23 सितंबर 2013

पागल के संग पागल बनना

ऐसा भी होता है ? की तर्ज पर आप आश्चर्य करें । तो बेशक करते रहें । पर ये सत्य है । और मैंने दो लगभग लाइलाज ठहरा दिये गये रोगियों पर इसका सफ़ल प्रयोग किया है । अक्सर आपने बहुत से मन्दबुद्धि या पागल घोषित बच्चों व्यक्तियों को देखा होगा । या जीवन के लिये आवश्यक कर्तव्यों में बहुतों की निष्क्रियता उदासीनता भी देखी होगी । क्या ही आश्चर्य है । आधुनिक चिकित्सा विज्ञान न तो इसका सही कारण ही जानता है । और न ही उसके पास इसके लिये कोई सटीक चिकित्सा ही है । ओह ! विज्ञान की अभूतपूर्व प्रगति के बाबजूद भी ये दुखद ही है । पर आध्यात्म विज्ञान में इसका इतना सरल सटीक और मुफ़्त उपाय है कि आपको हैरानी होगी । आपने प्राचीन सनातन धर्म संस्कृति में हिन्दू स्त्री पुरुषों बच्चों आदि को मस्तक पर बिन्दी या तिलक लगाते देखा होगा । ये इसीलिये लगाया जाता है । ताकि आपका ध्यान और जुङाव आज्ञाचक्र से जुङा रहे । और आपका मन सही  विचारों पर सन्तुलित होकर केन्द्रित रहे । ऐसा होने पर कोई भी व्यक्ति असाधारण रूप से सन्तुलित और सम बुद्धि हो जाता है । पर ये तो सामान्य ( या कुछ ही अवस्थिति ) स्थिति वालों की बात थी । लगभग पागल या बुद्धि रहित 

घोषित व्यक्ति पर सिर्फ़ तिलक से काम नहीं चलेगा । दरअसल क्या होता है । मानसिक शारीरिक दैविक दोष या किसी तन्त्र मन्त्र क्रिया द्वारा उस व्यक्ति पर कोई घात या पूर्व जन्म के कर्म दोष के कारण ऐसे व्यक्तियों का आज्ञा चक्र सिकुङ जाता है । और फ़िर वे अपने मष्तिष्क और शरीर का या किसी क्रियात्मक कार्य का तारतम्य उस कार्य से एक सामान्य मनुष्य की तरह से नहीं जोङ पाते । और इस आदेश को ग्रहण करने के बाद । कार्य रूप परिणति होने ( तक या ) के बीच में उसकी रोग स्थिति अनुसार विभिन्न रोगियों के कई स्तर होते हैं । इसीलिये पागलपन का % बहुत मामूली से लेकर बहुत अधिक तक कुछ भी हो सकता है । उदाहरण के लिये ऐसे व्यक्ति से आप एक गिलास पानी माँगे । तो वो सुने ही न । देर लगाये । या पानी लाने में ही अजीब सी क्रियायें करें । या वो पानी लाने के लिये चले तो । लेकिन बीच में ही उसका मष्तिष्क कहीं और आकर्षित हो जाये । या वो कुछ ही सेकेण्ड में यह छोटी सी बात ही भूल जाये । या वो गिलास ही फ़ेंक दे । गिलास मार दे आदि आदि अनेकों स्थितियां हो सकती हैं । इसके उपाय के लिये उस व्यक्ति के माथे पर आज्ञाचक्र के स्थान पर हथेली से 

हल्की हल्की थाप देनी होती है । इसको थोङे थोङे अन्तर के बाद एक बार में आठ दस बार ही दें । इसके अतिरिक्त रोगी के माथे पर एक रुपये का सिक्का या वैसा ही कुछ अन्य पट्टी द्वारा देर तक बाँधे रखें । ध्यान रहे । प्रत्येक उपाय के बीच में उसे कुछ देर सामान्य स्थिति में भी छोङना होगा । इसके अलावा आप कोई गोंद समान पदार्थ भी कभी कभी आज्ञाचक्र पर लगा सकते हैं । जिससे वह सूखने पर कुछ जकङन या खिचाव सा बनाये । अतः आप सुविधानुसार ये तीनों ही तरीके अदल बदल कर दोहराते रहें । इसके अलावा ऐसे रोगी के प्रमुख उपचार में एक अनोखा मनोवैज्ञानिक तरीका अपनाना होता है । वह है - पागल के संग पागल बनना । इस मनोवैज्ञानिक तरीके में कोई एक व्यक्ति उस पागल से दोस्ताना व्यवहार बना ले । और लगभग वैसे ही क्रियाकलाप स्वयं भी करे । जो पागल को लुभाते हैं । जैसे जीभ दिखाना । व्यर्थ में हँसना । ताली बजाना । नाचना कूदना आदि । तो उस सहयोगी व्यक्ति का व्यवहार उस पागल को आकर्षित करेगा । और वह स्वाभाविक ही सिद्धांततः उससे निकटता महसूस करेगा । उसके अधिकाधिक साथ रहना चाहेगा । क्योंकि उसे

