राजीव अंकल ! क्या ये कृष्ण जी उसी गोलोक में रहते हैं । जिसे किसी लेख में आपने इन्द्रियों " गोमास भक्षण वाले लेख में " की संज्ञा दी थी । या वो कोई और है ? अगर वो ही है । तो अब कैसे explain करोगे ? अगर नहीं । तो क्यों नहीं । आपके उत्तर की प्रतीक्षा में । abra ka dabra
ANS - गोलोक विभिन्न लोकों की स्थिति अनुसार ( मगर ) बृह्माण्डी सत्ता का सबसे ऊँचा और आकार में सबसे बङा लोक है । यहाँ राधा कृष्ण अपने वास्तविक रूप में रहते हैं । वास्तव में यही त्रिलोकी सत्ता का मुख्यालय है । साधारण रूप से बृह्मा विष्णु शंकर देवियाँ आदि जैसे पदस्थ लोग यहाँ कभी नहीं जा सकते । विशेष कोशिशों और सिफ़ारिशों पर द्वैत के पहुँचे हुये सन्त इनकी एकाध बार मुलाकात कराते हैं । क्योंकि अपनी क्षमता से ये देवता यहाँ की ( ऊपर ) यात्रा नहीं कर सकते । गोलोक में घूमने वाले गोप गोपियों के अधिकार इन देवी देवताओं से बहुत अधिक होते हैं । ये वहाँ मुलाकात की प्रतीक्षा में उसी तरह गलियारे में खङे रहते हैं । जैसे किसी मिनिस्टर से मिलने आये छोटे मोटे लोग । इनसे बैठने को भी नहीं कहा जाता ।
2 - मनुष्य शरीर विराट की same प्रतिकृति है । गो - इन्द्रियों को कहा जाता है । और ये शरीर सभी अन्य चीजों ( तत्वों । प्रकृति । गुण आदि ) के साथ साथ ( जीव
स्थिति में ) गो यानी इन्द्रियों के समूह ( 5 ज्ञान इन्द्रियाँ 5 कर्म इन्द्रियाँ ) से खास संयुक्त है । मनुष्य के ज्ञान रहित अवस्था में ज्यादातर व्यवहार इन्द्रियों से ही जुङे हैं । अन्य चीजों को न जानता हुआ । वह ( इस शरीर को ही ) इनसे बने कृतिम शरीर को ही सब कुछ मानता है । अतः उस स्थिति अनुसार ( समझाने के लिये ) ये भी गो लोक ही है । जब अखिल सृष्टि का नक्शा जीवन्त रूप में इसमें है । तब फ़िर इसमें कृष्ण वाला गोलोक भी है । और भी गो लोक हैं । क्योंकि सनातन आत्मा इन सबसे परे है । उसमें गो वैल नाम की कोई चीज नहीं है । कुछ भी नहीं है । जो है ? वह वह वही शाश्वत सनातन है । और वह - है । जबकि बाकी सब बाद में निर्मित हैं ।
एक बात और । सतपुरुष और परमात्मा में भी भेद है ? भेजा फ्राई हो गया अंकल । आबरा का डाबरा ।
ANS - देखिये । यहाँ दोनों ही बातें हो जाती हैं । कुछ आत्म ज्ञानी सन्तों ने अपने भाव अनुसार परमात्मा को भी सत पुरुष कहा है । वास्तव में यहाँ इस भाव का अर्थ है । शाश्वत सत्य ( सत ) जो है । और 1 मात्र पुरुष ( चेतन । आत्मा ) जो है । इस तरह इस भाव अनुसार ये बिलकुल सही बात हुयी । लेकिन बारीक विश्लेषण कुछ अलग तरह का हो जाता है । यदि स्थूलता भाव में सिर्फ़ शब्द पर ध्यान दें । उसकी गहराई में न जायें । तो ये पूरी तरह गलत भी है । क्योंकि परमात्मा न सत है । न असत है । न स्त्री है । न पुरुष है । उसकी वास्तविकता वह है । जहाँ कोई स्थिति ही नहीं है । मतलब आदि सृष्टि से भी पहले की स्थिति । शाश्वत होना । है । है । है । सिर्फ़ - है ।
