शंकराचार्य को कामकला का ज्ञान कैसे हुआ ?
इस कहानी में बिलकुल भी सत्य नहीं है और ना ही ऐसा कहीं इतिहास में लिखा है ।
सबसे पहले तो ‘कामकला’ नाम की कोई चीज़ धर्मशास्त्रों में नहीं है ।
यह कामकला निकृष्ट वाममार्गियों की देन है । धर्मशास्त्रों में और महापुरुषों ने स्त्री और पुरुष का संयोग सन्तान उत्पत्ति के लिये बताया है न कि मनोरंजन के लिये । इस तरह की कहानियाँ और कामकला सब पाखण्डियों की देन है ।
मैं इस लेख से सम्बन्धित आपसे कुछ प्रश्न करता हूँ ।
1 यह कहानी आपने कहाँ पढ़ी और किस महापुरुष द्वारा लिखी गयी है ? इसकी क्या प्रमाणिकता है ?
2 कर्म का भोक्ता कौन होता है आत्मा या शरीर ? यदि आत्मा होती है तो इस झूठी कहानी के अनुसार क्या परस्त्री से सम्भोग करना व्यभिचार और पाप के अन्तर्गत नहीं आता ?
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प्रश्न - क्या परस्त्री से सम्भोग करना व्यभिचार और पाप के अन्तर्गत नहीं आता ?
उत्तर - सामान्य स्थिति में परस्त्री से सहवास पाप और व्यभिचार के अन्तर्गत ही कहा जायेगा पर शंकराचार्य जी के प्रकरण में यह बात सिर्फ़ शारीरिक आनन्द, इच्छा के ध्येय से नही है । अतः वह एक भिन्न स्थिति हो जाती है ।
लगभग सभी सन्तों ने परस्त्री सम्बन्ध के लिये निन्दा ही की है और इसे सर्वदा वर्जित बताया है पर नियोग या आपत्तिकाले या कोई धर्म विषयक वाद बन जाने पर धर्मशास्त्रों में ‘परस्त्री सम्बन्धित’ प्रसंग खूब मिलते हैं । वृन्दा (पत्नी जालंधर) का सतीत्व भंग करना इसका प्रसिद्ध उदाहरण है ।
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प्रश्न - कर्म का भोक्ता कौन होता है आत्मा या शरीर ? यदि आत्मा होती है ।
उत्तर - कर्म का भोक्ता न आत्मा होती है न शरीर होता हैं बल्कि मन होता है । जीव भाव में ये तीनों संयुक्त होते हुये भी यथार्थ स्थिति में अलग ही हैं । लेकिन यह जीव शरीर के कष्टों को मन द्वारा अनुभव अवश्य करता है ।
कुछ कर्म गलत कर्मों की परिभाषा में अवश्य आते हैं । परन्तु फ़िर भी विलक्षण सृष्टि और होनी के चलते साधारण जीव तो क्या बङे बङे ज्ञानी उन्हें करने को लगभग विवश हो जाते हैं ।
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प्रश्न - यह कहानी आपने कहाँ पढ़ी और किस महापुरुष द्वारा लिखी गयी है ? इसकी क्या प्रमाणिकता है ?
उत्तर - बहुप्रसिद्ध शंकराचार्य जी और काशी के विद्वान मंडन मिश्र जी के प्रसिद्ध शास्त्रार्थ जिसमें मिश्र जी की धर्मपत्नी सरस्वती भी शामिल हुयी थीं, में इसका विशद वर्णन है ।
google search में शंकराचार्य और मंडन मिश्र हिंदी में type करें । प्राप्त result से आपकी शंका का समाधान हो जायेगा ।
इसकी प्रमाणिकता - परकाया प्रवेश योग और संयम ज्ञाता के लिये कोई ज्यादा बङी बात नहीं ।
पतंजलि योग दर्शन में ही इसके बारे में स्पष्ट वर्णन है । समय समय पर इस विद्या के योगी भी चर्चा में आते रहे हैं ।
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प्रश्न - सबसे पहले तो कामकला नाम की कोई चीज़ धर्मशास्त्रों में नहीं है ?
