02 जून 2015

हङबङी और जल्दबाजी में क्या अन्तर ?

आपने लिखा है कि, कर्मगति की पूर्ण कार्यप्रणाली को बता पाना बेहद दुष्कर कार्य है ।
- प्रश्न है कि किसके लिये बता पाना दुष्कर है ?
- हङबङाहट और जल्दबाज़ी में क्या कोई भेद है ?
- बाबा पूरे ब्रह्मांड मे नर्क की कही कोई भौगोलिक स्थित है ?
- क्या एक बार मनुष्य होने के बाद भी मनुष्य वापस पशु पक्षी हो सकता है ?
अंतरप्रकाश मिश्रा - लखनऊ ।
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प्रश्न - प्रश्न है कि किसके लिये बता पाना दुष्कर है ? 
उत्तर - वास्तव में अखिल सृष्टि में सबसे अधिक जटिल संरचना यदि किन्हीं सूक्ष्मातिसूक्ष्म पदार्थों की है । तो वह कर्म के अणु परमाणु और इससे भी अधिक इसी के सूक्ष्म घटकों की है । इसीलिये बङे बङे प्रकृति योगी भी सिर्फ़ स्थूल आंकलन को छोङकर इसका सटीक निर्धारण नहीं कर पाते । और अक्सर स्वयं की गति को लेकर भी अटक गये । इसके लिये राम के राजतिलक, दशरथ का प्रथम विवाह, शंकर का लंका में गृहप्रवेश, गौतम के साथ छल, श्रीकृष्ण जैसे योगी के निरन्तर साथ होने पर भी पांडवों की अधोगति जैसे अनेकानेक उदाहरण हैं ।
अगर प्रमुखता से कहा जाये । तो जो सबको जानता है । उसको जानने से ही ‘यह’ जाना जा सकता है । और उसमें भी बङी बाधा यह है कि - वो ही जाने, जाहि देयु जनाई ।
अतः मैंने ‘बता पाना’ के स्थान पर ‘समझा पाना’ कहा होता । तो ज्यादा शाब्दिक स्पष्ट हो जाता ।
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अब जैसे आप किसी भी एक साधारण वृक्ष फ़ल को ही लें । तो उसकी संरचना, गुण, धर्म, स्वभाव, गति, विपरीतता आदि बहुत सी चीजें उसी के समान फ़ल से भिन्न क्यों हो जाती है । बताना बेहद कठिन है । एक एक अंग एक एक कोशिका पर बेहद विस्तार से बताना होगा । उसका वृक्ष से कैसे क्या सम्बन्ध, घनत्व आदि सब कुछ । फ़िर वृक्ष का वहीं के पर्यावरण, जल, वायु, भूमि, ताप से कैसा सम्बन्ध । फ़िर स्थानीय पर्यावरण का सीमान्त वायुमंडल से क्या सम्बन्ध ?
यह सब भी किसी प्रकार आंकङों में संजो लिया जाये । तो भी कई तथ्यात्मक बातें छूट जायेंगी ।
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उदाहरण बहुत से हो सकते हैं । आप सिर्फ़ जो एक गिलास सादा पानी पी रहे हैं । यदि उसके भी जन्म, गुण, धर्म, प्रकृति, प्रभाव आदि कब क्यों कैसे को वैज्ञानिक पहलू से जानने की कोशिश करेंगे । तो बेहद मुश्किल खङी हो जायेगी । आप यकीन करें । एक सफ़ल और धुरंधर वैज्ञानिक के पास भी आज तक इसका उत्तर नहीं है ।
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सिर्फ़ एक कर्म की कर्मगति बेहद सूक्ष्मातिसूक्ष्म लाखों चेतन विद्युत कणों पर कार्बन आदि यौगिकों का मिश्रण है । इसीलिये ऐसी स्थिति के लिये कहा है -
नाम रूप दोउ अकथ कहानी । समझत बनत न जात बखानी ।
बात सरल सी है । आप किसी सुहाने स्थल पर सुहाने ही मौसम का आनन्द अनुभव कर रहे हैं । तो ये समझने में बहुत आसान है । पर वर्णन में बहुत दुष्कर । जबकि जिसको बताना चाहते हैं । उसको इसका कोई पूर्व ज्ञान न हो ।
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प्रश्न - हङबङाहट और जल्दबाज़ी में क्या कोई भेद है ?