इस पूरे अखिल सृष्टि का सिर्फ़ 1 ही मुख्य सूत्र है । जो इसको समझ लेता है । वह बहुत जल्द परम ज्ञान को प्राप्त होने लगता है । सूत्र है - है । सो परमात्मा । ( यह सब हलचल ) हो रहा है - प्रकृति में । मान रहा है ( मैं मेरा । तू तेरा ) सो - जीव । बस कुल खेल इतने ही सूत्र में सिमटा हुआ है ।
सूत्र - है । सो परमात्मा । हो रहा है - प्रकृति में । मान रहा है सो - जीव ।
इसको समझकर ह्रदयंगम करने से बार बार दोहराने याद करने से बहुत ही लाभ होता है । जिसको बिना शक आशातीत कल्पनातीत लाभ कह सकते हैं ।
राजीव जी और अशोक जी ! शायद आप history नहीं पढते । गुरु तो रामदास जी शिवाजी के थे । पर शिवाजी ने राष्ट्र धर्म को जीवन्त जागृत किया । इतिहासकार तो वीर शिवा का गुणगान करते हैं । चाहे शिवाजी इसका श्रेय अपने गुरु को देते होंगे । अशोक जी ! आप मुझे गुरु गरिमा के बारे में बताते हो । मेरे गुरुदेव पं.श्रीराम शर्मा जी आगरा के आंवलखेङा के जाये जन्में " Light of india " से नवाजे गये । और उनका अबसे पहले तीसरा - जन्म सन्त कबीर । दूसरे में सन्त रामदास जी । और बाद में रामकृष्ण परमहँस के रूप में आये थे । जिन्होंने 3200 पुस्तकें बिज्ञान और अध्यात्म पर लिखी । मेरा आशय इतना ही है कि history को नजर अंदाज कर आपके विचार प्रमाणिकता विहीन व दुराग्रही हैं । चूणाराम विश्नोई ।
ANS - इसको पढकर मुझे इतनी हँसी आयी कि - शायद जीवन में नहीं आयी । इससे पहले भी पंजाब के हमारे एक पाठक ने बताया कि उनके घर में ईसाई धर्म में परिवर्तित हुआ कोई गुरु आया । जो कहता था - कबीर स्वर्ग में रहते हैं ? तब भी मुझे बहुत हँसी आयी थी । कहाँ श्री राम शर्मा ?? और कहाँ ये अति अति अति महान तीन हस्तियाँ । कबीर । रामदास । और रामकृष्ण परमहँस । और इनका चौथा जन्म ? जन्म ? वो भी श्री राम शर्मा का ? सिर्फ़ एक मुनि स्तर का ज्ञानी ।
कबीर । रामदास । और रामकृष्ण परमहँस - ये Light of india नहीं । बल्कि Light of परमात्मा है ।
आप history पढने पर जोर देते हो । कृपया अपने - गुरु के पूर्व 3 जन्मों ?? की वाणियों का अध्ययन करें । उन्होंने किसी गायत्री ? उपासना को कोई महत्व दिया । कोई भी महत्व ? उन्होंने घर घर बच्चों की तरह पढने के लिये किताबों कापियों के बस्ते बेचे । जिनमें राम राम वगैरह लिख कर आत्म ज्ञान ? बताया जाता हो ।
बड़के भैया " चूना राम बिश्नोई जी " हमारी नोलेज के हिसाब से तो तोतापुरी जी महाराज अभी कुछ समय पहले तक मुक्ति के लिए भटक ही रहे थे । अब शायद कहीं की सीट आरक्षित हो गयी हो । तो कह नहीं सकते । आगे भैया छोटा मुँह बड़ी बात बोल दिए । अगर बुरा लगे हो । तो हमका माफ़ी दे दो । आबरा का डाबरा ।
