ब्रह्म-शूल
ब्रह्म संकल्पित (त्रय-) शूल, ब्रह्म-ज्ञान द्वारा ही निवारण किये जा सकते हैं। ब्रह्म-ज्ञान सिर्फ़ दो हैं - क्रिया योग एवं आयुर्वेद। आत्मबोध (सहज योग) इससे अलग और सर्वोच्च है, पर वह सभी को सुलभ नहीं होता। अतः क्रिया योग या आयुर्वेद अथवा दोनों के योग से कोई भी आपदा नाश की जा सकती है।
क्रिया योग के बिना, अकेला आयुर्वेद समर्थ नहीं होता लेकिन क्रिया योग को आयुर्वेद की तनिक भी आवश्यकता नहीं होती। जबकि आत्मबोध को क्रिया योग एवं आयुर्वेद की भी कोई आवश्यकता नहीं होती। एक समर्थ ज्ञानी यथास्थिति, जनमानस पर इनका उपयोग करता है।
“आधी शताब्दी तक बुरा हाल रहेगा।”
ये वो शब्द हैं जो कल अचानक फ़ैली वैश्विक महामारी, आपदा के ऊपर बार-बार विचार केन्द्रित होते रहने से संकेत रूप में आये। आधी शताब्दी यानी 2050 तक। यानी अभी 30 वर्ष और। लेकिन इसमें नया कुछ नहीं है। सूरदास आदि कई सन्तों के भविष्य कथन कि लगभग इसी काल-अवधि में अंश-प्रलय, काल का हाहाकार एवं प्रकृति द्वारा असन्तुलन को दूर कर नवनिर्माण द्वारा, अस्थायी एक हजार वर्ष के ‘सतयुग’ की
स्थापना होगी। आगामी 30 वर्षों के लिये कुछ विवरणात्मक तथ्य और भी आये, पर उनका खुलासा उचित नहीं। इस अवधि में “हरि-ध्यान” ही एकमात्र और सर्वोच्च उपाय है। शेष सामयिक और झूठी तसल्लीबख्श ही है। मैंने 2011-12 में ही लिखा था कि वर्तमान में साधारण पूजा-पाठ, तीर्थ-वृत, देवी-देव काम नहीं आयेंगे। क्योंकि एक तरह से ये अभी सत्ता च्युत ही हैं, और सर्वोच्च सत्ता अधिपति ही सत्ता विराजमान है।
मन का द्वय विभाजन बुद्धि रूप है। फ़िर बुद्धि प्रारब्ध के अनुसार गुण, कर्म के संयोग से तीन प्रकार सुबुद्धि, कुबुद्धि, दुर्बुद्धि के रूप में परिणित होकर कार्य करती है। यह ब्रह्म से सृष्टि उन्मुख चेतना प्रवाह है। मन से फ़ुरित बुद्धि को वापिस ब्रह्म में लगाये रखने या जोङे रखने से यह प्रज्ञा बुद्धि हो जाती है, और तब कर्म-समूह अप्रभावी होकर योगनिष्ठ हो जाता है, और उस जीव का सत्यभक्ति और मोक्ष का मार्ग सुलभ हो जाता है।
इसके लिये सत्व-गुण, आत्म-बोध एवं सक्षम गुरू (या ब्रह्मनिष्ठ योगी) परम आवश्यक है।
टूटी डोरी रस कस बहै, उनमनि लागा अस्थिर रहै।
उनमनि लागा होई अनंद, टूटी डोरीं बिनसै कंद॥
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