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- मठ्ठा के आलू । मैंने जबाब दिया ।
अब और भी समस्या थी । कुलदीप को मठा ? ही नहीं मालूम था । क्या होता है । मैंने उसका दूसरा नाम छाछ भी बताया । पर उन्हें वो भी नहीं मालूम था ।
- क्या लस्सी ? उन्होंने कहा - लस्सी से मठ्ठा से बोलते हैं । अब मेरे लिये समस्या थी । UP में लस्सी - दही पानी चीनी बरफ़ को मिलाकर मिक्सर या रई या मथानी से खूब मिक्स ( फ़ेंटने की तरह ) कर देने को बोलते हैं ।
अतः मैंने कहा - दही को थोङा पानी मिलाकर मिक्सर में चलाने पर जो बनेगा । उसे क्या कहते हो ?
- लस्सी । कुलदीप बोले - पर उसमें नमक और मिलाते हैं ।
मैं सोच में पङ गया । पंजाब में लोग छाछ को नहीं जानते क्या ? तब दही को मथकर जो देशी घी निकाला जाता होगा । और मक्खन निकलने के बाद जो शेष ? बचता होगा । उसका क्या उपयोग करते होंगे ? या फ़िर उससे क्या कहते होंगे ?
मैंने कहा - पंजाब में मठा के आलू नहीं बनाये जाते क्या ? कुलदीप ने ना में जबाब दिया ।
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UP के ग्रामीण अंचलों में मठा के आलू सब्जी को बहुत पसन्द किया जाता है । हालांकि शहरी सभ्यता के प्रसार से असली मठ्ठा सहज उपलब्ध न होने से महिलायें दही को चलाकर विकल्प के रूप में अपनाती है । लेकिन गाँव के मठ्ठा ? का मजा ही अलग है ।
चलिये आज आत्म पूजा ज्ञान के जगह पेट पूजा ज्ञान के बारे में बात करते है । जान है तो जहान है । वरना तो दुनियाँ वीरान है ।
मेरे घर में जो तले आलू बनते हैं । उसके लिये आलू उबाल लिये । 1 प्याज महीन काट लिया । 4 आलू पर 1 प्याज । थोङा सा हरा धनिया । पिसी सूखी खटाई या अमचूर । हरी मिर्च । लाल मिर्च । नमक । और सरसों का तेल । टमाटर खाने के शौकीन 1 टमाटर भी काट कर मिला सकते हैं । और साबुत धनिया बीच में से आधा तोङा हुआ ( ये कोई विशेष दिक्कत नहीं है । आप लगभग 1 चम्मच साबुत धनिया आलू तलने के समय ही चकला बेलन या सिल बटना पर रखकर हल्का हल्का बेलन फ़िरा दें । धनिया आधा आधा टूट जायेगा । इसको हमेशा ताजा ही तोंङे । बहुत खुशबू आयेगी )
अब चलिये बनाते हैं । ये सिर्फ़ कङाही या तवे पर बनायें । तेल गर्म करें । धुँआ उठने लगे । तब प्याज डाल दें । और हल्का सा तलें । अब साबुत तोङा हुआ धनिया डाल दें । इसके बाद उबले आलू के टुकङे डाल दें । थोङी देर इसको कङछी आदि से मिलायें । यदि टमाटर मिलायें । तो भी आलू के साथ ही डाल दें । इसके बाद - नमक । लाल मिर्च । खटाई । हरी मिर्च । आप स्वाद
अनुसार डाल सकते हैं । इसकों फ़िर से कङछी से तीन चार बार थोङी ही देर चलायें । बस आपके तले हुये आलू तैयार है । खटाई के स्थान पर थोङा नीबू भी निचोङ सकते हैं ।
- वृत उपवास में खाये जाने वाले । सैंधा नमक के तले आलू । इससे भी अधिक स्वादिष्ट लगते हैं । वो मुझे बहुत पसन्द हैं । तरीका वही है । पर उसमें प्याज खटाई टमाटर साबुत धनिया आदि नहीं पङते ।
- तेल गर्म करें । उबले आलू डाल दें । सिर्फ़ कटा हुआ हरा धनिया । कटी हरी मिर्च । और सैंधा नमक ( जिसको बहुत जगह लाहौरी नमक भी बोलते हैं ) स्वाद अनुसार डाल सकते हैं । इसमें थोङी सी ही पिसी काली मिर्च भी डाल सकते हैं । बस इन सबको थोङी देर चलायें । और आपके खाने के लिये मजेदार व्यंजन तैयार है ।
