पिछले दिनों समय यात्रा को लेकर कुछ चर्चा हुयी । उसमें लोगों की अलग अलग जिज्ञासायें रहीं । आईये ऐसे ही कुछ योग उदाहरण देखें ।
- आप मनुष्य हैं । अभी इसी ( या किसी ) प्रथ्वी पर स्थूल शरीर हैं । तो फ़िर आप बिना योगी की भूमिका में जाये भूतकाल या भविष्य छोङो । आने वाले अगले दो मिनट में नहीं जा सकते । न गुजरे दो मिनट में पीछे । लेकिन यदि आप सफ़ल योगी हैं । तो फ़िर आपके योग स्तर अनुसार ये सब मदारी के खेल से अधिक नहीं है ।
- आईये योग के अलग अलग पात्र स्थान आदि पर प्रसिद्ध उदाहरण देखिये । नारद मोह में विष्णु ने एक ऐसी मायानगरी या राज्य का ही निर्माण कर दिया था । दरअसल जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं था । यही नहीं इस राज्य में कई एक राजा और प्रजा आदि भी थे । किसी राजकुमारी का स्वयंवर भी था । और फ़िर नारद का अहंकार नष्ट हो जाने पर यह स्वपन की भांति गायव हो गया । ये योग का वह प्रकार था । जिसमें छोटे से कारण से एक पूरे राज्य की ही स्थापना हुयी । ये अधिकतम दो चार दिन के लिये था । इसी प्रकार अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से ये पूछे जाने पर कि - माया क्या है ? एक मायावी सृष्टि हुयी थी । उस समय कुन्ती रोटी बना रही थी । और श्रीकृष्ण अर्जुन के साथ नदी में नहाकर रोटी खाने की कह गये थे । अर्जुन ने नदी में गोता मारा । और श्रीकृष्ण की योगमाया से बहते हुये सब कुछ भूलकर एक राज्य में जा लगा । जहाँ एक राजकुमारी का स्वयंवर हो रहा था । वहाँ अर्जुन ने स्वयंवर जीतकर राजकुमारी से विवाह किया । उसके अनेक सन्तानें भी हुयीं । और यहाँ तक कि वह वृद्ध होकर मृत्यु को भी प्राप्त हुआ । तब जैसे ही उसे जलाया जा रहा था । श्रीकृष्ण ने माया का प्रभाव हटा दिया । और वह चिता से वापस उसी नदी में आकर फ़िर उसी तरह वापिसी करता हुआ गोता लगाने के स्थान से ठीक उसी तरह ऊपर आया । जो पूर्व में गोता लगाने की स्थिति थी । उसके प्रश्न का अनुभूत जबाब देने हेतु श्रीकृष्ण ने उसकी स्मृति यथावत रखी । अजीब से आश्चर्य में डूबा अर्जुन जब श्रीकृष्ण के साथ कुन्ती के रोटी
बनाने वाले स्थान पर पहुँचा । तो कुन्ती ने कहा - बहुत जल्दी आ गये तुम लोग । अभी तो दो तीन रोटियां भी नहीं बनी । जबकि अर्जुन एक पूरा जीवन व्यतीत करके आया था ।
इसी तरह आपको याद होगा । दुर्योधन के हठ करने पर श्रीकृष्ण ने योगमाया शक्ति से उनके रहने हेतु तत्काल इन्द्रप्रस्थ का निर्माण किया था । क्योंकि भौतिक तरीकों से इतनी जल्दी निर्माण संभव नहीं था । हनुमान को धोखा देने हेतु कालयवन राक्षस ने मायावी कुटिया बनायी थी । योग के स्थायी निर्माण में विश्वामित्र ने एक अलग स्वर्ग का ही निर्माण कर दिया था ।
अभी के सन्तों में भी ऐसे कई प्रमाण हैं । जिनमें एक राजा किसी सन्त का सतसंग सुनने गया था । और कुछ उपहास बनाकर लौट आया । लेकिन सन्त ने कहा - सच्चे सन्त स्वपनवत पूरा जीवन संस्कार तक काट देते हैं । वह राजा कुछ दिन बाद जब जंगल गया । तो यकायक योग भूमि का निर्माण हो गया । और वह ट्रांस में अगले जन्म में चला गया । लेकिन उसे अपनी स्थिति याद रही । अगले जन्म में बह मेहतर था । उसके ( अगले जन्म के । जो अभी हुये भी नहीं थे ) परिवारीजनों ने ठीक वैसा ही व्यवहार किया । जो उन्हें करना चाहिये था । वे उससे ऐसा व्यवहार भी कर रहे थे । जैसे उसके साथ गुजरी ( उसी होने वाले जन्म की ) जिन्दगी वे बखूबी जानते हों । कोई दो घण्टे राजा उस स्थिति में रहा । लेकिन उस योग स्थिति में उसका ( वो ) पूरा जीवन व्यतीत हो गया । ट्रांस से बाहर आने पर राजा वापिस सन्त के चरणों में जाकर गिर गया । रैदास ने मीरा को बेहद बदबूदार ऊँट के पंजर में छुपाकर उसका सौ वर्ष का नर्क सिर्फ़ एक घण्टे में काट दिया । ऐसे अनेकानेक उदाहरण हैं । एक और अदभुत उदाहरण में सूफ़ी सन्त खिज्र साहब ने एक बुढिया के बेटे की बारह वर्ष पूर्व दुर्घटना से मृत हुयी पूरी बारात को ही साक्षात जीवित कर दिया था । कैसे होता है यह सब ? यह हम आपको समय समय पर यहीं बताते रहेंगे ।
