Rajeev Ji Namskar, aapka blog padhkar mujhe kaafi acha laga, aur mai aapka blog pichle 1 month se padh raha hu ye kaafi ashchyar janak jankariya deta hai jise maine aaj se pahle kabhi nahi padha mai phi satyanaam ki sadhna kar manav jeevan safal banana chahta hu . Par mujhe abhi pehle puri tarah se apni tasali karni hai uske baad hi mai naam lena chahunga पहला मेल
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Rajeev ji namaskar, Mai bhi satynaam ki diksha lena chahata hu par pehle mujhe tasalli ke liye aapse kuch sawal puchne hai kripya in sawalo ka jawab de:- दूसरा मेल
i) Agar mai pehle se dikshit hu to mai aapke mandal se diksha le sakta hu kya ?
- जी हाँ ! आप निसंकोच किसी भी ( सच्चे ) गुरु से दीक्षा ले सकते हैं । कई प्रसिद्ध धार्मिक लोगों ने एक के बाद एक 100 गुरु तक किये हैं । द्वैत या अद्वैत ज्ञान का सिलसिला ज्यों ज्यों ऊपर उठता जाता है । अक्सर कई
गुरुओं के सम्पर्क में आना होता है । यह जन्म जन्म की यात्रा भी है । पर सच्चा गुरु तुरन्त परिणाम देता है । अंधा विश्वास करके तप नहीं करना होता । हम धार्मिक ( प्रचलित ) पोंगापंथी के बजाय बैज्ञानिक दृष्टिकोण से भक्ति पर बात करते हैं । तंत्र मंत्र यंत्र कुण्डलिनी अद्वैत आदि पूर्णत बैज्ञानिक तरीके हैं ।
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i) Maine abhi Shir Sudhansu Ji maharaj Ji se diksha li hui aur usi naam ka jap karta hu aur mere parivaar ke log bhi jaap karte hai lekin mujhe abhi tak diksha ke baad koi divya anubhav nahi hua .
- दीक्षा का मतलब ही ( अलौकिक ) दिखाना होता है । गुरु का मतलब कुण्डलिनी या तंत्र मंत्र के दिव्य प्रयोग कराने वाली हस्ती । और सदगुरु का मतलब आत्म ज्ञान या परमात्म ज्ञान के प्रयोगात्मक अनुभव साक्षात्कार कराने वाली सर्वाधिक पूज्य हस्ती । यह 1 समय में 1 ही होता है ।
इसलिये मेरी समझ में नहीं आता । सुधांशु जैसे लोग किस तरह और क्यों दीक्षा देने लगते हैं ? सुधांशु एक कथावाचक या प्रवक्ता से अधिक नहीं है । ज्यादातर ऐसे फ़ेमस लोग अधिकतम वही साधारण मेडीटेशन करते हैं । जो अन्य लोग करते हैं । इसलिये आपका दीक्षा लेना या न लेना एक बराबर ही है । क्योंकि यह एकदम नकली दीक्षा है ।
iii) Kya satya naam mil jane ke baad sumran karne se mujhe kisi prakar ka anubhav hoga yadi ha to kis prakar ka aubhav hoga kripya bataye.
- निश्चय होगा । तुरन्त उसी क्षण होता है । बशर्ते आप में बहुत ज्यादा पात्रता की कमी न हो । जैसे - बात को गौर से न सुनना । ग्रहण न करना । दीक्षा के समय ध्यान कहीं और ले जाना । भाव में अश्रद्धा होना । अधिक कठोरता या शंकालु होना । या किसी बहुत बङे चमत्कार की उम्मीद कर दीक्षा पर बैठना भी गलत है । वास्तव में दीक्षा के समय गुरु अपने सच्चा होने का प्रमाण देता है । इसमें मुख्यतयाः तेज सफ़ेद चमकीला दिव्य प्रकाश अधिकतर दिखाई देता है । ये सबसे कम स्थिति है । अच्छी स्थितियों में सफ़ेद चक्र । स्वर्ग आदि निम्न लोक तथा दिव्य स्त्री पुरुष आदि भी दिखाई देते हैं । लेकिन कितनी भी निम्नतर दीक्षा हो । कुछ समय ( अधिकतम 3 महीने ) के अभ्यास में ही बहुत अनुभव होते हैं । अगर कोई साधक अच्छा लगनशील हो । यानी आश्रम में रहकर सीखे । तो बहुत जल्द उन्नति होती है । पूरे भारत में हमारे साधक हैं । जो किसी न किसी % पर चल रहे हैं ।
iv) Agar koi aadmi keval hari naam, krishnaam, vishnu naam aadi ka jap kare to kya use nark milta hai jaisa ki mai abhi tak kar raha tha kyoki mujhe to abhi tak advait ka naam nahi mila to meri gati kaal pursh ke naam se kaun si hogi unke lok wali ya nark ya phir 84 wali kripya bataye.
