Pranam rajeev ji aap ko mera sadar pranam, rajeev ji maine aaj " anurag sagar " net se download kar ke padi hai . rajeev ji mai sach bata raha hun ki anurag sagar padane ke bad usame jo gyan hai o mera dil sah nahi pa raha tha . a kal niranjan ka sara sach samane ane ke bad kuch vichitra lag raha tha . q ki aaj tak hum itani puja path sab kuch kal ki he to karate aa rahe hai . jo hume ghuma ghuma ke kal ke pass hi le jata hai . our humare jeev ghor kasht bhogte hai . rajeev ji anurag sagear bahut badiya hai . us ki our aap ki jitani tarif ki jaye o kam hai. Q ki aap ki vajah se hi mujhe satya ka rasta mila hai,
- अक्सर मैंने कई बार ही कहा है कि " अनुराग सागर " एक ऐसा धर्म ग्रन्थ है । जो हरेक हिन्दू को एक बार बिना किसी दुराग्रह और पूर्वाग्रह के अवश्य पढना चाहिये । क्योंकि न सिर्फ़ ये वास्तविक सत्य के प्रति आपकी आँखें खोल देता है । बल्कि वर्तमान में फ़ैले हुये धार्मिक भृष्टाचार और छद्म वेश में छिपे कालदूतों की एकदम सही पुष्टि करता है । जबकि आजकल तो कालदूत अंधों को भी नजर आ रहे हैं । इनकी तरह तरह की मूर्खतापूर्ण बातों से आज आम जनमानस उसी तरह त्रस्त हो चुका है । जैसा आज से 500 वर्ष पूर्व मूर्ख और घमंडी गोरखनाथ के समय हुआ था । और महात्मा कबीर ने इसका घमंड चूर चूर कर इसको सिर झुकाने पर विवश कर दिया था । इसने भी सनातन धर्म के क्षेत्र में ऐसी भ्रांतियां फ़ैलायी थीं कि इंसान सरल सहज भक्ति छोङकर कामभोग की विभिन्न साधनाओं में लिप्त हो गया था । कभी अमेरिका आदि विकसित देशों में जो काम लहर फ़ैली थी । वही हाल धर्म के क्षेत्र में उस समय भारत का था । धर्म के नाम पर घरेलू औरतों तक को मुक्त कामभोग हेतु आकर्षित किया जा रहा था । और वो हो भी रही थीं । क्योंकि तब इसको सामाजिक धार्मिक समर्थन जो प्राप्त था ।
Q1 - rajeev ji mai hans diksha jaldi lena chahta hun . krupaya aisa
koi upay bata dijiye ki jo karane ke baad mere hans dikasha ke yog bane . our itani dur se aap ke pass aa jau, our hans diksha le saku.
- ऐसा उपाय एक ही है । परमात्मा से निरंतर प्रार्थना करना । क्योंकि वो किसी स्थान विशेष पर न होकर सभी जगह है । यदि आपको हमारे ( श्री महाराज जी ) प्रति विश्वास और आस्था है । तो सीधा सदगुरु महाराज से भी मन ही मन प्रार्थना कर सकते हैं कि वो ऐसा मार्ग बनायें कि जिससे आपको ज्ञान उपदेश भक्ति आदि की प्राप्ति हो सके । सभी स्त्री पुरुष बच्चे आदि अपने माँ बाप परिवार या खुद कालपुरुष से भी पहले सिर्फ़ और सिर्फ़ परमात्मा के ही अंश हैं । इसमें कोई दो राय कभी हो नहीं सकती । अतः तुम एक दुखी बच्चे के समान अपने पिता को पुकारोगे । तो कोई वजह नहीं कि वह तुम्हारी न सुने । फ़िर तुम जहाँ भी होओ । तुम्हारी सहायता करना उसके लिये कोई बङी बात नहीं है । बस उसे सच्चे दिल सच्चे भाव से पुकारना होता है ।
Q 2 - jo log hans dikasha lene wale hai . us ko kal niranjan koi nuksan kar deta hai kya ?
