गुरूजी को सादर प्रणाम ! मेरा नाम कौशलेन्द्र नागोरिया है । मैं आपके शिष्य विष्णु नागोरिया ( जयपुर ) का छोटा भाई हूँ । मेरा काफी बार आश्रम आने का प्रोग्राम बनाया । लेकिन सफल नहीं हो पाया । मेरी एक समस्या है कि मेरा मन कभी भी एक जगह रुकता नहीं है । कभी सोचता हूँ - ये कर लूँ । और कभी वो कर लूँ । मेरा मन अशांत रहता है । मैं जीवन का लक्ष्य ही निर्धारित नहीं कर पा रहा हूँ । जो भी कुछ करता हूँ । बड़े जोश के साथ करता हूँ । और फिर वही कार्य उसी तीवृता से ख़त्म भी हो जाता है । बस गुरूजी मैं इसके बारे में आपका मार्गदर्शन चाहता हूँ । with regards Kaushalendra Nagoria
उत्तर - आध्यात्म जगत में यह बात बहुत ही प्रसिद्ध है कि - विश्व को जीतना सरल है । लेकिन मन को जीतना बेहद कठिन । क्योंकि इसका स्वभाव ही है । हर वक्त विभिन्न वासनाओं की इच्छा करना । सही मायनों में यदि मन को नियन्त्रित न किया जाये । तो ये इतने लम्बे समय के लिये जीव को कालमाया की भूलभुलैया में फ़ँसा देता है कि उसका उबरना कठिन हो जाता है । क्योंकि संस्कार दर संस्कार इतनी लम्बी विष बेल फ़ैल जाती है । जिसको नष्ट करना बहुत ही कठिन हो जाता है ।
ये कर लूँ । वो कर लूँ...जैसी मनस्थिति इंसान की तभी तक होती है । जब तक वह कामचलाऊ भी ठीक स्थिति में होता है । इसको दूसरे शब्दों में लापरवाही भी कहते हैं । लेकिन जैसे ही समस्यायों का पहाङ खङा हो जाता है । या ऐसी जिम्मेदारी आ जाती है । जिसको हर हाल में करना ही होता है । तब इंसान चाहते न चाहते भी कोल्हू के बैल की तरह उसमें जुत ( लग ) जाता है । इसको साधुओं की भाषा में इस तरह भी कह सकते हैं - आछे दिन पाछे गये किया न हरि से हेत । अब पछताय होत का जब चिङिया चुग गयी खेत । दुख में सुमरन सब करें सुख में करे न कोय । जो सुख में सुमरन करो तो दुख काहे को होय । झूठे सुख से सुखी है मानत है मन मोद । जगत चबैना काल का कछु मुख में कछु गोद । इसलिये समय रहते । अपने आपको सुधार लो । वरना रिजल्ट के समय पढाई या पुनर्परीक्षा का आयोजन कभी नहीं होता है । ये मौका सिर्फ़ जीवन में एक बार ही मिलता है । अगर फ़िर भी सदमार्ग पर चलने हेतु खुद को असमर्थ पाते हो । तो परमपिता परमात्मा से नित्य इसके लिये प्रार्थना करना विशेष फ़लदायी होता है ।
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राजीव जी नमस्कार ! आपके गुरूदेव जी को मेरा शत शत प्रणाम । राजीव मैं बहुत जिज्ञासु हूँ । इस कारण हर एक बात की तह तक जाना चाहता हूँ । और आज तक मुझे आपसे बङा विद्वान नहीं मिला है । जो प्रत्येक
जिज्ञासा का सही समाधान कर सके । इस कारण आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूँ ।
हमारे क्षेत्र में गोगाजी की बहुत मान्यता है । और हो भी क्यों ना । क्योंकि हमारे गाँव में सांप से काटे गये कितनों ही जनों का सफल इलाज हुआ है । और आज तक शायद सांप के काटने से एक भी मृत्यु नहीं हुई है । 10-12 जनों को मैंने ठीक होते देखा है । गोगाजी के देवस्थान होते हैं । उन्हें हम गोगामेङी कहते हैं । वहाँ पर भाद्रपद मास में बहुत ज्यादा संख्या में सांप इकट्ठा हो जाते हैं । और वो सांप किसी को भी नुकसान नहीं पहुचाते हैं । चाहे उन पर भूल से पैर भी टिक जायें । और जैसे ही भादवा महीना समाप्त हो जाते हैं । वो सांप भी चले जाते हैं । अब मैं आपसे ये जानना चाहता हूँ कि हम इसे गोगाजी का चमत्कार कहें । या कुछ और ? राकेश कुमार सरन