ANS - अक्सर एक नाम के कई सन्त । कई प्रसिद्ध लोग हुये हैं । जैसे एक विश्व विजेता सिकन्दर लगभग 500 वर्ष पूर्व कबीर के समय में उनका शिष्य हुआ । और एक कई हजार वर्ष पहले हुआ है । वह भी राजा ही था । और बेहद प्रसिद्ध भी हुआ । इसी तरह तोतापुरी नाम से विभिन्न पंथों के द्वैत ज्ञान में कई प्रसिद्ध अप्रसिद्ध सन्त हुये हैं । लेकिन आत्म ज्ञान की सनातन परम्परा में ये तोतापुरी मेरी जानकारी में सिर्फ़ 1 ही हुये हैं । ये रामकृष्ण परमहँस की युवावस्था का समय था । तब ये तोतापुरी बिहार के आसपास जंगलों आदि में घूमते रहते थे । वहीं इन्होंने सार शब्द मिशन के प्रमुख सन्त अद्वैतानन्द को उनके बचपन में ही ज्ञान दिया था । जिनके मण्डल की शाखायें - दिल्ली । पंजाब । नंगली ( मेरठ के पास ) आनन्द पुर ( ग्वालियर ) आदि बहुत स्थानों पर हैं । यही तोतापुरी रामकृष्ण परमहँस के भी अद्वैत मार्गी ज्ञान के गुरु थे । इनके और प्रसिद्ध शिष्यों के बारे में मुझे जानकारी नहीं । लेकिन मेरे ख्याल से इनके और शिष्य प्रसिद्ध नहीं हुये । या इन्होंने ज्यादा शिष्यों को ज्ञान ही नहीं दिया । तोतापुरी ( के गुरु ) से ऊपर की परम्परा किसी को ज्ञात नहीं है । इन्हीं तोतापुरी के शिष्य - अद्वैतानान्द के शिष्य - स्वरूपानन्द टेरी कोहाट ( सिन्ध प्रांत । अब पाकिस्तान में ) के थे । जिन्होंने उस समय पूरे विश्व में सतनाम का डंका बजा दिया था । इन्हीं को नंगली सम्राट कहा जाता है । नंगली और आनन्दपुर दोनों ही आश्रम लगभग 16 km के दायरे में बसे हुये हैं ।
विशेष - चुणाराम जी के श्रीराम शर्मा से सम्बन्धित प्रश्न का उत्तर और भी विस्तार से - राजीव जी इतना झूठ मत बोलो । में भी दिया जायेगा । क्योंकि उसका विषय पूर्णरूपेण ऐसा ही होगा ।
ANS - गोलोक विभिन्न लोकों की स्थिति अनुसार ( मगर ) बृह्माण्डी सत्ता का सबसे ऊँचा और आकार में सबसे बङा लोक है । यहाँ राधा कृष्ण अपने वास्तविक रूप में रहते हैं । वास्तव में यही त्रिलोकी सत्ता का मुख्यालय है । साधारण रूप से बृह्मा विष्णु शंकर देवियाँ आदि जैसे पदस्थ लोग यहाँ कभी नहीं जा सकते । विशेष कोशिशों और सिफ़ारिशों पर द्वैत के पहुँचे हुये सन्त इनकी एकाध बार मुलाकात कराते हैं । क्योंकि अपनी क्षमता से ये देवता यहाँ की ( ऊपर ) यात्रा नहीं कर सकते । गोलोक में घूमने वाले गोप गोपियों के अधिकार इन देवी देवताओं से बहुत अधिक होते हैं । ये वहाँ मुलाकात की प्रतीक्षा में उसी तरह गलियारे में खङे रहते हैं । जैसे किसी मिनिस्टर से मिलने आये छोटे मोटे लोग । इनसे बैठने को भी नहीं कहा जाता ।
2 - मनुष्य शरीर विराट की same प्रतिकृति है । गो - इन्द्रियों को कहा जाता है । और ये शरीर सभी अन्य चीजों ( तत्वों । प्रकृति । गुण आदि ) के साथ साथ ( जीव
