आश्रम का अर्थ ही यही है कि जहां जाकर तुम विश्राम से बैठ सको । जहां व्यवसाय नहीं है । जहाँ आपाधापी नहीं है । यहां तुमसे मैं कुछ करने को नहीं कह रहा हूं कि तुम कुछ करो । सारी शिक्षा न करने की है । अक्रिया की है । करते तो तुम बहुत हो । कर करके तो चूके हो । कर करके तो सब नष्ट किया । जन्मों जन्मों से कर रहे हो । यहां घड़ी भर जब मेरे पास होते हो । तब कुछ मत करो । अनकहा भी यहां घट रहा है । जब तक तुम उसे न सुन लो । तब तक मुझे सुना । इस तरह की भ्रांति अपने मन में लाना ही मत । तब तक तुम आम की तस्वीर देखते रहे । आम शब्द का पढना तुम्हें न आया । ये तो बहाने हैं । इसलिए रोज बोले चला जाता हूं । क्योंकि जो बोलना ही समझ सकते हैं । अभी उनसे बोलना ही पड़ेगा । धीरे धीरे तुममें से जिनकी थोड़ी गहराई बढ़ती जाती है । वे चुपचाप अपने में लीन होते जाते हैं । उनको रस इस बात में है कि वे मेरी मौजूदगी में यहां बैठ लेते हैं । सुना । नहीं सुना । महत्वपूर्ण नहीं है । तब खूब सत्संग होगा । और जब तुम सब तैयार हो जाओगे । तो मैं बोलना बंद कर दूंगा । तब मैं यहां चुपचाप आकर बैठ जाऊंगा । और तुम डोलोगे । तुम नाचोगे । उसी की प्रतीक्षा है । बोलना मुझे भी कष्टपूर्ण है । बोलने में मुझे कुछ रस नहीं है । क्योंकि जो मैं कहना चाहता हूं । वह कहा नहीं जा सकता । और जो मुझे कहना पड़ता है । वह मैं कभी कहना नहीं चाहता था । लेकिन प्रतीक्षा करता हूं कि धीरे धीरे एक बड़ी जमात तैयार हो जाए । क्योंकि अगर अभी मैं बोलना बंद कर दूं । तो थोड़े से ही लोगों के काम का रह जाऊंगा । बहुत थोड़े से लोगों के काम का । तो पहले जमात तो तैयार कर लूं । जो कि अनबोले को समझ सकेगी । यह उसकी तैयारी चल रही है । जिस दिन पाऊंगा कि अब काफी लोग हो गए । जो कि बिना बोले समझ सकते हैं । उसी दिन मैं चुप हो जाऊंगा । उसके पहले समझने की तैयारी कर लो । अन्यथा फिर तुम्हारे लिए कोई उपाय न रह जाएगा । जिस दिन मैं चुप हुआ । हुआ । उसके पहले तुम सीख लो । चुप्पी को समझने का राज । तब तक जितना इस शब्द की तस्वीर का उपयोग कर सकते हो । कर लो । फिर मुझसे मत कहना कि आप तो चुप बैठ गए । हमें तो चुप्पी कुछ समझ में नहीं आती । तुम सौभाग्यशाली हो । क्योंकि कुछ लोग तब आएंगे । जब मैं चुप होकर बैठ जाऊंगा । तब उनको सिखाने को कुछ भी न होगा । तब अगर वे बैठ गए । और सीख लिया । तो सीख लिया । अभी तो मैं हाथ पकड़वा पकड़वा कर लिखा रहा हूं । अभी हाथ पकड़ पकड़ कर चला रहा हूं । तुम सौभाग्यशाली हो । इस सौभाग्य का पूरा उपयोग कर लेना उचित है - ओशो ।
एस धम्मो सनंतनो । भाग-7 प्रवचन 66 - शून्य है आवास पूर्ण का ।
एक बार सुतीक्ष्ण जी के मन में एक संशय उत्पन्न हुआ । तब वे उसके निवृत हेतु अपने पूज्य गुरु परम तेजोमय मुनि अगस्त्य जी के आश्रम में आये । विधि संयुक्त अर्चन प्रणाम करके नम्रता पूर्वक प्रश्न किये - हे भगवन ! आप सर्व तत्वज्ञ और सभी शास्त्रों के ज्ञाता हैं । एक संशय मुझे हो गया है । सो कृपा कर निवृत करें । प्रभु मोक्ष का कारण कर्म है या ज्ञान ? अथवा दोनों ?