- जैसे ही कोई जीवात्मा इस काल पुरुष की चालाकी समझ जाता है । और प्रभु से गुहार करता है । तो एक नियम है । फ़िर काल पुरुष उसके लिये उलझनें और रुकावटें तो खङी करता है । लेकिन कोई नुकसान आदि नहीं पहुँचा पाता । वैसे भी काल अजर अमर जीवात्मा को न जला सकता है । न मार सकता है । न काट सकता है । ये सिर्फ़ डरा धमका सकता है । मति भृम पैदा कर सकता है । लोभ लालच देता है । और अपनी पत्नी माया के साथ विभिन्न वासनाओं में जीव को फ़ँसा लेता है । अब जैसे कि किसी देश का नियम होता है । मान लो कि कोई भारतीय अमेरिका आदि देश में गया । वहाँ का नागरिक बन गया । तो उस देश का कानून और
विभिन्न सुविधाओं के कर ( टेक्स ) उसे भरने ही होते हैं । और वह व्यक्ति वहाँ जो भी कार्य करता है । तो उस देश के कानून के मुताबिक उसे उसका पारिश्रमिक दिया जाता है । ठीक यही नियम त्रिलोकी राज्य की राज सत्ता में काल पुरुष का भी है । क्योंकि ये जीव करोङों जन्मों से उसकी सुविधाओं का उपभोग कर रहा है । अतः उसकी देनदारी भक्ति पदार्थ तथा अन्य कर्मों द्वारा चुकानी होती हैं । पाप ( अपराध ) आदि के संस्कार कुछ भोगने होते हैं । और कुछ का जुर्माना जैसा लग जाता है । इसीलिये नामदान ( दीक्षा ) के पश्चात जीव को मुक्त होने में इतना समय लग जाता है । वरना वह बहुत जल्दी ही मुक्त हो सकता है । आपको बता दूँ कि अपने " मुक्त मंडल " में खास मैं ही जीवों को इन सभी झंझटों से मुक्त होने में सहायता करता हूँ । इसलिये काल और इसकी पत्नी माया से मेरा रोज का ही झगङा है । और ये मेरे नाम से भी थरथर
कांपता है । अतः जो जीव मेरे मंडल में आने के लिये साहेब से अर्जी अरदास लगा देता है । काल फ़िर डर के मारे उसकी तरफ़ देखता भी नहीं । लेकिन सत्ता के कायदे कानून के हिसाब से जो सजा या जुर्माना जीव को देना होता है । वह तो देना ही होता है । यह अखिल सृष्टि का कानून है - काया से जो पातक होई । बिनु भुगते छूटे नहीं कोई । अतः यह मुकद्दमा और जेल तो नामदान के बाद भी जारी रहता है । बस जीव को अपनी मुक्ति हेतु इन सबसे लङने की ताकत ज्ञान और गुरु का सहारा मिल जाता है - गुरु कुम्हार शिष कुम्भ है । गढ गढ काढे खोट । अंतर हाथ सहार दे बाहर मारे चोट ।
Q 3 - rajeev ji kya kal ka ant nahi ho sakata . agar us ka ant ho jaye to sabhi jeev saheb ke pass jayenge kya ?
Pleas jaldi se uttar dijiye our 1 bar thank,s.
- काल काल सब कोई कहे काल न जाने कोय । जेती मन की कल्पना काल कहावे सोय । जब तुम्हें भोग विलास में ही आनन्द आता है । भक्ति से रहित हो गये हो । माया तुम्हें लुभाती है । और दोष काल को देते हो । काल ( समय ) का अन्त हो जाना । मतलब सृष्टि का अन्त हो जाना ही है । जैसे सिर्फ़ दिन महीने आदि की गणना ही न हो । तो कितने दिन इस दुनियां का कार्य चल पायेगा ? अगर तुम किसी गलत कार्य में प्रवृत न होना चाहो । तो फ़िर कोई भी तुमसे जबरदस्ती कुछ नहीं करा सकता । फ़िर वह काल क्या काल की अम्मा ही क्यों न हो । बाप इसलिये नहीं कह सकता । क्योंकि काल का भी वही बाप है । जो सबका बाप है । और काल की कोई अम्मा नहीं है । यह तो मैंने बात का चलन कहा है । इसलिये डरना छोङ दो । कलुआ ( कालपुरुष ) जहाँ दुष्ट है । वहीं बहुत ही मस्तमौला भी है । ये उसकी रचाई काल सृष्टि देखकर पता नहीं चलता क्या ?