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आप कोई भी समाजी हों । पंथी हों । धर्मी हों । आदर्शवादी हों । व्यक्ति विशेष के अनुयायी हों । अथवा धर्म निरपेक्ष ही हों । नास्तिक हों । आस्तिक हों । या कोई खुद की बना ली धारणा हो । या कोई स्थिति परिस्थिति वश बना हठ हो । या व्यर्थ का मिथ्या अहम ही हो । थोङा गौर से ईमानदारी से सोचिये । क्या आपने उससे सम्बन्धित सोच विशेष का एक मोटा चश्मा तो नहीं लगा रखा है । जो आपको मुक्त उन्मुक्त स्वछ्न्द खिलखिलाते नित नूतन अजस्र प्रवाहित सत्य को नहीं देखने देता । अपनी अल्प क्षमता के चलते कोई एक दो पुस्तक विशेष । कोई कुछ प्रवचन आदि । किसी के कुछ आचरण आदि । या फ़िर किसी लोभवश किसी की विद्या विशेष से आकर्षित होकर । या फ़िर महज किसी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर ही कहीं आप एक संकीर्णता में । एक तुच्छ वर्ग में कैद तो नहीं हो गये ? जिसे कूप मंडूकता भी कहा जाता है । मैं आपको दो चीटियों के बारे में बताता हूँ । जिनमें एक नमक के पहाङ पर और एक मिश्री के पहाङ पर रहती थी । एक दिन दोनों की परस्पर भेंट हुयी । तो मिश्री के पहाङ वाली ये देखकर हैरान रह गयी कि किस तरह ये मिश्री की मिठास मधुरता आनन्द और अस्तित्व से अज्ञात होने के कारण इससे प्रत्येक भाव में विपरीत नमक के न सिर्फ़ गुणगान कर रही है । बल्कि
उसी को अन्तिम सत्य भी मान बैठी है । तब उसको असल सत्य से परिचित कराने हेतु उसने नमक वाली को अपने मिश्री के पहाङ पर आने का निमन्त्रण दिया । नमक वाली गयी तो । मगर अपने हठ और अज्ञान के चलते नमक का एक टुकङा मुँह में दबा ले गयी । क्या पता खाने को कुछ न मिला तो । मिश्री वाली ने उसे मधुर मिश्री का स्वाद चखाया । लेकिन नमक वाली को कुछ समझ में नहीं आया । वह अजीब सा मुँह बनाती रही । तब मिश्री वाली बोली - तुम्हारे मुँह में क्या दबा है । पहले उसे बाहर हटाओ । नमक मुँह से बाहर हो जाने पर नमक वाली चीटीं को मिश्री के असली स्वाद और रस का पता चला । वह एक अजीब से आनन्द से भर उठी । जिसकी अनुभूति उसे पहले कभी नहीं हुयी थी ।
तो आप जब तक हठ पूर्वक नमक की डली को दबाये ही रखेंगे । तो उसके साथ मिश्री का वास्तविक स्वाद कभी पता नहीं चलेगा । इसलिये मुक्त सत्य को देखने जानने के लिये सभी धारणाओं सभी अहम को त्याग कर उस वर्ग से बाहर आना ही होता है । जिसमें अपनी ही अज्ञानता और मूर्खतावश आपने स्वयं ही स्वयं को कैद कर रखा है । जकङ रखा है ।
हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता । गावहि वेद पुरान श्रुति सन्ता ।
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श्री कुलश्रेष्ठ जी ने इस समूह के उद्देश्य, विचार विमर्ष और प्रश्नों को आधारहीन और अनावश्यक बताया । उनका भाव था कि ये सभी कोरी कल्पना पर आधारित विषय हैं । जिनका यथार्थ से कोई सम्बन्ध नहीं । उन्होंने यह भी कहा । मेरे प्रश्न लम्बे उबाऊ और बोरिंग श्रेणी के हैं । मुझे छोटे प्रश्न करने चाहिये । दूसरे जिक्र में श्री चन्द्रभूषण मिश्रा गाफ़िल जी ने कबीर जन्म से सम्बन्धित लेख को मनगढंत कहानी ( अप्रमाणित ) कहकर विमर्ष हेतु सही विषय चुनने की सलाह दी । ये अलग बात है । कृमशः प्रश्न उत्तर के बाद वे इसी लेख को अति महत्वपूर्ण बताने लगे । अब मेरी बात सुनिये । यदि मैं किसी भी प्रश्न को उसके जानकारी युक्त तथ्यों ऐतहासिक प्रसंगों संदर्भों तथा कुछ तर्क प्रमाण के सहित न रखूँ । तो धीरे धीरे प्रतिक्रियात्मक टिप्पणियों में भी तो लम्बे समय तक वही सब होगा । जो मैं पूर्व में ही लिख देता हूँ । और आपको सटीक चिन्तन की तरफ़ ले जाता हूँ । अगर सत्य के तल पर बात कही जाये । तो मुझे आपसे कुछ नहीं जानना है । या चर्चा भी नहीं करनी । मेरे तीन साल के इंटरनेट मंचीय उपस्थिति में आज तक ऐसा कोई अवसर नहीं आया । जब मैंने किसी से कुछ पूछा हो ।
