यह योजना धन से
धर्मार्थ करने के इच्छुक सज्जनों के लिये है जो स्वयं भजन/ध्यान
तीर्थ आदि करने में असमर्थ हैं परन्तु धन से समर्थ हैं। चित्र में दिखाये अनुसार किसी
भी भजनी साधु-सन्त को यह “साधु कुटी” (स्थान
वृंदावन) दी जायेगी। जिसमें एक पीपल का वृक्ष और एक देशी गौ रखी
जायेगी।
निसंदेह इससे
सम्बन्धित पुण्यफ़ल और साधु द्वारा सतनाम भजन फ़ल का उस धर्मी व्यक्ति को अतीव लाभ होगा।
इच्छुक समर्थ सज्जन इस सम्बन्ध में यथाशीघ्र सम्पर्क कर सकते हैं।
जिस प्रकार नासा, नाभिकेन्द्र
को तेल पूरित करने से समस्त नाङियां सबल हो वेगवती हो उठती हैं।
उसी प्रकार त्रय
देह-केन्द्र को उर्जा-केन्द्र से पूरित करने पर देह एवं देही
सत्व-उर्जा से भर जाता है।
देहधारी, तुम देह
और आत्मा के इस भेद को भेदो।
सबहि रसायन हम
किये, नहिं नाम सम कोय।
रंचक तन में संचरै, सब तन
कंचन होय॥
जाग्रत, निद्रा,
स्वपन, गहन निद्रा..यथार्थ बोध होने पर गहरी
नींद ही समाधि की तुरियातीत अवस्था है। इस समाधि के जाग्रत/सम्पन्न होने पर ही
आत्म-परमात्म का सहज बोध होता है।
यह ‘चेतन
समाधि’ समय के समर्थ सदगुरू से ही प्राप्त होती है।
जो सपने सिर
काटे कोई,
बिनु जागें दुख दूर न होई।
सुरति-निरति
मन में बसे, मन माया मंझार।
बोलनहारा सहज में, सतगुरू
किया विचार॥
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