पूरा धार्मिक वितण्डा वाद लोगों को भयभीत करने पर आधारित है । (ईमेल शीर्षक के साथ)
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अप्प दीपो भव - अपने दीये स्वयं बनो..अप्प दीपो भव का ये अर्थ मैंने एक जगह लिखा देखा पर मैं इससे सहमत नहीं हूँ । अप्प - आप, दीपो - दीपक, भव - होना या प्राप्ति ।
भव संस्कृत का शब्द है और संस्कृत शब्दकोश में इसके अर्थ - जन्म, शिव, बादल, कुशल, संसार, सत्ता, प्राप्ति, कारण, कामदेव हैं पर मैं किसी भी भाषा के पचङे में पङने के बजाय सरल सहज मार्ग का सदैव हिमायती हूँ । इसलिये प्रसिद्ध और आसान वाक्यों में इसका प्रमाण देखता हूँ ।
देखिये - आयुष्मान भव, कीर्तिमान भव, दीर्घायु भव । अब बङे आराम से समझ में आता है कि आशीर्वाद में भव का अर्थ - होओ निकला, बनो नहीं ।
क्योंकि इसका अर्थ बनने से करें तो फ़िर ये सलाह हुयी, आशीर्वाद कहाँ हुआ ? तुम बनो ।
और पागल से पागल भी जानता हैं कि दीर्घायु और यशस्वी होना अच्छा है फ़िर किसी आदरणीय द्वारा सिर्फ़ ये ‘सलाह’ देना - अजीब सी बात हुयी ।
लेकिन वह सलाह दे ही नहीं रहा, वह कह रहा है - होओ, यानी मैं आशीर्वाद के रूप में यह तेज यह ज्ञान तुम्हें प्रदान करता हूँ । शास्त्रों पर गौर करें तो ये आशीर्वाद यूँ ही औपचारिक अन्दाज में नहीं दिये गये कि जो मन में आया, कह दिया । बहुत से ऐसे प्रसंग हैं जब किसी निसंतान ने संतान का आशीर्वाद मांगा तो दिव्यदृष्टा ने उसे मना कर दिया, क्योंकि उसके भाग्य में नहीं है । बहुत से ऐसे प्रसंग हैं जब आशीर्वाद को सत्य वचन माना गया और इसके पीछे न होने पर एक धर्म कानूनी लङाई सी हुयी और अन्ततः मामला उस आशीर्वाद को पूरा करके सुलझाया गया ।
सुप्रसिद्ध प्रमाण - सावित्री यमराज प्रसंग ।
अब सीधी सी बात है यमराज कहता है - पुत्रवती भव यानी पुत्रवती होओ । अगर ये बनने की बात होती तो वह कह देता - नहीं बन सकता, मेरा क्या कसूर पति मर चुका है पर वचन फ़ेल हो रहा है, यानी वो दे चुका ।
इससे साबित होता है कि - बना नहीं जाता, होना होता है । बनना और होना मोटे अर्थ में समान भाव वाले लग रहे हैं पर इनमें एक बङा फ़र्क है । बनना - स्वयं का बोध देता है, किसी नयी बात का नये निर्माण का इशारा सा करता है । जैसा कि किसी विद्वान ने बुद्ध को अपनी बुद्धि से लिख दिया और होना - स्थापित सत्य के समान, अप्प दीपो भव - दीप के समान प्रकाशित ।
फ़िर इस तरह बुद्ध ने कुछ बहुत नयी बात नहीं कह दी यह तो पूर्वजों के छोटे मोटे आशीर्वाद में शामिल था - यशस्वी भव, तेजस्वी भव ।
ज्यों तिल माँही तेल है, ज्यों चकमक में आग ।
तेरा सांई तुझमें है, जाग सके तो जाग ।
इसलिये बनना (निर्माण) नहीं हैं वो आग प्रकट करनी है ।
मैंने पहले भी ये बात कही है । बुद्ध 2500 वर्ष पूर्व हुये उन्होंने जब ये बात कही होगी तो किसी ने अवश्य पूछा होगा - लेकिन कैसे बुद्ध जी ! कैसे अप्प दीपो भव ?
