1 - So-ham kya hai, So-hang kya hai, Ho-hang kya hai?
उत्तर - सही शब्द सोऽहंग ही है । सोऽहम प्रचलित अशुद्ध लोकवाणी (और अपभ्रंश) रूप है ।
होऽहंग जैसा कुछ नहीं है ।
पर जिन सन्तों ने भजन आदि भक्ति काव्य का निर्माण किया, उन्होंने भाव के अनुसार वोऽहम, कोऽहम, जोऽहम आदि शब्द भी स्थिति अनुसार लिखे हैं ।
2 - So-hang aap ki nazron men yani hans-diksha.
उत्तर - सोऽहंग (की हंस-दीक्षा में सोऽहंग) पलट कर ‘हं(ग)ऽसो’ होता है ।
इसमें ‘ग’ मूक हो जाता है क्योंकि ये ठहराव लेता है इसलिये गऽ..ऽ रूपी कंपन खत्म होता है ।
सोऽहंग काग (कौआ) वृति है और हंऽसो हंस वृति है ।
So-hang ka hindi bhasha men kya matlab hai?
उत्तर - सोऽहंग = वहीऽमैं (यानी अं-हंकार व्यक्त होना, मैं का बोध, जाग्रति आदि)
3 - Kya is se bhi upar koi diksha hai ya phir ye shuruaat hai?
उत्तर - कृमशः सोऽहंग (हंस-दीक्षा), समाधि दीक्षा, शब्दनाद (परमहंस-दीक्षा), अणु दीक्षा, आकर्षण (शक्ति-दीक्षा) सारशब्द (सारशब्द-दीक्षा)
------------
बाह्य और देह रूप से हंस, परमहंस और समाधि दीक्षा दी जाती है ।
अणु-दीक्षा किसी किसी पात्र शिष्य को ही गुरू देता है ।
शक्ति और सारशब्द दीक्षा अंतरगुरू देता है लेकिन शरीर गुरू भी आदेशित करता है ।
‘शक्ति’ और ‘सारशब्द’ परम दुर्लभ दीक्षायें हैं इसका पात्र बनना ‘आग का दरिया’ डूब कर पार करने जैसा है ।
4 - Jab aap kaal, maya, kabir aur sat-purush se mile to un se kya baat hui aapki?
उत्तर - सभी तरह की बात हुयी, कभी चाय नाश्ता, खानपान, नृत्यगान आदि विलास ।
इसके अलावा काम, क्रोध, लोभ, मोह के प्रपंच और डराना, धमकाना तथा भ्रमित करना आदि ।
और कभी अपने-अपने क्षेत्र और नियम के अनुसार समझौते की भी ।
ये काल, माया से थी ।
--------------
कबीर और सत-पुरुष से ज्ञान, विज्ञान, नियम और सृष्टि रहस्य आदि पर चर्चा ।
5 - Kya aap sat-purush se bhi aage gaye hain?
उत्तर - हाँ, अनेकों बार ।
6 - Kya ye sabhi aap ko manushya roop men dikhai dete hain?
उत्तर - कृमशः मनुष्य, तत्व, प्रकाश, चुम्बक, शक्ति, वायु, शब्द और बोध रूप आदि में ।
सिर्फ़ मनुष्य रूप में दिखाई देना, साधक की सबसे स्थूल और कमजोर स्थिति है ।
7 - maine suna hai kaal ka chehra bahut bhyanak hota hai aur is ke hajaron bhujayen hain, Kya ye sahi hai?
उत्तर - गलत सुना है । वह सामान्य कदकाठी, सात फ़ुट लम्बा और औसत शरीर वाला है ।
हाँ, जो पढ़ सुनकर कल्पना बना लेते हैं उन्हें कैसा भी दिख सकता है ।
8 - Jab aap kaal se milte ho. wo apko darata nahi hai kya?