स्थिति में ) गो यानी इन्द्रियों के समूह ( 5 ज्ञान इन्द्रियाँ 5 कर्म इन्द्रियाँ ) से खास संयुक्त है । मनुष्य के ज्ञान रहित अवस्था में ज्यादातर व्यवहार इन्द्रियों से ही जुङे हैं । अन्य चीजों को न जानता हुआ । वह ( इस शरीर को ही ) इनसे बने कृतिम शरीर को ही सब कुछ मानता है । अतः उस स्थिति अनुसार ( समझाने के लिये ) ये भी गो लोक ही है । जब अखिल सृष्टि का नक्शा जीवन्त रूप में इसमें है । तब फ़िर इसमें कृष्ण वाला गोलोक भी है । और भी गो लोक हैं । क्योंकि सनातन आत्मा इन सबसे परे है । उसमें गो वैल नाम की कोई चीज नहीं है । कुछ भी नहीं है । जो है ? वह वह वही शाश्वत सनातन है । और वह - है । जबकि बाकी सब बाद में निर्मित हैं ।
एक बात और । सतपुरुष और परमात्मा में भी भेद है ? भेजा फ्राई हो गया अंकल । आबरा का डाबरा ।
ANS - देखिये । यहाँ दोनों ही बातें हो जाती हैं । कुछ आत्म ज्ञानी सन्तों ने अपने भाव अनुसार परमात्मा को भी सत पुरुष कहा है । वास्तव में यहाँ इस भाव का अर्थ है । शाश्वत सत्य ( सत ) जो है । और 1 मात्र पुरुष ( चेतन । आत्मा ) जो है । इस तरह इस भाव अनुसार ये बिलकुल सही बात हुयी । लेकिन बारीक विश्लेषण कुछ अलग तरह का हो जाता है । यदि स्थूलता भाव में सिर्फ़ शब्द पर ध्यान दें । उसकी गहराई में न जायें । तो ये पूरी तरह गलत भी है । क्योंकि परमात्मा न सत है । न असत है । न स्त्री है । न पुरुष है । उसकी वास्तविकता वह है । जहाँ कोई स्थिति ही नहीं है । मतलब आदि सृष्टि से भी पहले की स्थिति । शाश्वत होना । है । है । है । सिर्फ़ - है ।
इस पूरे अखिल सृष्टि का सिर्फ़ 1 ही मुख्य सूत्र है । जो इसको समझ लेता है । वह बहुत जल्द परम ज्ञान को प्राप्त होने लगता है । सूत्र है - है । सो परमात्मा । ( यह सब हलचल ) हो रहा है - प्रकृति में । मान रहा है ( मैं मेरा । तू तेरा ) सो - जीव । बस कुल खेल इतने ही सूत्र में सिमटा हुआ है ।
सूत्र - है । सो परमात्मा । हो रहा है - प्रकृति में । मान रहा है सो - जीव ।
इसको समझकर ह्रदयंगम करने से बार बार दोहराने याद करने से बहुत ही लाभ होता है । जिसको बिना शक आशातीत कल्पनातीत लाभ कह सकते हैं ।
राजीव जी और अशोक जी ! शायद आप history नहीं पढते । गुरु तो रामदास जी शिवाजी के थे । पर शिवाजी ने राष्ट्र धर्म को जीवन्त जागृत किया । इतिहासकार तो वीर शिवा का गुणगान करते हैं । चाहे शिवाजी इसका श्रेय अपने गुरु को देते होंगे । अशोक जी ! आप मुझे गुरु गरिमा के बारे में बताते हो । मेरे गुरुदेव पं.श्रीराम शर्मा जी आगरा के आंवलखेङा के जाये जन्में " Light of india " से नवाजे गये । और उनका अबसे पहले तीसरा - जन्म सन्त कबीर । दूसरे में सन्त रामदास जी । और बाद में रामकृष्ण परमहँस के रूप में आये थे । जिन्होंने 3200 पुस्तकें बिज्ञान और अध्यात्म पर लिखी । मेरा आशय इतना ही है कि history को नजर अंदाज कर आपके विचार प्रमाणिकता विहीन व दुराग्रही हैं । चूणाराम विश्नोई ।
