अब मामला बङा अजीव सा हो गया है । इसलिये कुछ भी लिखने में मन ही नहीं लगता । दरअसल सच पूछा जाये । तो लिखने को नया ( आत्म ज्ञान पर ) कुछ है भी नहीं । बहुत कुछ लिखा बोला जा चुका है । और बङे सटीक और प्रमाणिक रूप में मौजूद है । बस वो कैसे है ? जो उपलब्ध है । वो होता कैसे है ? इसको बताने वाला क्रियात्मक रूप देने वाला चाहिये । कबीर ने बङी सरलता से दो दो लाइनों में सभी गूढ रहस्य बता दिया है । ओशो ने बाल की खाल निकाल कर रख दी है । इसलिये और कुछ जोङने की आवश्यकता ही नहीं । जो है । जीव की क्षमता विकसित करने हेतु पर्याप्त है । पर्याप्त से बहुत अधिक ही है । बस उसको पढने गढने चढने की आवश्यकता भर है ।
लोग मुझसे कहते हैं - महाराज जी कृपा बनाये रखना । मैं कहता हूँ । कृपा के बोरे भरे हुये हैं । जितनी चाहो लो ।
लेकिन लेना होगा । और इस लेने के लिये मेरी से अधिक आपको अपनी कृपा की आवश्यकता होगी । जब आप खुद अपने ऊपर कृपा करेंगे । तो मार्ग आसान है । कोई कठिनाई नहीं है । बस रास्ते का विवरण और जाने का तरीका समझना है । फ़िर तो जाना भर शेष है । और ये भी तय है कि एक न एक दिन आपको वहाँ जाना ही होगा । अभी तक के विपरीत चलना होगा । बाहर से अन्दर की ओर । पीछे की ओर । हम आये कहाँ से है ? हमारा उदगम क्या है ?
इस मामले में मैं हमेशा खासा चालाक रहा । मैंने अंधों की भांति व्यवहार नहीं किया कि - लगे रहो इण्डिया । रिजल्ट चाहे कुछ निकले या निकले । मेरा सिद्धांत ही यह है कि - पहले इस्तेमाल करो । फ़िर विश्वास करो ।
इसलिये हर देवी देवा पूजा पाठ में मीन मेख निकालना मेरी आदत रही । जो मैं कर रहा हूँ । उसका फ़ल क्या होगा
? कर्म किये जा । फ़ल की इच्छा मत कर । जैसा गीता का सिद्धांत ( मगर मोटे रूप में । जैसा आम आदमी इसको समझता है । वास्तव में सही अर्थों में तो ये बहुत उच्च और गूढ बात है ) मेरी समझ के बाहर था । क्योंकिं खास हिन्दू परम्परा का तो पूरा जोर ही इस बात पर है कि आज जो कुछ भी अच्छा बुरा हमें प्राप्त हुआ है । उसका आधार हमारे पूर्व ( जन्मों के ) कर्म ही हैं । फ़िर अंधी पूजा क्यों ?अंधा कर्म क्यों ?और ध्यान दें । ये अंधी पूजा । अंधे कर्म । घोर अज्ञानी पण्डितों मुल्लों आदि ऐसे लोगों द्वारा ही समाज में स्थापित किये गये है । लोग सच्चाई जान न लें । धार्मिक पुस्तकों तक में छेङछाङ कर दी गयी । अर्थ का अनर्थ कर दिया गया । जबकि धर्म सूत्र ऐसा कभी नहीं कहीं नहीं कहते । आगे प्रमाण देखिये ।
मज्जन फल पेखिअ ततकाला । काक होहिं पिक बकउ मराला ।
सुनि आचरज करै जनि कोई । सतसंगति महिमा नहिं गोई ।
इस तीर्थ राज में स्नान का फल तत्काल ऐसा देखने में आता है कि कौए कोयल बन जाते हैं । और बगुले हंस । यह सुनकर कोई आश्चर्य न करे । क्योंकि सतसंग की महिमा छिपी नहीं है ।
बालमीक नारद घटजोनी । निज निज मुखनि कही निज होनी ?