उत्तर - मुझे तो नहीं डराता । वह अपने स्वभाव के अनुसार आचरण करता है ।
ऊपर जो डराने, धमकाने की बात है वह व्यक्तिगत (मुझे) नहीं बल्कि स्थितियों को लेकर है ।
जैसे किसी व्यक्ति को किसी बात को लेकर डराना ।
9 - Main aur important sawal, kya aap ashram men rahte hain ya alag ho gyen hain?
उत्तर - मैं हमेशा मुक्त रूप से रहता हूँ इसलिये न जुङा हूँ और न अलग हूँ ।
वैसे ये Main और important कैसे और क्यों हुआ, मेरी समझ से बाहर है ।
10 - Kaam, krodh, moh, lobh ke bare men aap ka kya kahna hai kyon ki ye keval hamare hi shatru nahi balki ye to kaal, maya, kabir ke bhi baap nikle.
dehkiye men unhen prove karta hoon kaise.
(a) Jab kabir aur kaal ki ladai hui to krodh un dono par havi tha. jis ki vajah se dono men ladai hui.
(b) Kaal ne maya ko hawas k shikar banaya yani kaal par kaam havi hua.
(c) Isi tarah sat-puruush ne bhi krodh men aakar kaal ko satlok se bahar nikala to ab aap ye batayen kya ye un se bhi badi saktiya nhi hain.
उत्तर - ये सिर्फ़ स्थिति अनुसार उठने वाले भाव हैं, कोई शक्ति आदि नहीं ।
भाव ही कारण बीजों का निर्माण करते हैं । भाव और स्वभाव से ही सृष्टि संचालित है ।
विरोधी भाव से ही हलचल और नये पदार्थों का सृजन होता है ।
11 - Kaal ne aur kitne jagah par logo ko phansa rakha hai?
उत्तर - काल अपने आदि स्वभाव के अनुसार ही आचरण करता है । उसने किसी को नहीं फ़ंसा रखा । लोग स्वेच्छा से लालचवश खुद फ़ंसे रहते हैं ।
12 - Kaal ne aise kitni prithviyan banai hain?
उत्तर - असंख्य! प्रथ्वी और लोकों का निर्माण विनाश निरन्तर होता ही रहता है ।
13 - Maine kahi se read kiya, shayad geeta ya phir kabir-vani se ki sahi mayno men jo real tatva-darshi sant hoga. vo teen prakar ki diksha (naam) dekar mukti dilayega.
उत्तर - अलग अलग गुरू अपनी-अपनी अलग ही परम्परा बनाते हैं ।
ये गुरू के विधान पर निर्भर है ।
वैसे इस तरह का सभी विवरण सांकेतिक और प्रारम्भिक तौर पर होता है ।
अतः उससे कोई भी निश्चित धारणा बना लेना गलत है ।
यह भी कहा है -
कोटि जन्म का पंथ था, पल में दिया मिलाय ।
14 - Aap bhavishya-vani bhi karte hain kya. kyon ki aap ne blog par post kar rakha hai. jis men kafi to galat hi nikli. bura mat manna guru ji. main keval isliye poochh raha hoon ki jo sadhna aap de rahe hain. us se bhavishyavani bhi ki ja sakti hai?
agar ki ja sakti hai to wo galat kyon ho rahi hai. kyon ki aap to trikal-darshi sadhna men safal ho hi chuken hain na.
उत्तर - मैं कभी भविष्यवाणी नहीं करता । संकेत और भविष्यवाणी में बहुत फ़र्क है ।
ब्लाग पर भविष्यवाणी से सम्बन्धित जो तथ्य हैं ।
वे कुछ ज्योतिषीय गणनाओं पर आधारित, मगर अन्य लोगों के हैं ।
इसी प्रकार कई लोगों ने अपनी विधाओं द्वारा भविष्य का पूर्व आंकलन किया है ।
उनमें जो हो चुके, ऐसे कई सच निकले ।
साधना (में छठी इन्द्रिय जाग्रत होने) से पूर्वाभास होते हैं पर सबको नहीं ।
मैं त्रिकालदर्शी नहीं हूँ और कोई साधना आदि नहीं देता ।
15 - Kya aap ko gussa nahi aata aur aata hai to use control kaise karte hain?
