जो तुम्हारी मौज हो । वही कहो । कुत्ते में भी वही है । और बुद्ध में भी वही । ओशो में भी वही है । आप में भी वही । मुझमे भी वही है । भेद सिर्फ इतना है - जो जाग गया । वो बुद्ध है । मैं फिर दोहरा दूँ कि बुद्ध किसी आदमी का नाम नहीं है । जो जागा - वो बुद्ध । जो सोया हुआ है - वो बुद्धू । बस इतना ही भेद है सत्य का ।
सितारों के आगे जहां और भी हैं ।
अभी इश्क़ के इम्तिहां और भी हैं ।
मेरा भक्त वह है । जो किसी प्राणी से द्वेष नहीं करता । इसका मतलब यह हुआ कि यदि आप एक भी ब्यक्ति से द्वेष करते हैं । तो आप भगवान के भक्त नहीं हो सकते ।
कोहरा गया । तो पता चला कि सूर्य का प्रकाश जीवन में कितना जरूरी है । आज दिल खिल उठे । यही धूप हर दिन निकलती थी । पर इतनी प्यारी नहीं लगती थी । जितनी कोहरे के बाद लग रही है । ठीक यही होता है । जब अज्ञान का कोहरा ज्ञान के सूर्य को ढक लेता है । जिन्दगी कितनी असहाय हो जाती है । ये गत दिनों हमने जान लिया होगा । ब्रह्मांड में सूर्य के प्रकाश के बिना । और पिंड में ज्ञान के सूर्य के बिना । आज कोई किसी को बधाई नहीं दे रहा । पर मेरा मन है कि मैं आपको बधाई दूं । क्योंकि इस खुशी के साथ ही जुड़ी हैं । जीवन की समस्त क्रिया । कापी पेस्ट ।
भगवत्ता तुम्हारी है । तुम भगवान हो । कुछ और बातें इस प्रश्न के संबंध में । पहली बात । तुमने कहा है कि अवतार तब होता है । जब ये तीन काम उसे करने होते हैं । परमात्मा का अवतरण होता है - अवतार नहीं होता । अवतार का तो मतलब होता है, कि बस कृष्ण में हुआ । राम में हुआ । गिनती का । तो दस अवतार हुए, कि चौबीस, या जितनी गिनती तुमने मान रखी है । उतने अवतार होंगे । फिर बाकी ? बाकी वंचित रह जाएंगे । इसलिए मैं कहता हूं - परमात्मा का अवतार नहीं होता । अवतरण होता है । जो भी समाधि में पहुंचता है । वही परमात्मा का अवतार हो जाता है - ओशो ।
मैं केवल इतना ही चाहूंगा कि मुझे क्षमा कर दिया जाए । और भुला दिया जाए । मुझे स्मरण रखने की कोई आवश्यकता नहीं । आवश्यकता है । तुम्हें स्वयं को स्मरण रखने की । लोगों ने गौतम बुद्ध जीसस
क्राइस्ट कन्फूयशियस और कृष्ण को स्मरण रखा है । यह काम नहीं आता । अत, मैं चाहूंगा कि ? मुझे पूर्ण रूप से भुला दिया जाए । और क्षमा कर दिया जाए । क्योंकि मुझे भुला पाना कठिन होगा । इसी कारण मैं तुम लोगों को कष्ट देने के लिए क्षमा मांगता हूं । स्वयं को स्मरण रखें - द ट्रांसमिशन ऑफ द लैम्प ।
हरि की माला ऐसे रटणी । जैसे बांस पर चढ़ ज्या नटणी ।
नर छोड़ दे कपट का जाल । बताऊँ तने तिरणा की तदबीर ।
हरि की माला ऐसे रटणी । जैसे बांस पर चढ़ ज्या नटणी ।
मुश्किल है या काया डटणी । डटे तो परले तीर ।
गऊ चरण को जाती बन में । बछड़े को छोड़ दिया अपने भवन में ।
सुरत लागी बछड़े की तन में । जैसे शोध शरीर ।
जल भरने को जाती नारी । सिर पर घड़ो घड़ा पर झारी ।
हाथ जोड़ बतलावै सारी । मारग जात वही ।
गंगादास कह्वे अविनाशी । गंगादास का गुरु सन्यासी ।
राम भजे स्यु कट ज्या फांसी ।
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कुण संग आया कुण संग जासी । सब जग जासी साथ बिना ।
दिल अपने में सोच ले समझ दुःख पावै ज्यान तेरी नाथ बिना ।
रघुनाथ बिना.. जी ।
आई जवानी भया दीवाना । बल तोले हस्ती जितना ।
यम का दूत पकड़ ले ज्यासी । जोर न चले टिल जितना ।
भाई बंधू कुटुंब कबीला । झूठी माया घर अपना ।
कई बार पुत्र पिता घर जन्मे । कई बार पुत्र पिता अपना ।
कुण संग आया कुण संग जासी । सब जग जासी साथ बिना ।
हंसलो बटेऊ तेरा यही रह ज्यासी । खोड़ पड़ी रहवे सांस बिना ।
लखै सरिसा लख घर छोडया । हीरा मोती और रतना ।
अपनी करणी पार उतरनी । भजन बणायो है कसाई सजना ।
दिल अपने में सोच ले समझ दुःख पावै ज्यान तेरी नाथ बिना ।
रघुनाथ बिना..जी ।
यह संसार हमारी कामना, हमारी तृष्णा, हमारी दौड़, हमारी महत्वाकांक्षा का परिणाम है । और जो इस महत्वाकांक्षा के ज्वर से नहीं जागेगा । वह कभी पहचान न पायेगा स्वयं को । स्वयं को जाने बिना कोई सुख नहीं है । स्वयं को जाने बिना कोई संगीत नहीं है । स्वयं को जाने
बिना कोई अमृत का स्वाद नहीं है । ओशो
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