- तानसेन कुमार के बीस प्रश्न मेरे पास लम्बित हैं । जिनमें से कुछ के उत्तर लिख लिये । और शेष के शीघ्र ही दूँगा ।
- अक्सर मैंने कई बार ही कहा है कि " अनुराग सागर " एक ऐसा धर्म ग्रन्थ है । जो हरेक हिन्दू को एक बार बिना किसी दुराग्रह और पूर्वाग्रह के अवश्य पढना चाहिये । क्योंकि न सिर्फ़ ये वास्तविक सत्य के प्रति आपकी आँखें खोल देता है । बल्कि वर्तमान में फ़ैले हुये धार्मिक भृष्टाचार और छद्म वेश में छिपे कालदूतों की एकदम सही पुष्टि करता है । जबकि आजकल तो कालदूत अंधों को भी नजर आ रहे हैं । इनकी तरह तरह की मूर्खतापूर्ण बातों से आज आम जनमानस उसी तरह त्रस्त हो चुका है । जैसा आज से 500 वर्ष पूर्व मूर्ख और घमंडी गोरखनाथ के समय हुआ था । और महात्मा कबीर ने इसका घमंड चूर चूर कर इसको सिर झुकाने पर विवश कर दिया था । इसने भी सनातन धर्म के क्षेत्र में ऐसी भ्रांतियां फ़ैलायी थीं कि इंसान सरल सहज भक्ति छोङकर कामभोग की विभिन्न साधनाओं में लिप्त हो गया था । कभी अमेरिका आदि विकसित देशों में जो काम लहर फ़ैली थी । वही हाल धर्म के क्षेत्र में उस समय भारत का था । धर्म के नाम पर घरेलू औरतों तक को मुक्त कामभोग हेतु आकर्षित किया जा रहा था । और वो हो भी रही थीं । क्योंकि तब इसको सामाजिक धार्मिक समर्थन जो प्राप्त था ।
Q1 - rajeev ji mai hans diksha jaldi lena chahta hun . krupaya aisa
koi upay bata dijiye ki jo karane ke baad mere hans dikasha ke yog bane . our itani dur se aap ke pass aa jau, our hans diksha le saku.
- ऐसा उपाय एक ही है । परमात्मा से निरंतर प्रार्थना करना । क्योंकि वो किसी स्थान विशेष पर न होकर सभी जगह है । यदि आपको हमारे ( श्री महाराज जी ) प्रति विश्वास और आस्था है । तो सीधा सदगुरु महाराज से भी मन ही मन प्रार्थना कर सकते हैं कि वो ऐसा मार्ग बनायें कि जिससे आपको ज्ञान उपदेश भक्ति आदि की प्राप्ति हो सके । सभी स्त्री पुरुष बच्चे आदि अपने माँ बाप परिवार या खुद कालपुरुष से भी पहले सिर्फ़ और सिर्फ़ परमात्मा के ही अंश हैं । इसमें कोई दो राय कभी हो नहीं सकती । अतः तुम एक दुखी बच्चे के समान अपने पिता को पुकारोगे । तो कोई वजह नहीं कि वह तुम्हारी न सुने । फ़िर तुम जहाँ भी होओ । तुम्हारी सहायता करना उसके लिये कोई बङी बात नहीं है । बस उसे सच्चे दिल सच्चे भाव से पुकारना होता है ।
Q 2 - jo log hans dikasha lene wale hai . us ko kal niranjan koi nuksan kar deta hai kya ?