वाल्मीकि नारद और अगस्त्य ने अपने अपने मुखों से अपनी होनी ( जीवन का वृत्तांत । आगे की बात ) कही है ।
अब इनमें नारद और अगस्त्य के वारे में आम लोग भले ही न जानते हों । पर डाकू से महर्षि बने वाल्मीकि को तो ज्यादातर लोग जानते ही हैं । बुद्ध अंगुलिमाल को तो जानते ही हैं । एक कट्टर डाकू का उच्च ज्ञान को उपलब्ध होना । क्या अगले जन्म में हुआ था ? पर लोग कैसे पागल है । सङी गली अंधी परम्पराओं का बोझा ढोये जा रहे हैं । इसलिये मेरे दिमाग में हमेशा ही ये बात रही कि - जो मैं करूँगा । उसका फ़ल कब क्या कैसे क्यों होगा ? और एक आम सोच आम लालच आम जिज्ञासा वाली वात - सर्वोच्च शक्ति कौन है ? SUPREME POWER कौन है ? ये साथ में रहती ही है । गौर करिये । ये बात सिर्फ़ मेरे साथ नहीं । आप सबके साथ भी है ।
SUPREME POWER ? एक बार भी आपकी कील इसी बिन्दु पर अटक जाये । तो समझ लो बहुत बङा मैदान मार लिया । बहुत सा कचरा स्वतः गिर गया । ये कोई उपदेश नहीं दे रहा । ठीक यही मेरे साथ हुआ । इसलिये अनुभूत ही बता रहा हूँ । राम की कथायें पढ लो । कृष्ण की पढ लो । शंकर की । जीसस की । मुहम्मद की ।
नानक की । किसी की भी पढो । सभी यही कह रहे हैं - वो कोई और ही है ? अर्थात मैं जो ये ? हूँ । वो इससे अलग है । सबसे अलग । और वो जो है । वही सर्वोच्च है । SUPREME POWER
और बस इतना ही नहीं कह रहे । साथ में यह भी कह रहे हैं । वही सबका ध्येय है । वही सवका लक्ष्य भी है । वही शाश्वत सत्य भी है । उसको ही जानना । वास्तव में कुछ जानना है । बाकी का जाना हुआ अज्ञान ही है । धोखा । खुद का खुद के साथ ही धोखा । इसलिये मेरी सभी चेष्टायें इसी एक बिन्दु पर केन्द्रित होकर रह गयी । SUPREME POWER
और ये विचार बङा ही अनोखा था । इसने तमाम पुराने क्षीण शक्ति विचारों को ही पलक झपकते नष्ट कर दिया । SUPREME POWER पर एकनिष्ठ केन्द्रित होते ही एक भयंकर तूफ़ान मेरे अस्तित्व में आया । प्रलय होने लगी । तब राम कृष्ण शंकर बृह्मा विष्णु देवी देवा नानक मुहम्मद जीसस कबीर दादू पलटू कितने गिनाऊँ । सब पतझङ के सूखे पत्तों की भांति अस्तित्व हीन होकर झङ गये । कोई बचा ही नहीं । उस भयंकर आँधी में मैं भी नहीं बचा । मेरा भी समूल खात्मा हो गया । और ये सब मुझ पर ही तो आश्रित थे । इनके डेरे तम्बू मेरे अस्तित्व की चहारदीवारी में ही बने थे । और जब मैं ही न रहा । तो फ़िर ये बेचारे कहाँ रहते ? यही एकमात्र सत्य था । शाश्वत सत्य ।
अब खास बात - आज मैंने बङा सरल और बङा ही विलक्षण प्रयोग आपको दिया है । ऐसा नहीं कि ये सिर्फ़ मेरे साथ हुआ । आप करेंगे । तो आपके साथ भी ऐसा ही होगा । बस - एकनिष्ठ होकर केन्द्रित । होने वाली बात याद रखना ।