- बिना सही जानकारी और वैधानिक तरीके और सच्चे गुरु के आप किसी भी नाम हरि नाम कृष्ण नाम विष्णु नाम का जाप करते रहें । इसका कोई फ़ायदा नुकसान नहीं । सिवाय इसके कि इससे भक्ति भाव जागृत रहता है । इंसान के विचार शुद्ध होते हैं । और आगे के लिये भक्ति की प्रेरणा होती है । मार्ग खुलता है । आपके प्रश्नानुसार सामान्य जीवन + आपका जाप आपको 84 लाख योनियों में ले जायेगा । कोई बुरा कर्म + आपका जाप आपको नर्क में ले जायेगा । कोई बङा दान या अति भला कार्य ( बङे स्तर पर ) + आपका जाप कार्य फ़ल अनुसार स्वर्ग में अवधि और स्तर दिलायेगा । इसलिये गौर करें । जाप से सिर्फ़ वहीं फ़ायदे हैं । जो मैंने ऊपर बतायें ।
v) Anya loko ke bare me to aapke lekho ko padh chuka hu par ye satyalok kya hota hai aur us lok me bhi vaibhav, sukh vilas aadi hota hai kya
- बृह्माण्ड की चोटी पार करने के बाद एक महा मैदान आता है । इस मैदान के ही तुरन्त बाद सत्यलोक या सचखण्ड की सीमा शुरू हो जाती है । बहुत पहले से ही दिव्य चन्दन की तेज गन्ध आने लगती है । यहाँ सबसे न्यूनतम तेजात्मा हँस ( जीव ) 12 सूर्यों के प्रकाश के बराबर होता है । वह सफ़ेद चमकीला होता है । अमृत उसका आहार होता है । यह आत्म ज्ञान की सबसे छोटी प्राप्ति है । जिसका परिणाम भी अमरता है । इसमें 88000 आनन्द दीप भी हैं । अपार आनन्द का स्थान सत्यलोक के सुख वैभव विलास आदि का वर्णन कम शब्दों में सम्भव नहीं । लेकिन यहाँ ( नीचे के लोकों से ) बहुत अधिक यह सब है । पर ध्यान रहें । आत्म ज्ञान में इससे भी आगे बहुत कुछ है । और बहुत प्राप्तियाँ हैं ।
vi) Aur satya naam paane ke baad is ka sumran kitni der niyamanusar karna padta hai bataye
- आमतौर पर ऐसी कोई बाध्यता नहीं । फ़िर भी 15 मिनट से बढाकर 3 घण्टे तक शुरूआत में जाप करना होता है । क्योंकि फ़िर ये जाप कहीं भी स्वयं होता रहता है । यहाँ बार बार स्वयं ध्यान जाता है । बशर्ते आपका गुरु सच्चा हो । इस सुमरन से हमारे दैनिक कार्यकलाप में कोई विघ्न नहीं आता । कोमल ह्रदय । शुभ आचरण । और सच्चे लोगों को इतनी मेहनत भी नहीं करनी पढी । याद रहे । परमात्म सुमरन का कोई विकल्प नहीं । आपको सिर्फ़ इसी के द्वारा भव जाल से छुटकारा मिलेगा । वरना कलेश खत्म नहीं होगी ।
Aaapke Jawab ke intzaar me manoj kumar
2 टिप्पणियां:
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