- क्या शब्द के साथ अर्थ का कोई स्वाभाविक सम्बन्ध है ?
- शब्द के साथ अर्थ का क्या सम्बन्ध है ? केवल निरुक्तकार लोग ही इस विद्या को जानते थे ।
आत्मा बुध्या समेत्यार्थान मनो युङ्क्ते विवक्षया ।
मनः कायाग्निमाहन्ति स प्रेरयति मारुतम । पा.6
आत्मा बुद्धि को माध्यम बनाकर विषयों का संकलन करके अभिव्यक्त करने की इच्छा से मन को प्रेरित करती है । मन कायाग्नि को आहत करता है । तत्पश्चात कायाग्नि प्राणवायु को प्रेरित करता है । शरीर में रहने वाली प्राणवायु फ़ेफ़ङों के माध्यम से घूमती हुयी अर्थात कायाग्नि से आहत प्राणवायु जब ह्रदय के अन्तःभाग में भ्रमण करती है तो वह मन्द ध्वनि को उत्पन्न करती है । जो प्रातःसवन (यज्ञादिक्रियोचित) होता है ।
उसके बाद वह प्राणवायु मूर्धा में टकराकर वापस मुख में आकर सभी वर्णों को उच्चारण करने का सामर्थ्य प्रदान करती है । यही विवक्षा है । इसी को परा, पश्यन्ती, मध्यमा, बैखरी वाक नाम दिया गया है ।
परा शब्दब्रह्म की शान्त अवस्था है । इसे परापश्यन्ती या पराप्रकृति भी कहा गया है । परापश्यन्ती शब्दब्रह्म की जागरणोन्मुखी स्थिति है । एवं पराप्रकृति शब्दब्रह्म की सुषुप्ति अवस्था को कहा गया है ।
स एष जीवो विवरप्रसूतिः प्राणेन घोषेण गुहां प्रविष्टः ।
मनोमयं सूक्ष्ममुपेत्यरूपं मात्रास्वरो वर्ण इति स्थिविष्ट ।
ॐकार रूपी अनाहत नाद स्वरूप सूक्ष्मा वाक नामक प्राण के साथ मूलाधार चक्र में प्रवेश करता है । वह प्राण स्वभाव अव्यक्त सप्तस्वर वाला घोष ध्वनि के साथ होता है । यही परा वाक है ।
इसके बाद वही प्राणवायु मणिपूर चक्र (नाभि) में आकर पश्यन्ती वाक का मनोमय सूक्ष्म रूप धारण करता है ।
इसके पश्चात कंठप्रदेश में स्थित विशुद्ध नामक चक्र में मध्यमा वाक के रूप में व्यक्त होता है ।
फ़िर क्रमशः मुख में आकर हस्व दीर्घ आदि मात्रा उद्दातादि स्वर अकारककारादि वर्ण रूप स्थूल बैखरी वाक का रूप बन जाता है ।
इस प्रकार आत्मा ही अव्यक्त से व्यक्त होकर परा, पश्यन्ती, मध्यमा एवं बैखरी रूप में प्रकट होता है ।
- शब्द के साथ अर्थ का क्या सम्बन्ध है ? केवल निरुक्तकार लोग ही इस विद्या को जानते थे ।
आत्मा बुध्या समेत्यार्थान मनो युङ्क्ते विवक्षया ।
मनः कायाग्निमाहन्ति स प्रेरयति मारुतम । पा.6
आत्मा बुद्धि को माध्यम बनाकर विषयों का संकलन करके अभिव्यक्त करने की इच्छा से मन को प्रेरित करती है । मन कायाग्नि को आहत करता है । तत्पश्चात कायाग्नि प्राणवायु को प्रेरित करता है । शरीर में रहने वाली प्राणवायु फ़ेफ़ङों के माध्यम से घूमती हुयी अर्थात कायाग्नि से आहत प्राणवायु जब ह्रदय के अन्तःभाग में भ्रमण करती है तो वह मन्द ध्वनि को उत्पन्न करती है । जो प्रातःसवन (यज्ञादिक्रियोचित) होता है ।
उसके बाद वह प्राणवायु मूर्धा में टकराकर वापस मुख में आकर सभी वर्णों को उच्चारण करने का सामर्थ्य प्रदान करती है । यही विवक्षा है । इसी को परा, पश्यन्ती, मध्यमा, बैखरी वाक नाम दिया गया है ।
परा शब्दब्रह्म की शान्त अवस्था है । इसे परापश्यन्ती या पराप्रकृति भी कहा गया है । परापश्यन्ती शब्दब्रह्म की जागरणोन्मुखी स्थिति है । एवं पराप्रकृति शब्दब्रह्म की सुषुप्ति अवस्था को कहा गया है ।
स एष जीवो विवरप्रसूतिः प्राणेन घोषेण गुहां प्रविष्टः ।
मनोमयं सूक्ष्ममुपेत्यरूपं मात्रास्वरो वर्ण इति स्थिविष्ट ।
ॐकार रूपी अनाहत नाद स्वरूप सूक्ष्मा वाक नामक प्राण के साथ मूलाधार चक्र में प्रवेश करता है । वह प्राण स्वभाव अव्यक्त सप्तस्वर वाला घोष ध्वनि के साथ होता है । यही परा वाक है ।
इसके बाद वही प्राणवायु मणिपूर चक्र (नाभि) में आकर पश्यन्ती वाक का मनोमय सूक्ष्म रूप धारण करता है ।
इसके पश्चात कंठप्रदेश में स्थित विशुद्ध नामक चक्र में मध्यमा वाक के रूप में व्यक्त होता है ।
फ़िर क्रमशः मुख में आकर हस्व दीर्घ आदि मात्रा उद्दातादि स्वर अकारककारादि वर्ण रूप स्थूल बैखरी वाक का रूप बन जाता है ।
इस प्रकार आत्मा ही अव्यक्त से व्यक्त होकर परा, पश्यन्ती, मध्यमा एवं बैखरी रूप में प्रकट होता है ।
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