानी कोई निर्धारित स्थिति और अर्थ यानी उस पद के मायने क्या हैं ? क्या गुण आदि उसमें सन्निहित हैं ? और जब पद और अर्थ है । तो उसका निर्माता नियन्ता भी कोई होगा ?
इसी तरह इस सृष्टि के सबसे बङे प्रमुख और प्रभावशाली शब्द " गुरुत्वाकर्षण " को देखिये । जिसके बिना आधुनिक विज्ञान ताश के पत्तों से बने महल की तरह ढेर हो जायेगा । कोई भी ठीकठाक हिन्दी जानने वाला इस शब्द के रहस्य - गुरु + तत्व + आकर्षण , को बङी आसानी से समझ लेगा । गुरु का अर्थ प्रकाश से है । तत्व
सार है । और आकर्षण चुम्बकत्व है । अब बल का अर्थ बहुत सरल ही है । यानी इससे पैदा हुयी शक्ति । जबकि गुरुत्वाकर्षण Gravitation गुरुत्वाकर्षण बल Force of Gravitation के लिये अंग्रेजी में इन शब्दों का प्रयोग होता है । खास Gravity के लिये इन अर्थों का प्रयोग किया जाता है - गुरुत्वाकर्षण (m) भारीपन (m) आकर्षण शक्ति । गंभीरता (f) गुरुता (f) गुरुत्व (m)
मेरा मतलब फ़िर वही है कि जब हम गुरुत्वाकर्षण की बात करते हैं । तो थोङा भी आध्यात्म ज्ञान होने पर हम सर्व मूल आत्मा पर बिना संदेह पहुँच जाते हैं । भाव चित्र । तो क्या ऐसा ही भाव चित्र अंग्रेजी या अन्य अहिन्दी भाषियों को बनता है । इसका अभी मुझे कोई अनुभव नहीं है । और इसीलिये पश्चिमी सभ्यता का विज्ञान दोष युक्त है । जबकि भारतीय ज्ञान विज्ञान बेहद सूक्ष्म और सटीक है ।
अब एक सबसे बङा प्रश्न जो आपके दिमाग में उठ रहा होगा कि जब हमारा ज्ञान विज्ञान आदि इतना समृद्ध है । तो फ़िर हम पिछङे हुये क्यों हैं ? और क्यों नहीं चहुमुखी बहुमुखी प्रगति कर पाते हैं ? जबकि तमाम विदेशी थोङे ज्ञान विज्ञान से ही उँचाई पर विराजमान है । इसी पर चर्चा को आगे बढाने की कोशिश रहेगी । तब तक चिन्तन करें । और यदि कोई जानकारी या प्रश्न उभरता है । तो उसे साझा करें ।
देवनागरी की वर्णमाला में -
1अ 2 आ 3 इ 4 ई 5 उ 6 ऊ 7 ऋ 8 ऋ 9 लृ 10 लृ् 11 ए 12 ऐ 13 ओ 14 औ 15 अं 16 अः
1 क 2 ख 3ग 4 घ 5 ङ । 6च 7 छ 8 ज 9झ 10ञ । 11ट 12 ठ 13 ड 14 ढ 15 ण । 16 त 17 थ 18 द 19 ध 20 न । 21 प 22 फ 23 ब 24 भ 25 म । 26 य 27 र 28 ल 29 व । 30 श 31 ष 32 स 33 ह 34 क्ष 35 त्र 36 ज्ञ
- आप सभी के अंतर में विराजमान सर्वात्मा प्रभु आत्मदेव को मेरा सादर प्रणाम ।
अंग्रेजी वर्णमाला में कुल 26 अक्षर हैं । जबकि हिन्दी में 52 अक्षर हैं । अब इनके उच्चारण पर गौर करिये । अंग्रेजी के अधिकतर अक्षर ई और ए का आधार लिये है । अंग्रेजी के पास मुख से निकलने वाली अन्य ध्वनियों जैसे - ख घ ङ छ झ ञ ठ ढ ण थ भ ध श ष ऊ ऋ औ आदि के लिये कोई मुक्त अक्षर ही नहीं है । अंग्रेजी विपन्नता का
इतिहास तो यहीं से शुरू हो जाता है कि - नींव ही कमजोर है । फ़िर अंग्रेजी वर्णमाला का उच्चारण हीनता दोष देखिये । जो मनुष्य ( ध्यान रहे । विदेशी भाषा भाषी भी मनुष्य ही हैं ) के स्वर तंत्र । अक्षर धातुओं । और ( अलग अलग ) शरीरस्थ चक्रों से पूर्ण सम्बन्ध ही नहीं बना पाती ( शायद आप न जानते हों । ये सभी अक्षर शरीर स्थित अलग अलग कुण्डलिनी चक्रों से उत्पन्न होते हैं ) जबकि हिन्दी के सिर्फ़ स्वर अ आ से अं अः तक ही पूरा स्नायु हिला देते हैं । और इसके बाद सिर्फ़ अ को आधार लेकर क से ज्ञ तक व्यंजनों में कितनी अक्षर धातुयें निकलती हैं । जो शरीर स्थित सनातन ज्ञान की सम्पूर्णता का द्योतक हैं । मेरी जहाँ तक जानकारी है । विश्व की किसी भी वर्णमाला में यह विशेषता नहीं है । और आप खूब ताकत लगा लीजिये । इन 52 अक्षरों के अतिरिक्त आप कोई भी ध्वनि मुख से नहीं निकाल पायेंगे ।