ANS - इसको पढकर मुझे इतनी हँसी आयी कि - शायद जीवन में नहीं आयी । इससे पहले भी पंजाब के हमारे एक पाठक ने बताया कि उनके घर में ईसाई धर्म में परिवर्तित हुआ कोई गुरु आया । जो कहता था - कबीर स्वर्ग में रहते हैं ? तब भी मुझे बहुत हँसी आयी थी । कहाँ श्री राम शर्मा ?? और कहाँ ये अति अति अति महान तीन हस्तियाँ । कबीर । रामदास । और रामकृष्ण परमहँस । और इनका चौथा जन्म ? जन्म ? वो भी श्री राम शर्मा का ? सिर्फ़ एक मुनि स्तर का ज्ञानी ।
कबीर । रामदास । और रामकृष्ण परमहँस - ये Light of india नहीं । बल्कि Light of परमात्मा है ।
आप history पढने पर जोर देते हो । कृपया अपने - गुरु के पूर्व 3 जन्मों ?? की वाणियों का अध्ययन करें । उन्होंने किसी गायत्री ? उपासना को कोई महत्व दिया । कोई भी महत्व ? उन्होंने घर घर बच्चों की तरह पढने के लिये किताबों कापियों के बस्ते बेचे । जिनमें राम राम वगैरह लिख कर आत्म ज्ञान ? बताया जाता हो ।
बड़के भैया " चूना राम बिश्नोई जी " हमारी नोलेज के हिसाब से तो तोतापुरी जी महाराज अभी कुछ समय पहले तक मुक्ति के लिए भटक ही रहे थे । अब शायद कहीं की सीट आरक्षित हो गयी हो । तो कह नहीं सकते । आगे भैया छोटा मुँह बड़ी बात बोल दिए । अगर बुरा लगे हो । तो हमका माफ़ी दे दो । आबरा का डाबरा ।
ANS - अक्सर एक नाम के कई सन्त । कई प्रसिद्ध लोग हुये हैं । जैसे एक विश्व विजेता सिकन्दर लगभग 500 वर्ष पूर्व कबीर के समय में उनका शिष्य हुआ । और एक कई हजार वर्ष पहले हुआ है । वह भी राजा ही था । और बेहद प्रसिद्ध भी हुआ । इसी तरह तोतापुरी नाम से विभिन्न पंथों के द्वैत ज्ञान में कई प्रसिद्ध अप्रसिद्ध सन्त हुये हैं । लेकिन आत्म ज्ञान की सनातन परम्परा में ये तोतापुरी मेरी जानकारी में सिर्फ़ 1 ही हुये हैं । ये रामकृष्ण परमहँस की युवावस्था का समय था । तब ये तोतापुरी बिहार के आसपास जंगलों आदि में घूमते रहते थे । वहीं इन्होंने सार शब्द मिशन के प्रमुख सन्त अद्वैतानन्द को उनके बचपन में ही ज्ञान दिया था । जिनके मण्डल की शाखायें - दिल्ली । पंजाब । नंगली ( मेरठ के पास ) आनन्द पुर ( ग्वालियर ) आदि बहुत स्थानों पर हैं । यही तोतापुरी रामकृष्ण परमहँस के भी अद्वैत मार्गी ज्ञान के गुरु थे । इनके और प्रसिद्ध शिष्यों के बारे में मुझे जानकारी नहीं । लेकिन मेरे ख्याल से इनके और शिष्य प्रसिद्ध नहीं हुये । या इन्होंने ज्यादा शिष्यों को ज्ञान ही नहीं दिया । तोतापुरी ( के गुरु ) से ऊपर की परम्परा किसी को ज्ञात नहीं है । इन्हीं तोतापुरी के शिष्य - अद्वैतानान्द के शिष्य - स्वरूपानन्द टेरी कोहाट ( सिन्ध प्रांत । अब पाकिस्तान में ) के थे । जिन्होंने उस समय पूरे विश्व में सतनाम का डंका बजा दिया था । इन्हीं को नंगली सम्राट कहा जाता है । नंगली और आनन्दपुर दोनों ही आश्रम लगभग 16 km के दायरे में बसे हुये हैं ।
विशेष - चुणाराम जी के श्रीराम शर्मा से सम्बन्धित प्रश्न का उत्तर और भी विस्तार से - राजीव जी इतना झूठ मत बोलो । में भी दिया जायेगा । क्योंकि उसका विषय पूर्णरूपेण ऐसा ही होगा ।
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