मल त्याग महत्वपूर्ण है।
जैसे आँख, कान, नाक, जीभ, त्वचा, पेट (आंतों) आदि का मल प्रतिदिन साफ़ करना (डिटाक्सिफ़िकेशन) अति आवश्यक है। (अन्यथा उनसे रोग उत्पन्न होंगे) वैसे ही “मन का मैल” भी
प्रतिदिन किसी योग-क्रिया या समाधि क्रिया से करना अति आवश्यक है। अन्यथा इससे भी पहले “सूक्ष्म के रोग” उत्पन्न होंगे। और बाद में स्थूल रोगों में बदल जायेंगे। जैसे टीबी, अस्थमा, हार्ट अटैक आदि बीमारियाँ।
दूसरे, मल रहित शुद्ध शरीर के बिना, कोई भी योग पूर्ण रूप से नहीं किया जा सकता। सुन्दर, सुविधाजनक घर भी सफ़ाई के अभाव में, कूङे का ढेर बनकर सिर्फ़ परेशानी ही देता है।
काल हमारे संग हैं, नहीं जीवन का आस।
पल-पल नाम सम्हारिया, जब लग घट में स्वास।।
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प्रगट चार पद धर्म के, कलि में एक प्रधान।
येन-केन विधि दीन्हे, दान करे कल्याण।।
निश्चय ही अपने द्वारा किये गए शुभ-अशुभ कर्मों का फल, बिना विचार किये, विवश होकर भोगना पड़ता है। परन्तु किसी भी प्रकार से किया गया दान हमेशा सुखदायक व मंगलकारी ही होता है। विभिन्न आवश्यकता की वस्तुओं का जरूरतमन्दों को दान, फूलों के बगीचे लगवाना, देव मन्दिर का निर्माण, सन्यासियों के लिए आश्रम और देवालयों का निर्माण, गौ दान तथा सोना रत्नों के दान करने वाले, मनुष्य सुखपूर्वक यमलोक जाते हैं, और स्वर्ग में नाना प्रकार के भोग प्राप्त करते है।
सुवर्ण, तिल, हाथी, कन्या, दासी, गृह, रथ, मणि तथा कपिला गाय, यह दस महादान माने गए है। तुलादान (अपने वजन बराबर अन्न, वस्त्र आदि वस्तुओं का दान) भी सर्वश्रेष्ठ दानों में आता है। जो मनुष्य न्याय पूर्वक अर्जित किये गए धन से, अपनी शक्ति भर, शास्त्रोक्त विधि-विधान से यह दान करता है। वह यम मार्ग की भयावहता से त्रस्त नहीं होता है और उसे भीषण नरकों को नहीं देखना पड़ता है।
पुरूष प्रकृति सनातन जान। संतत स्वतः स्वभाव समान॥
स्वतः स्वभाव नहीं मिटै मिटाय। संतत जोई सोई प्रगटाय॥
पाँचों तत्वों (प्रकृति) ओर पुरूष (चेतन) का स्वभाव मूल रूप से कभी नहीं मिटता। चेतन ज्ञान युक्त है। आकाश खाली जगह है। शेष चारो तत्वों में गति युक्त है इनमें सिर्फ परिवर्तन होता है। मूल गुण-धर्म कभी नहीं बदलते।
1 टिप्पणी:
बाबाजी प्रणाम
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