- ज्ञान की रगङ से । बुद्ध ने निश्चय ही उत्तर दिया होगा - और ज्ञान के लिये किसी बुद्ध के पास जाओ ।
क्योंकि अगर इसकी कोई आवश्यकता नहीं थी तो बुद्ध क्या रोचक कहानी भर सुना रहे थे ? अगर ज्ञान स्वयं से हो सकता था तो बुद्ध की ही क्या आवश्यकता थी । उन्हें यह कहने की ही क्या आवश्यकता थी ? लेकिन लोगों ने बात को अपनी सन्तुष्टि अनुसार पकङ लिया ।
बहुत पहले कोई मरा होगा किसी बच्चे आदि ने जिज्ञासावश पूछा होगा - अब दद्दा (मृतक) कहाँ गये ? तो उसने ज्ञान दृष्टि से कहा होगा - स्वर्ग प्राप्त हुआ । उस एक को क्या हुआ आज तक सबको स्वर्ग ही प्राप्त हो रहा है । मरने के बाद अखबार में (उठावनी ) खबर छपती है । स्वर्ग पहुँच गये, गोलोक पहुँच गये । फ़ोन आ गया मौज में है ।
नरक तो कोई गया ही नहीं तबसे । मैंने आज दिन तक घोर पापी (जिन्हें मैं व्यक्तिगत जानता था) की खबर में भी नहीं देखा - नरकवासी हुये । स्वर्ग अच्छा था स्वर्ग पकङ लिया । इसमें कौन से पैसे खर्च होते हैं । बात वही है - जो खुद को अच्छा लगा ले लिया ? मगर क्या वास्तव में मिला ?
तो बुद्ध ने आगे भी कुछ कहा होगा ? ज्ञान की तलाश करो । गुरु की भावना करो । बस मतलब की बात मिल गयी इसलिये उलझाऊ संकलित ही नहीं की ।
लेकिन बुद्ध बुद्धि वाले लोगों की भारत में कभी कमी नहीं रही । एक बाबा तुलसीदास भी हुये । उन्होंने रामचरित मानस उत्तरकाण्ड में - ये दिया कैसे जलेगा ? ये पहेली सुलझा दी ।
देखिये -
जोग अगिन कर प्रगट । तब कर्म शुभा शुभ लाइ ।
बुद्धि सिरावे ज्ञान घृत । ममता मल जर जाइ ।
तब बिज्ञान रूपिनि । बुद्धि बिसद घृत पाइ ।
चित्त दिया भरि धरे । दृढ़ समता दिअटि बनाइ ।
तीन अवस्था तीन गुन । तेहि कपास ते काढ़ि ।
तूल तुरीय संवारि पुनि । बाती करे सुगाढ़ि ।
एहि बिधि लेसे दीप । तेज रासि बिज्ञानमय ।
जातहिं जासु समीप । जरहिं मदादिक सलभ सब ।
लीजिये - अप्प दीप जलने लगा फ़िर क्या हुआ ?
सोहस्मि इति बृति अखंडा । दीप सिखा सोइ परम प्रचंडा ।
जैसे ही सोऽहंग वृति अखण्ड हुयी यानी चेतनधारा से अखण्ड ध्यान जुङ गया । इस दीपक की लौ परम प्रचण्ड जल उठी ।
आतम अनुभव सुख सुप्रकासा । तब भव मूल भेद भृम नासा ।
आत्मा का अनुभव होने लगा और सुप्रकाश (ध्यान दें - अपना प्रकाश) का सुख जाना । तब मैं क्या हूँ । मूल यानी जङ कहाँ है । ये भेद क्या हैं ? इन सब भृमों का नाश हो गया ।
आगे देखिये ।
परम प्रकास रूप दिन राती । नहिं कछु चहिअ दिआ घृत बाती ।
दिन रात सदा परम प्रकाशमय रूप का अनुभव । लेकिन ? अब न दिया न तेल न घी न कोई बत्ती वगैरह कुछ नहीं चाहिये ।
भाव सहित खोजइ जो प्रानी । पाव भगति मनि सब सुख खानी ।