मेरे यहाँ इनको आलू के चिप्स तलकर उनके साथ खाया जाता है । एक चिप्स में तला आलू रखा । और खाया । अगर संयोगवश आपको अभी तक इन्हें खाने का चांस नहीं बना । तो निसंदेह आप एक बेहतरीन स्वाद से वंचित है । सबसे बङी बात है कि बेहद गुणकारी सैंधा नमक से बने होने के कारण ये पेट रोग आँखों सुस्ती आदि दूर करने में कई तरह से स्वास्थय के लिये लाभकारी हैं ।
अब आईये । मठा के आलू की बात करते हैं । कम से कम UP के त्यौहार । और दावतें । बारात भोज मठा के आलू के बिना बेकार लगती हैं । और इनको बनाना बहुत आसान है ।
- आलू उवाल लें । टुकङे कर लें । अगर 10 आलूओं की सब्जी है । तो 3 आलू बिलकुल पीसे हुये के समान कर लें ( हाथ से ही दबाकर हो जाते हैं । पीसने की आवश्यकता नहीं ) । इनको और टुकङों को एक प्लेट आदि में तैयार रख
दें । तेल गर्म करें । धुँआ उठने पर जीरा डालकर भूने । जीरा भुन जाने पर आलू डाल दें । थोङा सा चलायें । अब असली बात आती है । अब इसमें मठ्ठा डालें । और धीरे धीरे चमचा आदि से घुमाते रहें । वरना मठ्ठा फ़ट जायेगा ।
मठ्ठा के आलू का यही खास विज्ञान है । चमचा चलाते रहना । जो हरेक कोई नहीं सीख पाता । यदि मठ्ठा फ़्रिज से निकाल कर उपयोग करना है । तो लगभग 1 घन्टा पहले ही निकाल कर रख दें । ताकि उसमें ठण्डक न रहे । यदि मठ्ठा उपलब्ध नहीं । तो दही और पानी को मिक्सर या मथानी से चलाकर बना सकते हैं । लेकिन कुलदीप की तरह उसमें नमक नहीं डाला जाता ।
यदि आप हल्का खट्टा पसन्द करते हैं । तो मठ्ठा भी ताजा और हल्का खट्टा होना चाहिये । अधिक खट्टा खाने के लिये रखे हुये मठ्ठे को 1 दिन बाद उपयोग में लायें । इसको प्रेसर कुकर आदि में सीटी लगाकर नहीं बनाया जाता । बल्कि खुले बर्तन में बनाया जाता है । बस सावधानी यही होती है कि कुछ देर तक इसको बार बार चलाते रहना होता है । इससे मठ्ठा फ़टता नहीं है । मठ्ठा फ़ट जाने पर स्वाद में वो बात नहीं रहती । दूसरे इसको तब तक खदकाया ( धीरे धीरे पकाना ) जाता है । जब तक एक सोंधी सोंधी सी खुशबू न आने लगे । मठ्ठा बहुत अधिक गाङा न बनायें । बल्कि मध्यम रखें । न गाङा । न पतला ।
मठ्ठा के आलू में सिर्फ़ हरा धनिया ही डाल सकते हैं । नमक स्वाद अनुसार । और लाल मिर्च बहुत थोङी डालना
चाहिये । ये सब मठ्ठा डालने के बाद चला लेने पर डाल दें । इसके अलावा इसमें कुछ नहीं डाला जाता । हरे धनिया डाले वगैर इसका मजा आधा रह जाता है ।
अब आगे की बात सुनिये । मैं इसको कई तरीके से खाता हूँ । मठ्ठा के आलू तैयार हो जाने के बाद देशी घी में सिर्फ़ 2 कली कटा लहसुन भूनकर तङका लगाकर ये और भी स्वादिष्ट लगता है । तङके में । यदि खाने के शौकीन हों । तो अतिरिक्त लाल मिर्च भी डाल सकते हैं । मठ्ठा के आलू उबले सादा चावल ( पुलाव खिचङी आदि नहीं ) के साथ खाने में बहुत टेस्टी लगते हैं । ध्यान रहें । लहसुन का तङका सिर्फ़ उतनी सब्जी में तुरन्त लगायें । जितनी अभी खानी है । पूरी सब्जी में ऐसा तङका लगाकर उसको रख देने से उसका स्वाद बेकार हो जाता है । जिनका पेट साफ़ नहीं होता । या कब्ज रहता है । उन्हें बहुत फ़ायदा करता है । और टेस्टी तो होते ही हैं ।