13 अप्रैल 2012

असल में उनके मंत्र में वे काल के मंत्र भी थे ?

प्रिय राजीव भाई ! नमस्कार । मैंने आपके अधिकतम लेख 4 बजे तक जाग जाग कर पढ़े हैं । मेरे 4 बजे तक जागने का तात्पर्य केवल जिज्ञासा दर्शाना ही है । कृपा कर एक संशय का समाधान देकर मार्ग दिखायें । मैंने राधा स्वामी पंथ की एक शाखा से पंचनामा 15-16 वर्ष की आयु में ही लिया था । दरअसल मैं सुबह सुबह अगरबत्ती जला कर सुखमनी साहिब को पढता था । पढ़ते पढते स्वयं ही विचार हुआ कि इसे रटने की नहीं । इसमें जो लिखा है । उस पर अमल करने की आवश्यकता है । और धीरे धीरे समझ आने लगा कि - साध की महिमा वेद न जानही । जेता सुनही तेता बखानही । फिर मन में साथ की खोज शुरू हुई । और इतनी तड़प पैदा हो गयी कि - शायद आप समझ ही गए होंगे । तब 3-4 रोज बाद ही मेरी बुआ अपनी कार से हमें मैं और मेरी छोटी बहन को ले जाकर महाराज ठाकुर सिंह जी के सतसंग में बिठा दिया । सतसंग पश्चात फिर मुझे नाम दान 


लाइन में बिठा दिया । नाम दान के समय मुझे ( भीड़ ) में कहा गया था कि इन पंच नामों की व्याख्या फिर कभी करेंगे । 2 घंटे बाद मुझे वो मिला । जिसके लिए मैं तड़प रहा था । शुरू शुरू के कुछ 8-10 माह में 4 बजे उठ कर नहा धोकर ( सर्दी या गर्मी  ) सुमरन करता था । फिर कुछ अनुभव न होने पर धीरे धीरे कम होता गया । शादी के पश्चात एक समय ऐसा भी आया कि मुझे कुछ समय के लिए सब कुछ छोड़ कर आश्रम भागना पड़ा । क्योंकि मेरी पत्नी के साथ नहीं बनी । जिससे उसने मुझ पर अपने गहनों की चोरी का लांछन लगाया ( नौकरी छूटना । धन की कमी । बेरोज़गारी से तंग आकर । उसने ऐसा किया )  आश्रम में हर 4 घंटे बाद 2 घंटे के लिए हम 4 लडकों को सुमरन ( मन से ) करना होता था । क्योंकि लडकों की संख्या समय को विभाजित करके 4 पर 2 घंटे सुमरन तय हुआ था । वह समय मेरे जीवन का स्वर्णिम समय था । क्योंकि वहाँ रह कर मैं सच्चे साधु के गुण सीख गया था । घण्टों बैठने पर भी समय की और ध्यान नहीं जाता था । ध्यान में ही रहने का मन करता था । पंचनामा हर समय सोते जागते एवं हर कार्य में स्वयं ही चलता रहता था । कितनी ही गहरी नींद में क्यों न होऊँ । एक आवाज़ पर ही जवाब दे देता था । ( दरअसल ये वहाँ के एक भाई ने बताया । जब वो मेरे कमरे के जालीदार गेट पर आया । तो मैं बहुत जोर जोर से खर्राटे के साथ सो रहा था । उसने जैसे ही अशोक कहा 


मैं उठ कर बैठ गया । और कहा - अभी तो कुछ समय बाकी है । 2 बजने में । तो वो बोला - अभी नहाना भी तो है । मैं वहाँ 23-24 दिन रहा । इस तरह फिर घर में सुलह हो गयी । वहाँ से आने पर काम के साथ धीरे धीरे सब कम होता गया । आज इस बात को 12 साल हो चुके हैं । नेट पर मुझे राधा स्वामी पंथ के गुरुओं की अंदरूनी कलह के बारे में पता चला । तो मैं भटक गया । इस बीच मेरे गुरु भी शरीर छोड़ गए । कई गुरु जो उसी समय साक्षात्कार का दावा करते थे । से मिला । एवं ज्ञान लिया । जिनमें से एक श्री अनुरागी जी महाराज द्वारा सोहम मिला । जिसके बाद मैं माया में बहुत ही ज्यादा उलझ गया । और काम भी बहुत बढ़ गया । इन्हीं महाराज जी से एक पुस्तक मैंने ली थी - सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान ( जो बाद में पता चला कि ) कबीर साहेब की अनुराग सागर से ली गयी है । 1 वर्ष पूर्व मुझे पता चला कि करोंदा । हरियाणा में कोई रामपाल जी महाराज हैं ? जो खुद को कबीर साहब का उत्तराधिकारी कहते है ?? व दावा करते है कि - इस समय धरती पर केवल उन्हीं के पास कबीर जी का असली ज्ञान है ? और राधा स्वामी पथ काल की और ही अग्रसर है । मैंने उनसे भी मंत्र लिया । पर वो

टीवी पर एक रिकॉर्डिंग के द्वारा था । क्या ये मुमकिन है कि - कोई टीवी द्वारा ज्ञान दे । इस तरह तो उसके चले जाने के बाद उसके चेले ही कई पथ चला लेंगे । और असल में उनके मंत्र में वे काल के मंत्र भी थे ??? जिनका वो सतसंग में विरोध करते हैं ?????
खैर.. कृपया बताये कि - अब क्या मार्ग है मेरे लिए ? कहीं ऐसा न हो कि मेरे मरने पर ये सारे गुरु आपस में लड़ मरे कि ये मेरा शिष्य है ? या फिर कोई आये ही न ? या फिर गधा घोडा बनना पड़े  ? अब भी साधना करता हूँ । तो रमता तो पंचनामे में ही हूँ । परन्तु सोहम में ध्यान ऐसे ऊपर जाता है । जैसे बाल्टी पानी से भरती हुए पानी धीरे धीरे ऊपर जाता है । कृपया उचित मार्गदर्शन करे कि - क्या उत्तम रहेगा ?
- दिल्ली से । फ़ोन पर भी बात हो चुकी ।
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उत्तर शीघ्र प्रकाशित होगा

3 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

Jo sabse pahle guru dharan kiye,unhi ko mano jagah jagah thokre mat khao

बेनामी ने कहा…

बाबा ससावन सिंह कहते हैं यदि कोई औरत हजार पति बना ले तो क्या वो पवित्र रह सकती है?

Unknown ने कहा…

नहीं

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326