चलिये । इसको सिद्ध करने के बाद मुख्य बात पर आते हैं । आज बहुत से धर्म , धार्मिक व्यक्ति , धर्म पुस्तक किसी न किसी तरह से खुद को बङा बताने ( बनाने ) में लगे हुये हैं । लेकिन क्या किसी के पास हर वस्तु या पदार्थ के लिये उचित शब्द ( या अक्षर ) भी हैं । और क्या मुस्लिम ईसाई और अन्य अहिन्दी भाषियों को ख ठ भ जैसे अक्षरों की आवश्यकता नहीं होती ? क्या एक ही प्रकार की सृष्टि में ये सम्भव है ? जब मनुष्य की मूल ध्वनियां अक्षर धातुओं की पूर्ण क्रिया प्रक्रिया तक तुम्हारे पास नहीं है । फ़िर किस आधार पर तुम्हारा ज्ञान सर्वोच्च है ? ध्यान रहे । अभी तो ज्ञान का क ख ग घ भी शुरू नहीं हुआ । अभी तो उपलब्ध ज्ञान वस्तु की ही बात हो रही है ।
पर फ़िलहाल मुझे उर्दू या अन्य किसी भी भाषा से कोई लेना देना नहीं है । क्योंकि इनका ज्ञान क्या है ? ये इनके अलावा और सभी को पता है ? मुझे सिर्फ़ अंग्रेजी की बात करनी है । जिसको कुछ मूर्ख भारतीय भी श्रेष्ठ या सर्वश्रेष्ठ भाषा मानते हैं । और सर्वश्रेष्ठ संस्कृत ( या हिन्दी ) की उपेक्षा कर ये लंगङी लूली कुरूप अंग्रेजी भाषा बोलकर गर्व महसूस करते हैं ।
मेरी हमारे शिष्य साहिल से एक बार विज्ञान पर चर्चा हो रही थी । जो अंग्रेजी का अच्छा जानकार है । तब मैंने कहा - कोई भी विदेशी खोजकर्ता अपने शोध को बहुत आगे तक या पदार्थ की सूक्ष्म गति तक साधारण तरीके से इसीलिये नहीं पहुँचा पाता । क्योंकि उन्हें हिन्दी शब्दों का ज्ञान नहीं है । और यदि थोङा बहुत सीख सुनकर है भी । तो वे उसका मूल भाव ग्रहण नहीं कर पाते ।
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इसी तरह इस सृष्टि के सबसे बङे प्रमुख और प्रभावशाली शब्द " गुरुत्वाकर्षण " को देखिये । जिसके बिना आधुनिक विज्ञान ताश के पत्तों से बने महल की तरह ढेर हो जायेगा । कोई भी ठीकठाक हिन्दी जानने वाला इस शब्द के रहस्य - गुरु + तत्व + आकर्षण , को बङी आसानी से समझ लेगा । गुरु का अर्थ प्रकाश से है । तत्व
सार है । और आकर्षण चुम्बकत्व है । अब बल का अर्थ बहुत सरल ही है । यानी इससे पैदा हुयी शक्ति । जबकि गुरुत्वाकर्षण Gravitation गुरुत्वाकर्षण बल Force of Gravitation के लिये अंग्रेजी में इन शब्दों का प्रयोग होता है । खास Gravity के लिये इन अर्थों का प्रयोग किया जाता है - गुरुत्वाकर्षण (m) भारीपन (m) आकर्षण शक्ति । गंभीरता (f) गुरुता (f) गुरुत्व (m)
मेरा मतलब फ़िर वही है कि जब हम गुरुत्वाकर्षण की बात करते हैं । तो थोङा भी आध्यात्म ज्ञान होने पर हम सर्व मूल आत्मा पर बिना संदेह पहुँच जाते हैं । भाव चित्र । तो क्या ऐसा ही भाव चित्र अंग्रेजी या अन्य अहिन्दी भाषियों को बनता है । इसका अभी मुझे कोई अनुभव नहीं है । और इसीलिये पश्चिमी सभ्यता का विज्ञान दोष युक्त है । जबकि भारतीय ज्ञान विज्ञान बेहद सूक्ष्म और सटीक है ।
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देवनागरी की वर्णमाला में -
1अ 2 आ 3 इ 4 ई 5 उ 6 ऊ 7 ऋ 8 ऋ 9 लृ 10 लृ् 11 ए 12 ऐ 13 ओ 14 औ 15 अं 16 अः
1 क 2 ख 3ग 4 घ 5 ङ । 6च 7 छ 8 ज 9झ 10ञ । 11ट 12 ठ 13 ड 14 ढ 15 ण । 16 त 17 थ 18 द 19 ध 20 न । 21 प 22 फ 23 ब 24 भ 25 म । 26 य 27 र 28 ल 29 व । 30 श 31 ष 32 स 33 ह 34 क्ष 35 त्र 36 ज्ञ
- आप सभी के अंतर में विराजमान सर्वात्मा प्रभु आत्मदेव को मेरा सादर प्रणाम ।
2 टिप्पणियां:
Dear we must accept and the credit must be given to English men who could take change alteration addition in stride and even your post is like crying baby cribbing my toy is better.better is toy but ego has taken over it .soooooo……..one day entire words become part of expanding English.accept and adapt but ego is huge to not claim.food for thought .great
धन्यवाद भाई , ऐसी जानकारी प्रदान करने के लिए |
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