19 अगस्त 2018

ॐ खं ब्रह्म







यजुर्वेद चत्वारिंशोऽध्याय

ईशा वास्यामिदं सर्वं यत्किं च जगत्यां जगत।
तेन यत्केन भुञ्जीथा मा गृध: कस्य स्विध्दनम॥1॥

भावार्थ - सृष्टि में जो कुछ भी है, सब ईश द्वारा आवृत-आच्छादित है। केवल उसके द्वारा दिये गये का ही उपयोग करो। लालच मत करो। धन किसका है?

कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समा:।
एवं त्वयि नान्यथेतोस्ति न कर्म लिप्यते नरे॥2॥

भावार्थ - यहाँ कर्म करते हुए सौ वर्षों तक जीने की कामना करें। कर्म मनुष्य को लिप्त नही करते। यह तुम्हारे लिए है। इसके अतिरिक्त परम कल्याण का कोई अन्य मार्ग नही है।

आसुर्या नाम ते लोकाऽ अन्धेन तमसावृता:।
ताँस्ते प्रेत्यापि गच्छन्ति ये के चात्महनो जना:॥3॥

भावार्थ - वे लोग आसुर्य नाम से जाने जाते हैं। वे गहन अन्धकार से घिरे रहते हैं। वे आत्मा का हनन करने वाले प्रेतरूप में भी वैसे ही अन्धकारयुक्त लोकों में जाते हैं।

अनेजदेकं मनसो जवीयो नैनद्देवाऽ आप्नुवन् पूर्वमर्शत।
तद्धावतोन्यानत्येति तिष्ठत्तस्मिन्नपो मातरिश्वा दधाति॥4॥

भावार्थ - चंचलतारहित वह ईश मन से भी अधिक वेगवान है। वह स्फूर्तिवान पहले से ही है। उसे देवगण (मन, इन्द्रिय) प्राप्त नही कर पाते। वह स्थिर रहते हुए भी दौड़कर अन्य से आगे निकल जाता है। उसके अन्तर्गत ही गतिशील वायु-जल को धारण किये रहता है।

तदेजति तन्नैजति तहुरे तद्वन्तिके।
तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यत:॥5॥

भावार्थ - वह गतिशील भी है, और स्थिर है, वह दूर से दूर भी है, और निकट से निकट भी है। वह सबके अन्दर भी है तथा सबके बाहर भी है।

यस्तु सर्वणि भूतान्यात्मन्नेवानुपश्यति।
सर्वभूतेषु चात्मानं ततो न वि चिकित्सति॥6॥

भावार्थ - सभी भूतों को आत्मतत्व में ही स्थित अनुभव करता है तथा सभी भूतों के अन्दर इस आत्मतत्व को समाहित अनुभव करता है, तब वह किसी प्रकार भ्रमित नहीं होता।

यस्मिन्त्सर्वाणि भूतान्यात्मैवाभूद्विजानत:।
तत्र को मोह: क: शोक ऽएकत्वमनुपश्यत:॥7॥

भावार्थ - जिस स्थिति में यह जान लेता है कि यह आत्मतत्व ही समस्त भूतों के रूप में प्रकट हुआ है, उस एकत्व की अनुभूति की स्थिति में मोह अथवा शोक कहाँ टिक सकते है?

स पर्यगाच्छुक्रमकायभव्रणमस्नाविरं शुद्धमपापविद्धम्।
कविर्मनीषी परिभू: स्वयम्भूर्याताथथ्यतोर्थान व्यदधाच्छाश्वतीभ्य: समाभ्य:॥8॥

भावार्थ - वह सर्वव्यापी है, तेजस्वी है। देहरहित, स्नायुरहित एवं छिद्ररहित है। वह शुद्ध और निष्पाप है। वह कवि, मनीषी, सर्वजयी और स्वयं ही उत्पन्न होने वाला है। उसने अनादिकाल से ही सबके लिए यथायोग्य अर्थों की व्यवस्था बनाई है।

अन्धं तमः प्र विशन्ति येसंभूतिमुपासते।
ततो भूयऽइव ते तमो यऽ उसंभूत्याम्रताः॥9॥

भावार्थ - जो केवल असंभूति (विनाश) की उपासना करते हैं वे घोर अंधकार में घिर जाते हैं, और जो केवल संभूति की ही उपासना करते हैं, वे भी उसी प्रकार के अंधकार में फंस जाते हैं।

अन्यदेवाहुः सम्भवादन्यदाहुरसम्भवात्।
इति शुश्रुम धीराणां ये नास्तद्विचचक्षिरे॥10॥

