भारत के गांव कस्बों की तो बात ही छोङिये । दिल्ली मुम्बई बंगलौर जैसे आधुनिक शहरों के लोग भी अभी विदेशियों की तरह ऐसे फ़ालतू ? कार्यों के शौकीन नहीं हैं कि शक्तिशाली दूरबीन या कैमरे लिये बेकार में आकाश को ताकते रहें । या कोई भी नई तरह की घटना जीव जन्तु या दृश्य आदि का फ़िल्मांकन करने में समय बर्बाद ? करें । इसीलिये भारतीय लोगों को आज तक कभी य़ू एफ़ ओ नहीं दिखा । और यदि ऐसा कुछ दिखा भी होगा । तो निश्चय ही उनकी सोच होगी - अरे होगा कुछ ? सरकार जाने । उसका टेंशन है ? सेना सब संभाल लेगी । सर्दी गर्मी ज्यादा पङने पर बारिश कम ज्यादा होने पर उसके लिये सरकार को जिम्मेदार ठहराने वाले ऐसी छोटी मोटी बातों पर क्या टेंशन लें ।
हाँ शायद मेरठ की तरफ़ के लोगों को मुंहनोचवा ( कंडील पंतग आदि के उपयोग द्वारा फ़ैलाई अफ़वाह ) एक महीने से ज्यादा दिखा । इसका नामकरण भी देखिये । भारतीय कभी अनआइडेंटीफ़ाइड आबजेक्ट जैसे शब्दों का उपयोग नहीं करते । उन्होंने पूरा सचित्र "झूठ पुराण " बना डाला - मुंहनोचवा । यहीं भारतीय अखबारों की बात देखिये । यह खबर प्रमुखता से मुखप्रष्ठ तक पर बाक्स खबर का दर्जा पाती रही । दिल्ली में एक बङे साइज का चिम्पाजी जैसा बन्दर जो लोगों को बिना वजह लगभग दो महीनों हैरान करता रहा ( सफ़ेद झूठ ) शाम के अंधेरे के बाद लगभग आठ से नौ के बीच एक रोटी प्याज मांगने वाली बूढी चुङैल का आतंक भी लगभग छह महीने तक बरकरार रहा ।
तो गौर किया आपने । विदेशियों को जहां एलियन, यू एफ़ ओ, क्रोप सर्कल, आसमानी आग के गोले, गाडजिला,
डायनासोर, आइसमैन आदि आदि दिखते हैं ? वहीं भारतीयों को मुंहनोचवा, रहस्यमय आतंकी बन्दर, रोटी प्याज मांगने वाली चुङैल आदि दिखते हैं । उनके दिमाग उनके देश और पूर्वजों द्वारा उस प्रकार प्रोग्राम्ड है । तो भारतीयों के दिमाग उनके देश और पूर्वजों द्वारा इस प्रकार कृमादेशित है । मजे की बात है - बृह्म सत्य जगत मिथ्या जैसे महान सूत्र को मानने वाले । यह जगत स्वपनवत या अंधेरे में रस्सी का सर्प नजर आने की भांति मानने वाले । एक परमात्मा ही है । दूसरा कोई नहीं । मानने वाले भी । ऐसा ऐसा स्वांत सुखाय परांत दुखाय सृजन करते हैं कि स्वयं सृष्टि की रचना करने वाला परमात्मा भी हैरान हो जाये । भले ही सफ़ेद झूठ क्यों न हो । पर रोमांच और सनसनी पैदा होनी चाहिये ।
विकृत शरीर या अंगों को लेकर पैदा होकर कुछ ही घन्टों में मर जाने वाले शिशु यहां लिंग अनुसार देवी देवता माने जाते हैं । ऐसी ही एक घटना मेरे ठीक सामने हुयी । एक महिला का प्रसव चार महीने के गर्भ में ही हो गया । जाहिर है । अविकसित शिशु की आकृति बन्दर के बच्चे जैसी होगी । यह मृत ही था । और प्रसब के बाद हिला तक नहीं । अब छत्तीस साल पुरानी इस बात को लेकर मेरे सामने ही क्या क्या अफ़वाह बनी । देखिये - अरे खबीस ( एक प्रकार का प्रेत ) पैदा हुआ । दूसरी महिला ने आगे जोङ दिया - पैदा होते ही कूदकर टांड ( परछत्ती ) पर चढ गया । कुछ बच्चे डरकर भाग गये । एक और ज्ञानी महिला - मैं तो पहले ही कहती थी । उस घर में, या उस स्त्री पर कोई हवा का चक्कर ( प्रेत प्रभाव ) है आदि आदि ।