- अभी वैसे लिखना बहुत कम हो पा रहा है । वजहें कई है । यदि सम्भव हुआ । तो आगे बताऊँगा । SUPREME POWER बेवसाइट पर हिन्दी और इंगलिश में लेख उपलब्ध होंगे । लेकिन ब्लाग भी बन्द नहीं होंगे । दोनों ही बेवसाइट का एड्रेस url अलग अलग है । जिनको आप नोट कर सकते हैं ।
- कुछ और बातें यहाँ भी हैं । क्लिक करें ।
लोग मुझसे कहते हैं - महाराज जी कृपा बनाये रखना । मैं कहता हूँ । कृपा के बोरे भरे हुये हैं । जितनी चाहो लो ।
लेकिन लेना होगा । और इस लेने के लिये मेरी से अधिक आपको अपनी कृपा की आवश्यकता होगी । जब आप खुद अपने ऊपर कृपा करेंगे । तो मार्ग आसान है । कोई कठिनाई नहीं है । बस रास्ते का विवरण और जाने का तरीका समझना है । फ़िर तो जाना भर शेष है । और ये भी तय है कि एक न एक दिन आपको वहाँ जाना ही होगा । अभी तक के विपरीत चलना होगा । बाहर से अन्दर की ओर । पीछे की ओर । हम आये कहाँ से है ? हमारा उदगम क्या है ?
इस मामले में मैं हमेशा खासा चालाक रहा । मैंने अंधों की भांति व्यवहार नहीं किया कि - लगे रहो इण्डिया । रिजल्ट चाहे कुछ निकले या निकले । मेरा सिद्धांत ही यह है कि - पहले इस्तेमाल करो । फ़िर विश्वास करो ।
इसलिये हर देवी देवा पूजा पाठ में मीन मेख निकालना मेरी आदत रही । जो मैं कर रहा हूँ । उसका फ़ल क्या होगा
? कर्म किये जा । फ़ल की इच्छा मत कर । जैसा गीता का सिद्धांत ( मगर मोटे रूप में । जैसा आम आदमी इसको समझता है । वास्तव में सही अर्थों में तो ये बहुत उच्च और गूढ बात है ) मेरी समझ के बाहर था । क्योंकिं खास हिन्दू परम्परा का तो पूरा जोर ही इस बात पर है कि आज जो कुछ भी अच्छा बुरा हमें प्राप्त हुआ है । उसका आधार हमारे पूर्व ( जन्मों के ) कर्म ही हैं । फ़िर अंधी पूजा क्यों ?अंधा कर्म क्यों ?और ध्यान दें । ये अंधी पूजा । अंधे कर्म । घोर अज्ञानी पण्डितों मुल्लों आदि ऐसे लोगों द्वारा ही समाज में स्थापित किये गये है । लोग सच्चाई जान न लें । धार्मिक पुस्तकों तक में छेङछाङ कर दी गयी । अर्थ का अनर्थ कर दिया गया । जबकि धर्म सूत्र ऐसा कभी नहीं कहीं नहीं कहते । आगे प्रमाण देखिये ।
मज्जन फल पेखिअ ततकाला । काक होहिं पिक बकउ मराला ।
सुनि आचरज करै जनि कोई । सतसंगति महिमा नहिं गोई ।
इस तीर्थ राज में स्नान का फल तत्काल ऐसा देखने में आता है कि कौए कोयल बन जाते हैं । और बगुले हंस । यह सुनकर कोई आश्चर्य न करे । क्योंकि सतसंग की महिमा छिपी नहीं है ।
बालमीक नारद घटजोनी । निज निज मुखनि कही निज होनी ?