भावार्थ - जिन देवपुरुषों ने हमारे लिये विशेषरूप से कहा है, हमने उन धीर पुरुषों से सुना है कि संभूतियोग का प्रभाव भिन्न है, और असंभूतियोग का प्रभाव उससे भिन्न है।

संभूतिं च विनाशं च यस्तद्वेदोभयं सह।
विनाशेन मृत्युं तीर्त्वा सम्भूत्यामृतमश्नुते॥11॥

भावार्थ - संभूति (सृजन) तथा विनाश इन दोनों कलाओं को एक साथ जानो। विनाश की कला से मृत्यु को पार करके, तथा संभूति की कला से अमृतत्व की प्राप्ति की जाती है।

अन्धं तमः प्रविशन्ति येअविद्यामुपसते।
ततो भूय इव ते तमो य उ विद्यायाम्रताः॥12॥

भावार्थ - जो अविद्या की उपासना करते हैं, वे गहन अंधकार से घिर जाते हैं, और जो विद्या की उपासना करते हैं, वे भी उसी प्रकार के अज्ञान में फंस जाते हैं।

अन्यदेवाहुर्विद्यायाऽ अन्यदाहुरविद्यायाः।
इति शुश्रुम धीराणां ये नस्तद्विचचक्षिरे॥13॥

भावार्थ - जिन देवपुरुषों ने हमारे लिये विशेष रूप से कहा है, उन धीर पुरुषों से हमने सुना है कि विद्या का प्रभाव कुछ और है, और अविद्या का प्रभाव उससे भिन्न है।

विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभयं सह।
अविद्या मृत्युं तीर्त्वा विद्ययामृतमश्नुते॥14॥

भावार्थ - विद्या तथा अविद्या दोनों का ज्ञान एक साथ प्राप्त करो। अविद्या के प्रभाव से मृत्यु को पार करके विद्या द्वारा अमृत तत्व की प्राप्ति की जाती है।

वायुरनिलममृतमथेदं भस्मान्तं शरीरम।
ओ३म क्रतो स्मर क्लिबे स्मर कृतं स्मर॥15॥

भावार्थ - यह जीवन वायु, अग्नि आदि तथा अमृत के संयोग से बना है। शरीर तो अंततः भस्म हो जाने वाला है। हे संकल्पकर्ता, तुम परमात्मा का स्मरण करो, अपनी सामर्थ्य का स्मरण करो, और जो कर्म कर चुके हो, उनका स्मरण करो।

अग्ने नय सुपथा राये अस्मान्विश्वानि देव वयुनानि विद्वान।
युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नमऽ उक्तिं विधेम॥16॥

भावार्थ - हे अग्ने, हमें श्रेष्ठ मार्ग से ऐश्वर्य की ओर ले चलें। हे विश्व के अधिष्ठातादेव, आप कर्म मार्गों के श्रेष्ठ ज्ञाता हैं। हमें कुटिल पापकर्मों से बचायें। हम बहुशः (भूयिष्ठ) नमन करते हुए आप से विनय करते हैं।

हिरण्येन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम।
योसावादित्ये पुरूषः सोसावहम। ॐ खं ब्रह्म॥17॥

भावार्थ - सोने के पात्र से सत्य का मुख ढंका हुआ है। वह जो आदित्यरूप पुरूष है, वही मैं हूँ। ॐ आकाशरूप में ब्रह्म ही संव्याप्त है।

15 अगस्त 2018

पवित्र किताबों का बोझ


=पवित्र किताबों का मनुष्य की आत्मा पर भारी बोझ है=

मुसलमानों की पवित्र किताब कुरआन इतनी बचकानी है, इतनी आदिम है।
उसका कारण है मोहम्मद अनपढ़ थे। वह खुद लिख नहीं सकते थे।
उन्होंने कहा होगा, और किसी और ने लिखा होगा।
उन्हें खुद धक्का लगा था जब उन्होंने आवाज सुनी थी।

वे पहाड़ पर अपनी भेड़ों बकरियों को चरा रहे थे। उन्हें सुनाई पड़ा - लिखो। 
उन्होंने सब तरफ देखा कोई नजर नहीं आया। दुबारा उन्होंने सुना - लिखो।

उन्होंने कहा - मैं निरक्षर हूँ, मैं लिख नहीं सकता। और तुम कौन हो?
वहाँ कोई नहीं था। वे बहुत कंप रहे थे, बहुत भयभीत हो गये थे।