हैरानी की बात है कि आज तक एक भी मुंहनोचबा, आंतकी बन्दर या रोटी प्याज मांगने वाली चुङैल या फ़िर ऐसे देवी देवता या फ़िर यू एफ़ ओ या फ़िर एलियन या फ़िर अन्य अन्य । इनका कोई सच्चा प्रमाणित प्रत्यदर्शी या ऐसा प्रमाण आज तक नहीं मिला । जिसको जनता के सामने लाया जा सके । ये तो सिर्फ़ अफ़वाहों की बात है । चन्द्र मिशन तो पूर्णतयाः वैज्ञानिक, सरकारी और शिक्षित लोगों का उपकृम था । और बाकायदा करोङों रुपये
खर्च करके सरकार और कई लोगों की टीम द्वारा क्रियान्वित हुआ था । लेकिन इसके परिणामों का प्रकाशित ब्यौरा आज तक भी जनता के लिये मुंहनोचवा या रोटी प्याज मांगने वाली चुङैल से अधिक नहीं है । अतः आज भी आम लोगों के लिये चन्द्रमा में बुढिया चरखे पर सूत ही कात रही है । आज भी अधिकांश भारतीयों के लिये पहले आसमान धरती के इतना ज्यादा करीब था कि रोज झाङू देने आती सफ़ाई कर्मी महिला की कमर में लगता । और तब गुस्से में एक दिन उसने झाङू के डन्डे से उसे चोट मारा । और आसमान अत्यधिक ऊंचाई पर चला गया । बिजली की शुरूआत में कभी फ़ूंक मारकर बल्ब बुझाने वाले और रेडियो को आदमियों की तरह बोलता देखकर डर जाने वाले या तोङ देने वाले लोगों ने ही ऐसे ऐसे " महान अलौकिक साहित्य " का सृजन कर डाला कि कबीर को हारकर देखिये क्या कहना पङा - पंडित वाद वदन्ते झूठा । भोजन कहे भूख जो भाजे । जल कह तृषा बुझाई ।
बात मैंने शुरू की थी । हमारे राजस्थान के एक शिष्य द्वारा यू एफ़ ओ और विदेशी खेतों आदि में रातोंरात बन जाते क्रोप सर्कल को लेकर । जिसका उत्तर भी फ़ेसबुक में मेरे ग्रुप "सुप्रीम ब्लिस रिसर्च फ़ाउंडेशन" में दिया जा चुका है ।
मेरे आत्मकथ्य रूपी लेखों में कुछ बार इसका जिक्र हुआ है कि मैं रात्रि में बचपन से ही आकाश को देर रात तक निहारने का बेहद शौकीन था । और तब कहीं न कहीं मुझे लगता था । आकाश से मेरा कोई गहरा सम्बन्ध है । मैं वहां जा सकता हूं । शायद मैंने लिखा हो । ऐसी ही एक रात्रि में पूर्ण से थोङे कम चन्द्रमा को एकटक ( अनजाने में त्राटक हो गया था ) देर तक निहारने से और दिमाग में सिर्फ़ एक ? विचार होने से यकायक मेरी सुरति लक्षित व्यक्ति ( प्रथ्वी पर ) और फ़िर सुदूर ग्रह पर चली गयी । पर ये अनजाने में हुआ था । अतः मैं डर गया । ये कहना ठीक नहीं । पर हङबङा अवश्य गया । ये मुश्किल से बीस तीस सेकिंड की अवधि थी । जिसमें सब कुछ होकर मैं वापिस सचेत भी हो गया । और यदि तीस सेकिंड में वो भी यकायक अप्रत्यशित और खास ये कि अनजानी ऐसी घटना हो । तो इंसान बाद में देर तक मनन करने के बाद ही सारी बात समझ पायेगा । ये घटना चौदह पन्द्रह की उमृ में घटी । और तब तक मेरा ज्ञान संस्कार आरम्भ नहीं हुआ था । अतः सब कुछ मेरे लिये रहस्य जैसा ही था । आज ऐसी घटनायें मेरे लिये एकदम महत्वहीन हैं ।
यदि मेरे पास भी एक शक्तिशाली दूरबीन युक्त कैमरा हो । तो मैं यहाँ अपने चिन्ताहरण आश्रम, नगला भादों ( जिला फ़िरोजाबाद ) के आंगन से ही आपको रोज दस बीस यू एफ़ ओ दस बीस एलियन या मुंहनोचवा