या कोई मुझे कुछ हटकर बता सका हो । बल्कि मैं ही आपको नये नये प्रश्न देता रहा । और उन प्रश्नों के उत्तर भी । फ़िर इस सबको कहने का मेरा तात्पर्य यही है कि क्या वाकई मेरे प्रश्न आधारहीन और अनावश्यक लम्बे उबाऊ बोरिंग हैं । क्या यह समूह निरुद्देश्य और व्यर्थ समय व्यतीत करने का माध्यम भर है । जैसा कि श्री शर्मा जी कहते हैं - गपशप स्वास्थय के लिये लाभदायक है । इस पर आपके क्या विचार हैं ? कृपया स्पष्ट और अधिकाधिक शब्दों में बतायें ।
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Every thought is a seed
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अभी पिछले कई महीनों से विभिन्न स्तरों पर व्यथित लोग अपनी अपनी समस्याओं को लेकर मुझसे समाधान पूछते रहे हैं । और किसी अज्ञात और अलौकिकता का जानकार मानते हुये मुझसे अपनी आपदा विपदा हेतु सहायता की याचना भी की । पर मैं उन बनावटी साधुओं में से नहीं हूँ । जो फ़ौरी तसल्ली हेतु झूठ कहकर व्यक्ति को वास्तविकता से दूर ले जाते हैं । और और भी झूठे भृम में डाल देते हैं । जिससे उन्हें हानि ही होती है । यद्यपि मैं आने वाले सभी वैश्विक घटनाकृमों को लेकर बहुत पहले ही सभी स्तरों पर स्थिति स्पष्ट कर चुका हूँ । फ़िर भी लोग घङे में ऊँट खोजना ही चाहते हैं । तब मैं कर भी क्या सकता हूँ । आप यदि सत्यकीखोज ब्लाग पर देखेंगे । तो मैं काफ़ी पहले ही बता चुका कि 11-11-11 यानी 11-11-2011 यानी 11 NOV 2011 को इस प्रथ्वी का जीव लेखा जोखा समाप्त हो चुका है । और ये किसी प्राकृतिक आकस्मिक आपदा जैसा न होकर सृष्टि नियम कानून के अंतर्गत ही हुआ है । यानी इसको इस तरह समझ सकते हैं कि 11 NOV 2011 से 2020 तक प्रथ्वी पर सम्पूर्ण रूप से नयी व्यवस्था का गठन होगा । जैसे कि किसी कार्यालय या सरकार में भी कभी कभी कुछ समय के लिये हो जाता है । देश में हो जाता है । या दीपावली आदि पर्व पर आपका घर भी तो अस्त व्यस्त हो जाता है । अतः एक तरह से प्रथ्वी पर अभी कोई नियम कानून नहीं चल रहा । अभी एक अस्थायी सरकार जैसा माहौल ही है । अभी प्रथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों की स्थिति एक शरणार्थी शिविर में रहने जैसी ही है । जो अस्त व्यस्त जीवन का ही रूप है । तब ऐसे समय में जो व्यक्ति बुरे समय के लिये जागरूक थे । वे अपनी अतिरिक्त व्यवस्था के चलते परेशान नहीं होते । लेकिन जो शुतुरमुर्ग की भांति रेत में गर्दन दबाये ही खुद को सुरक्षित मानते रहे । उन्हें कष्ट भोगना ही होगा । संक्षेप में जो पुण्यफ़ल रूपी भाग्य को संचित किये हैं । उन्हें कोई अधिक परेशानी नहीं । लेकिन जो रिक्त हैं । वे कई स्तर पर अभाव का सामना कर रहे हैं । अतः ऐसे में दैहिक दैविक भौतिक आपदाओं में उपचार से कोई राहत नहीं मिलती । यही बात है । जिससे आज किसी रोजगार का न मिलना । असाध्य रोग का उपचार न मिलना । महामारी सा फ़ैलना । अनेक अज्ञात से कलेशों से मनुष्य पीङित है । आप कुछ कुछ इसको वर्षा हीनता से अकाल जैसा समय मान सकते हैं । जिसमें हर तरह से भुखमरी और निर्धनता की स्थितियां बनती हैं । और बेहद सीधी सी बात है । इससे छुटकारा तभी होगा । जब सम्पन्नता का भंडार भरे काले काले मेघों से समृद्धि की बूँदें बरसेंगी । प्रथ्वी पर पुनः हरियाली छायेगी । और नवजीवन की शुरूआत होगी । क्या मैं कोई नयी और अलग बात कह रहा हूँ ? अतः आप मुझसे किसी भी प्रकार की झूठी तसल्ली की आशा न रखें । क्योंकि वह मेरा स्वभाव नहीं है ।
