12 जनवरी 2016

सिखों में ‘वाहेगुरु’ बोलने का चलन कैसे शुरु हुआ

एक दिन गुरू नानकदेव जी नेत्र मूंदकर समाधि स्थित थे । देहाध्यास समाप्त होने पर उनके मुख से यह शब्द निकला -"वाह वाह वाह !" उस परम आनन्द में लीन रहने से उन्हें यह ध्यान ही न रहा कि हम मुख से क्या कह रहे हैं । अब संगत ने वह शब्द सुन लिये और संगत भी जोर जोर से 'वाह वाह' कहने लगी । यह आवाज़ सुनकर गुरू नानकदेव जी की समाधि भंग हो गई ।
उन्होंने संगत से पूछा कि आप लोग वाह-वाह क्यों कह रहे हो ?
सबने प्रार्थना की- महाराज अभी आपके मुख से ये शब्द निकले थे । इसलिए हमने भी जपना शुरू कर दिया ।
गुरू नानकदेव जी यह सुनकर बोले -
जलवा देखा नूर का, नानक कीनी वाह ।
हमने किया देखकर, तुमने देखा क्या ?
गुरू नानकदेव जी की भाई बाले वाली जन्म साखी ।
(श्री स्वरूप दर्शन, पृष्ट संख्या 614)
-----------------
कोई पङता सहसा किरता, कोई पङै पुराना । 
कोई नामु जपै  जपमाली, लागै तिसै धियाना ।
अब ही कब ही किछू न जाना, तेरा एको नामु पछाना ।
न जाणा हरे मेरी कवन गते ।
हम मूरख अगिआन सरनि प्रभ तेरी, 
करि किरपा राखहु मेरी लाज पते ।
कबहू जीअङा ऊभि चङतु है, कबहू जाइ पइयाले ।
लोभी जीअङा थिरु न रहतु है, चारे कुंडा भाले ।
मरणु लिखाइ मंडल महि आए, जीवणु साजहि माई । 
एकि चले हम देखहि सुआमी, भाहि बलंती आई ।
न किसी का मीतु न किसी का भाई, ना किसै बापु न माई ।
प्रणवति नानक जे तू देवहि, अंते होई सखाई ।
सर्ब जोति तेरी पसरि रही, जह जह देखा तह नरहरी ।
जीवन तलब निवारि सुआमी, 
अंध कूपि माइया मनु गाडिया किउ करि उतरउ पारि सुआमी । 

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

hii mujha apsa khuch bat karne hai apka koi whatsapp no. or fb I'd hai
please

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326