19 जनवरी 2013

पति-पत्नी में किसकी मृत्यु पहले?





हम में राम, तुम में राम।
खम्ब में राम, खरग में राम॥

अक्षर जोङ चौगुने करिये, ता में योग पाँच कर दीजे।
ता के दूने कर पीछे भाग आठ का दीजे, शेष बचे जो ता पे ध्यान पिता तुम दीजे॥

यह प्रसंग भक्त प्रहलाद और उसके पिता हिरणाकश्यप के बीच विवाद का है। प्रहलाद कहता था, सभी जगह राम हैं। इसको सिद्ध करने के लिये उसने ऊपर लिखित सूत्र बताया।

इसके लिये कोई भी चीज, या किसी का नाम, या कुछ भी कहीं के भी नाम के अक्षर लें। जैसे राजीव में 3 अक्षर हैं। मेज में 2 अक्षर हैं। चन्द्रमा में 5 अक्षर हैं। आकाश में भी 3 अक्षर हैं आदि आदि। अब मान लीजिये राजीव में राम निकालना है, तो 3 अक्षर, चौगुने किये तो 12 हुये। इसमें 5 जोङे तो 17 हुये। फ़िर 17 के दोगुने किये तो 34 हुये। अब इसमें 8 का भाग दिया तो 4 बार गया, और 32 कट कर शेष 2 ही बचा।

यानी राम नाम के 2 अक्षर। इसी तरह किसी भी व्यक्ति, वस्तु आदि कुछ भी कहीं भी के नाम के अक्षरों में यह सूत्र लगायें। शेष 2 ही रहेगा।

किस आधार पर - प्रकृति पूरी अक्षर में बंधी है यानी पूरा व्यवहार बरताव अक्षरों से ही होता है। 4 युगों का कालचक्र होता है। इसलिये 4 का गुणा किया जाता है। 5 तत्व का शरीर बना है। इसलिये 5 जोङा जाता है। प्रकृति और पुरूष मुख्य इन 2 ही से संसार है। इसलिये 2 का गुणा किया जाता है, और क्योंकि हर चीज का निचोङ निष्कर्ष मन से करते हैं, और मन 5 तत्व के शरीर और 3 गुण के द्वारा कार्य लेता है इसलिये 8 का भाग देते हैं। तब राम कैसे कण-कण में हैं, सिद्ध हुआ।
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राम नाम एक अंक है, सब साधन है शून्य।
अंक रहे 10 गुण्य (गुणा) है, अंक गये सब शून्य॥

इसका अर्थ है राम यानी चेतना सहयोग (या संयुक्त हुये) बिना सभी प्रयास 0 हैं, और 1 राम के जुङते ही यह 10 या 100 गुणा फ़लदायी हो जाते हैं।
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शादी शुभ या अशुभ?

स्त्री-पुरूष दोनों के नाम के अक्षर और मात्रायें जोङकर 2 का भाग  दिया जाता है। भागफ़ल के बाद यदि शेष में 0 बचता है तो अशुभ, और यदि शेष अन्य कुछ भी बचे तो शुभ। अक्षर और मात्रायें जोङने का तरीका नीचे वाले सूत्र से जानें।
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स्त्री-पुरूष दोनों में से किसकी मृत्यु पहले?

स्त्री-पुरूष के नाम के दोनों के अक्षरों का 2 गुना करें। फ़िर दोनों की मात्राओं का 4 गुणा करें। अब दोनों को जोङ लें। फ़िर 3 का भाग दें। यदि शेष 0 या 1 बचे, तो पुरूष की मृत्यु पहले होगी। 2 शेष बचे तो स्त्री की मृत्यु पहले होगी।

पति-पत्नी किसी भी एक के (पूर्व में) मरे होने पर जब इस सूत्र द्वारा परखा गया तो वह 98% सत्य निकला। सिर्फ़ कुछ अपवाद को छोङकर, जिनमें स्त्री-पुरूष के सही नाम वगैरह पर संशय था, या नाम बदल दिये गये थे, या नामों में देवत्व का प्रभाव था। जैसे रामप्रसाद, शंकरलाल, विष्णुदयाल आदि। देवी-देवता नाम योग वाले परिणाम सामान्य ले ठीक विपरीत रहते हैं। यानी 0 या 1 बचने पर स्त्री, और 2 बचने पर पुरूष।