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श्री कृष्ण मुरारी शर्मा और दीपक ने दो अलग अलग विषयों को लेकर मुझे लिंक भेजे हैं । इससे अच्छा तो आप लोग मुझे शेखचिल्ली की कहानियों के लिंक भेज दिया करें । क्योंकि वहाँ कुछ मनोरंजन और ज्ञान तो है । यहाँ तो युवा विधवा के प्रलाप से अधिक कुछ नहीं है । चलिये वो लिंक यहाँ देते हुये मैं दीपक के प्रश्न को हल करता हूँ ।
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अज्ञात व्यक्ति - भूतकाल में जाने के सम्बन्ध में । ये प्रश्न मैं पहले भी 2 बार पूछ चुका हूँ । पर मुझे संतुष्टि नहीं हुई । इसलिए मैं अलग अलग प्रकार से प्रश्न कर रहा था ।
समय यात्रा के कई विरोधाभास भी है । जैसे कि - क्या होगा । जब कोई व्यक्ति भूतकाल में जाकर अपने पैदा होने से पहले अपने माता पिता की हत्या कर दे ? प्रश्न यह है कि यदि उसके माता पिता उसके जन्म से पहले ही मर गये । तो उनकी हत्या करने के लिये वह व्यक्ति पैदा कैसे हुआ ?
- इस प्रश्न भाव की कुछ अलग स्थितियां बनती हैं । माना कि वह व्यक्ति अभी यही जीवित हैं । तब वह मान लो इसी जन्म के माँ बाप ( भले ही वो जीवित हैं । या मर चुके ) के पास भूतकाल में उस समय जाता है । जब अभी वह पैदा ही नहीं हुआ था । तो फ़िर वह उस घटना में सिवाय देखने के कुछ नहीं कर सकता । क्योंकि घटना तो घट चुकी है । अब मान लो । वही व्यक्ति भविष्य में होने वाले अपने किसी जन्म के माँ बाप के पास जाता है । तो वह क्या करेगा कि उनसे अपने अच्छे बुरे सभी पुत्र संस्कारों को नष्ट कर देगा । और बिलकुल अलग हो जायेगा । क्योंकि जीव अविनाशी है । उसको कभी मारा नहीं जा सकता । इसको सरलता से समझने हेतु आप रंगमंच के पात्रों का तरीका समझिये । मान लीजिये । कोई राम या रावण ( जीवात्मा ) रामायण के लिये चयनित हुआ । तब यकायक शुरू में या मध्य में ही किसी पात्र ने मंचन ( जीवन या संस्कार ) से अनिच्छा जताते हुये उससे अलग ( योग द्वारा ) होना चाहा । तो उसका स्थान ( अन्य जुङे संस्कार ) कोई अन्य ले लेगा । और उसकी भूमिका खत्म ( नष्ट ) हो जायेगी । क्या आप नहीं जानते । परदे के पीछे वे चरित्र अभिनेता ( जीवन सम्बन्ध ) नहीं । सिर्फ़ इंसान ( जीवात्मा ) है । यदि आप इस मूल ज्ञान को समझें कि ये माता पिता भाई बहन सभी सम्बन्ध हम विभिन्न कर्म संस्कारों से अज्ञान स्थिति में स्वयं लिखते हैं । तो ज्ञान स्थिति में उनको मिटाया भी जा सकता है । योग और आत्मज्ञान का विषय ही क्या है ? फ़िर यही तो है । और ये रहा । इनका लिंक -
http://vigyan.wordpress.com/2010/12/10/timetravel/
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क्रांतिकारी भगत सिंह की हठी मानसिकता को लेकर श्री शर्माजी ने पता नहीं किस उद्देश्य से बिना कुछ लिखे मुझे सिर्फ़ एक लिंक भेजा है । जो मुझे बेहद गरीबों द्वारा अमीरों की व्यर्थ बुराई करके खुद को झूठी तसल्ली देने से अधिक कुछ नहीं लगा । और जो किसी जवान विधवा हुयी औरत के प्रलाप जैसा भी था । जो वास्तव में पति के मरने से कम अपनी भाग्यहीनता और आने वाले संकट को सोचकर अधिक दुखी थी । उस बेहूदा लिंक सामग्री पर कोई प्रतिक्रिया देने से पहले मैं शर्माजी से पूछना चाहता हूँ कि आखिर वह इस मूढता भरे लेख पर मुझसे क्या चाहते हैं ? उसे और उन प्रश्नों को यहीं टिप्पणी या पोस्ट द्वारा स्पष्ट लिखें ।
शर्माजी द्वारा दिया गया लिंक
http://www.marxists.org/hindi/bhagat-singh/1931/main-nastik-kyon-hoon.htm