उत्तर - किसी चीज को नियन्त्रण नहीं किया जाता ।
अपनी ‘पदार्थिक मात्रा, क्षमता’ क्षय होते ही वह स्वयं समाप्त हो जाती है ।
मुझे गुस्सा किस बात पर और क्यों आयेगा?
ऐसी कोई चीज अनुभव में नहीं आती ।
स्थिति अनुसार भाव-अभिव्यक्ति क्रोध नहीं है ।
क्रोध विपरीत का होना है और मुझे कुछ भी विपरीत नही है ।
16 - Kya aap grahasth jeevan vyatit kar rahe hain aur kar rahe hain to kaise?
उत्तर - ग्रहस्थ का मतलब पत्नी, बच्चों से है तो नही कर रहे ।
घर में निवास करने से है तो कर रहे हैं ।
आश्रम भी साधुओं का घर होता है । उसमें आटा, चूल्हा, चक्की, सुई धागा आदि सब होता है ।
बल्कि आजकल तो ग्रहस्थों से ज्यादा होता है ।
कुछ आश्रम में (स्त्री साधु) बाई नहीं होतीं लेकिन कुछ आश्रम में ऐसी बाईयां भी होती है कि सभी ग्रहस्थ, ग्रहस्थी छोङकर संन्यासी बनने को लालायित हो उठते हैं ।
और बहुत से बन भी जाते हैं ।
17 - Kya grahasth jeevan men bhi sadhna ki ja sakti hai kyon ki vahan to patni aur bachche taang adaenge?
उत्तर - ग्रहस्थ जीवन में साधना नहीं सिर्फ़ कुछ हद तक भक्ति की जा सकती है ।
पर यदि साधक पूर्वजन्म का चला हुआ है और धन, स्वास्थय, परिवार आदि स्तरों पर अङचन रहित है ।
तो वह इसके अपवाद ग्रहस्थ धर्म में भी पूर्ण साधना कर सकता है ।
इस साधना में सद-गुरू मिलना अधिक महत्वपूर्ण है ।
18 - Yadi aap ki sat-purush se baat hoti hai to kya kabhi aap ne un se ye nahi poochha ki tum ne ye kaal, Maya, Jeev, Kabir 16 sut kyon banaye. kya karan tha in ke pichhe? agar main hota to jarur poochta.
उत्तर - वही प्रश्न पूछा जाता है जिसके बारे में ज्ञात न हो ।
जब वह बात स्वयं ही पता हो फ़िर पूछने का कोई कारण ही नहीं ।
आदिमूल में सर्वप्रथम स्फ़ुरणा से लेकर, उसके बहुत बाद तक, सृष्टि कई चरणों में कई तरह से सृजित हुयी । उसी क्रम में बहुत स्थितियों, उपाधियों, विभूतियों और बीजमूल का सृजन हुआ ।
प्रत्येक बीस हजार वर्ष में सृष्टि एक नये रंग रूप, नवीन उपाधियों और सब कुछ नये के साथ अवतरित हो जाती है ।
बस कुछ नैसर्गिक चीजें आदि-अनादि और मौलिक हैं ।
19 - Kya so-hang se upar bhi koi naam hai?
उत्तर - हाँ, अनेक हैं पर जीव मूल यही सोऽहंग है ।
20 - Sach batayen aap ko kahan tak santushti hui, is marg par.
