लेकिन तुम देखते हो । कुछ लोग सांसारिक अर्थों में बड़े परेशान हैं । और कुछ लोग धार्मिक अर्थों में बड़े परेशान हैं । दोनों का मन भंग हो रहा है । एक धन के पीछे दौडा जा रहा है । उसका मन भंग हुआ । एक धन से घबड़ाकर भागा जा रहा है । उसका मन भंग हुआ । एक कहता है कि जितनी ज्यादा स्त्रियां मुझे मिल जायें । उतना अच्छा । और 1 कहता है - कहीं स्त्री न दिख जाये । नहीं तो सब गड़बड़ हो जायेगा । मगर ये दोनों के मन भंग हैं । इन दोनों को हंसी खेल नहीं आया है । इन्हें जिंदगी में लीला की कला नहीं आयी । ये बड़े गंभीर हैं । ये बड़े ही अति गंभीर हैं । इनकी गंभीरता इनकी बीमारी है ।
हसिबा खेलिबा धरिबा ध्यानं । अहनिसि कथिबा ब्रह्मगियानं ।
हंसै षेलै न करै मन भंग..। इसलिए कहते हैं हंसो, खेलो, मन को भंग न करो । ते निहचल सदा नाथ के संग ।
तो इसी हंसी खेल में डूबे डूबे । इसी मौज, इसी लीला में पगे पगे नाथ के सदा संग हो जाओगे । ते निहचल सदानाथ के संग । प्रतिपल फिर परमात्मा और तुम्हारा साथ रहेगा । साथ कहना भी शायद ठीक नहीं है । तुम 1 ही हो गये । वही अर्थ है - निहचल सदा नाथ के संग । एक क्षण को भी साथ नहीं छूटता । साथ सातत्य बन गया ।
अहनिसि मन लै उनमन रहै...।
प्रतिपल, उठते बैठते, जागते सोते 1 ही खयाल रहे । मन लै उनमन रहै । मन को अमन बनाना है । जिसको झेन फकीर कहते हैं - नो माइंड, उनमन । चित्त को शून्य 0 कर देना है ।
मन क्या है ? अतीत के विचार । भविष्य की योजनाएं - यही मन है । जो हो चुका । उसका शोरगुल । जो होना चाहिए । उसकी अपेक्षाएं - यही मन है । न अतीत रह जाये । न भविष्य रह जाये । फिर क्या है ? वर्तमान है ।
हसिबा खेलिबा धरिबा ध्यानं...।
फिर तो यह शुद्ध वर्तमान रह जाता है । जिसमें विचार की कोई छाया भी नहीं पड़ती । और अतीत है नहीं । उसी में तुम उलझे हो । और भविष्य अभी हुआ नहीं । उसमें तुम उलझे हो । कुछ लोग अतीत उन्मुख हैं । उनकी आंखें पीछे गडी हैं । और कुछ लोग भविष्य उन्मुख हैं । उनकी आंखें आगे गड़ी हैं । और दोनों वंचित रह जाते हैं उससे - जो है । और 'जो है' अभी । इस क्षण । वही परमात्मा का रूप है ।
इसी क्षण जीयो । क्षण क्षण जीयो । फिर कैसी उदासी ?