- आप मनुष्य हैं । अभी इसी ( या किसी ) प्रथ्वी पर स्थूल शरीर हैं । तो फ़िर आप बिना योगी की भूमिका में जाये भूतकाल या भविष्य छोङो । आने वाले अगले दो मिनट में नहीं जा सकते । न गुजरे दो मिनट में पीछे । लेकिन यदि आप सफ़ल योगी हैं । तो फ़िर आपके योग स्तर अनुसार ये सब मदारी के खेल से अधिक नहीं है ।
- आईये योग के अलग अलग पात्र स्थान आदि पर प्रसिद्ध उदाहरण देखिये । नारद मोह में विष्णु ने एक ऐसी मायानगरी या राज्य का ही निर्माण कर दिया था । दरअसल जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं था । यही नहीं इस राज्य में कई एक राजा और प्रजा आदि भी थे । किसी राजकुमारी का स्वयंवर भी था । और फ़िर नारद का अहंकार नष्ट हो जाने पर यह स्वपन की भांति गायव हो गया । ये योग का वह प्रकार था । जिसमें छोटे से कारण से एक पूरे राज्य की ही स्थापना हुयी । ये अधिकतम दो चार दिन के लिये था । इसी प्रकार अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से ये पूछे जाने पर कि - माया क्या है ? एक मायावी सृष्टि हुयी थी । उस समय कुन्ती रोटी बना रही थी । और श्रीकृष्ण अर्जुन के साथ नदी में नहाकर रोटी खाने की कह गये थे । अर्जुन ने नदी में गोता मारा । और श्रीकृष्ण की योगमाया से बहते हुये सब कुछ भूलकर एक राज्य में जा लगा । जहाँ एक राजकुमारी का स्वयंवर हो रहा था । वहाँ अर्जुन ने स्वयंवर जीतकर राजकुमारी से विवाह किया । उसके अनेक सन्तानें भी हुयीं । और यहाँ तक कि वह वृद्ध होकर मृत्यु को भी प्राप्त हुआ । तब जैसे ही उसे जलाया जा रहा था । श्रीकृष्ण ने माया का प्रभाव हटा दिया । और वह चिता से वापस उसी नदी में आकर फ़िर उसी तरह वापिसी करता हुआ गोता लगाने के स्थान से ठीक उसी तरह ऊपर आया । जो पूर्व में गोता लगाने की स्थिति थी । उसके प्रश्न का अनुभूत जबाब देने हेतु श्रीकृष्ण ने उसकी स्मृति यथावत रखी । अजीब से आश्चर्य में डूबा अर्जुन जब श्रीकृष्ण के साथ कुन्ती के रोटी
बनाने वाले स्थान पर पहुँचा । तो कुन्ती ने कहा - बहुत जल्दी आ गये तुम लोग । अभी तो दो तीन रोटियां भी नहीं बनी । जबकि अर्जुन एक पूरा जीवन व्यतीत करके आया था ।
इसी तरह आपको याद होगा । दुर्योधन के हठ करने पर श्रीकृष्ण ने योगमाया शक्ति से उनके रहने हेतु तत्काल इन्द्रप्रस्थ का निर्माण किया था । क्योंकि भौतिक तरीकों से इतनी जल्दी निर्माण संभव नहीं था । हनुमान को धोखा देने हेतु कालयवन राक्षस ने मायावी कुटिया बनायी थी । योग के स्थायी निर्माण में विश्वामित्र ने एक अलग स्वर्ग का ही निर्माण कर दिया था ।
अभी के सन्तों में भी ऐसे कई प्रमाण हैं । जिनमें एक राजा किसी सन्त का सतसंग सुनने गया था । और कुछ उपहास बनाकर लौट आया । लेकिन सन्त ने कहा - सच्चे सन्त स्वपनवत पूरा जीवन संस्कार तक काट देते हैं । वह राजा कुछ दिन बाद जब जंगल गया । तो यकायक योग भूमि का निर्माण हो गया । और वह ट्रांस में अगले जन्म में चला गया । लेकिन उसे अपनी स्थिति याद रही । अगले जन्म में बह मेहतर था । उसके ( अगले जन्म के । जो अभी हुये भी नहीं थे ) परिवारीजनों ने ठीक वैसा ही व्यवहार किया । जो उन्हें करना चाहिये था । वे उससे ऐसा व्यवहार भी कर रहे थे । जैसे उसके साथ गुजरी ( उसी होने वाले जन्म की ) जिन्दगी वे बखूबी जानते हों । कोई दो घण्टे राजा उस स्थिति में रहा । लेकिन उस योग स्थिति में उसका ( वो ) पूरा जीवन व्यतीत हो गया । ट्रांस से बाहर आने पर राजा वापिस सन्त के चरणों में जाकर गिर गया । रैदास ने मीरा को बेहद बदबूदार ऊँट के पंजर में छुपाकर उसका सौ वर्ष का नर्क सिर्फ़ एक घण्टे में काट दिया । ऐसे अनेकानेक उदाहरण हैं । एक और अदभुत उदाहरण में सूफ़ी सन्त खिज्र साहब ने एक बुढिया के बेटे की बारह वर्ष पूर्व दुर्घटना से मृत हुयी पूरी बारात को ही साक्षात जीवित कर दिया था । कैसे होता है यह सब ? यह हम आपको समय समय पर यहीं बताते रहेंगे ।