- जैसे ही कोई जीवात्मा इस काल पुरुष की चालाकी समझ जाता है । और प्रभु से गुहार करता है । तो एक नियम है । फ़िर काल पुरुष उसके लिये उलझनें और रुकावटें तो खङी करता है । लेकिन कोई नुकसान आदि नहीं पहुँचा पाता । वैसे भी काल अजर अमर जीवात्मा को न जला सकता है । न मार सकता है । न काट सकता है । ये सिर्फ़ डरा धमका सकता है । मति भृम पैदा कर सकता है । लोभ लालच देता है । और अपनी पत्नी माया के साथ विभिन्न वासनाओं में जीव को फ़ँसा लेता है । अब जैसे कि किसी देश का नियम होता है । मान लो कि कोई भारतीय अमेरिका आदि देश में गया । वहाँ का नागरिक बन गया । तो उस देश का कानून और
विभिन्न सुविधाओं के कर ( टेक्स ) उसे भरने ही होते हैं । और वह व्यक्ति वहाँ जो भी कार्य करता है । तो उस देश के कानून के मुताबिक उसे उसका पारिश्रमिक दिया जाता है । ठीक यही नियम त्रिलोकी राज्य की राज सत्ता में काल पुरुष का भी है । क्योंकि ये जीव करोङों जन्मों से उसकी सुविधाओं का उपभोग कर रहा है । अतः उसकी देनदारी भक्ति पदार्थ तथा अन्य कर्मों द्वारा चुकानी होती हैं । पाप ( अपराध ) आदि के संस्कार कुछ भोगने होते हैं । और कुछ का जुर्माना जैसा लग जाता है । इसीलिये नामदान ( दीक्षा ) के पश्चात जीव को मुक्त होने में इतना समय लग जाता है । वरना वह बहुत जल्दी ही मुक्त हो सकता है । आपको बता दूँ कि अपने " मुक्त मंडल " में खास मैं ही जीवों को इन सभी झंझटों से मुक्त होने में सहायता करता हूँ । इसलिये काल और इसकी पत्नी माया से मेरा रोज का ही झगङा है । और ये मेरे नाम से भी थरथर
कांपता है । अतः जो जीव मेरे मंडल में आने के लिये साहेब से अर्जी अरदास लगा देता है । काल फ़िर डर के मारे उसकी तरफ़ देखता भी नहीं । लेकिन सत्ता के कायदे कानून के हिसाब से जो सजा या जुर्माना जीव को देना होता है । वह तो देना ही होता है । यह अखिल सृष्टि का कानून है - काया से जो पातक होई । बिनु भुगते छूटे नहीं कोई । अतः यह मुकद्दमा और जेल तो नामदान के बाद भी जारी रहता है । बस जीव को अपनी मुक्ति हेतु इन सबसे लङने की ताकत ज्ञान और गुरु का सहारा मिल जाता है - गुरु कुम्हार शिष कुम्भ है । गढ गढ काढे खोट । अंतर हाथ सहार दे बाहर मारे चोट ।
Q 3 - rajeev ji kya kal ka ant nahi ho sakata . agar us ka ant ho jaye to sabhi jeev saheb ke pass jayenge kya ?
Pleas jaldi se uttar dijiye our 1 bar thank,s.
- काल काल सब कोई कहे काल न जाने कोय । जेती मन की कल्पना काल कहावे सोय । जब तुम्हें भोग विलास में ही आनन्द आता है । भक्ति से रहित हो गये हो । माया तुम्हें लुभाती है । और दोष काल को देते हो । काल ( समय ) का अन्त हो जाना । मतलब सृष्टि का अन्त हो जाना ही है । जैसे सिर्फ़ दिन महीने आदि की गणना ही न हो । तो कितने दिन इस दुनियां का कार्य चल पायेगा ? अगर तुम किसी गलत कार्य में प्रवृत न होना चाहो । तो फ़िर कोई भी तुमसे जबरदस्ती कुछ नहीं करा सकता । फ़िर वह काल क्या काल की अम्मा ही क्यों न हो । बाप इसलिये नहीं कह सकता । क्योंकि काल का भी वही बाप है । जो सबका बाप है । और काल की कोई अम्मा नहीं है । यह तो मैंने बात का चलन कहा है । इसलिये डरना छोङ दो । कलुआ ( कालपुरुष ) जहाँ दुष्ट है । वहीं बहुत ही मस्तमौला भी है । ये उसकी रचाई काल सृष्टि देखकर पता नहीं चलता क्या ?
- तानसेन कुमार के बीस प्रश्न मेरे पास लम्बित हैं । जिनमें से कुछ के उत्तर लिख लिये । और शेष के शीघ्र ही दूँगा ।
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