उत्तर - द्वैत मार्ग के कुण्डलिनी में यन्त्र तन्त्र मन्त्र सिद्धि आदि ऐसे अनेक ज्ञान हैं । जिसमें किसी व्यक्ति या स्थान को एक निश्चित समय तक के लिये " आन " लग जाती है । इसी का एक और प्रकार " बन्ध " भी होता है । बन्ध ( बंधे क्षेत्र में ) में उस प्रकार का कोई कार्य नहीं हो सकता । जो आमतौर पर उसी लौकिक संसार में होता है । ये आन एक प्रकार से वरदान का ही बहुत छोटा रूप होता है । क्योंकि कोई भी वरदान तपस्वी के तप और देने वाले देवता की सामर्थ्य के अनुसार ही दिया जाता है । इसी तरह विभिन्न पीर फ़कीरों की जो दुहाई मन्त्र के बाद जोङी जाती है । वह भी उस फ़कीर की आन और शक्ति अनुसार कार्य करती है । फ़िर इसका समय समाप्त हो जाने पर वह प्रभाव खत्म हो जाता है । आन कोई आवश्यक नहीं कि अच्छे फ़ल वाली ही हो । कभी कभी ये श्राप रूप भी होती है कि - फ़लां जगह इतने समय तक ऐसा नहीं होगा । और अच्छे रूप में - ये स्थान या व्यक्ति इतने समय तक फ़ला फ़ूला और पूज्य आदि रहेगा । ये उस व्यक्ति की तप साधना का फ़ल होता है ।
इसमें विकृति अक्सर ये आ जाती है कि लगभग अशिक्षित श्रेणी के लोग किसी एक कार्य की आन वाले व्यक्ति
और स्थान को भगवान मानकर मिथ्या प्रचार फ़ैला देते हैं कि - वहाँ सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं । जबकि ऐसा किसी बङे देव स्थान पर भी सम्भव नहीं होता । ऐसा ही जाहरवीर गोगा के साथ भी है । वह किसी तपस्या के फ़लस्वरूप एक निश्चित समय के लिये वैसी तरंगे काम करती रहेंगी । इसको चमत्कार कह भी सकते हैं । और नहीं भी कह सकते । क्योंकि ऐसा हरेक कोई सिद्ध कर सकता है । यह एक विज्ञान है । और विज्ञान के कितने ही सिद्ध उपकरण आज मानव को अनेकों सुख सुविधायें पहुँचा रहे हैं । यदि चाहें । तो इनको भी चमत्कार ही कह सकते हैं न ।
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प्रणाम !
प्रश्न 1 - क्या ऐसे मंत्र भी होते हैं ? जिससे पशु, पक्षियों या पेड़ पौधों से बात कर सकते हैं ?
उत्तर - यदि मन्त्र तन्त्र आदि के बजाय ज्ञान शब्द का प्रयोग किया जाये । तो बात अधिक सरल हो जाती है । और ज्ञान का मतलब है - सीखना । जब हम उत्सुक मगर साक्षी भाव से किसी भी वस्तु जीव आदि की क्रियाओं को देखते समझते सीखते हैं । तो धीरे धीरे हमें उस वस्तु या जीव आदि के बारे में सही जानकारी होने लगती है । और यही चीज उसका यन्त्र मन्त्र है । यानी वह सिद्ध ( ज्ञान ) विज्ञान । जो हमारी इच्छा अनुसार कार्य करे । अतः ये कोई विशेष बात नहीं है । पशु पक्षी के निरन्तर सम्पर्क में रहने वाले उनके स्वभाव, हाव भाव या अन्य चेष्टाओं के बारे में सभी कुछ भली भांति जानते हैं । ये भी सही है कि पशु पक्षियों की एक मूक भाषा होती है । और वनों में रहने वाले कई ऋषि मुनियों को इसका ज्ञान भी था । आज भी होता है ।
प्रश्न 2 - योगी होने के नाते क्या आप एलियन के बारे में बता सकते हो ?
