एक अजनबी किसी गांव में पहुंचा । उसने उस गांव के प्रवेश द्वार पर बैठे एक वृद्ध से पूछा - क्या इस गांव के लोग अच्छे और मैत्री पूर्ण हैं ?
उस वृद्ध ने सीधे उत्तर देने की बजाय स्वयं ही उस अजनबी से प्रश्न किया - मित्र ! जहां से तुम आते हो । वहां के लोग कैसे हैं ? अजनबी दुखी और क्रुद्ध होकर बोला - अत्यंत क्रूर, दुष्ट और अन्यायी । मेरी सारी विपदाओं के लिए उनके अतिरिक्त और कोई जिम्मेवार नहीं । लेकिन आप यह क्यों पूछ रहे हैं ?
वृद्ध थोड़ी देर चुप रहा । और बोला - मित्र ! मैं दुखी हूँ । यहां के लोग भी वैसे ही हैं । तुम उन्हें भी वैसा ही पाओगे ।
वह व्यक्ति जा भी नहीं पाया था कि एक दूसरे राहगीर ने उस वृद्ध से आकर पुन: वही बात पूछी । यहाँ के लोग कैसे हैं ?
वह वृद्ध बोला - मित्र ! क्या पहले तुम बता सकोगे कि जहां से आते हो । वहां के लोग कैसे हैं ?
इस प्रश्न को सुन यह व्यक्ति आनंद पूर्ण स्मृतियों से भर गया । और उसकी आंखें खुशी के आंसुओं से गीली हो गई । वह बोलने लगा - आह ! बहुत प्रेम पूर्ण और बहुत दयालु, मेरी सारी खुशियों के कारण वे ही थे । काश ! मुझे उन्हें कभी भी न छोड़ना पड़ता ।
वह वृद्ध बोला - मित्र ! यहां के लोग भी बहुत प्रेम पूर्ण हैं । इन्हें तुम उनसे कम दयालु नहीं पाओगे । ये भी उन जैसे ही हैं । मनुष्य मनुष्य में बहुत भेद नहीं है ।
संसार दर्पण है । हम दूसरों में जो देखते हैं । वह अपनी ही प्रतिक्रिया होती है । जब तक सभी में शिव और सुंदर के दर्शन न होने लगें । तब तक जानना चाहिए कि स्वयं में ही कोई खोट शेष रह गई है ।
श्री गुरु ग्रन्थ साहिब पन्ना 1158 ( कबीर जी )
लंका गढ़ सोने का भया । मुर्ख रावण क्या ले गया ?
कह कबीर किछ गुण बिचार । चले जुआरी दोए हथ झार ।
मैला ब्रह्मा मैला इंद । रवि मैला मैला है चंद ।
मैला मलता एह संसार । एक हरि निर्मल जा का अंत ना पार ।
रहाऊ मैले ब्रह्मंड के ईस । मैले निस बासर दिन तीस ।
मैला मोती मैला हीर । मैला पउन पावक अर नीर ।
मैले शिव शंकरा महेस । मैले सिद्ध साधक अर भेख ।
मैले जोगी जंगम जटा सहेत । मैली काया हंस समेत ।
कह कबीर ते जन परवान । निर्मल ते जो रामहि जान ।6।
कबीर जी कहते हैं - सोने की लंका होते हुए भी मूर्ख रावण अपने साथ क्या लेकर गया ? अपने गुण पर कुछ विचार तो करो । वरना हारे हुए जुआरी की तरह दोनों हाथ झाड कर जाना होगा । ब्रह्मा भी मैला है । इंद्र भी मैला है । सूर्य भी मैला है । चाँद भी मैला है । यह संसार मैले को ही मल रहा है । अर्थात मैल को ही अपना रहा है । एक हरि ही है - जो निर्मल है । जिसका न कोई अंत है । और न ही उसकी कोई पार पा सकता है । ब्रह्मंड के ईश्वर भी मैले हैं । रात दिन और महीने के तीसों दिन मैले हैं । हीरे जवाहरात मोती भी मैले हैं । पानी हवा और आकाश भी मैले हैं । शिव शंकर महेश भी मैले हैं । सिद्ध लोग साधना करने वाले और भेष धारण करने वाले भी मैले हैं । जोगी जंगम और जटाधारी भी मैले हैं । यह तन हंस भी बन जाए । तो भी मैला है । कबीर जी कहते हैं - केवल वही कबूल हैं । जिन्होंने राम जी को जान लिया है ।
ज्ञानी हमेशा चुप और शांत होता है । वह पूछने पर या जरुररत पर ही बोलता है । वह ज्ञानी के साथ ज्ञानी होता । और मूर्ख के साथ मूर्ख हो जाता है । बच्चों के साथ बच्चा हो जाता है । जवान के साथ जवान होता है । वह किसी भी रंग में अपने को रंग देता है । वही ज्ञानी और योगी है ।
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