इसके कुछ सत्य उदाहरण देखिये। निम्न उदाहरणों में अधिकांश चिन्ताहरण आश्रम के पास के निवासियों द्वारा वहीं के स्थानीय लोगों के बताये गये हैं।

पुष्पा में हुयी 3 अक्षर 2 मात्रायें।
राजीव में 3 अक्षर 2 मात्रायें।
(राजीव पहले मरा)

कैसे - पुष्पा 3 अक्षर, राजीव में 3 अक्षर, दोनों हुये 6। इसके दोगुने हुये 12।
अब पुष्पा में उ और अ की 2 मात्रायें। राजीव में अ और ई की 2 मात्रायें। दोनों की मात्रायें मिलाकर 4 हुयी, और इसके 4 गुणा 16 हुये। अब 12 और 16 को जोङ दें, तो 28 हुये। 28 में 3 का भाग देने से 9 बार गया, और शेष 1 बचा।
(यह सत्य है कि इसमें राजीव की ही मृत्यु पहले हुयी थी)

साधना में 3 अक्षर 2 मात्रायें।
राजीव में 3 अक्षर 2 मात्रायें।
(साधना पहले मरी)
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सूरजपाल
विमला
(सूरजपाल पहले मरे) विपरीत का उदाहरण
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कृष्णगोपाल
सुषमा
(सुषमा पहले मरी) विपरीत का उदाहरण
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ओमप्रकाश
कमला
(कमला पहले मरीं) विपरीत का उदाहरण
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रमाशंकर 6 अक्षर 1 मात्रा। 
अलका 3 अक्षर 1 मात्रा।
(रमाशंकर की मृत्यु पहले हुयी)
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रंगबहादुर
सत्यवती
(सत्यवती पहले मरी)
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सत्यदेव
सरोज
(सत्यदेव पहले मरे)
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रामस्वरूप
रामबेटी
(रामस्वरूप पहले मरे)
क्योंकि दोनों में ही ‘राम’ शब्द लगा था इसलिये सामान्य नियम में आ गया।
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ऊषा 2 अक्षर 2 मात्रायें।
रामनरेश 5 अक्षर 2 मात्रा।
(रामनरेश पहले मरे)
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कांति 3 अक्षर 2 मात्रायें।
उदयवीर  5 अक्षर 1 मात्रा।
(उदयवीर पहले मरे)
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स्नेहलता 5 अक्षर 2 मात्रायें।
सर्वेश 4 अक्षर 1 मात्रा।
(सर्वेश पहले मरे)
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मानवीर 4 अक्षर 2 मात्रायें।
मिथलेश 4 अक्षर 2 मात्रायें।
(मिथलेश पहले मरी)
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छोटेलाल 4 अक्षर 3 मात्रायें।
ओमवती  4 अक्षर 2 मात्रायें।
(छोटेलाल पहले मरे)

होरीलाल 4 अक्षर 3 मात्रायें।
रामभेजी 4 अक्षर 3 मात्रायें।
(होरीलाल पहले मरे)
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शिबी 2 अक्षर 2 मात्रायें।
शशि 2 अक्षर 1 मात्रा।
(शशि पहले मरी)
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रेखा 2 अक्षर 2 मात्रा।
सतीश 3 अक्षर 1 मात्रा।
(सतीश पहले मरा)
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प्रसिद्ध ऐतिहासिक उदाहरण।

रावण 3 अक्षर 1 मात्रा।
मन्दोदरी 5 अक्षर 2 मात्रायें।
(रावण पहले मरा)
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बालि 2 अक्षर 2 मात्रायें।
तारा 2 अक्षर 2 मात्रायें।
(बालि पहले मरा)
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राम 2 अक्षर 1 मात्रा।
सीता 2 अक्षर 2 मात्रा।
(सीता पहले मरी)