उत्तर - एलियन से आपका वही मतलब है । जो विदेशियों का है । तो फ़िर ऐसे कोई एलियन होते ही नहीं हैं । हाँ यदि हिन्दी शब्द परग्रही जीव का इस्तेमाल करें । तो फ़िर वे होते हैं । और उनके बारे में बताना क्या । जैसी जीव सृष्टि यहाँ है । वैसी ही बृह्माण्ड में सर्वत्र है । क्योंकि यहाँ मनुष्य और 84 लाख योनियों का ही प्रकट अस्तित्व है । अतः वही देखने को मिलते हैं । जबकि समस्त सृष्टि को चित्र विचित्र और विलक्षण शब्द से कहा जाता है । मतलब बहुत प्रकार की सृष्टि और सृष्टि जीव हैं ।
प्रश्न 3 - क्या शरीर के सप्त चक्रों और पंच कोषों को देखा जा सकता है ?
उत्तर - अपनी क्षमता । लगन और मेहनत । ज्ञान सिद्धांत और कोई सच्चा मार्गदर्शक या गुरु । ये शरीर के क्या अखिल सृष्टि या परमात्मा तक से मिला ( दिखा ) देते हैं । शरीर के चक्र कोष आदि तो छोटे से कुण्डलिनी ज्ञान का हिस्सा मात्र हैं ।
प्रश्न 4 - मोक्ष और मुक्ति में क्या अंतर है ?
उत्तर - मोक्ष का वास्तविक अर्थ सभी मायनों में समस्त मोह का क्षय हो जाना है । इस मोह भाव से ही सृष्टि चल रही है । मोह सकल व्याधि कर मूला । जाते पुनि उपजत भव शूला । मोक्ष का अर्थ आत्म ज्ञान और स्वयं की पहचान से है । इसमें ये सृष्टि मात्र अज्ञान भासित ही है । ऐसा ज्ञान भी होता है । मोक्ष से जीवात्मा गर्भावास और आवागमन के झँझट से मुक्त होकर अमर पद को पाता है ।
जबकि मुक्ति का अर्थ ही किसी बन्धन से मुक्ति पाना है । द्वैत में मुक्ति के अनेकानेक अर्थ है । यथा कोई बृह्मा विष्णु शंकर आदि के पद या वैसे ही लोक प्राप्त करना । चार प्रमुख और बङी मुक्तियों के अंतर्गत आता है । जबकि इसी प्रकार के दिव्य लोकों में कोई गण आदि के रूप में लम्बे समय तक रहने का अधिकार प्राप्त होने को भी बहुत से लोग मुक्ति कहते हैं । जो मेरे विचार से अज्ञानता ही है । त्रिलोकी सृष्टि का मालिक कालपुरुष । महामाया आदि शक्ति । राम । कृष्ण । बृह्मा । विष्णु । शंकर आदि आदि पद स्थिति को प्राप्त जीवात्मायें भी समय समाप्त हो जाने पर पद से पदच्युत कर फ़िर से कालचक्र में गिरा दी जाती हैं । फ़िर अन्य की बात ही क्या हो ।
प्रश्न 1 - बृह्मर्षि श्री कुमार स्वामी जो बीज मंत्र देते हैं । क्या उनसे मोक्ष मिल सकता है ? आपके क्या विचार हैं उनके बारे में ?
उत्तर - इत्तफ़ाकन सुबह के लेख में ही मैंने बीज मन्त्रों के विज्ञान को समझाने की कोशिश की है । बीज मन्त्रों का सही ज्ञान हो जाने पर इनसे विभिन्न सूक्ष्म ( आंतरिक ) और स्थूल ( बाह्य ) कार्य सिद्ध किये जा सकते हैं । बृह्म ज्ञान में इनका बहुत अधिक महत्व नहीं है । हाँ ये उस ज्ञान का एक हिस्सा अवश्य हैं । इनसे मोक्ष तो दूर कोई अच्छी स्थिति भी प्राप्त नहीं होती । फ़िर कुमार स्वामी जो देता है । उस पर कोई चर्चा करना समय की बरबादी करना ही है । बृह्मर्षि नारद विश्वामित्र आदि को कहा जाता था । इसलिये कुमार स्वामी कौन सा ऋषि है ? खुद ही अन्दाजा लगा लो । मेरा उसके वारे में कोई विचार नहीं है ।
प्रश्न 2 - क्या आपने अपने पिछला जन्म के बारे में जान लिया है ?