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आप कोई भी समाजी हों । पंथी हों । धर्मी हों । आदर्शवादी हों । व्यक्ति विशेष के अनुयायी हों । अथवा धर्म निरपेक्ष ही हों । नास्तिक हों । आस्तिक हों । या कोई खुद की बना ली धारणा हो । या कोई स्थिति परिस्थिति वश बना हठ हो । या व्यर्थ का मिथ्या अहम ही हो । थोङा गौर से ईमानदारी से सोचिये । क्या आपने उससे सम्बन्धित सोच विशेष का एक मोटा चश्मा तो नहीं लगा रखा है । जो आपको मुक्त उन्मुक्त स्वछ्न्द खिलखिलाते नित नूतन अजस्र प्रवाहित सत्य को नहीं देखने देता । अपनी अल्प क्षमता के चलते कोई एक दो पुस्तक विशेष । कोई कुछ प्रवचन आदि । किसी के कुछ आचरण आदि । या फ़िर किसी लोभवश किसी की विद्या विशेष से आकर्षित होकर । या फ़िर महज किसी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर ही कहीं आप एक संकीर्णता में । एक तुच्छ वर्ग में कैद तो नहीं हो गये ? जिसे कूप मंडूकता भी कहा जाता है । मैं आपको दो चीटियों के बारे में बताता हूँ । जिनमें एक नमक के पहाङ पर और एक मिश्री के पहाङ पर रहती थी । एक दिन दोनों की परस्पर भेंट हुयी । तो मिश्री के पहाङ वाली ये देखकर हैरान रह गयी कि किस तरह ये मिश्री की मिठास मधुरता आनन्द और अस्तित्व से अज्ञात होने के कारण इससे प्रत्येक भाव में विपरीत नमक के न सिर्फ़ गुणगान कर रही है । बल्कि
उसी को अन्तिम सत्य भी मान बैठी है । तब उसको असल सत्य से परिचित कराने हेतु उसने नमक वाली को अपने मिश्री के पहाङ पर आने का निमन्त्रण दिया । नमक वाली गयी तो । मगर अपने हठ और अज्ञान के चलते नमक का एक टुकङा मुँह में दबा ले गयी । क्या पता खाने को कुछ न मिला तो । मिश्री वाली ने उसे मधुर मिश्री का स्वाद चखाया । लेकिन नमक वाली को कुछ समझ में नहीं आया । वह अजीब सा मुँह बनाती रही । तब मिश्री वाली बोली - तुम्हारे मुँह में क्या दबा है । पहले उसे बाहर हटाओ । नमक मुँह से बाहर हो जाने पर नमक वाली चीटीं को मिश्री के असली स्वाद और रस का पता चला । वह एक अजीब से आनन्द से भर उठी । जिसकी अनुभूति उसे पहले कभी नहीं हुयी थी ।
तो आप जब तक हठ पूर्वक नमक की डली को दबाये ही रखेंगे । तो उसके साथ मिश्री का वास्तविक स्वाद कभी पता नहीं चलेगा । इसलिये मुक्त सत्य को देखने जानने के लिये सभी धारणाओं सभी अहम को त्याग कर उस वर्ग से बाहर आना ही होता है । जिसमें अपनी ही अज्ञानता और मूर्खतावश आपने स्वयं ही स्वयं को कैद कर रखा है । जकङ रखा है ।
हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता । गावहि वेद पुरान श्रुति सन्ता ।
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श्री कुलश्रेष्ठ जी ने इस समूह के उद्देश्य, विचार विमर्ष और प्रश्नों को आधारहीन और अनावश्यक बताया । उनका भाव था कि ये सभी कोरी कल्पना पर आधारित विषय हैं । जिनका यथार्थ से कोई सम्बन्ध नहीं । उन्होंने यह भी कहा । मेरे प्रश्न लम्बे उबाऊ और बोरिंग श्रेणी के हैं । मुझे छोटे प्रश्न करने चाहिये । दूसरे जिक्र में श्री चन्द्रभूषण मिश्रा गाफ़िल जी ने कबीर जन्म से सम्बन्धित लेख को मनगढंत कहानी ( अप्रमाणित ) कहकर विमर्ष हेतु सही विषय चुनने की सलाह दी । ये अलग बात है । कृमशः प्रश्न उत्तर के बाद वे इसी लेख को अति महत्वपूर्ण बताने लगे । अब मेरी बात सुनिये । यदि मैं किसी भी प्रश्न को उसके जानकारी युक्त तथ्यों ऐतहासिक प्रसंगों संदर्भों तथा कुछ तर्क प्रमाण के सहित न रखूँ । तो धीरे धीरे प्रतिक्रियात्मक टिप्पणियों में भी तो लम्बे समय तक वही सब होगा । जो मैं पूर्व में ही लिख देता हूँ । और आपको सटीक चिन्तन की तरफ़ ले जाता हूँ । अगर सत्य के तल पर बात कही जाये । तो मुझे आपसे कुछ नहीं जानना है । या चर्चा भी नहीं करनी । मेरे तीन साल के इंटरनेट मंचीय उपस्थिति में आज तक ऐसा कोई अवसर नहीं आया । जब मैंने किसी से कुछ पूछा हो ।