17 जनवरी 2013

वह अनाम है

गगन सिषर महि बालक बोले ।
उसके सहस्रार में, उसके मस्तिष्क में शून्य 0 पैदा हो जाता है । जब सब विचार विदा हो जाते हैं । जब अहंकार विदा हो जाता है । जब मैं हूं । ऐसा भाव ही नहीं रह जाता । जब वहाँ सिर्फ होता है मौन । शांत, शून्य । इसको समाधि कहते हैं । जब समाधि फल जाती है । जब तुम जागरूक होते हो । मगर कोई चित्त में विचार की धारा नहीं बहती । विचार का मार्ग शून्य हो गया । शांत हो गया । कोई यात्री नहीं चलते । निर्विचार, निर्विषय चित्त हो गया । तुम सिर्फ शुद्ध दर्पण रह गये । जिसमें अब कोई छाया नहीं बनती । कोई प्रतिबिंब नहीं बनता । इस अवस्था में तुम्हारे भीतर का कमल खिलता है । तुम्हारे मस्तिष्क में शून्य 0 का जन्म होता है । वहां कोई चीज भरने वाली नहीं रह जाती । तुम सिर्फ 1 खाली, पवित्र रिक्तता मात्र रह जाते हो ।
गगन सिषर महि बालक बोले...।
और तब उसकी निर्दोष आवाज । जैसे छोटे बच्चे की किलकारी ! जैसे अभी अभी पैदा हुए बच्चे की आवाज ! नई नई, ताजी ताजी, सद्य:स्नात, नहाई नहाई कुंवारी आवाज सुनाई पड़ती है । उसका नाद अनुभव होता है । ऐसी ही अवस्था में मुहम्मद ने कुरान को सुना । ऐसी ही अवस्था में ऋषियों ने वेद सुने । ऐसी ही अवस्था में जगत के सारे महत्वपूर्ण शास्त्रों का जन्म हुआ है । वे सभी अपौरुषेय हैं । पुरुष ने उनका निर्माण नहीं किया है । आदमी के हाथ उनमें नहीं लगे हैं । परमात्मा बहा है । आदमी तो सिर्फ मार्ग बना है । 
गगन सिषर महि बालक बोले । ताका नांव धरहुगे कैसा ।
और वह निर्दोष स्वर जब भीतर उठता है । तो उसे कोई नाम नहीं दिया जा सकता । वह अनाम है । उसे कोई विशेषण भी नहीं दिया जा सकता । क्योंकि सब विशेषण सीमा बांध देंगे । और वह असीम है । वह अनंत है । बिंदु सिंधु हो गया । बूंद उड़ गयी । आकाश हो गयी । अब कौन बोले । क्या बोले ? वहाँ से जब कोई लौटता है तो गूंगा । बिलकुल गूंगा हो जाता है । बोलता है बहुत । और और बातें बोलता है । कैसे वहां तक पहुंचो । यह बोलता है । किस मार्ग से पहुंचों ? यह बोलता है । किस विधि विधान से पहुंचोगे ? यह बोलता है । लेकिन वहां क्या हुआ । इस संबंध में बिलकुल चुप रह जाता है । कहता है - तुम्हीं चलो । तुम्हीं देखो । झरोखा कैसे खोलोगे । यह विधि बता देता हूं । ताली कौन सी चलाओगे । जिससे ताला खुल जाये । यह बता देता हूं । मगर जो दर्शन होगा । वह तो तुम जाओगे । तभी होगा । उस दर्शन को उधार कोई किसी को दे नहीं सकता ।
हसिबा खेलिबा धरिबा ध्यानं ।
लेकिन जिसको यह अनुभव हो गया है । उसके जीवन में तुम्हें कुछ चीजें दिखाई पड़ने लगेंगी । बड़े प्यारे वचन हैं । बड़े गहरे वचन हैं ।
हसिबा खेलिबा धरिबा ध्यानं...।
उसे तुम देखोगे हंसते हुए । खेलते हुए । जीवन उसके लिये लीला हो गया । उसे तुम गंभीर नहीं पाओगे । यह कसौटी है सदगुरु की । उसे तुम गंभीर और उदास नहीं पाओगे । तुम उसे हंसता हुआ पाओगे ।        हसिबा खेलिबा धरिबा ध्यानं...।
उसके लिये सब हंसी खेल है । सब लीला है । इसलिये हमने कृष्ण को पूर्णावतार कहा । राम गंभीर हैं । छोटी छोटी बात का हिसाब रखते हैं । नियम मर्यादा से चलते हैं । मर्यादा पुरुषोत्तम हैं । कृष्ण अमर्याद है । न कोई नियम है । न कोई मर्यादा है । कृष्ण के लिये जीवन लीला है ।
जीवन 1 खेल है । इसको खेल से ज्यादा मत लेना । खेल से ज्यादा लिया कि बस उलझे । नाटक समझो । अभिनय समझो । अभिनय में कोई परेशान थोड़े ही होता है । जो अभिनय मिल गया है । उसी को मस्ती से कर देतां है । रावण भी बनना पड़ता है रामलीला में । किसी को ते कुछ परेशान थोड़े ही होता है । कोई दिल ही दिल में रोता थोड़े ही है कि हाय, मैं कैसा अभागा कि मुझे रावण बनना पड़ा । पर्दा हटते ही राम और रावण सब बराबर हो जाते हैं । यहाँ एक दूसरे की जान लेने को उतारू थे । पर्दे के पीछे जाकर देखना बैठे चाय पी रहे हैं । गपशप कर रहे हैं । सीताजी दोनों के बीच में बैठी हैं । न कोई चुराने का सवाल है । न कोई बचाने का सवाल है । जीवन 1 अभिनय है । लेकिन उसी के लिये पूर्ण अभिनय हो पाता है । जो शून्य 0 को उपलब्ध हो जाता है ।
हसिबा खेलिबा धरिबा ध्यानं..।
फिर तो ध्यान भी खेल ही है । हंसी ही है । मुझसे लोग पूछते हैं कि यह आपका आश्रम कैसा । यहां लोग हंसते हैं । नाचते हैं । खेलते हैं । कूदते हैं । और कैसा आश्रम हो सकता है ?
हसिबा खेलिबा धरिबा ध्यानं । अहनिसि कथिबा ब्रह्मगियानं ।
और फिर तो वह जो भी बोलता है । वही ब्रह्मज्ञान है । अहनिसि । जैसे उठता है । जैसे बोलता है । चुप रह जाये । तो चुप रहने में ब्रह्मज्ञान है । बोले तो बोलने में ब्रह्मज्ञान है । नाचे तो नाचने में ब्रह्मज्ञान है । और शात बैठ जाये । तो शात बैठ जाने में ब्रह्मज्ञान है । उसका सारा व्यक्तित्व ब्रह्म को समर्पित हो गया । समग्र को समर्पित हो गया । अब वह व्यक्ति अलग नहीं है । इसीलिये तो हंसता है । खेलता है । अब परमात्मा की लीला का अंग हो गया है ।
हंसै षेलै न करै मन भंग ?
इसलिये हंसो । और खेलो । और मन को व्यर्थ गंभीर करके दुखी और परेशान न हो जाओ । मन भंग न करो । ओशो