क्या आप किसी का भी पिछला जन्म जान सकते हैं ?
उत्तर - मुझे तो नहीं पता । पर मुझसे सम्पर्क में रहने वाले बहुत से लोग ऐसा कहते हैं कि मैं अपने कई जन्मों को जानता हूँ । और मैंने दूसरों को भी जानने में मदद की है । हमारे तीसरे " कारण शरीर " में सभी जन्मों के संस्कार जमा होते हैं । कारण में जाय के नाना संस्कार देखे । वहाँ ऐसी घटनाओं को ठीक ऐसे ही देखा जाता है । जैसे अभी आप कम्प्यूटर देख रहे हैं । बस मेहनत और योग करने की आवश्यकता है ।
प्रश्न 3 - परमात्मा हमें हमारे कर्मों का फल किस किस रूप में देता है ? जैसे कि कोई व्यक्ति A किसी दूसरे व्यक्ति B की हत्या करता है । तो क्या अगले जन्म में दूसरा व्यक्ति B पहले व्यक्ति A की हत्या करके बदला लेगा ? या परमात्मा व्यक्ति A को रोग देगा ? दीपक
उत्तर - जिस प्रकार कोई अदालत किसी अपराध की सजा सुनाते समय केस के सभी पहलूओं यानी अपराधी की मनःस्थिति । अपराध की वजह । अपराध की संगीनता । और वर्तमान में भी अपराधी का व्यवहार या मानसिकता कि वह पश्चाताप कर रहा है । या खुश और है । अपराधी का पूर्व चरित्र आदि आदि मिलकर तब उस एक अपराध की सजा ( फ़ल ) सुनाई ( दी ) जाती है । ठीक ऐसा ही संविधान इस सृष्टि का भी है । वैसे परमात्मा किसी को भी सजा या पुरस्कार कभी नहीं देता । उसके संविधान के तहत ( शासन प्रशासन ) तन्त्र और प्रकृति ये कार्य सम्पन्न करते हैं । और ये बात सजा और पुरस्कार दोनों पर ही लागू होती है ।
उत्तर - आध्यात्म जगत में यह बात बहुत ही प्रसिद्ध है कि - विश्व को जीतना सरल है । लेकिन मन को जीतना बेहद कठिन । क्योंकि इसका स्वभाव ही है । हर वक्त विभिन्न वासनाओं की इच्छा करना । सही मायनों में यदि मन को नियन्त्रित न किया जाये । तो ये इतने लम्बे समय के लिये जीव को कालमाया की भूलभुलैया में फ़ँसा देता है कि उसका उबरना कठिन हो जाता है । क्योंकि संस्कार दर संस्कार इतनी लम्बी विष बेल फ़ैल जाती है । जिसको नष्ट करना बहुत ही कठिन हो जाता है ।
ये कर लूँ । वो कर लूँ...जैसी मनस्थिति इंसान की तभी तक होती है । जब तक वह कामचलाऊ भी ठीक स्थिति में होता है । इसको दूसरे शब्दों में लापरवाही भी कहते हैं । लेकिन जैसे ही समस्यायों का पहाङ खङा हो जाता है । या ऐसी जिम्मेदारी आ जाती है । जिसको हर हाल में करना ही होता है । तब इंसान चाहते न चाहते भी कोल्हू के बैल की तरह उसमें जुत ( लग ) जाता है । इसको साधुओं की भाषा में इस तरह भी कह सकते हैं - आछे दिन पाछे गये किया न हरि से हेत । अब पछताय होत का जब चिङिया चुग गयी खेत । दुख में सुमरन सब करें सुख में करे न कोय । जो सुख में सुमरन करो तो दुख काहे को होय । झूठे सुख से सुखी है मानत है मन मोद । जगत चबैना काल का कछु मुख में कछु गोद । इसलिये समय रहते । अपने आपको सुधार लो । वरना रिजल्ट के समय पढाई या पुनर्परीक्षा का आयोजन कभी नहीं होता है । ये मौका सिर्फ़ जीवन में एक बार ही मिलता है । अगर फ़िर भी सदमार्ग पर चलने हेतु खुद को असमर्थ पाते हो । तो परमपिता परमात्मा से नित्य इसके लिये प्रार्थना करना विशेष फ़लदायी होता है ।