या कोई भी ऊटपटांग सत्यतारहित अन्य अन्य के तमाम चित्र और रोचक विवरण प्रतिदिन अपडेट कर सकता हूं ।
ऐसी ही खबरें प्रकाशित करने वाली एक बेवसाइट से मैंने दो लिंक टिप्पणी में साझा किये हैं । हालांकि उसके " फ़ायर इन द स्काई " शीर्षक से पेज पर ऐसे समाचारों की भरमार है ।
हाँ शायद मेरठ की तरफ़ के लोगों को मुंहनोचवा ( कंडील पंतग आदि के उपयोग द्वारा फ़ैलाई अफ़वाह ) एक महीने से ज्यादा दिखा । इसका नामकरण भी देखिये । भारतीय कभी अनआइडेंटीफ़ाइड आबजेक्ट जैसे शब्दों का उपयोग नहीं करते । उन्होंने पूरा सचित्र "झूठ पुराण " बना डाला - मुंहनोचवा । यहीं भारतीय अखबारों की बात देखिये । यह खबर प्रमुखता से मुखप्रष्ठ तक पर बाक्स खबर का दर्जा पाती रही । दिल्ली में एक बङे साइज का चिम्पाजी जैसा बन्दर जो लोगों को बिना वजह लगभग दो महीनों हैरान करता रहा ( सफ़ेद झूठ ) शाम के अंधेरे के बाद लगभग आठ से नौ के बीच एक रोटी प्याज मांगने वाली बूढी चुङैल का आतंक भी लगभग छह महीने तक बरकरार रहा ।
तो गौर किया आपने । विदेशियों को जहां एलियन, यू एफ़ ओ, क्रोप सर्कल, आसमानी आग के गोले, गाडजिला,
डायनासोर, आइसमैन आदि आदि दिखते हैं ? वहीं भारतीयों को मुंहनोचवा, रहस्यमय आतंकी बन्दर, रोटी प्याज मांगने वाली चुङैल आदि दिखते हैं । उनके दिमाग उनके देश और पूर्वजों द्वारा उस प्रकार प्रोग्राम्ड है । तो भारतीयों के दिमाग उनके देश और पूर्वजों द्वारा इस प्रकार कृमादेशित है । मजे की बात है - बृह्म सत्य जगत मिथ्या जैसे महान सूत्र को मानने वाले । यह जगत स्वपनवत या अंधेरे में रस्सी का सर्प नजर आने की भांति मानने वाले । एक परमात्मा ही है । दूसरा कोई नहीं । मानने वाले भी । ऐसा ऐसा स्वांत सुखाय परांत दुखाय सृजन करते हैं कि स्वयं सृष्टि की रचना करने वाला परमात्मा भी हैरान हो जाये । भले ही सफ़ेद झूठ क्यों न हो । पर रोमांच और सनसनी पैदा होनी चाहिये ।
विकृत शरीर या अंगों को लेकर पैदा होकर कुछ ही घन्टों में मर जाने वाले शिशु यहां लिंग अनुसार देवी देवता माने जाते हैं । ऐसी ही एक घटना मेरे ठीक सामने हुयी । एक महिला का प्रसव चार महीने के गर्भ में ही हो गया । जाहिर है । अविकसित शिशु की आकृति बन्दर के बच्चे जैसी होगी । यह मृत ही था । और प्रसब के बाद हिला तक नहीं । अब छत्तीस साल पुरानी इस बात को लेकर मेरे सामने ही क्या क्या अफ़वाह बनी । देखिये - अरे खबीस ( एक प्रकार का प्रेत ) पैदा हुआ । दूसरी महिला ने आगे जोङ दिया - पैदा होते ही कूदकर टांड ( परछत्ती ) पर चढ गया । कुछ बच्चे डरकर भाग गये । एक और ज्ञानी महिला - मैं तो पहले ही कहती थी । उस घर में, या उस स्त्री पर कोई हवा का चक्कर ( प्रेत प्रभाव ) है आदि आदि ।
हैरानी की बात है कि आज तक एक भी मुंहनोचबा, आंतकी बन्दर या रोटी प्याज मांगने वाली चुङैल या फ़िर ऐसे देवी देवता या फ़िर यू एफ़ ओ या फ़िर एलियन या फ़िर अन्य अन्य । इनका कोई सच्चा प्रमाणित प्रत्यदर्शी या ऐसा प्रमाण आज तक नहीं मिला । जिसको जनता के सामने लाया जा सके । ये तो सिर्फ़ अफ़वाहों की बात है । चन्द्र मिशन तो पूर्णतयाः वैज्ञानिक, सरकारी और शिक्षित लोगों का उपकृम था । और बाकायदा करोङों रुपये