04 जनवरी 2013

इसलिये कम नहीं होते 37 वर्ष


25 nov 2012 को मेरी गाङी तेजी से आगरा से दूर जा रही थी । कुछ समझ में नहीं आ रहा था । यात्रा उद्देश्य पूर्ण है । या निरुद्देश्य । कोई 1 महीना पुरानी गाङी जब नई नई शो रूम से बाहर आयी थी । तभी उसे 1 पहचान नम्बर और मालिकी का पंजीकरण दे दिया था । गाङी लगभग बेआवाज हल्की सर सर सी करती हुयी सङक पर तैर सी रही थी । बिलकुल मेरी तरह ही । जैसे मेरी सांसों का स्पंदन ही मेरे जीवित होने का अहसास कराता है । सङकों पर तीवु सांसारिक हलचल फ़ैली हुयी थी । मिश्रित ध्वनियों का वही परिचित सा शोर । और जैसी कि मेरी अजीव सोच है । मैं खिङकी से बाहर के आकर्षक दृश्यों के बजाय इस गाङी के बारे में सोच रहा था । इसकी आयु । इसका नया पुराना होना । और कहाँ कहाँ जायेगी ये ? क्या इसका अपना कोई उद्देश्य है ? या मालिक जिधर स्टेयरिंग घुमा दे । अपनी कोई इच्छा नहीं । जैसे अपना 