या कोई मुझे कुछ हटकर बता सका हो । बल्कि मैं ही आपको नये नये प्रश्न देता रहा । और उन प्रश्नों के उत्तर भी । फ़िर इस सबको कहने का मेरा तात्पर्य यही है कि क्या वाकई मेरे प्रश्न आधारहीन और अनावश्यक लम्बे उबाऊ बोरिंग हैं । क्या यह समूह निरुद्देश्य और व्यर्थ समय व्यतीत करने का माध्यम भर है । जैसा कि श्री शर्मा जी कहते हैं - गपशप स्वास्थय के लिये लाभदायक है । इस पर आपके क्या विचार हैं ? कृपया स्पष्ट और अधिकाधिक शब्दों में बतायें ।
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Every thought is a seed
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अभी पिछले कई महीनों से विभिन्न स्तरों पर व्यथित लोग अपनी अपनी समस्याओं को लेकर मुझसे समाधान पूछते रहे हैं । और किसी अज्ञात और अलौकिकता का जानकार मानते हुये मुझसे अपनी आपदा विपदा हेतु सहायता की याचना भी की । पर मैं उन बनावटी साधुओं में से नहीं हूँ । जो फ़ौरी तसल्ली हेतु झूठ कहकर व्यक्ति को वास्तविकता से दूर ले जाते हैं । और और भी झूठे भृम में डाल देते हैं । जिससे उन्हें हानि ही होती है । यद्यपि मैं आने वाले सभी वैश्विक घटनाकृमों को लेकर बहुत पहले ही सभी स्तरों पर स्थिति स्पष्ट कर चुका हूँ । फ़िर भी लोग घङे में ऊँट खोजना ही चाहते हैं । तब मैं कर भी क्या सकता हूँ । आप यदि सत्यकीखोज ब्लाग पर देखेंगे । तो मैं काफ़ी पहले ही बता चुका कि 11-11-11 यानी 11-11-2011 यानी 11 NOV 2011 को इस प्रथ्वी का जीव लेखा जोखा समाप्त हो चुका है । और ये किसी प्राकृतिक आकस्मिक आपदा जैसा न होकर सृष्टि नियम कानून के अंतर्गत ही हुआ है । यानी इसको इस तरह समझ सकते हैं कि 11 NOV 2011 से 2020 तक प्रथ्वी पर सम्पूर्ण रूप से नयी व्यवस्था का गठन होगा । जैसे कि किसी कार्यालय या सरकार में भी कभी कभी कुछ समय के लिये हो जाता है । देश में हो जाता है । या दीपावली आदि पर्व पर आपका घर भी तो अस्त व्यस्त हो जाता है । अतः एक तरह से प्रथ्वी पर अभी कोई नियम कानून नहीं चल रहा । अभी एक अस्थायी सरकार जैसा माहौल ही है । अभी प्रथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों की स्थिति एक शरणार्थी शिविर में रहने जैसी ही है । जो अस्त व्यस्त जीवन का ही रूप है । तब ऐसे समय में जो व्यक्ति बुरे समय के लिये जागरूक थे । वे अपनी अतिरिक्त व्यवस्था के चलते परेशान नहीं होते । लेकिन जो शुतुरमुर्ग की भांति रेत में गर्दन दबाये ही खुद को सुरक्षित मानते रहे । उन्हें कष्ट भोगना ही होगा । संक्षेप में जो पुण्यफ़ल रूपी भाग्य को संचित किये हैं । उन्हें कोई अधिक परेशानी नहीं । लेकिन जो रिक्त हैं । वे कई स्तर पर अभाव का सामना कर रहे हैं । अतः ऐसे में दैहिक दैविक भौतिक आपदाओं में उपचार से कोई राहत नहीं मिलती । यही बात है । जिससे आज किसी रोजगार का न मिलना । असाध्य रोग का उपचार न मिलना । महामारी सा फ़ैलना । अनेक अज्ञात से कलेशों से मनुष्य पीङित है । आप कुछ कुछ इसको वर्षा हीनता से अकाल जैसा समय मान सकते हैं । जिसमें हर तरह से भुखमरी और निर्धनता की स्थितियां बनती हैं । और बेहद सीधी सी बात है । इससे छुटकारा तभी होगा । जब सम्पन्नता का भंडार भरे काले काले मेघों से समृद्धि की बूँदें बरसेंगी । प्रथ्वी पर पुनः हरियाली छायेगी । और नवजीवन की शुरूआत होगी । क्या मैं कोई नयी और अलग बात कह रहा हूँ ? अतः आप मुझसे किसी भी प्रकार की झूठी तसल्ली की आशा न रखें । क्योंकि वह मेरा स्वभाव नहीं है ।