और बस भाव से यदि प्राणी खोजे तो ये सभी सुखों की खान भक्तिमणि उसे प्राप्त हो जाती है ।
सब कर फल हरि भगति सुहाई । सो बिनु संत न काहू पाई ।
तुम्हारे सारे प्रयत्न जप, तप, वृत, तीर्थ, पुण्य, दान आदि इनका फ़ल प्रभु की सच्ची भक्ति मिलना ही है । लेकिन ? वो बिना सन्तों के कोई प्राप्त न कर सका और भी आगे देखिये ।
कमठ पीठ जामहिं बरु बारा । बंध्या सुत बरु काहुहि मारा ।
कछुये की पीठ पर बाल उग आयें । बांझ स्त्री का पुत्र किसी को मार दे ।
फूलहिं नभ बरु बहु बिधि फूला । जीव न लह सुख हरि प्रतिकूला ।
आकाश में तरह तरह के फ़ूल खिल उठे यानी ये असंभव कार्य भी यदि हो जायं लेकिन हरि (नाम) से प्रतिकूल जीव सुख नहीं पा सकता ।
तृषा जाइ बरु मृगजल पाना । बरु जामहिं सस सीस बिषाना ।
मृग मरीचिका के जल से प्यास बुझ जाये । खरगोश के सर पर सींग उग आयें ।
अंधकारु बरु रबिहि नसावे । राम बिमुख न जीव सुख पावे ।
और अंधकार सूर्य को नष्ट कर दे । ये सब भले हो जाये लेकिन राम से विमुख जीव सुख नहीं पा सकता ।
हिम ते अनल प्रगट बरु होई । बिमुख राम सुख पाव न कोई ।
बर्फ़ से अग्नि प्रकट हो जाये लेकिन राम से विमुख कोई जीव सुख नहीं पा सकता ।
और देखिये ।
जहं लगि साधन बेद बखानी । सब कर फल हरि भगति भवानी ।
हे पार्वती ! वेद जितने भी साधनों का बखान करते हैं । अंततः सभी (साधन उपाय) का फ़ल निचोङ हरि भक्ति ही बनता है यानी उतना सब करने के बाद समझ आता है या हरि भक्ति के पात्र हो जाते हैं ।
सो रघुनाथ भगति श्रुति गाई । राम कृपा काहू एक पाई ।
वही रघुनाथ जी की भक्ति वेद गाते हैं । जो राम कृपा से किसी एक (बिरले) को प्राप्त होती है । कहहिं सुनहिं अनुमोदन करहीं । ते गोपद इव भवनिधि तरहीं ।
जो इस राम कथा (अंतर में गूँजता अखण्ड नाम) को कहते सुनते और अनुसरण करते हैं । वे इस संसार सागर को गोपद (यानी गाय के खुर से बने गढ्ढे के समान) जैसी आसानी से पार (तर) कर जाते हैं ।
जो पहला आत्म ज्ञानी हुआ होगा । उसका गुरु कौन था ?
ये तो बङा साधारण सा प्रश्न है । इसका भी विस्त्रत उत्तर मेरे ब्लाग्स पर मौजूद है । जब ये सृष्टि बनी और कालपुरुष का नाम उस वक्त धर्मराय था लेकिन वो अष्टांगी को निगल गया । तब उसे यमराय या जमराय कहा जाने लगा । फ़िर उसे दिये गये ‘सोऽहंग’ जीवों को तप्तशिला आदि पर जलाने लगा, पाप कर्मों में उलझाने लगा, कष्ट देने लगा ।
तब इन जीवों की करुण पुकार से दृवित होकर सतपुरुष ने अपने प्रतिनिधि वहीं के लोगों को इनके उद्धार के लिये भेजा । इन्होंने जीव को उसके आत्मस्वरूप का बोध कराया और इस तरह युग युग में यह आत्मज्ञान परम्परा शुरू हुयी ।
अभी कुछ ही दिन पहले के लेख में मैंने बताया है कि - आत्मज्ञानी किस तरह प्रकट होते हैं ?
