यदा यदाहि
धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानधर्मस्य
तदात्मानं सृजाम्यहम॥
परित्राणाय
साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम।
धर्मसंस्थापनार्थाय
संभवामि युगे युगे॥
शास्त्र अनुसार
श्रीकृष्ण की आयु 125 वर्ष थी, और कलियुग की अवधि लगभग 5500 वर्ष
हो चुकी है। मोटे अनुमान के मुताबिक आठ-दस हजार वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण इस प्रथ्वी पर
सशरीर थे।
और उन्होंने
महाभारत युद्ध के दौरान कहा था - यदा यदाहि धर्मस्य..जब जब धर्म की हानि होती है..तब
मैं अवतरित हो पुनः धर्म की स्थापना करता हूँ।
फ़िर..‘धर्मसंस्थापनार्थाय..’
उन्होंने ‘जन्म से अशरीर होने तक’ कई असुरों को ‘मोक्ष’ करा दिया।
लेकिन?
क्या श्रीकृष्ण
के समय में, या देहत्याग के बाद, प्रथ्वी पर
धर्म-स्थापना हो चुकी थी?
क्योंकि सबसे
पहले तो यदुवंशी ही अभिमानी होकर आपस में मर मिटे। इसके बाद भी असुर और असुरता से मानवीय
संघर्ष और युद्ध जारी रहा।
श्रीकृष्ण
के बाद शुकदेव जी आदि जैसे ज्ञानी पुरूष मौजूद थे। जिन्होंने परीक्षित को जीते जी मोक्ष
कराया।
सिर्फ़ श्रीकृष्ण
काल से ही इतिहास का अध्ययन करें तो तब से अब तक ‘धर्म-संस्थापकों’ की लम्बी सूची उपलब्ध
है। लेकिन प्रसिद्ध लोगों में क्रमशः बुद्ध, महावीर, ईसामसीह, मुहम्मद, गोरखनाथ,
कबीर, नानक आदि आदि उल्लेखनीय हैं।
इसके बाद
ताजातरीन और ‘स्वघोषित महापुरूषों’ में ओशो, कृष्णमूर्ति जैसे
विचारकों, और साधु वर्ग में आने वालों (इनके नाम बताना आवश्यक
नहीं) की गिनती ‘कुछ हजार’ में निश्चय ही है।
इसके बाद
मोक्षदायिनी भगवत सप्ताह कथा करने वाले ‘व्यास’ और अब तो ‘व्यासिनें’ भी बङी संख्यां
में यकायक अवतरित हुये। इतने कि सरकार को इनका सरकारी रिकार्ड रखना भी महत्वहीन लगा।
तो..
बहुत समय
से मैं इसी विषय पर शोध/खोज कर रहा हूँ कि इन धर्मधन्य विभूतियों ने आखिर वह ‘धर्म-स्थापना’
किस मुहल्ले या ग्राम में की है। किसी पाठक को ज्ञात हो तो कृपया टिप्पणी में उल्लेख
करें।