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श्री कृष्ण मुरारी शर्मा और दीपक ने दो अलग अलग विषयों को लेकर मुझे लिंक भेजे हैं । इससे अच्छा तो आप लोग मुझे शेखचिल्ली की कहानियों के लिंक भेज दिया करें । क्योंकि वहाँ कुछ मनोरंजन और ज्ञान तो है । यहाँ तो युवा विधवा के प्रलाप से अधिक कुछ नहीं है । चलिये वो लिंक यहाँ देते हुये मैं दीपक के प्रश्न को हल करता हूँ ।
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अज्ञात व्यक्ति - भूतकाल में जाने के सम्बन्ध में । ये प्रश्न मैं पहले भी 2 बार पूछ चुका हूँ । पर मुझे संतुष्टि नहीं हुई । इसलिए मैं अलग अलग प्रकार से प्रश्न कर रहा था ।
समय यात्रा के कई विरोधाभास भी है । जैसे कि - क्या होगा । जब कोई व्यक्ति भूतकाल में जाकर अपने पैदा होने से पहले अपने माता पिता की हत्या कर दे ? प्रश्न यह है कि यदि उसके माता पिता उसके जन्म से पहले ही मर गये । तो उनकी हत्या करने के लिये वह व्यक्ति पैदा कैसे हुआ ?
- इस प्रश्न भाव की कुछ अलग स्थितियां बनती हैं । माना कि वह व्यक्ति अभी यही जीवित हैं । तब वह मान लो इसी जन्म के माँ बाप ( भले ही वो जीवित हैं । या मर चुके ) के पास भूतकाल में उस समय जाता है । जब अभी वह पैदा ही नहीं हुआ था । तो फ़िर वह उस घटना में सिवाय देखने के कुछ नहीं कर सकता । क्योंकि घटना तो घट चुकी है । अब मान लो । वही व्यक्ति भविष्य में होने वाले अपने किसी जन्म के माँ बाप के पास जाता है । तो वह क्या करेगा कि उनसे अपने अच्छे बुरे सभी पुत्र संस्कारों को नष्ट कर देगा । और बिलकुल अलग हो जायेगा । क्योंकि जीव अविनाशी है । उसको कभी मारा नहीं जा सकता । इसको सरलता से समझने हेतु आप रंगमंच के पात्रों का तरीका समझिये । मान लीजिये । कोई राम या रावण ( जीवात्मा ) रामायण के लिये चयनित हुआ । तब यकायक शुरू में या मध्य में ही किसी पात्र ने मंचन ( जीवन या संस्कार ) से अनिच्छा जताते हुये उससे अलग ( योग द्वारा ) होना चाहा । तो उसका स्थान ( अन्य जुङे संस्कार ) कोई अन्य ले लेगा । और उसकी भूमिका खत्म ( नष्ट ) हो जायेगी । क्या आप नहीं जानते । परदे के पीछे वे चरित्र अभिनेता ( जीवन सम्बन्ध ) नहीं । सिर्फ़ इंसान ( जीवात्मा ) है । यदि आप इस मूल ज्ञान को समझें कि ये माता पिता भाई बहन सभी सम्बन्ध हम विभिन्न कर्म संस्कारों से अज्ञान स्थिति में स्वयं लिखते हैं । तो ज्ञान स्थिति में उनको मिटाया भी जा सकता है । योग और आत्मज्ञान का विषय ही क्या है ? फ़िर यही तो है । और ये रहा । इनका लिंक -
http://vigyan.wordpress.com/2010/12/10/timetravel/
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क्रांतिकारी भगत सिंह की हठी मानसिकता को लेकर श्री शर्माजी ने पता नहीं किस उद्देश्य से बिना कुछ लिखे मुझे सिर्फ़ एक लिंक भेजा है । जो मुझे बेहद गरीबों द्वारा अमीरों की व्यर्थ बुराई करके खुद को झूठी तसल्ली देने से अधिक कुछ नहीं लगा । और जो किसी जवान विधवा हुयी औरत के प्रलाप जैसा भी था । जो वास्तव में पति के मरने से कम अपनी भाग्यहीनता और आने वाले संकट को सोचकर अधिक दुखी थी । उस बेहूदा लिंक सामग्री पर कोई प्रतिक्रिया देने से पहले मैं शर्माजी से पूछना चाहता हूँ कि आखिर वह इस मूढता भरे लेख पर मुझसे क्या चाहते हैं ? उसे और उन प्रश्नों को यहीं टिप्पणी या पोस्ट द्वारा स्पष्ट लिखें ।
शर्माजी द्वारा दिया गया लिंक
http://www.marxists.org/hindi/bhagat-singh/1931/main-nastik-kyon-hoon.htm
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