27 नवंबर 2018

ध्यान का लक्ष्य, सत्य क्या?




सन्तमत में ‘नकटा गुरू’ शीर्षक से एक द्रष्टांत है। यद्यपि मजे की बात है कि अब इसे सुनाया नहीं जाता, या फ़िर पूर्ण ढीठता से सुनाते हैं? द्रष्टांत यह है कि एक अपराधी की सजा के तौर पर नाक काट दी गयी। कालांतर में यह नये अवतार ‘सदगुरू’ रूप में प्रकट हुआ।
और जैसा कि अक्सर होता है कि भागे हुये अपराधी या दण्डित अभियुक्त, धर्म और धार्मिक चोले की आङ लेते हैं। इस गुरू ने भी वैसा ही किया, और ऊँची-ऊँची बातों द्वारा जनसामान्य पर मोहिनी डालने लगा।

तब किसी बुद्धिजीवी व्यक्ति ने पूछा कि - गुरूजी, आपकी नाक कैसे कट गयी?
उसने कहा - बिना नाक कटे ईश्वर/परमात्म दर्शन संभव नहीं। इसलिये ईश्वर दर्शन करना है तो नाक कटाना अनिवार्य है। इसके बाद भी यह सस्ता सौदा ही है।

लोगों को लगा कि वाकई सिर्फ़ नाक कट जाने से ईश्वर दर्शन होते हैं, तो सौदा सस्ता ही है। फ़िर जैसा कि प्रायः होता ही है, आरम्भ में कुछ लोग नाक कटाने के लिये तैयार हो गये।
गुरू ने नाक काटी, और कान में दीक्षामंत्र के बजाय कहा - देखो, अब नाक तो कट गयी। इसलिये सभी से कहो कि तुम्हें ईश्वर दर्शन हुआ। ऐसी अनुभूति हुयी। ऐसा ध्यान, ऐसी समाधि हुयी, अन्यथा लोग तुम्हारा उपहास करेंगे।

बात सच थी, और मजबूरी भी थी। अतः वह लोग कहने लगे - वाकई अदभुत बात है। नाक कटते ही हमें ईश्वर दर्शन हुये।  

फ़िर तो गुरूजी के पास नाक कटाने के लिये अनेक लोग आने लगे।
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कोई भी भक्ति/ज्ञान/योग/गुरूधारणा इन सभी का उद्देश्य जीते जी मोक्ष या सत्यदर्शन कराना है, और प्रत्येक क्रिया का तुरन्त परिणाम पाना है, न कि दस वर्ष, बीस वर्ष, या मृत्यु उपरान्त। 

मज्जन फ़ल पावहु तत्काला, काक होय पिक बकउ मराला।

लेकिन आश्चर्य की बात है कि यही हो रहा है। दस-बीस वर्ष तक गुरूधारण के बाद भी कोई ज्ञान नहीं हुआ, ध्यान नहीं हुआ, प्राप्ति नहीं हुयी। फ़िर भी कहते हैं कि - हाँ, अच्छा ध्यान हो रहा है, ऐसे अनुभव हो रहे हैं, समाधि हो रही है आदि आदि। हमारे गुरूदेव की बङी कृपा है।

उल्लेखनीय है कि यह बात आत्मज्ञान मंडलों की है। दूसरे मतों की तो जाने ही दें।
असल में वर्तमान गुरू-शिष्य परंपरा में एक बङा दोष तो यही है कि शिष्य को पता ही नही कि सही अर्थों में उसका लक्ष्य क्या है, और वह किस प्राप्ति के लिये प्रयासरत है? और गुरू इस बारे में बताता नहीं, या फ़िर स्वयं नहीं जानता। दूसरे, यदि बताये तो वह खुद परेशानी में आ जायेगा।

विचार करिये - तब ध्यान का लक्ष्य या सत्य क्या है? 

आपे मैं जब आपा निरष्या, अपनपै आपासूझ्या।
आपैकहत सुनतपुनि अपनाँ, अपनपै आपाबूझ्या॥

अपनैपरचै लागी तारी, अपनपै आपसमाँनाँ।
कहैकबीर जे आपबिचारै, मिटिगया आवनजाँना॥  

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सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था
साध्वी अरूणादेवी आश्रम
बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (. प्र)

phone -
78953 91377
82185 31326

08 नवंबर 2018

सहज समाधि आश्रम




                                          =श्री सदगुरूदेव नमः=

परमपिता परमात्मा एवं सदगुरूदेव श्री शिवानन्द जी महाराज ‘परमहंस’ की असीम कृपा से छटीकरा, वृन्दावन स्थिति ‘माँ धाम’ वृद्धाश्रम के समीप ‘बसेरा कालोनी’ में सतसंग, ध्यान और निःअक्षर दीक्षा आदि कार्यक्रमों को अनवरत चलाये रखने हेतु सहज समाधि आश्रम’ का निर्माण कार्य इसी दीपावली पर विधिविधान पूर्वक सम्पन्न हो गया।


                             तीनलोक है देह में, रोमरोम में धाम।
                         सतगुरू बिन नहि पाइये, सत्तसार निजनाम॥

1 दिसंबर 2018 से आश्रम की सतसंग, ध्यान, सत्तनाम दीक्षा आदि गतिविधियां भलीभांति आरम्भ हो जायेंगी। आश्रम का प्रमुख उद्देश्य समर्थ सदगुरू के सानिंध्य में सुरति-शब्द योग सहजयोग, क्रियायोग, राजयोग जैसी आत्मविद्याओं के योगसाधक को ‘ध्यान में गहन प्रविष्टि’ का विशेष प्रयोगात्मक अनुभव कराना, मुख्य आत्मचेतना से निरन्तर जोङना तथा सैद्धांतिक, स्वास्थय आदि पहलुओं पर उनका समाधान करना है।

                        अक्षरआदि जगत में, जाका सब विस्तार।
                         सदगुरू दाया पाईये, सत्तनाम निजसार॥





गौसेवा एवं अन्य धर्मार्थ, परमार्थिक कार्यों हेतु इच्छुक दानदाता चित्र में दिये गये खाता विवरण में धन सहयोग कर सकते हैं। कोई भी दानराशि भेजने के पूर्व संदेश/टिप्पणी/फ़ोन आदि द्वारा पूर्व सूचित अवश्य करें। एवं वह दानराशि किस धर्म-प्रयोजन हेतु तथा निष्काम/सकाम, गुप्त/प्रकट आदि किस भाव में दान की गयी है। इससे अवश्य अवगत करायें।

                                सचु पाया सुख ऊपजा, दिल दरिया भरपूर।
                               सकल पाप सहजे गया, सदगुरू मिले हजूर॥

यह संस्था पूर्णतः धर्म-विज्ञान और आध्यात्मिक नियम परम्पराओं पर कार्य करने हेतु संकल्पबद्ध है। अतः पहले भलीभांति ही संस्था के उद्देश्य/नियम/कार्य आदि की जानकारी प्राप्त कर संस्था से जुङें।

संरक्षण
सदगुरू श्री शिवानन्द जी महाराज ‘परमहंस’
परमानन्द शोध संस्थान
“माँ धाम” वृद्धाश्रम के पास/साइड में
बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र.)

(सहज समाधि, राजयोग दीक्षा की प्रतिष्ठित संस्था)

मेरे बारे में

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326