और यह एक अस्थिर-मन का लक्षण है। 
जो अपने अचेतन से आ रही आवाज को बाहर से आ रही आवाज समझने की गलती कर रहा था।
यह उनका खुद का अचेतन था। 
परंतु चेतन के लिए अचेतन बहुत दूर है।
वह भीतर ही है। परंतु यदि मन असंतुलित हो।

और मोहम्मद का चित्त असंतुलित था।
इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि उनका पूरा जीवन एक धर्मांध का जीवन रहा है। लोगों को मारना, और मारकर धर्मांतरित करना।
“या तुम अनुयायी बनो, नहीं तो मरने के लिए तैयार रहो।”

इस्लाम ने दुनियां के एक तिहाई लोगों को धर्मांतरित किया है, तर्क से नहीं बल्कि तलवार से। वे तर्क करने के लिए सक्षम नहीं थे, और ना ही उनकी क्षमता थी पढ़ने, लिखने या विचार करने की।

तो जब उन्होंने इस अचेतन आवाज को सुना तो वे कंपते हुए, ज्वरग्रस्त और भयभीत होकर घर की तरफ दौड़े। वे बिस्तर में घुस गये, और अपनी पत्नी से कहा - मैं किसी से नहीं कह सकता कि खुद ईश्वर ने मेरे साथ बातचीत की है, मैं खुद भरोसा नहीं कर पा रहा हूँ। लगता है मैं पागल हुआ हूँ। शायद रेगिस्तान और पहाड़ियों की बहुत ज्यादा गर्मी में टहलने के कारण मैं भ्रांति में हूँ, या ऐसा ही कुछ है। मैंने सुना..और मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ ताकि मैं भारमुक्त हो जाऊँगा।

उस स्त्री ने उसे विश्वास दिलाया।

इसलिए मैं तुमसे बारबार कहता हूं, कि नेताओं को अनुयायियों की जरूरत होती है। खुद को यह विश्वास दिलाने के लिये कि वे नेता हैं।

उस स्त्री ने उसे विश्वास दिलाया कि वह सच में ईश्वर ही था। तुम पागल नहीं हो, ईश्वर सच में तुमसे बोला है।

वह स्त्री निश्चित ही मोहम्मद से प्रेम करती थी, क्योंकि उसकी उम्र चालीस साल की थी, और वह सिर्फ छब्बीस साल का था। और वह गरीब, असंस्कृत, अशिक्षित था। फिर भी उस अमीर स्त्री ने उससे शादी की थी। तो निश्चित ही वह स्त्री उस आदमी के प्रेम में थी।

उसने उसे विश्वास दिलाया - तुम चिंता मत करो, और आवाजें आयेगी। यह निश्चित ही शुरूआत है, इसलिए ईश्वर ने कहा ‘लिखो’ अगर तुम लिख नहीं सकते, तो फिकर मत करो। तुम सिर्फ इतना बता दो कि तुम्हें क्या कहा गया है, हम उसे लिखेंगे।

इस तरह कुरआन लिखी गई। और यह एक दिन, एक महीने, या एक साल में नहीं लिखी गई है, क्योंकि मोहम्मद सुस्पष्ट व्यक्ति नहीं थे। उसे पूरी जिंदगी लगी। कभीकभार कोई बात निकलती थी और वह कहता था - लिखो।

कुरआन को लिखने में कई साल लगे है, और उसमें से जो निकला है, वह करीब-करीब निरर्थक है। यह एक समझदार मनुष्य से भी नहीं निकली है, ईश्वर का तो क्या कहना। अगर कहीं कोई ईश्वर है तो?

अगर यह किताबें उस ईश्वर का प्रमाण है तो वह ईश्वर सच में नासमझ है। अब कुरआन अजीब चीजों के बारे में कहती है, जिनका मुसलमान अनुगमन करते है क्योंकि वह एक पवित्र किताब है।

मोहम्मद की खुद की नौ पत्नियां थी। वह गरीब था। उसमें एक पत्नी संभालने का भी सामर्थ्य नहीं था। परन्तु चूंकि एक अमीर स्त्री उसके प्रेम में पड़ी थी, वह चालीस साल की थी, और वह छब्बीस साल का, वह स्त्री जल्दी ही मर जायेगी फिर उसे उसका सारा धन मिलेगा। इसलिए उसने किसी भी तरह की सुंदर स्त्री से शादी करने की शुरुआत की जो उसे मिल सकती थी।

और उसने कुरआन में कहा कि - हर मुसलमान को चार पत्नियां करने का अधिकार है। यह ईश्वर का मुसलमानों को दिया गया विशेष उपहार है।

