29 सितंबर 2017

धर्मदास तोहे लाख दुहाई

धर्म सम्बन्धी अनेकानेक वर्णन, सिर्फ़ उसकी अनेकों स्थितियों के बारे में हैं ।
इसलिये किसी को भी ‘अन्तिम’ और ‘निश्चित’ तौर पर मान्यता नहीं दी जा सकती ।
जगत का सत्य, शाश्वत सत्य से बहुत अलग है
और ‘वास्तविक सत्य’ शब्दों से नहीं कहा जा सकता ।
--------------------
नमस्ते ! मैं रूपेश दिल्ली से हूँ ।
क्या आप मेरे प्रश्नों के answer दे सकते हैं ?
 -----------------
1 - सदगुरू कौन होता है ?

उत्तर - सत्य दो प्रकार से कहा जाता है ।
एक - जागतिक सत्य, दूसरा - शाश्वत सत्य
इसी शाश्वत सत्य (परमात्मा) से जो शिष्य का एकीकरण करा दे । उसको सदगुरू कहते हैं ।
------------------------
2 - ब्रह्मांड के ऊपर कितने खण्ड हैं ?

उत्तर - प्रश्न का आशय स्पष्ट नहीं है, पर लाखों, और असंख्य, और एक भी नहीं
--------------------
3 - आत्मा को सत-पुरुष के दर्शन कहाँ होते हैं ?

उत्तर - शून्य-शिखर और ‘मूल-सुरत’ में पहुँच कर ।
--------------------
4 - क्या हम सतपुरुष के पास पहुंच कर ‘महाप्रलय’ से बच सकते हैं ?

उत्तर - महाप्रलय में तो खुद सतपुरुष भी नहीं बचता । महाप्रलय के अलावा भी कुछ स्थितियाँ हैं जिनमें ‘सतपुरुष’ पानी के बुलबुले के समान गायब (अस्तित्वहीन) हो जाता है ।
वास्तव में महाप्रलय के भी अनेक प्रकार, अनेक स्तर हैं ।
----------------------
5 - मैंने सुना है, सबसे ऊँचे खंड के द्वारपाल हंस होते हैं क्या ये सच है ?

उत्तर - कालखण्ड से ऊपर की सभी स्थितियाँ हंस ही हैं पर उनकी स्थिति और उपाधियां भिन्न हैं ।
----------------------
6 - सबसे ऊँचे खंड में कौन सी धुन आ रही है ?

उत्तर - सार धुन, गूंज, जो मूल धुन है ।
--------------------

राजीव जी, सबसे पहले आपको नमस्कार
Sir मेरे मन में कई तरह के सवाल हैं ।
और उन्हें पूछने के लिये मैं काफ़ी दिन से (try) कोशिश कर रहा हूँ ।
(Rajesh Shekhar)
--------------------
1 -  आपने अपने ब्लाग पर जो ‘अनुराग सागर’ upload किया है वह आपकी खुद की व्याख्या है या कहीं से link उठाकर upload की है ।

उत्तर - अनुराग सागर जैसे कुछ भक्ति काव्यों का पद्य इतना सरल और (अक्सर) सामान्य अर्थ वाला है कि उनके लिये व्याख्या जैसा शब्द नहीं कहा जा सकता ।
पद्य को गद्य में रूपान्तरित करना व्याख्या नहीं होता ।
उदाहरण -
प्रातःकाल उठकर रघुनाथा, गुरु पितु मात नवावहि माथा ।
- रामचन्द्र प्रातःकाल उठकर गुरू और माता, पिता को प्रणाम करते थे ।
ये पद्य का गद्य रूपान्तरण है व्याख्या नहीं ।
हाँ, उसके शब्द और भाव संयोजन मेरा ही है ।
------------------
2 - आपके acording काल साकार है या निराकार ?

उत्तर - दोनों ।
वास्तव में सृष्टि की प्रत्येक चीज ही निराकार, साकार दोनों है । अणु से विराट तक ।
जब मनुष्य बेहद गहरी नींद में होता है तब वह निराकार तो क्या, कुछ भी नहीं होता लेकिन फ़िर चेतना में लौटते ही, पहले अणु, फ़िर कारण, फ़िर सूक्ष्म और फ़िर प्रकट हो जाता है ।
जाग्रत बोध, निद्रा बोध ये दो मुख्य स्थितियां हैं ।
-----------------
3 - द्रौपदी किसका अवतार थी ?

उत्तर - एक समय की इन्द्राणी शची का, और पाँचो पांडव इसी शची के पति इन्द्र के तेज के पाँच अंश थे । जो गौतम नारी अहिल्या के साथ छल करने के कारण गौतम के शापवश पाँच अंशों में विभक्त हो गया था ।
---------------
4 - आप सुमिरन मार्ग देते हो या वही मार्ग, यानी ढाई अक्षर का नाम जो कबीर ने धर्मदास जी को दिया ?

उत्तर - मैं तो कोई भी मार्ग या नाम आदि नहीं देता न ही शिष्य बनाता हूँ ।
-----------------------
5 - अगर वो ही है तो आपके पास कहाँ से आया ?

उत्तर - आसमान से ।
वैसे कबीर ने यह भी कहा है -
शब्द कहो तो शब्दहू नाहीं । शब्द पङा माया की छाहीं ।       
-------------------
6 - क्योंकि कबीर ने तो धर्मदास के अलावा यह मार्ग किसी को दिया ही नहीं ।

उत्तर - यह कबीर और धर्मदास का आपस का (व्यक्तिगत) मामला है ।
----------------------
7 - उनके एक दोहे - धर्मदास तोहे लाख दुहाई, के अनुसार आपके पास कब और कहाँ से आया ?

उत्तर - किसी स्त्री ने एक स्त्री को पक्की कसम दिलाकर ‘एक बात’ कही कि कभी किसी को मत बताना ।
उसने दूसरी से यही बात फ़िर ‘पक्की कसम’ दिलाकर कि किसी को मत बताना, बता दी ।
दूसरी ने तीसरी को, और फ़िर चौथी..सातवीं..हजारवीं ।
लेकिन अपनी समझ में उनमें से किसी ने बात को लीक नहीं किया था ।
संभव है, यह लोई की वजह से हुआ हो ?
------------------------
मुझे यह बताने की कृपा करें ताकि मेरे मन को सन्तुष्टि हो ।

कोई टिप्पणी नहीं:

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326