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राजीव जी नमस्कार ! आपके गुरूदेव जी को मेरा शत शत प्रणाम । राजीव मैं बहुत जिज्ञासु हूँ । इस कारण हर एक बात की तह तक जाना चाहता हूँ । और आज तक मुझे आपसे बङा विद्वान नहीं मिला है । जो प्रत्येक
जिज्ञासा का सही समाधान कर सके । इस कारण आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूँ ।
हमारे क्षेत्र में गोगाजी की बहुत मान्यता है । और हो भी क्यों ना । क्योंकि हमारे गाँव में सांप से काटे गये कितनों ही जनों का सफल इलाज हुआ है । और आज तक शायद सांप के काटने से एक भी मृत्यु नहीं हुई है । 10-12 जनों को मैंने ठीक होते देखा है । गोगाजी के देवस्थान होते हैं । उन्हें हम गोगामेङी कहते हैं । वहाँ पर भाद्रपद मास में बहुत ज्यादा संख्या में सांप इकट्ठा हो जाते हैं । और वो सांप किसी को भी नुकसान नहीं पहुचाते हैं । चाहे उन पर भूल से पैर भी टिक जायें । और जैसे ही भादवा महीना समाप्त हो जाते हैं । वो सांप भी चले जाते हैं । अब मैं आपसे ये जानना चाहता हूँ कि हम इसे गोगाजी का चमत्कार कहें । या कुछ और ? राकेश कुमार सरन
उत्तर - द्वैत मार्ग के कुण्डलिनी में यन्त्र तन्त्र मन्त्र सिद्धि आदि ऐसे अनेक ज्ञान हैं । जिसमें किसी व्यक्ति या स्थान को एक निश्चित समय तक के लिये " आन " लग जाती है । इसी का एक और प्रकार " बन्ध " भी होता है । बन्ध ( बंधे क्षेत्र में ) में उस प्रकार का कोई कार्य नहीं हो सकता । जो आमतौर पर उसी लौकिक संसार में होता है । ये आन एक प्रकार से वरदान का ही बहुत छोटा रूप होता है । क्योंकि कोई भी वरदान तपस्वी के तप और देने वाले देवता की सामर्थ्य के अनुसार ही दिया जाता है । इसी तरह विभिन्न पीर फ़कीरों की जो दुहाई मन्त्र के बाद जोङी जाती है । वह भी उस फ़कीर की आन और शक्ति अनुसार कार्य करती है । फ़िर इसका समय समाप्त हो जाने पर वह प्रभाव खत्म हो जाता है । आन कोई आवश्यक नहीं कि अच्छे फ़ल वाली ही हो । कभी कभी ये श्राप रूप भी होती है कि - फ़लां जगह इतने समय तक ऐसा नहीं होगा । और अच्छे रूप में - ये स्थान या व्यक्ति इतने समय तक फ़ला फ़ूला और पूज्य आदि रहेगा । ये उस व्यक्ति की तप साधना का फ़ल होता है ।
इसमें विकृति अक्सर ये आ जाती है कि लगभग अशिक्षित श्रेणी के लोग किसी एक कार्य की आन वाले व्यक्ति
और स्थान को भगवान मानकर मिथ्या प्रचार फ़ैला देते हैं कि - वहाँ सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं । जबकि ऐसा किसी बङे देव स्थान पर भी सम्भव नहीं होता । ऐसा ही जाहरवीर गोगा के साथ भी है । वह किसी तपस्या के फ़लस्वरूप एक निश्चित समय के लिये वैसी तरंगे काम करती रहेंगी । इसको चमत्कार कह भी सकते हैं । और नहीं भी कह सकते । क्योंकि ऐसा हरेक कोई सिद्ध कर सकता है । यह एक विज्ञान है । और विज्ञान के कितने ही सिद्ध उपकरण आज मानव को अनेकों सुख सुविधायें पहुँचा रहे हैं । यदि चाहें । तो इनको भी चमत्कार ही कह सकते हैं न ।
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प्रश्न 1 - क्या ऐसे मंत्र भी होते हैं ? जिससे पशु, पक्षियों या पेड़ पौधों से बात कर सकते हैं ?
