गुरुपूर्णिमा, गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा से नतमस्तक होकर कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है । गुरु के लिए पूर्णिमा से बढ़कर और कोई तिथि नहीं । गुरु पूर्ण है और पूर्ण से ही पूर्णत्व की प्राप्ति होती है । गुरु शिष्यों के अंत:करण में ज्ञानरूपी चंद्र की किरणें प्रकाशित करते हैं । अतः इस दिन हमें गुरु के चरणों में अपनी समस्त श्रद्धा अर्पित कर अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए । गुरुकृपा असंभव को संभव बनाकर शिष्यों के हृदय में अगाध ज्ञान का संचार करती है ।
गुरु, जीव और परमात्मा के बीच एक कड़ी का काम करता है ।
संस्कृत शब्द गु का अर्थ है - अन्धकार औ रु का अर्थ है - प्रकाश ।
गुरु शिष्य के आत्मबल को जगाने का काम करता है, प्रेरणाएं देता है । गुरु शिष्य को अंत:शक्ति से ही परिचित नहीं कराता बल्कि उसे जागृत एवं विकसित करने के हर संभव उपाय भी बताता है ।
गुरु और परमात्मा में कोई भेद नही है और गुरु ज्ञानस्वरूप ही हैं ।
इस वर्ष 2015 की गुरुपूर्णिमा 31 जुलाई को है ।
मुक्तमंडल के तत्वावधान में परमपूज्य श्री सदगुरुदेव श्री शिवानन्द जी महाराज ‘परमहंस’ की अमृतमयी उपस्थिति में इस वर्ष का गुरु पूर्णिमा महोत्सव विश्वप्रसिद्ध..परमानन्द शोध संस्थान, चिन्ताहरण आश्रम में धूमधाम से आयोजित हो रहा है ।
वर्ष में एक बार होने वाले इस भव्य आयोजन में ‘मुक्तमंडल’ के शिष्यों और श्रद्धालुओं का भावपूर्ण निमन्त्रण है ।
कबीर साहब ने गुरु दर्शन की महत्ता को लेकर कहा है कि सन्त या गुरु का दर्शन एक दिन में दो बार करना चाहिये । फ़िर यदि न कर सको तो इसको ऐसे ही बढ़ाते बढ़ाते एक पक्ष में एक बार फ़िर महीने में एक बार और वह भी न कर सके तो वर्ष में एक बार तो अनिवार्य ही बताया है ।
पाख पाख नहिं करि सकै, मास मास करु जाय ।
या में देर न लाइये, कहैं कबीर समुझाय ।
बरस बरस नाहिं करि सकै, ताको लागे दोष ।
कहै कबीर वा जीव सो, कबहु न पावै योष ।
और सबकी तो मैं नहीं कहता पर यह मेरा अनुभव है कि इस दिन गुरुदर्शन, पूजन, सेवा, भेंट आदि का फ़ल अन्य दिनों की तुलना में बहुत अलग और कीमती होता है । दूसरे शब्दों में कह सकते हैं । उस दिन गुरु की साक्षात कृपा बरसती है ।
कोई आवै भाव ले, कोई अभाव लै आव ।
साधु दोऊ को पोषते, भाव न गिनै अभाव ।
बात जब गुरु महिमा की हो और सदगुरु श्री शिवानन्द जी महाराज हों तो कुछ कहने के लिये वाणी असमर्थ हो जाती है । यह बात श्री महाराज जी से जुङे शिष्य भलीभांति जानते ही हैं ।
सन 2010 से सिर्फ़ इंटरनेट के माध्यम से जुङे सैकङों शिष्य समाधि और ध्यान समाधि जैसी मोक्षप्रद और आत्मदर्शन की क्रियाओं को सहजता से कर रहे हैं ।
इसके अतिरिक्त अन्य माध्यम से जुङने वाले साधक भी अच्छे अभ्यासी हो चले हैं ।
दिल्ली और आसपास के ‘सहज योग’ साधकों का स्तर ऊँचा उठाने में श्री राकेश महाराज जी ‘परमहंस’ ने भी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । श्री राकेश महाराज जी समाधि का अभ्यास भी कराते हैं ।
जहाँ तक संभव है । इस कार्यकृम में श्री श्री 1008 श्री राकेश महाराज जी परमहंस भी उपस्थित होंगे ।
तीन दिवसीय इस कार्यकृम में नये शिष्यों को हंसदीक्षा, परमहंस दीक्षा, समाधि दीक्षा भी दी जायेगी । जिनका ध्यान जुङने में बाधा आ रही है । उनकी ध्यान क्रिया ठीक की जायेगी । कार्यकृम की तिथि 29-31 जुलाई 2015 है ।
सो इस पावन दिवस पर पुण्य पावनबेला में सदगुरुदेव के निर्मल कृपामय सानिंध्य में परमात्म भक्ति परमात्म कृपा का लाभ उठाने अवश्य आयें ।
साहेब ।
- कोई तीन वर्ष पूर्व स्थापित हुये चिन्ताहरण आश्रम में इसी वर्ष पिछले लगभग आठ महीने से एक बङा सतसंग हाल और चार बङे कमरों का निर्माण हुआ है । जिसमें यथाशक्ति सभी शिष्यों श्रद्धालुओं और निकटवर्ती ग्रामवासियों का तन मन धन से पूर्ण सहयोग रहा ।
निवेदक
सन्तजन - माधवानन्द, अभेदानन्द, राजानन्द, श्यामानन्द, रामानन्द, सन्तोषानन्द
आश्रम संस्थापक - श्रीमती कस्तूरी देवी घिया (पत्नी स्व रामसिंह घिया)
परिवारी जन - शीला देवी, प्रेमवीर फ़ौजी-आशा, लक्खे-मीना, पंछी-मंजू, अश्विनी कुमार यादव-संजू ।
सहयोगी जन - उपदेश यादव, सुरेन्द्र यादव, कमलेश यादव (नगला शीश) अहिवरन सिंह यादव, सतीश यादव, रवीश यादव, करनपाल यादव, रघुराई यादव शास्त्री, वीकेश यादव, प्रमोद यादव, आचार्य नरेन्द्र, गिरीश यादव बौहरे, पवन, उपवन, रामकुमार यादव, नरेश यादव, राकेश, देवेश यादव, रघुनाथ यादव, विजेन्द्र यादव, ब्रिजेश यादव, विरेश यादव एवं सभी ग्रामवासी ।
प्रचारादि सहयोग - स्वपनिल तिवारी, साहिल तिवारी, रोबिन बाधवा, डा. संजय केसरी
स्थान -
निःअक्षर दीक्षा केन्द्र (मुक्तमंडल)
परमानन्द शोध संस्थान, चिन्ताहरण आश्रम
नगला - भादों,
तहसील - जसराना,
जिला - फ़िरोजाबाद,
राज्य - उत्तर प्रदेश,
देश - भारत
18 टिप्पणियां:
जय श्री गुरुदेव, गुरूजी मेरा एक प्रशन है की चलते फिरते भजन केसे केरे क्यों की चलते फिरते भजन करने पर ध्यान तो भटकेगा, और जब तक मन एक स्थान पर नहीं है तो वो ध्यान केसे हुआ. ओशो कहते है की जो भी करो १००% मन से करो ये भी एक ध्यान है. भजन तथा काम दोनों एक साथ केसे. वेसे चलते हुए भजन की सही विधि क्या है व इसका आध्यत्मिक तथा भोतिक लाभ क्या है
गुरूजी की एक शिष्य
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