चाह
चमारी चूहरी, अति नीचन की नीच ।
मैं तो
पूरण ब्रह्म था, जो तू न होती बीच ।
---------------
राजीव बाबा, मेरे एक मित्र का प्रश्न है ।
क्या
सशरीर चित्त के पार हुआ जा सकता है ? कृपया
समाधान करें ।
उत्तर -
प्रश्न उलझाव पैदा करता है ।
ऐसे
प्रश्न सम्बन्धित साहित्य के अध्ययन के बाद, अनजाने
निर्मित हुयी काल्पनिक धारणाओं से उपजते हैं । दूसरे, यदि
प्रश्न अपने सभी बिन्दुओं को लेकर अपने सभी आशय को लेकर स्पष्ट न हो तो निराकरण और
भी मुश्किल हो जाता है ।
पर फ़िर
भी यहाँ ‘सशरीर’ शब्द मुझे इसी बाह्य, दर्शनीय,
स्थूल शरीर के लिये प्रयुक्त लगा ।
-
सशरीर चित्त के पार से क्या आशय है ?
कोई भी
स्वयं और अन्य सब कुछ भी, स्वयं चित्त में ही (मन के द्वारा मन में ही)
स्थित है ।
चित्त
के पार क्या है ?
अगर
‘मूल स्थिति’ की बात की जाये तो फ़िर चित्त के पार कुछ है ही नहीं ।
जो है, वह सिर्फ़ आपका होना भर है ।
और
बारीकी से कहा जाये तो फ़िर वह जो है - है ।
वहाँ
होना जैसा भी कुछ नहीं है ।
होना
शुरू होते ही चित्त भी हो जाता है ।
मन
बुद्धि चित्त अहम, ये मिल जुल कर इतनी तेजी से क्रियान्वित होते
हैं कि तय होना मुश्किल है कि ये किस कृमानुसार सक्रिय हुये । फ़िर भी किसी भी
इच्छा के उदय होते ही चित्त बनता है ।
या
स्थूल जीव में प्रथम चित्त जाता है ।
क्योंकि
किसी भी हलन चलन हेतु भूमि और दूसरे अन्य अंगों की आवश्यकता होगी ।
-----------------
पुस्तक - अनमोल ज्ञान सूत्र pdf
लेखक - राजीव कुलश्रेष्ठ
विषय - आत्मज्ञान, सुरति शब्द योग
मूल्य - 150 रु.
प्रष्ठ - 157
पुस्तक खरीदने और प्रीव्यू देखने, पढ़ने का लिंक
1 टिप्पणी:
Hi This Side Satta King Guru
Very nice information, it is valuable and useful to so many people. Thanks for sharing this blog.
If Want Play online Satta King Click Satta king
एक टिप्पणी भेजें