उत्तर - यदि मन्त्र तन्त्र आदि के बजाय ज्ञान शब्द का प्रयोग किया जाये । तो बात अधिक सरल हो जाती है । और ज्ञान का मतलब है - सीखना । जब हम उत्सुक मगर साक्षी भाव से किसी भी वस्तु जीव आदि की क्रियाओं को देखते समझते सीखते हैं । तो धीरे धीरे हमें उस वस्तु या जीव आदि के बारे में सही जानकारी होने लगती है । और यही चीज उसका यन्त्र मन्त्र है । यानी वह सिद्ध ( ज्ञान ) विज्ञान । जो हमारी इच्छा अनुसार कार्य करे । अतः ये कोई विशेष बात नहीं है । पशु पक्षी के निरन्तर सम्पर्क में रहने वाले उनके स्वभाव, हाव भाव या अन्य चेष्टाओं के बारे में सभी कुछ भली भांति जानते हैं । ये भी सही है कि पशु पक्षियों की एक मूक भाषा होती है । और वनों में रहने वाले कई ऋषि मुनियों को इसका ज्ञान भी था । आज भी होता है ।
प्रश्न 2 - योगी होने के नाते क्या आप एलियन के बारे में बता सकते हो ?
उत्तर - एलियन से आपका वही मतलब है । जो विदेशियों का है । तो फ़िर ऐसे कोई एलियन होते ही नहीं हैं । हाँ यदि हिन्दी शब्द परग्रही जीव का इस्तेमाल करें । तो फ़िर वे होते हैं । और उनके बारे में बताना क्या । जैसी जीव सृष्टि यहाँ है । वैसी ही बृह्माण्ड में सर्वत्र है । क्योंकि यहाँ मनुष्य और 84 लाख योनियों का ही प्रकट अस्तित्व है । अतः वही देखने को मिलते हैं । जबकि समस्त सृष्टि को चित्र विचित्र और विलक्षण शब्द से कहा जाता है । मतलब बहुत प्रकार की सृष्टि और सृष्टि जीव हैं ।
प्रश्न 3 - क्या शरीर के सप्त चक्रों और पंच कोषों को देखा जा सकता है ?
उत्तर - अपनी क्षमता । लगन और मेहनत । ज्ञान सिद्धांत और कोई सच्चा मार्गदर्शक या गुरु । ये शरीर के क्या अखिल सृष्टि या परमात्मा तक से मिला ( दिखा ) देते हैं । शरीर के चक्र कोष आदि तो छोटे से कुण्डलिनी ज्ञान का हिस्सा मात्र हैं ।
प्रश्न 4 - मोक्ष और मुक्ति में क्या अंतर है ?