उत्तर - पूर्णतः! वैसे एक स्थिति ‘वह’ है जहाँ सन्तुष्टि असन्तुष्टि दोनों समाप्त हो जाती है ।
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प्रश्नकर्ता - राजशेखर, हरियाणा
उत्तर - सही शब्द सोऽहंग ही है । सोऽहम प्रचलित अशुद्ध लोकवाणी (और अपभ्रंश) रूप है ।
होऽहंग जैसा कुछ नहीं है ।
पर जिन सन्तों ने भजन आदि भक्ति काव्य का निर्माण किया, उन्होंने भाव के अनुसार वोऽहम, कोऽहम, जोऽहम आदि शब्द भी स्थिति अनुसार लिखे हैं ।
2 - So-hang aap ki nazron men yani hans-diksha.
उत्तर - सोऽहंग (की हंस-दीक्षा में सोऽहंग) पलट कर ‘हं(ग)ऽसो’ होता है ।
इसमें ‘ग’ मूक हो जाता है क्योंकि ये ठहराव लेता है इसलिये गऽ..ऽ रूपी कंपन खत्म होता है ।
सोऽहंग काग (कौआ) वृति है और हंऽसो हंस वृति है ।
So-hang ka hindi bhasha men kya matlab hai?
उत्तर - सोऽहंग = वहीऽमैं (यानी अं-हंकार व्यक्त होना, मैं का बोध, जाग्रति आदि)
3 - Kya is se bhi upar koi diksha hai ya phir ye shuruaat hai?
उत्तर - कृमशः सोऽहंग (हंस-दीक्षा), समाधि दीक्षा, शब्दनाद (परमहंस-दीक्षा), अणु दीक्षा, आकर्षण (शक्ति-दीक्षा) सारशब्द (सारशब्द-दीक्षा)
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बाह्य और देह रूप से हंस, परमहंस और समाधि दीक्षा दी जाती है ।
अणु-दीक्षा किसी किसी पात्र शिष्य को ही गुरू देता है ।
शक्ति और सारशब्द दीक्षा अंतरगुरू देता है लेकिन शरीर गुरू भी आदेशित करता है ।
‘शक्ति’ और ‘सारशब्द’ परम दुर्लभ दीक्षायें हैं इसका पात्र बनना ‘आग का दरिया’ डूब कर पार करने जैसा है ।
4 - Jab aap kaal, maya, kabir aur sat-purush se mile to un se kya baat hui aapki?
उत्तर - सभी तरह की बात हुयी, कभी चाय नाश्ता, खानपान, नृत्यगान आदि विलास ।
इसके अलावा काम, क्रोध, लोभ, मोह के प्रपंच और डराना, धमकाना तथा भ्रमित करना आदि ।
और कभी अपने-अपने क्षेत्र और नियम के अनुसार समझौते की भी ।
ये काल, माया से थी ।
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कबीर और सत-पुरुष से ज्ञान, विज्ञान, नियम और सृष्टि रहस्य आदि पर चर्चा ।
5 - Kya aap sat-purush se bhi aage gaye hain?
उत्तर - हाँ, अनेकों बार ।
6 - Kya ye sabhi aap ko manushya roop men dikhai dete hain?
उत्तर - कृमशः मनुष्य, तत्व, प्रकाश, चुम्बक, शक्ति, वायु, शब्द और बोध रूप आदि में ।
सिर्फ़ मनुष्य रूप में दिखाई देना, साधक की सबसे स्थूल और कमजोर स्थिति है ।
7 - maine suna hai kaal ka chehra bahut bhyanak hota hai aur is ke hajaron bhujayen hain, Kya ye sahi hai?
उत्तर - गलत सुना है । वह सामान्य कदकाठी, सात फ़ुट लम्बा और औसत शरीर वाला है ।
हाँ, जो पढ़ सुनकर कल्पना बना लेते हैं उन्हें कैसा भी दिख सकता है ।
8 - Jab aap kaal se milte ho. wo apko darata nahi hai kya?