कोई वजूद नहीं । ये बहुत कुछ मुझसे मेल खाता है । आधी जिन्दगी खत्म हो चुकी है । 43..वर्ष यात्रा पूरी हो चुकी है । 37 वर्ष और तय करने हैं । कम नहीं होते 37 वर्ष । यदि यात्रा का कोई उत्साह न बचा हो । यात्रा खत्म हो गयी हो । कहीं कोई रस नहीं । आगरा से आश्रम तक का सफ़र सिर्फ़ 3 घण्टे का है । यधपि दूरी 70 Km ही है । पर देहाती सङकें 125 की गति पर चलने की इजाजत नहीं देती । टूंडला की मुख्य सङक से कार " नारखी " की  देहाती सङक पर मुङ गयी । और ग्रामीण जन जीवन की झलक सामने आने लगी । पतली सी कमजोर सङक और उसके दोनों तरफ़ जंगली झाङियाँ । इसलिये कम नहीं होते 37 वर्ष । है ना कुछ अजीव सा ?  सांसारिक दृष्टि से यह 1 रोमांचक यात्रा है । कोई भी देशी विदेशी पर्यटक इस पर ढेरों वीडियो क्लिप बना सकता था । पर मैं कभी नहीं । क्योंकि ये मुझे अन्दर से रोमांचित नहीं करते । क्योंकि मुझे कुछ भी रोमांचित नहीं करता । रोमांच शब्द ही मेरे शब्दकोश में नहीं है । बस कुछ नये नये बर्ताब जैसे हैं सब । बस नये रूप रंग । नये नये दृश्य । और वही पुरानी रामलीला । अति सुहावने दृश्यों के बाबजूद भी मैं ऊब कर आँखे बन्द कर लेता हूँ । और हठात अपनी 1 बृह्माण्डीय यात्रा पर मेरा ध्यान जाता है । ध्वनि और वायु ( गैस ) की तकनीक पर आधारित दिव्य लोक में अति तीवृ गति से उङता दिव्य विमान । इसकी बनाबट लगभग इसी प्रथ्वी के विमानों जैसी थी । बेहद लम्बा पर एकदम डैने रहित । बस इसमें डैने के नीचे इंजिन होने के बजाय लगभग 75% पीछे पूँछ के समीप था । और इसकी वर्ट्रीकल टेल भी यहाँ की अपेक्षा कम ऊँची थी । सवसे वङी वात ध्वनि ऊर्जा से चलने वाला यह विमान एकदम ध्बनि रहित उङता था । 
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 इसलिये उन्हें बात रुचती नहीं है । उन्हें बड़ी अड़चन होती है । उन्हें यह स्वीकार ही नहीं हो पाता कि नृत्य का और ध्यान से कोई संबंध हो सकता है, कि संगीत का और ध्यान से कोई संबंध हो सकता है । उन्हें यह बात समझ में नहीं आती । और निश्चित ही तब वे मेरे प्रति क्रोध से भर जाते हैं । इस अपूर्व स्थल के प्रति उनके मन में सिवाय द्वेष के और दुश्मनी के कुछ भी पैदा नहीं होता । उन्होंने अपने दुख को खूब मजबूती से पकड़ा है । वे दुख को छोड़ने को राजी नहीं हैं । और जब तक इस देश से दुख की यह आदत न टूटेगी । तब तक इस देश के सौभाग्य का उदय होने वाला नहीं ।
और मैं तुमसे कहता हूं कि धर्म का यह आदेश नहीं है कि तुम दुखी हो जाओ । धर्म आनंद की खोज है । तभी तो हमने परमात्मा को सच्चिदानंद कहा है । धर्म परम आनंद की खोज है । और इस जगत के आनंद, छोटे छोटे आनंद, उस मंदिर की सीढ़ी बना लेने हैं । इस जगत के सुखों को छोड्कर सच्चिदानंद मिलेगा । यह बात गलत है । क्योंकि जो इस जगत के आनंद लेने को भी राजी नहीं है । वह परमात्मा को झेलने का साहस कब जुटा पायेगा ? जो छोटे छोटे सुख नहीं ले पाता । वह उस बड़े सुख को कैसे झेल पायेगा ? जो चुल्लू भर पानी नहीं पी पाता । जब सागर उसके कंठ में उतरेगा । तो कैसे पी पायेगा ? नहीं । वह डूब जायेगा । मर जायेगा ।