उत्तर - मोक्ष का वास्तविक अर्थ सभी मायनों में समस्त मोह का क्षय हो जाना है । इस मोह भाव से ही सृष्टि चल रही है । मोह सकल व्याधि कर मूला । जाते पुनि उपजत भव शूला । मोक्ष का अर्थ आत्म ज्ञान और स्वयं की पहचान से है । इसमें ये सृष्टि मात्र अज्ञान भासित ही है । ऐसा ज्ञान भी होता है । मोक्ष से जीवात्मा गर्भावास और आवागमन के झँझट से मुक्त होकर अमर पद को पाता है ।
जबकि मुक्ति का अर्थ ही किसी बन्धन से मुक्ति पाना है । द्वैत में मुक्ति के अनेकानेक अर्थ है । यथा कोई बृह्मा विष्णु शंकर आदि के पद या वैसे ही लोक प्राप्त करना । चार प्रमुख और बङी मुक्तियों के अंतर्गत आता है । जबकि इसी प्रकार के दिव्य लोकों में कोई गण आदि के रूप में लम्बे समय तक रहने का अधिकार प्राप्त होने को भी बहुत से लोग मुक्ति कहते हैं । जो मेरे विचार से अज्ञानता ही है । त्रिलोकी सृष्टि का मालिक कालपुरुष । महामाया आदि शक्ति । राम । कृष्ण । बृह्मा । विष्णु । शंकर आदि आदि पद स्थिति को प्राप्त जीवात्मायें भी समय समाप्त हो जाने पर पद से पदच्युत कर फ़िर से कालचक्र में गिरा दी जाती हैं । फ़िर अन्य की बात ही क्या हो ।
प्रश्न 1 - बृह्मर्षि श्री कुमार स्वामी जो बीज मंत्र देते हैं । क्या उनसे मोक्ष मिल सकता है ? आपके क्या विचार हैं उनके बारे में ?
उत्तर - इत्तफ़ाकन सुबह के लेख में ही मैंने बीज मन्त्रों के विज्ञान को समझाने की कोशिश की है । बीज मन्त्रों का सही ज्ञान हो जाने पर इनसे विभिन्न सूक्ष्म ( आंतरिक ) और स्थूल ( बाह्य ) कार्य सिद्ध किये जा सकते हैं । बृह्म ज्ञान में इनका बहुत अधिक महत्व नहीं है । हाँ ये उस ज्ञान का एक हिस्सा अवश्य हैं । इनसे मोक्ष तो दूर कोई अच्छी स्थिति भी प्राप्त नहीं होती । फ़िर कुमार स्वामी जो देता है । उस पर कोई चर्चा करना समय की बरबादी करना ही है । बृह्मर्षि नारद विश्वामित्र आदि को कहा जाता था । इसलिये कुमार स्वामी कौन सा ऋषि है ? खुद ही अन्दाजा लगा लो । मेरा उसके वारे में कोई विचार नहीं है ।
प्रश्न 2 - क्या आपने अपने पिछला जन्म के बारे में जान लिया है ?
क्या आप किसी का भी पिछला जन्म जान सकते हैं ?
उत्तर - मुझे तो नहीं पता । पर मुझसे सम्पर्क में रहने वाले बहुत से लोग ऐसा कहते हैं कि मैं अपने कई जन्मों को जानता हूँ । और मैंने दूसरों को भी जानने में मदद की है । हमारे तीसरे " कारण शरीर " में सभी जन्मों के संस्कार जमा होते हैं । कारण में जाय के नाना संस्कार देखे । वहाँ ऐसी घटनाओं को ठीक ऐसे ही देखा जाता है । जैसे अभी आप कम्प्यूटर देख रहे हैं । बस मेहनत और योग करने की आवश्यकता है ।
प्रश्न 3 - परमात्मा हमें हमारे कर्मों का फल किस किस रूप में देता है ? जैसे कि कोई व्यक्ति A किसी दूसरे व्यक्ति B की हत्या करता है । तो क्या अगले जन्म में दूसरा व्यक्ति B पहले व्यक्ति A की हत्या करके बदला लेगा ? या परमात्मा व्यक्ति A को रोग देगा ? दीपक
उत्तर - जिस प्रकार कोई अदालत किसी अपराध की सजा सुनाते समय केस के सभी पहलूओं यानी अपराधी की मनःस्थिति । अपराध की वजह । अपराध की संगीनता । और वर्तमान में भी अपराधी का व्यवहार या मानसिकता कि वह पश्चाताप कर रहा है । या खुश और है । अपराधी का पूर्व चरित्र आदि आदि मिलकर तब उस एक अपराध की सजा ( फ़ल ) सुनाई ( दी ) जाती है । ठीक ऐसा ही संविधान इस सृष्टि का भी है । वैसे परमात्मा किसी को भी सजा या पुरस्कार कभी नहीं देता । उसके संविधान के तहत ( शासन प्रशासन ) तन्त्र और प्रकृति ये कार्य सम्पन्न करते हैं । और ये बात सजा और पुरस्कार दोनों पर ही लागू होती है ।
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