उत्तर - मेरे विचार से जल्दबाजी सिर्फ़ शीघ्रता अति शीघ्रता के लिये प्रयुक्त कर सकते हैं । इसमें सिर्फ़ गतिविधि को तेज करना होता है । जबकि हङबङाहट एक अनिश्चतता, संशय, किंकर्तव्यविमूढता वाले भावों के साथ होती है । इसमें आपके पास ज्यादा समय नहीं होता । और जो वस्तु स्थिति या परिस्थिति सर्वथा नयी है । उसके साथ चाहे अनचाहे सामंजस्य और क्रिया करनी होती है ।
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प्रश्न - बाबा पूरे ब्रह्मांड मे नर्क की कहीं कोई भौगोलिक स्थित है ?
उत्तर - यदि स्वर्ग की भौगोलिक स्थिति है । तो उसके उलट अर्थों वाले नर्क की भी भौगोलिक स्थिति है । वास्तव में सामान्य मनुष्यों के लिये इस प्रथ्वी को, जिसको वे इन्द्रियों से जीवन्त अनुभव  करते हैं, के अतिरिक्त सभी लोकों की स्थिति कल्पित समान ही है । स्वर्ग का राजा इन्द्र, स्वर्ग की स्थिति, स्थायित्व, और उसका शासन आदि इन सबका विस्तार से वर्णन उपलब्ध है । और इसी तरह नर्क का भी है ।
वास्तव में इस प्रश्न के पीछे वह ‘कामन’ मानवीय धारणा अधिक है कि स्वर्ग नर्क सभी कुछ इसी जीवन में हैं । पर यह एकदम गलत है । मनुष्य योनि कर्म योनि के साथ साथ भोग योनि भी है । पूर्व के अच्छे बुरे भोगों के आधार पर ही हम सीखना, जीवन संचालित करना और सबसे महत्वपूर्ण कर्म शोधन करना, तभी कर पाते हैं । जब दोनों पक्ष मौजूद होते हैं ।
मनुष्य शरीर के विराट संरचना अनुसार नर्क की स्थिति कूल्हे से नीचे पैरों में कई स्थान पर है । जहाँ अंधेरे और नीच लोक भी हैं । नर्क भी कोई एक प्रकार का नहीं है । और सभी नर्क काफ़ी ऊंच नीच के अन्तर पर बहुत बहुत दूरी पर स्थिति हैं । अंधेरे और नीचे लोकों में जीव की गति होना भी एक तरह से नर्क के समान ही दण्ड मिलना है । यमपुरी में और उसके आसपास भी कई नर्क हैं ।
जानिये जीव तबही जग जागा । जम का डंडा सर में लागा ।
ये जिन पर लागू होता है । उन्हें आसानी से नर्क का टूर पैकेज निशुल्क मिलता है ।
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प्रश्न - क्या एक बार मनुष्य होने के बाद भी मनुष्य वापस पशु पक्षी हो सकता है ?
उत्तर - संभवतः ये सिद्धांत स्त्री पुरुष को सिर्फ़ बहन भाई की मान्यता देने वाले भृम कुमारी भृम कुमार ज्ञानियों की उत्पत्ति है ।
बङे भाग मानुष तन पावा । सुर दुर्लभ सद ग्रन्थन गावा ।
येहि तन कर फ़ल विषय न भाई । स्वर्ग हू स्वल्प अन्त दुखदाई ।
अगर एक बार मनुष्य होने के बाद दोबारा पशु पक्षी नहीं हो सकता । तो फ़िर पापाचारी को फ़िक्र ही क्यों । जब नर्क भी नहीं । और आगे भी मनुष्य ही बनेगा ।
साढे 12 लाख वर्ष के 84 लाख योनियों के चक्र से गुजर कर दुर्लभ मनुष्य जन्म मिलता है । इसीलिये लिखा है । और..
साधन धाम मोक्ष करि द्वारा । जेहि न पाय परलोक संवारा ।
यदि अपना जीव उद्धार नहीं कर पाये । तो वापस इसी 84 लाख योनियों के चक्र में जाना होगा ।
कबहुक करुना कर नर देही । देत हेत बिन परम सनेही ।
अगर यह इतना ही सरल सुलभ है । तो फ़िर देवताओं के लिये भी दुर्लभ क्यों है ? स्वर्ग का भोगकाल पूरा होने पर देवता भी इसी मृत्युलोक में फ़ेंक दिये जाते हैं । इन्द्र जैसे चीटा हाथी वगैरह बनते हैं ।

3 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

बहुत ही बढ़िया जीवनोपयोगी जानकारी प्रस्तुति हेतु आभार

कविता रावत ने कहा…

बहुत ही बढ़िया जीवनोपयोगी जानकारी प्रस्तुति हेतु आभार

Sanju ने कहा…

सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
शुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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