वाल्मीकि नारद और अगस्त्य ने अपने अपने मुखों से अपनी होनी ( जीवन का वृत्तांत । आगे की बात ) कही है ।
अब इनमें नारद और अगस्त्य के वारे में आम लोग भले ही न जानते हों । पर डाकू से महर्षि बने वाल्मीकि को तो ज्यादातर लोग जानते ही हैं । बुद्ध अंगुलिमाल को तो जानते ही हैं । एक कट्टर डाकू का उच्च ज्ञान को उपलब्ध होना । क्या अगले जन्म में हुआ था ? पर लोग कैसे पागल है । सङी गली अंधी परम्पराओं का बोझा ढोये जा रहे हैं । इसलिये मेरे दिमाग में हमेशा ही ये बात रही कि - जो मैं करूँगा । उसका फ़ल कब क्या कैसे क्यों होगा ? और एक आम सोच आम लालच आम जिज्ञासा वाली वात - सर्वोच्च शक्ति कौन है ? SUPREME POWER कौन है ? ये साथ में रहती ही है । गौर करिये । ये बात सिर्फ़ मेरे साथ नहीं । आप सबके साथ भी है ।
SUPREME POWER ? एक बार भी आपकी कील इसी बिन्दु पर अटक जाये । तो समझ लो बहुत बङा मैदान मार लिया । बहुत सा कचरा स्वतः गिर गया । ये कोई उपदेश नहीं दे रहा । ठीक यही मेरे साथ हुआ । इसलिये अनुभूत ही बता रहा हूँ । राम की कथायें पढ लो । कृष्ण की पढ लो । शंकर की । जीसस की । मुहम्मद की ।
नानक की । किसी की भी पढो । सभी यही कह रहे हैं - वो कोई और ही है ? अर्थात मैं जो ये ? हूँ । वो इससे अलग है । सबसे अलग । और वो जो है । वही सर्वोच्च है । SUPREME POWER
और बस इतना ही नहीं कह रहे । साथ में यह भी कह रहे हैं । वही सबका ध्येय है । वही सवका लक्ष्य भी है । वही शाश्वत सत्य भी है । उसको ही जानना । वास्तव में कुछ जानना है । बाकी का जाना हुआ अज्ञान ही है । धोखा । खुद का खुद के साथ ही धोखा । इसलिये मेरी सभी चेष्टायें इसी एक बिन्दु पर केन्द्रित होकर रह गयी । SUPREME POWER
और ये विचार बङा ही अनोखा था । इसने तमाम पुराने क्षीण शक्ति विचारों को ही पलक झपकते नष्ट कर दिया । SUPREME POWER पर एकनिष्ठ केन्द्रित होते ही एक भयंकर तूफ़ान मेरे अस्तित्व में आया । प्रलय होने लगी । तब राम कृष्ण शंकर बृह्मा विष्णु देवी देवा नानक मुहम्मद जीसस कबीर दादू पलटू कितने गिनाऊँ । सब पतझङ के सूखे पत्तों की भांति अस्तित्व हीन होकर झङ गये । कोई बचा ही नहीं । उस भयंकर आँधी में मैं भी नहीं बचा । मेरा भी समूल खात्मा हो गया । और ये सब मुझ पर ही तो आश्रित थे । इनके डेरे तम्बू मेरे अस्तित्व की चहारदीवारी में ही बने थे । और जब मैं ही न रहा । तो फ़िर ये बेचारे कहाँ रहते ? यही एकमात्र सत्य था । शाश्वत सत्य ।
अब खास बात - आज मैंने बङा सरल और बङा ही विलक्षण प्रयोग आपको दिया है । ऐसा नहीं कि ये सिर्फ़ मेरे साथ हुआ । आप करेंगे । तो आपके साथ भी ऐसा ही होगा । बस - एकनिष्ठ होकर केन्द्रित । होने वाली बात याद रखना ।
- अभी वैसे लिखना बहुत कम हो पा रहा है । वजहें कई है । यदि सम्भव हुआ । तो आगे बताऊँगा । SUPREME POWER बेवसाइट पर हिन्दी और इंगलिश में लेख उपलब्ध होंगे । लेकिन ब्लाग भी बन्द नहीं होंगे । दोनों ही बेवसाइट का एड्रेस url अलग अलग है । जिनको आप नोट कर सकते हैं ।
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