खर्च करके सरकार और कई लोगों की टीम द्वारा क्रियान्वित हुआ था । लेकिन इसके परिणामों का प्रकाशित ब्यौरा आज तक भी जनता के लिये मुंहनोचवा या रोटी प्याज मांगने वाली चुङैल से अधिक नहीं है । अतः आज भी आम लोगों के लिये चन्द्रमा में बुढिया चरखे पर सूत ही कात रही है । आज भी अधिकांश भारतीयों के लिये पहले आसमान धरती के इतना ज्यादा करीब था कि रोज झाङू देने आती सफ़ाई कर्मी महिला की कमर में लगता । और तब गुस्से में एक दिन उसने झाङू के डन्डे से उसे चोट मारा । और आसमान अत्यधिक ऊंचाई पर चला गया । बिजली की शुरूआत में कभी फ़ूंक मारकर बल्ब बुझाने वाले और रेडियो को आदमियों की तरह बोलता देखकर डर जाने वाले या तोङ देने वाले लोगों ने ही ऐसे ऐसे " महान अलौकिक साहित्य " का सृजन कर डाला कि कबीर को हारकर देखिये क्या कहना पङा - पंडित वाद वदन्ते झूठा । भोजन कहे भूख जो भाजे । जल कह तृषा बुझाई ।
बात मैंने शुरू की थी । हमारे राजस्थान के एक शिष्य द्वारा यू एफ़ ओ और विदेशी खेतों आदि में रातोंरात बन जाते क्रोप सर्कल को लेकर । जिसका उत्तर भी फ़ेसबुक में मेरे ग्रुप "सुप्रीम ब्लिस रिसर्च फ़ाउंडेशन" में दिया जा चुका है ।
मेरे आत्मकथ्य रूपी लेखों में कुछ बार इसका जिक्र हुआ है कि मैं रात्रि में बचपन से ही आकाश को देर रात तक निहारने का बेहद शौकीन था । और तब कहीं न कहीं मुझे लगता था । आकाश से मेरा कोई गहरा सम्बन्ध है । मैं वहां जा सकता हूं । शायद मैंने लिखा हो । ऐसी ही एक रात्रि में पूर्ण से थोङे कम चन्द्रमा को एकटक ( अनजाने में त्राटक हो गया था ) देर तक निहारने से और दिमाग में सिर्फ़ एक ? विचार होने से यकायक मेरी सुरति लक्षित व्यक्ति ( प्रथ्वी पर ) और फ़िर सुदूर ग्रह पर चली गयी । पर ये अनजाने में हुआ था । अतः मैं डर गया । ये कहना ठीक नहीं । पर हङबङा अवश्य गया । ये मुश्किल से बीस तीस सेकिंड की अवधि थी । जिसमें सब कुछ होकर मैं वापिस सचेत भी हो गया । और यदि तीस सेकिंड में वो भी यकायक अप्रत्यशित और खास ये कि अनजानी ऐसी घटना हो । तो इंसान बाद में देर तक मनन करने के बाद ही सारी बात समझ पायेगा । ये घटना चौदह पन्द्रह की उमृ में घटी । और तब तक मेरा ज्ञान संस्कार आरम्भ नहीं हुआ था । अतः सब कुछ मेरे लिये रहस्य जैसा ही था । आज ऐसी घटनायें मेरे लिये एकदम महत्वहीन हैं ।
यदि मेरे पास भी एक शक्तिशाली दूरबीन युक्त कैमरा हो । तो मैं यहाँ अपने चिन्ताहरण आश्रम, नगला भादों ( जिला फ़िरोजाबाद ) के आंगन से ही आपको रोज दस बीस यू एफ़ ओ दस बीस एलियन या मुंहनोचवा
या कोई भी ऊटपटांग सत्यतारहित अन्य अन्य के तमाम चित्र और रोचक विवरण प्रतिदिन अपडेट कर सकता हूं ।
ऐसी ही खबरें प्रकाशित करने वाली एक बेवसाइट से मैंने दो लिंक टिप्पणी में साझा किये हैं । हालांकि उसके " फ़ायर इन द स्काई " शीर्षक से पेज पर ऐसे समाचारों की भरमार है ।