रामानन्द और कबीर प्रकरण में तो इसी चीज का बहुत विस्तार से वर्णन है । द्वैत ज्ञान की धज्जियाँ उङा दी हैं । रामानन्द के गुरु कबीर थे या कबीर के गुरु रामानन्द थे ? यही रहस्य बताया गया है । जब ये राज्य सत्ता (कई त्रिलोकी सृष्टि) बनी भी नहीं थी तब केन्द्रीय सत्ता पूर्ण अवस्था में आकार ले चुकी थी और वहाँ सभी मुक्त आत्मायें (आत्म ज्ञानी) ही थे । मुक्त आत्मा का मतलब ही ये है । सकल सृष्टि में उनकी निर्बाध गति होती है ।
अपनी मढी में आप मैं खेलूँ । खेलूँ खेल स्वेच्छा ।
7 टिप्पणियां:
तथागत गौतम एक सर्वश्रेष्ठ गुरू है
शास्ता है
पथप्रदर्शक है
उनका श्रेष्ठ वचन कि
कोई बात इसलिए स्वीकार मत करो कि किसी प्रभावशाली व्यक्ति ने कही है
कोई बात इसलिए मत स्वीकार करो कि बहुतेरे उसके मनाने वाले है
कोई बात इसलिए मत स्वीकार करो कि बहुत अवधि से प्रचलन मे है
कोई बात इसलिए भी मत स्वीकार करो की शास्त्रो ने कहा है
सबसे सटीक और साहसिक कथन
कि कोई बात इसलिए भी मत स्वीकार करो कि मै कहता हूँ
कोई बात तभी स्वीकार करो जब तुम्हे उचित लगे
तार्किक लगे
यह साहसिक कथन पूरे विश्व मे शायद ही किसी गुरु ने अपने शिष्यों के लिए कहा हो
अपने अनुयायियो के लिए कहा हो
इस गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर सभी मित्रों प्रियजनो पर बुद्ध की करूणा का गुरुप्रसाद प्राप्त हो ।
तथागत गौतम एक सर्वश्रेष्ठ गुरू है
शास्ता है
पथप्रदर्शक है
उनका श्रेष्ठ वचन कि
कोई बात इसलिए स्वीकार मत करो कि किसी प्रभावशाली व्यक्ति ने कही है
कोई बात इसलिए मत स्वीकार करो कि बहुतेरे उसके मनाने वाले है
कोई बात इसलिए मत स्वीकार करो कि बहुत अवधि से प्रचलन मे है
कोई बात इसलिए भी मत स्वीकार करो की शास्त्रो ने कहा है
सबसे सटीक और साहसिक कथन
कि कोई बात इसलिए भी मत स्वीकार करो कि मै कहता हूँ
कोई बात तभी स्वीकार करो जब तुम्हे उचित लगे
तार्किक लगे
यह साहसिक कथन पूरे विश्व मे शायद ही किसी गुरु ने अपने शिष्यों के लिए कहा हो
अपने अनुयायियो के लिए कहा हो
इस गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर सभी मित्रों प्रियजनो पर बुद्ध की करूणा का गुरुप्रसाद प्राप्त हो ।
तथागत गौतम एक सर्वश्रेष्ठ गुरू है
शास्ता है
पथप्रदर्शक है
उनका श्रेष्ठ वचन कि
कोई बात इसलिए स्वीकार मत करो कि किसी प्रभावशाली व्यक्ति ने कही है
कोई बात इसलिए मत स्वीकार करो कि बहुतेरे उसके मनाने वाले है
कोई बात इसलिए मत स्वीकार करो कि बहुत अवधि से प्रचलन मे है
कोई बात इसलिए भी मत स्वीकार करो की शास्त्रो ने कहा है
सबसे सटीक और साहसिक कथन
कि कोई बात इसलिए भी मत स्वीकार करो कि मै कहता हूँ
कोई बात तभी स्वीकार करो जब तुम्हे उचित लगे
तार्किक लगे
यह साहसिक कथन पूरे विश्व मे शायद ही किसी गुरु ने अपने शिष्यों के लिए कहा हो
अपने अनुयायियो के लिए कहा हो
इस गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर सभी मित्रों प्रियजनो पर बुद्ध की करूणा का गुरुप्रसाद प्राप्त हो ।
तथागत गौतम एक सर्वश्रेष्ठ गुरू है
शास्ता है
पथप्रदर्शक है
उनका श्रेष्ठ वचन कि
कोई बात इसलिए स्वीकार मत करो कि किसी प्रभावशाली व्यक्ति ने कही है
कोई बात इसलिए मत स्वीकार करो कि बहुतेरे उसके मनाने वाले है
कोई बात इसलिए मत स्वीकार करो कि बहुत अवधि से प्रचलन मे है
कोई बात इसलिए भी मत स्वीकार करो की शास्त्रो ने कहा है
सबसे सटीक और साहसिक कथन
कि कोई बात इसलिए भी मत स्वीकार करो कि मै कहता हूँ
कोई बात तभी स्वीकार करो जब तुम्हे उचित लगे
तार्किक लगे