मेरे हिसाब में यह संसार पाठशाला है । यहां हमें छोटे छोटे पाठ पढ़ाये जा रहे हैं । देखो फूलों को । खिलो फूलों जैसे । देखो इंद्रधुनषों को । रंगो अपने जीवन को इंद्रधनुषों जैसा । सुनो संगीत । बनो संगीत । उठने दो गीत तुम्हारा भी ।
पक्षियों में तुमने कोई महात्मा देखा है ? कि बैठे हों धूनी लगाये । रेत पोते. रो रहे हैं । त्रिशूल गड़ाये हैं । उपवास कर रहे हैं । तुमने कोई वृक्ष देखा है । जिसको तुम महात्मा कह सको ? वृक्ष ने फैलाई हैं अपनी जड़ें भूमि में । पी रहा है रस । खिलाये हैं फूल । कर रहा है गुफ्तगू चांद तारों से । मनुष्य को छोड्कर तुम्हें कहीं महात्मा मिलते हैं ? मनुष्य को छोड्कर तुम्हें कहीं दुख मिलता है ?
जरा सोचो तो, प्रकृति जो कि मनुष्य से पीछे है । पशु पक्षी और पौधे भी तुमसे ज्यादा सुखी हैं । तुम्हें क्या हो गया है ? तुम्हें कौन सी प्लेग लग गयी ? तुम्हारे चित्त पर रुग्ण लोग सवार हो गये हैं । तुम्हारे चित्त पर विक्षिप्त लोगों ने साम्राज्य स्थापित कर लिया है । जो सुखी नहीं हो सकते । उन्होंने दुख की महिमा गायी है । जो सुख की कला नहीं जानते । ऐसे हीन लोग दुख का गुणगान करते रहे हैं । और उन्होंने यह बात तर्क पूर्वक तुम्हारे चित्त में बिठा दी है कि तुम दुखी होओगे । तो परमात्मा के प्यारे होओगे ।
गोरख कुछ और कहते हैं । मैं कुछ और कहता हूं ।
हसिबा खेलिबा धरिबा ध्यान । अहनिसि कथिबा ब्रह्मगियान ।
फिर तुम्हारा उठना बैठना, बोलना, श्वास लेना, सब तुम्हारे ब्रह्मज्ञान की अभिव्यक्ति हो जायेगी ।
हंसै षेलै न करै मन भंग । ते निहचल सदा नाथ के संग ।
फिर जुड़ जायेगा सत्संग । फिर प्रभु के साथ ही हो । फिर वह तुम्हारे साथ है । फिर भेद नहीं है ।
छांडै आसा रहै निरास । कहै ब्रह्मा हूं ताका दास ।
और आदमियों की तो क्या बात । वह जो ब्रह्मा है । वह भी आकर तुम्हारे आनंद से भरे हुए जीवन को नमस्कार करेगा । कहेगा - कहै ब्रह्मा हूं ताका दास । देवता भी उसकी स्तुति करते हैं । जो मनुष्य आनंदमग्न हो जाता है । देवता भी उसके प्रति ईर्ष्या से भरते हैं ।
अभी तो तुम्हारी दशा ऐसी हो गयी कि नरक में जो नारकीय हैं । वे भी तुम पर दया करते होंगे । वे भी सोचते होंगे कि कहीं कोई हमसे पाप न हो जाये । नहीं तो पृथ्वी पर पैदा होना पड़े । और विशेष कर पुण्‍यभूमि भारत में । कोई पाप न हो जाये नरक में । नहीं तो पुण्य भूमि भारत भेजे जायें । ऐसी नरक में अफवाहें दें उड़ी हैं । ओशो        

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