इतना सुनकर अगस्त्य मुनि बोले - हे ब्राह्मण देव ! केवल कर्म मोक्ष का कारण नहीं । और केवल ज्ञान से भी मोक्ष प्राप्त नहीं होता । बल्कि मोक्ष की प्राप्ति दोनों से ही होती है । कर्म करने से अन्तःकरण शुद्ध होता है । मोक्ष नहीं होता । और अन्तःकरण की शुचि के बिना केवल ज्ञान से भी मुक्ति नहीं होती । अतः दोनों से ही मोक्ष की सिद्घि होती है । जैसे दोनों पंख से पक्षी आकाश मार्ग में सुखपूर्वक उड़ता है । वैसे ही कर्म और ज्ञान दोनों से मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
भजन मत भूलो एक घड़ी । शबद मत भूलो एक घड़ी ।
तेरो काय पूतलो पल में ज्यासी । सर पर मौत खडी ।
ईण काया में लाल अमोलक । आगे करम कड़ी ।
भंवर जाळ में सब जीव सूत्या । बिरला ने ज्याण पड़ी ।
ईण काया में दस दरवाजा । ऊपर खिड़क जड़ी ।
गुरु गम कुंची से खोलो किवाड़ी । अधर धार है जड़ी ।
सत की राड़ लडे नर सूरा । चढया बंक घाटी ।
गगन मंडल में भरया भंडारा । तन का पाप कटी ।
अखै नाम ने तोलण लाग्या । तोल्या घड़ी रे घड़ी ।
अमृतनाथ जी अमर घर पुग्या । सत की राड़ लड़ी ।
भजन मत भूलो एक घड़ी । शबद मत भूलो एक घड़ी ।
तेरो काय पूतलो पल में ज्यासी । सर पर मोत खडी ।
अँधे उद्धवों को प्रेम गधापन नज़र आता है ।
ये वो नग़मा है जो पत्थरों पर गाया नहीं जाता ।
एस धम्मो सनंतनो । भाग-7 प्रवचन 66 - शून्य है आवास पूर्ण का ।
एक बार सुतीक्ष्ण जी के मन में एक संशय उत्पन्न हुआ । तब वे उसके निवृत हेतु अपने पूज्य गुरु परम तेजोमय मुनि अगस्त्य जी के आश्रम में आये । विधि संयुक्त अर्चन प्रणाम करके नम्रता पूर्वक प्रश्न किये - हे भगवन ! आप सर्व तत्वज्ञ और सभी शास्त्रों के ज्ञाता हैं । एक संशय मुझे हो गया है । सो कृपा कर निवृत करें । प्रभु मोक्ष का कारण कर्म है या ज्ञान ? अथवा दोनों ?
इतना सुनकर अगस्त्य मुनि बोले - हे ब्राह्मण देव ! केवल कर्म मोक्ष का कारण नहीं । और केवल ज्ञान से भी मोक्ष प्राप्त नहीं होता । बल्कि मोक्ष की प्राप्ति दोनों से ही होती है । कर्म करने से अन्तःकरण शुद्ध होता है । मोक्ष नहीं होता । और अन्तःकरण की शुचि के बिना केवल ज्ञान से भी मुक्ति नहीं होती । अतः दोनों से ही मोक्ष की सिद्घि होती है । जैसे दोनों पंख से पक्षी आकाश मार्ग में सुखपूर्वक उड़ता है । वैसे ही कर्म और ज्ञान दोनों से मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
भजन मत भूलो एक घड़ी । शबद मत भूलो एक घड़ी ।
तेरो काय पूतलो पल में ज्यासी । सर पर मौत खडी ।
ईण काया में लाल अमोलक । आगे करम कड़ी ।
भंवर जाळ में सब जीव सूत्या । बिरला ने ज्याण पड़ी ।
ईण काया में दस दरवाजा । ऊपर खिड़क जड़ी ।
गुरु गम कुंची से खोलो किवाड़ी । अधर धार है जड़ी ।
सत की राड़ लडे नर सूरा । चढया बंक घाटी ।
गगन मंडल में भरया भंडारा । तन का पाप कटी ।
अखै नाम ने तोलण लाग्या । तोल्या घड़ी रे घड़ी ।
अमृतनाथ जी अमर घर पुग्या । सत की राड़ लड़ी ।
भजन मत भूलो एक घड़ी । शबद मत भूलो एक घड़ी ।
तेरो काय पूतलो पल में ज्यासी । सर पर मोत खडी ।
अँधे उद्धवों को प्रेम गधापन नज़र आता है ।
ये वो नग़मा है जो पत्थरों पर गाया नहीं जाता ।
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