यह साहसिक कथन पूरे विश्व मे शायद ही किसी गुरु ने अपने शिष्यों के लिए कहा हो
अपने अनुयायियो के लिए कहा हो
इस गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर सभी मित्रों प्रियजनो पर बुद्ध की करूणा का गुरुप्रसाद प्राप्त हो ।
तथागत गौतम एक सर्वश्रेष्ठ गुरू है
शास्ता है
पथप्रदर्शक है
उनका श्रेष्ठ वचन कि
कोई बात इसलिए स्वीकार मत करो कि किसी प्रभावशाली व्यक्ति ने कही है
कोई बात इसलिए मत स्वीकार करो कि बहुतेरे उसके मनाने वाले है
कोई बात इसलिए मत स्वीकार करो कि बहुत अवधि से प्रचलन मे है
कोई बात इसलिए भी मत स्वीकार करो की शास्त्रो ने कहा है
सबसे सटीक और साहसिक कथन
कि कोई बात इसलिए भी मत स्वीकार करो कि मै कहता हूँ
कोई बात तभी स्वीकार करो जब तुम्हे उचित लगे
तार्किक लगे
यह साहसिक कथन पूरे विश्व मे शायद ही किसी गुरु ने अपने शिष्यों के लिए कहा हो
अपने अनुयायियो के लिए कहा हो
इस गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर सभी मित्रों प्रियजनो पर बुद्ध की करूणा का गुरुप्रसाद प्राप्त हो ।
तथागत गौतम एक सर्वश्रेष्ठ गुरू है
शास्ता है
पथप्रदर्शक है
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कोई बात इसलिए स्वीकार मत करो कि किसी प्रभावशाली व्यक्ति ने कही है
कोई बात इसलिए मत स्वीकार करो कि बहुतेरे उसके मनाने वाले है
कोई बात इसलिए मत स्वीकार करो कि बहुत अवधि से प्रचलन मे है
कोई बात इसलिए भी मत स्वीकार करो की शास्त्रो ने कहा है
सबसे सटीक और साहसिक कथन
कि कोई बात इसलिए भी मत स्वीकार करो कि मै कहता हूँ
कोई बात तभी स्वीकार करो जब तुम्हे उचित लगे
तार्किक लगे
यह साहसिक कथन पूरे विश्व मे शायद ही किसी गुरु ने अपने शिष्यों के लिए कहा हो
अपने अनुयायियो के लिए कहा हो
इस गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर सभी मित्रों प्रियजनो पर बुद्ध की करूणा का गुरुप्रसाद प्राप्त हो ।
कलयुग कलयुग कलयुग क्या है ये
कलयुग ? आओ समझे
आज चर्चा होती है कलयुग आ गया ओर
सतयुग चला गया | तो कलयुग को जानने
से पहले सतयुग को जानना बहुत ज़रुरी है
| क्या है ये सतयुग ? जब
ब्राहमणों का कोई अत्याचार धर्म
ही समझा जाता था | किसी भी वर्ण
की महिला के साथ ब्राह्मण व्यभिचार
( ग़लत काम ) करने के लिए स्वतंत्र
था | उस समय को ब्राहमण सतयुग
कहते है और जब ब्राहमणों के अत्याचार
पर कुछ हद तक नियंत्रण हुआ तो , वह्
इसको कलयुग कहने लगे | ब्राह्मणों के
ग्रन्थ राम चरित्र मानस में कहा जाता है
के'नारी सभी अवगुणों कि खान है वह्
कपट का भंडार है'| वही तथागत बुध
केह्ते है के'अनेक रत्नों में नारी रत्न
श्री ( श्रेस्थ ) है |कितना अन्तर है
ब्राह्मनो में और हमारे महापुर्शो में |
मनुस्मृति में कहा गया है के , स्त्री और
शुद्र ( ऑ बी सि )
को शिक्षा नही देना चाहिए |
उनको शिक्षा देना , काले सर्प को दूध
पिलाने जैसा है | इसी मनुस्मृति को हमारे
बाबा साहिब डॉक्टर अंबेडकर जी ने
जलाकर हमे एक अधिकार दिला दिया |
हमे स्वंत्रता तथा शिक्षा क्ा अधिकार
दिलाया , तो ब्राह्मण चिल्लाने लगे
कि कलयुग आ गया है | जब जब
ब्राह्मनि व्यवस्था खतरे में पड़तीं है
तो ब्राह्मण हमारे समाज के अन्दर
धर्म , चमत्कार के नाम पर भय
पैदा करने का काम करता है |
कभी भगवान कभी कलयुग
कभी फालना कभी ढिमका | क्या अब
भी डरोगे , दोस्तों निकालो इस भय
को मन्न से और जो मकसद है
उसकी तरफ ध्यान दो ,
उस दिन मैं बताता हूँ क्या होगा घोर कलयुग ,
घोर कलयुग हा हा हा हा | जय कलयुग की
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