दूसरा कोई भी धर्म चार पत्नियां करने की अनुमति नहीं देता है। अब तुम्हें चार पत्नियां कहां मिलेंगी? प्रकृति में पुरुष और स्त्री हमेशा लगभग समान अनुपात में होते हैं, लिहाजा एक पुरूष, एक पत्नी यह बहुत ही प्राकृतिक व्यवस्था लगती है क्योंकि उनका अनुपात समान है। परन्तु यदि एक पुरुष चार पत्नियों से शादी कर रहा है, वह दूसरे तीन पुरूषों की पत्नियां ले रहा है। अब वे दूसरे तीन आदमी, वे क्या करेंगे?

यह इस्लाम की अच्छी कूटनीति बनी। इन दूसरे तीन मुसलमानों ने दूसरों की पत्नियों छीनना, मुस्लिम की नहीं, बल्कि गैर-मुस्लिमों की, और उन्हें इस्लाम में धर्मांतरित करना।

वस्तुत: जब भी कोई स्त्री मुसलमान से शादी करती है, तब वह भी मुसलमान बनती है, किसी विशेष धर्मांतरण की आवश्यकता नहीं होती है। और खासतौर से भारत से उन्होंने हजारों स्त्रियों को पकड़ा। हिंदू समाज संकट में था, और यहूदियों की तरह हिंदू भी धर्मांतरण में विश्वास नहीं करते हैं।

यह दो सबसे पुराने धर्म हैं, जो धर्मांतरण में विश्वास नहीं करते हैं। यहूदी जन्म से यहूदी बनता है, और हिंदू जन्म से हिंदू बनता है। और एक बार कोई हिंदू स्त्री मुसलमान बन गई, तो वह पतित हो जाती है। वह अछूत बन गई, उसको हिंदू धर्म में वापस नहीं लिया जा सकता है।

तो उन्होंने हर जगह से स्त्रियों को खोजा जिससे उन्हें उनकी आबादी अत्यधिक रूप से बढ़ाने में मदद मिली। आप तथ्य देखते हो? अगर ज्यादा स्त्रियां उपलब्ध हो तो आदमी चाहे जितने बच्चे पैदा कर सकता है, परन्तु एक स्त्री एक साल में एक ही बच्चे को जन्म दे सकती है। उसे दूसरे बच्चे को जन्म देने के लिए एक साल और लगता है। मुसलमानों की आबादी जल्द बढ़ी क्योंकि हर मुसलमान को चार पत्नियां करने का अधिकार दिया गया है।

और तलवार से..यह बहुत आश्चर्यजनक है कि लोग इसमें विश्वास करते है।

कुरआन कहती है कि - अगर आप किसी को इस्लाम में धर्मांतरित नहीं कर सकते हो, तो बेहतर होगा कि उसे मार डालो, क्योंकि आपने उसे मुक्ति दिलाई है, एक गलत जिंदगी जीने से, जो वह जीने जा रहा था। उसकी भलाई के लिए उसे मुक्त कर दो।

इस तरह उन्होंने बेहिसाब लोगों को मुक्ति दिलवायी, और मुक्ति दिलवाते गये। दोनों में से किसी भी एक तरीके से आप मुक्त हो सकते हैं, अगर आप इस्लाम धर्म स्वीकार करते हैं तब भी, क्योंकि ईश्वर दयालु है।

मुसलमान होने के लिए तीन चीजों में आस्था होनी चाहिए - एक ईश्वर, एक पैगंबर मोहम्मद, और एक पवित्र किताब कुरआन। बस यह तीन आस्थायें, और आप बच जाते हैं। अगर आप इन तीन आस्थाओं से बचना नहीं चाहते हो, तो तलवार तुरन्त आपको छुटकारा देगी।

परन्तु वे आपको गलत जीवन जीने की अनुमति नहीं देते। वे जानते हैं सही जीवन क्या है, और उनके जीवन जीने के तरीके के अलावा बाकी सब जीवन जीने के तरीके गलत हैं।

यह सब पवित्र किताबें हैं। इन पवित्र किताबों का मनुष्य की आत्मा पर भारी बोझ है। तो सबसे पहले मैं तुम्हें कहना चाहता हूँ कि मेरी सहित कोई भी किताब पवित्र नहीं है। सब मनुष्य निर्मित है। हाँ, वहाँ कुछ अच्छी तरह लिखी गई किताबें, और कुछ अच्छी तरह ना लिखी गई किताबें है। परन्तु वहाँ पवित्र और अपवित्र जैसी श्रेणियों में कोई किताब नहीं है।