वह अपने जैसा ही लगेगा । तब वह सहयोगी व्यक्ति उसे विभिन्न खेलों द्वारा अन्य क्रियाओं द्वारा फ़िर से मष्तिष्क की स्वाभाविक सामान्य क्रियाओं से जोङ सकता है । और बिगङ गये मानसिक असन्तुलन को फ़िर से ठीक कर सकता है । ऐसे खेलों के उदाहरण में एक दूसरे के द्वारा उछाली गयी बङी गेंद को लपकना । एक दूसरे को गोद में उठाना । उठाकर चलना । पी टी आदि एक्सरसाइज समान शारीरिक क्रियायें करना । अच्छे शब्द जोर जोर से बोलना । प्रार्थना आरती आदि जोर से गाकर स्मरण कराना आदि आदि व्यक्ति देश काल समाज स्थिति परिस्थिति साधन सुविधा के अनुसार आसानी से उपलब्ध किसी भी उपाय को सरलता से प्रयोग में लाया जा सकता है । शायद आप आश्चर्य करें । पर बहुत हद तक अवसाद लकवा या ऐसे ही कुछ शारीरिक मानसिक रोगों में भी यह उपाय कारगर होता है । लेकिन बहुत बेहतर होगा । आप ऐसा कोई गम्भीर प्रयास करने से पूर्व मुझसे फ़ोन न. 0 94564 32709  पर सलाह अवश्य कर लें । प्रस्तुत लेख के किसी बिन्दु पर यदि आप अस्पष्ट हैं । तो फ़िर से पूछें ।
********
ये हँसने की ही बात है कि मैं भी कहाँ कहाँ से आपको झूठी पौराणिक बातें बताता रहता हूँ । और आप उन पर आसानी से यकीन भी कर लेते हैं । तब फ़िर एक और झूठी बात ये है कि रावण का भाई विभीषण दशरथ का पुत्र था । मुझे ऐसा लगता है । रावण और कुम्भकरण की आयु लगभग 4 000 वर्ष की थी । विभीषण की आयु 8 000

वर्ष थी । और राम की आयु लगभग 12 000 वर्ष थी । शायद आपको पता न हो । अभी दशरथ का एक भी विवाह नहीं हुआ था । और उससे पहले ही रावण का साम्राज्य फ़ैल चुका था । यहाँ तक कि इसी समय पर उसने सभी देवताओं को अपने कारागार में बन्दी कर दिया था । रावण स्वयं भी अच्छा योगी था । और अपने पिता आदि सहित अच्छे योगियों से भी जुङा हुआ था । तब देवताओं और ऐसी ही अन्य अलौकिक ज्ञान विभूतियों से उसे पता चल गया था कि दशरथ पुत्र राम के हाथों ही उसका वध होगा । अतः अपने ज्ञात मरण को रोकने के लिये रावण ने जो कई प्रयास किये । वह तो अलग थे ही । पर पुत्र मोह में उसकी माँ कैकसी ने भी एक प्रयास किया था । साम दाम दण्ड भेद की नीति अपनाते हुये कैकसी स्त्रियोचित चतुर युक्ति के साथ दशरथ के पास गयी । ध्यान रहे । दशरथ इस समय अविवाहित ही थे । कैकसी ने अपना स्त्रियोचित सरल उपाय काम आकर्षण से प्रभावित करना ही रखा । और वह कुछ समय तक दशरथ के साथ दूर दूर भी पास पास भी वाले अन्दाज में रही । दरअसल उसका उद्देश्य था कि किसी भी प्रकार वह दशरथ की सन्तानोत्पत्ति क्षमता को ही नष्ट कर देगी । कुछ साधु तो यहाँ तक मानते हैं कि उसने दशरथ को शिश्न रहित ही कर दिया था । जो भी हो । पर ये तय है कि दशरथ के साथ इसी भावना से समय बिताने के फ़लस्वरूप कैकसी को गर्भ ठहर गया । और उसी के फ़लस्वरूप बाद में विभीषण का जन्म हुआ ।
यह विवरण आपके मन में कई प्रश्न उठा सकता है । पर यदि गौर से इसके तथ्यों पर विचार करें । तो ये सत्यता के काफ़ी करीब लगता है । कैकसी असुर जाति से सम्बन्ध रखती थी । और विभिन्न जङी बूटी या मायावी ज्ञान से भी सम्पन्न थी । वह पूर्व योजना के साथ छल बुद्धि से इसी कार्य हेतु गयी थी । जबकि दशरथ को इसका कोई आभास या पूर्वाभास भी नहीं था । तब वह किसी भी समय उन्हें कोई ऐसी वस्तु खिला पिला सकती थी । जो उनकी सन्तान उत्पत्ति क्षमता को नष्ट कर दे । या गम्भीर शिश्न विकार हो जाये । ये घटना सत्य इसलिये और भी लगती है कि वाकई में दशरथ के वृद्धावस्था तक कोई सन्तान ही उत्पन्न नहीं हुयी । और फ़िर उनके द्वारा तो कभी ही नहीं हुयी । उधर विभीषण भी असुर कुल का होने के बाबजूद आश्चर्यजनक रूप से सात्विक आचरण का था । और राम ( तथा उनके परिवार ) से उसका बेहद लगाव था । जो वर्तमान के जींस आदि वैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुसार मेल खाता है । जो भी हो । आप इस पर क्या सोचते हैं ? लेकिन कोई भी प्रतिक्रिया तथ्य रहित न हो । प्रतिक्रिया में कुछ स्पष्ट अवश्य होना चाहिये कि ऐसा या वैसा आखिर क्यों ?
If you wish to participate in a healthy and meaningful discussion, beneficial to yourself, your country and your society, then you should definitely join this group.
https://www.facebook.com/groups/supremebliss/

कोई टिप्पणी नहीं:

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326