उत्तर - मुझे तो नहीं डराता । वह अपने स्वभाव के अनुसार आचरण करता है ।
ऊपर जो डराने, धमकाने की बात है वह व्यक्तिगत (मुझे) नहीं बल्कि स्थितियों को लेकर है ।
जैसे किसी व्यक्ति को किसी बात को लेकर डराना ।
9 - Main aur important sawal, kya aap ashram men rahte hain ya alag ho gyen hain?
उत्तर - मैं हमेशा मुक्त रूप से रहता हूँ इसलिये न जुङा हूँ और न अलग हूँ ।
वैसे ये Main और important कैसे और क्यों हुआ, मेरी समझ से बाहर है ।
10 - Kaam, krodh, moh, lobh ke bare men aap ka kya kahna hai kyon ki ye keval hamare hi shatru nahi balki ye to kaal, maya, kabir ke bhi baap nikle.
dehkiye men unhen prove karta hoon kaise.
(a) Jab kabir aur kaal ki ladai hui to krodh un dono par havi tha. jis ki vajah se dono men ladai hui.
(b) Kaal ne maya ko hawas k shikar banaya yani kaal par kaam havi hua.
(c) Isi tarah sat-puruush ne bhi krodh men aakar kaal ko satlok se bahar nikala to ab aap ye batayen kya ye un se bhi badi saktiya nhi hain.
उत्तर - ये सिर्फ़ स्थिति अनुसार उठने वाले भाव हैं, कोई शक्ति आदि नहीं ।
भाव ही कारण बीजों का निर्माण करते हैं । भाव और स्वभाव से ही सृष्टि संचालित है ।
विरोधी भाव से ही हलचल और नये पदार्थों का सृजन होता है ।
11 - Kaal ne aur kitne jagah par logo ko phansa rakha hai?
उत्तर - काल अपने आदि स्वभाव के अनुसार ही आचरण करता है । उसने किसी को नहीं फ़ंसा रखा । लोग स्वेच्छा से लालचवश खुद फ़ंसे रहते हैं ।
12 - Kaal ne aise kitni prithviyan banai hain?
उत्तर - असंख्य! प्रथ्वी और लोकों का निर्माण विनाश निरन्तर होता ही रहता है ।
13 - Maine kahi se read kiya, shayad geeta ya phir kabir-vani se ki sahi mayno men jo real tatva-darshi sant hoga. vo teen prakar ki diksha (naam) dekar mukti dilayega.
उत्तर - अलग अलग गुरू अपनी-अपनी अलग ही परम्परा बनाते हैं ।
ये गुरू के विधान पर निर्भर है ।
वैसे इस तरह का सभी विवरण सांकेतिक और प्रारम्भिक तौर पर होता है ।
अतः उससे कोई भी निश्चित धारणा बना लेना गलत है ।
यह भी कहा है -
कोटि जन्म का पंथ था, पल में दिया मिलाय ।
14 - Aap bhavishya-vani bhi karte hain kya. kyon ki aap ne blog par post kar rakha hai. jis men kafi to galat hi nikli. bura mat manna guru ji. main keval isliye poochh raha hoon ki jo sadhna aap de rahe hain. us se bhavishyavani bhi ki ja sakti hai?
agar ki ja sakti hai to wo galat kyon ho rahi hai. kyon ki aap to trikal-darshi sadhna men safal ho hi chuken hain na.
उत्तर - मैं कभी भविष्यवाणी नहीं करता । संकेत और भविष्यवाणी में बहुत फ़र्क है ।
ब्लाग पर भविष्यवाणी से सम्बन्धित जो तथ्य हैं ।
वे कुछ ज्योतिषीय गणनाओं पर आधारित, मगर अन्य लोगों के हैं ।
इसी प्रकार कई लोगों ने अपनी विधाओं द्वारा भविष्य का पूर्व आंकलन किया है ।
उनमें जो हो चुके, ऐसे कई सच निकले ।
साधना (में छठी इन्द्रिय जाग्रत होने) से पूर्वाभास होते हैं पर सबको नहीं ।
मैं त्रिकालदर्शी नहीं हूँ और कोई साधना आदि नहीं देता ।
15 - Kya aap ko gussa nahi aata aur aata hai to use control kaise karte hain?