--ओशो-- 
=फ्रॉम अनकांशसनेस टू कांशसनेस= 
प्रवचन - 17

11 अगस्त 2018

गर्भपात या कन्या हत्या




एक युवा महिला एक लेडी डॉक्टर के पास गई, और बोली - डॉक्टर, मैं एक गंभीर समस्या में हूँ, और आपकी सहायता चाहती हूँ। 

डॉक्टर - हाँ, बेखौफ कहो।

महिला - मैं गर्भवती हूँ, आप किसी से कहियेगा नहीं लेकिन मैंने एक जान पहचान के सोनोग्राफी लैब से यह जान लिया है कि मेरे गर्भ में एक बच्ची है। मैं पहले से एक बेटी की माँ हूँ, और मैं किसी हालत में दो बेटियाँ नहीं चाहती।

डाक्टर ने कहा - ठीक है, तो मैं आपकी क्या सहायता कर सकती हूँ? 

महिला बोली - मैं चाहती हूँ कि इस गर्भ को गिराने में आप मेरी मदद करें। 

डाक्टर अनुभवी और समझदार थी। उन्होंने थोङी देर सोचा, और कहा - मुझे लगता है कि मेरे पास एक सरल रास्ता है जो आपकी मुश्किल हल कर देगा।


महिला बहुत खुश हुई।

डाक्टर ने कहा - हम एक काम करते हैं। आप दो बेटियाँ नहीं चाहती ना, तो पहली बेटी को मार देते हैं जिससे आप इस अजन्मी बच्ची को जन्म दे सकें, और आपकी समस्या का हल भी हो जाए। वैसे भी हमको एक बच्ची को मारना है, तो पहली वाली को ही मार देते है ना? 

महिला ने तुरन्त विरोध किया - न ना डाक्टर, हत्या करना गुनाह है, पाप है, और वैसे भी मैं अपनी बेटी को बहुत चाहती हूँ। उसको खरोंच भी आती है, तो दर्द का अहसास मुझे होता है।

डाक्टर - पहली बेटी की हत्या करो, या इस अजन्मी बेटी की, गुनाह तो दोनों हैं, दोनों ही पाप हैं।

यह बात उस महिला को समझ आ गई।
वह स्वयं की सोच पर लज्जित हुई, और पश्चाताप करते हुए घर चली गई।

=बेटी बचाओ=
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साभार - दोनों चित्र व शब्दरचना इंटरनेट

मूलस्रोत - अज्ञात

05 अगस्त 2018

साधु कुटी





यह योजना धन से धर्मार्थ करने के इच्छुक सज्जनों के लिये है जो स्वयं भजन/ध्यान तीर्थ आदि करने में असमर्थ हैं परन्तु धन से समर्थ हैं। चित्र में दिखाये अनुसार किसी भी भजनी साधु-सन्त को यह “साधु कुटी (स्थान वृंदावन) दी जायेगी। जिसमें एक पीपल का वृक्ष और एक देशी गौ रखी जायेगी।
निसंदेह इससे सम्बन्धित पुण्यफ़ल और साधु द्वारा सतनाम भजन फ़ल का उस धर्मी व्यक्ति को अतीव लाभ होगा। इच्छुक समर्थ सज्जन इस सम्बन्ध में यथाशीघ्र सम्पर्क कर सकते हैं।


जिस प्रकार नासा, नाभिकेन्द्र को तेल पूरित करने से समस्त नाङियां सबल हो वेगवती हो उठती हैं।
उसी प्रकार त्रय देह-केन्द्र को उर्जा-केन्द्र से पूरित करने पर देह एवं देही सत्व-उर्जा से भर जाता है।
देहधारी, तुम देह और आत्मा के इस भेद को भेदो।

सबहि रसायन हम किये, नहिं नाम सम कोय।
रंचक तन में संचरै, सब तन कंचन होय॥




जाग्रत, निद्रा, स्वपन, गहन निद्रा..यथार्थ बोध होने पर गहरी नींद ही समाधि की तुरियातीत अवस्था है। इस समाधि के जाग्रत/सम्पन्न होने पर ही आत्म-परमात्म का सहज बोध होता है।
यह ‘चेतन समाधि’ समय के समर्थ सदगुरू से ही प्राप्त होती है।

जो सपने सिर काटे कोई, बिनु जागें दुख दूर न होई।

सुरति-निरति मन में बसे, मन माया मंझार।
बोलनहारा सहज में, सतगुरू किया विचार॥

मेरे बारे में

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326