तुमने कभी 1 बात पर खयाल किया है । वर्तमान में सदा रस है । और वर्तमान में सदा आनंद है । जब तुम कभी दुखी होओ । तो थोड़ा सोचना । दुख या तो अतीत के संबंध में होता है । या भविष्य के संबंध में । या तो जैसा तुम करना चाहते थे । नहीं कर पाये अतीत में । उसका दुख होता है । या भविष्य में जैसा तुम करना चाहते हो । वैसा कर पाओगे । या नहीं कर पाओगे । उसके संबंध में चिंता और पीड़ा होती है ।
कभी तुमने इस पर खयाल किया । इस छोटे से सत्य को कभी देखा है कि वर्तमान में कोई दुख नहीं है । कोई चिंता नहीं है ? इसलिये वर्तमान मन को भंग नहीं करता । चिंता मन को भंग करती है । वर्तमान में दुख होता ही नहीं । वर्तमान दुख को जानता ही नहीं । वर्तमान का इतना छोटा क्षण है कि उसमें दुख समा ही नहीं सकता । वर्तमान में स्वर्ग ही समा सकता है । नर्क नहीं समा सकता । नर्क का बड़ा विस्तार है । वर्तमान में तो सिर्फ शांति हो सकती है । सुख हो सकता है । समाधि हो सकती है ।
अहनिसि मन लै उनमन रहै - तो मन को उनमन कर दो । मन को पोंछ डालो । मतलब हुआ - अतीत और भविष्य को सोचो मत । यह क्षण जो आया है । अभी ही थोड़ा इसका स्वाद लो । ओशो
हसिबा खेलिबा धरिबा ध्यानं । अहनिसि कथिबा ब्रह्मगियानं ।
हंसै षेलै न करै मन भंग..। इसलिए कहते हैं हंसो, खेलो, मन को भंग न करो । ते निहचल सदा नाथ के संग ।
तो इसी हंसी खेल में डूबे डूबे । इसी मौज, इसी लीला में पगे पगे नाथ के सदा संग हो जाओगे । ते निहचल सदानाथ के संग । प्रतिपल फिर परमात्मा और तुम्हारा साथ रहेगा । साथ कहना भी शायद ठीक नहीं है । तुम 1 ही हो गये । वही अर्थ है - निहचल सदा नाथ के संग । एक क्षण को भी साथ नहीं छूटता । साथ सातत्य बन गया ।
अहनिसि मन लै उनमन रहै...।
प्रतिपल, उठते बैठते, जागते सोते 1 ही खयाल रहे । मन लै उनमन रहै । मन को अमन बनाना है । जिसको झेन फकीर कहते हैं - नो माइंड, उनमन । चित्त को शून्य 0 कर देना है ।
मन क्या है ? अतीत के विचार । भविष्य की योजनाएं - यही मन है । जो हो चुका । उसका शोरगुल । जो होना चाहिए । उसकी अपेक्षाएं - यही मन है । न अतीत रह जाये । न भविष्य रह जाये । फिर क्या है ? वर्तमान है ।
हसिबा खेलिबा धरिबा ध्यानं...।
फिर तो यह शुद्ध वर्तमान रह जाता है । जिसमें विचार की कोई छाया भी नहीं पड़ती । और अतीत है नहीं । उसी में तुम उलझे हो । और भविष्य अभी हुआ नहीं । उसमें तुम उलझे हो । कुछ लोग अतीत उन्मुख हैं । उनकी आंखें पीछे गडी हैं । और कुछ लोग भविष्य उन्मुख हैं । उनकी आंखें आगे गड़ी हैं । और दोनों वंचित रह जाते हैं उससे - जो है । और 'जो है' अभी । इस क्षण । वही परमात्मा का रूप है ।
इसी क्षण जीयो । क्षण क्षण जीयो । फिर कैसी उदासी ?
तुमने कभी 1 बात पर खयाल किया है । वर्तमान में सदा रस है । और वर्तमान में सदा आनंद है । जब तुम कभी दुखी होओ । तो थोड़ा सोचना । दुख या तो अतीत के संबंध में होता है । या भविष्य के संबंध में । या तो जैसा तुम करना चाहते थे । नहीं कर पाये अतीत में । उसका दुख होता है । या भविष्य में जैसा तुम करना चाहते हो । वैसा कर पाओगे । या नहीं कर पाओगे । उसके संबंध में चिंता और पीड़ा होती है ।
कभी तुमने इस पर खयाल किया । इस छोटे से सत्य को कभी देखा है कि वर्तमान में कोई दुख नहीं है । कोई चिंता नहीं है ? इसलिये वर्तमान मन को भंग नहीं करता । चिंता मन को भंग करती है । वर्तमान में दुख होता ही नहीं । वर्तमान दुख को जानता ही नहीं । वर्तमान का इतना छोटा क्षण है कि उसमें दुख समा ही नहीं सकता । वर्तमान में स्वर्ग ही समा सकता है । नर्क नहीं समा सकता । नर्क का बड़ा विस्तार है । वर्तमान में तो सिर्फ शांति हो सकती है । सुख हो सकता है । समाधि हो सकती है ।
अहनिसि मन लै उनमन रहै - तो मन को उनमन कर दो । मन को पोंछ डालो । मतलब हुआ - अतीत और भविष्य को सोचो मत । यह क्षण जो आया है । अभी ही थोड़ा इसका स्वाद लो । ओशो
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