उत्तर - किसी चीज को नियन्त्रण नहीं किया जाता ।
अपनी ‘पदार्थिक मात्रा, क्षमता’ क्षय होते ही वह स्वयं समाप्त हो जाती है ।
मुझे गुस्सा किस बात पर और क्यों आयेगा?
ऐसी कोई चीज अनुभव में नहीं आती ।
स्थिति अनुसार भाव-अभिव्यक्ति क्रोध नहीं है ।
क्रोध विपरीत का होना है और मुझे कुछ भी विपरीत नही है ।
16 - Kya aap grahasth jeevan vyatit kar rahe hain aur kar rahe hain to kaise?
उत्तर - ग्रहस्थ का मतलब पत्नी, बच्चों से है तो नही कर रहे ।
घर में निवास करने से है तो कर रहे हैं ।
आश्रम भी साधुओं का घर होता है । उसमें आटा, चूल्हा, चक्की, सुई धागा आदि सब होता है ।
बल्कि आजकल तो ग्रहस्थों से ज्यादा होता है ।
कुछ आश्रम में (स्त्री साधु) बाई नहीं होतीं लेकिन कुछ आश्रम में ऐसी बाईयां भी होती है कि सभी ग्रहस्थ, ग्रहस्थी छोङकर संन्यासी बनने को लालायित हो उठते हैं ।
और बहुत से बन भी जाते हैं ।
17 - Kya grahasth jeevan men bhi sadhna ki ja sakti hai kyon ki vahan to patni aur bachche taang adaenge?
उत्तर - ग्रहस्थ जीवन में साधना नहीं सिर्फ़ कुछ हद तक भक्ति की जा सकती है ।
पर यदि साधक पूर्वजन्म का चला हुआ है और धन, स्वास्थय, परिवार आदि स्तरों पर अङचन रहित है ।
तो वह इसके अपवाद ग्रहस्थ धर्म में भी पूर्ण साधना कर सकता है ।
इस साधना में सद-गुरू मिलना अधिक महत्वपूर्ण है ।
18 - Yadi aap ki sat-purush se baat hoti hai to kya kabhi aap ne un se ye nahi poochha ki tum ne ye kaal, Maya, Jeev, Kabir 16 sut kyon banaye. kya karan tha in ke pichhe? agar main hota to jarur poochta.
उत्तर - वही प्रश्न पूछा जाता है जिसके बारे में ज्ञात न हो ।
जब वह बात स्वयं ही पता हो फ़िर पूछने का कोई कारण ही नहीं ।
आदिमूल में सर्वप्रथम स्फ़ुरणा से लेकर, उसके बहुत बाद तक, सृष्टि कई चरणों में कई तरह से सृजित हुयी । उसी क्रम में बहुत स्थितियों, उपाधियों, विभूतियों और बीजमूल का सृजन हुआ ।
प्रत्येक बीस हजार वर्ष में सृष्टि एक नये रंग रूप, नवीन उपाधियों और सब कुछ नये के साथ अवतरित हो जाती है ।
बस कुछ नैसर्गिक चीजें आदि-अनादि और मौलिक हैं ।
19 - Kya so-hang se upar bhi koi naam hai?
उत्तर - हाँ, अनेक हैं पर जीव मूल यही सोऽहंग है ।
20 - Sach batayen aap ko kahan tak santushti hui, is marg par.
उत्तर - पूर्णतः! वैसे एक स्थिति ‘वह’ है जहाँ सन्तुष्टि असन्तुष्टि दोनों समाप्त हो जाती है ।
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प्रश्नकर्ता - राजशेखर, हरियाणा
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