उत्तर - यह बङी अजीब सी ही बात लगती है । सृष्टि की महत्वपूर्ण क्रिया ‘कामकला’ को धर्म के अंतर्गत न मानना ।
श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधार ।
बरनउ रघुवर विमल जसु, जो दायक फ़ल चार ।
ये चार फ़ल कौन से हैं । जीवन के चार पुरुषार्थ कौन से हैं ?
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष ।
धर्म वो कार्य है जो हमारे शरीर से जुङा है । जिसके लिये शरीर धारण किया है ।
अब मुख्य विषय काम या कामकला का । यदि कामकला सृष्टि का प्रमुख आकर्षण न होती तो आज तमाम परिवार न होते, समाज न होता । इंटरनेट 70% कामकला के ऊपर ही जीवित है ।
धर्म तो बाद में आया आदम, इवा, मनु, श्रद्धा, पहला मर्द, पहली औरत के द्वारा वर्जित फ़ल खाने से काम पहले आया । रही बात शास्त्रों की तो शास्त्रों में काम की उपयोगिता और उसके महत्व है ।
मेरे एक मित्र ने कहा - आप जानते हैं ये संगीत नृत्य आदि एक प्रकार की कामभावना ही है । उसी कामभावना से इसमें मधुर रस पैदा होता है अन्यथा बहुत कम लोग फ़िल्म देखते या संगीत सुनते ।
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प्रश्न - धर्मशास्त्रों में और महापुरुषों ने स्त्री और पुरुष का संयोग सन्तान उत्पत्ति के लिये बताया है न कि मनोरंजन के लिये ?
उत्तर - थोङी देर के लिये आदमी औरत को छोड दें तो पशु पक्षी तक केवल संभोग के बजाय प्रणय क्रियायों को भी बखूबी करते हैं ।
मोर मोरनी को नृत्य करके इसीलिये रिझाता है । कुछ पक्षी युद्ध कौशल का प्रदर्शन अपनी प्रियतमा को रिझाने के लिये करते है । कुछ पक्षी गाना गाते हैं । कुछ अठखेलियां करते हैं । बसन्त आने पर पूरी प्रकृति कामोन्मादी होकर झूमने लगती है ।
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प्रश्न - शंकराचार्य ने सम्भोग करने के लिये राजा के शरीर में प्रवेश क्यों किया ?
उत्तर - धर्म और कुन्डलिनी ज्ञान अत्यन्त सूक्ष्म विषय है जिसको हरेक कोई नहीं समझ सकता । शंकराचार्य ने सम्भोग करने के लिये राजा के शरीर में प्रवेश इसलिये किया । क्योंकि शंकराचार्य उस समय अद्वैत की जिस स्थिति में पहुँच चुके थे । वहाँ दो नहीं होते । एक चेतन ही सर्वत्र विभिन्न लीलाएं कर रहा है और फ़िर यह उसी नियन्ता द्वारा तय नियत थी ।
इस कहानी में बिलकुल भी सत्य नहीं है और ना ही ऐसा कहीं इतिहास में लिखा है ।
सबसे पहले तो ‘कामकला’ नाम की कोई चीज़ धर्मशास्त्रों में नहीं है ।
यह कामकला निकृष्ट वाममार्गियों की देन है । धर्मशास्त्रों में और महापुरुषों ने स्त्री और पुरुष का संयोग सन्तान उत्पत्ति के लिये बताया है न कि मनोरंजन के लिये । इस तरह की कहानियाँ और कामकला सब पाखण्डियों की देन है ।
मैं इस लेख से सम्बन्धित आपसे कुछ प्रश्न करता हूँ ।
1 यह कहानी आपने कहाँ पढ़ी और किस महापुरुष द्वारा लिखी गयी है ? इसकी क्या प्रमाणिकता है ?
2 कर्म का भोक्ता कौन होता है आत्मा या शरीर ? यदि आत्मा होती है तो इस झूठी कहानी के अनुसार क्या परस्त्री से सम्भोग करना व्यभिचार और पाप के अन्तर्गत नहीं आता ?
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प्रश्न - क्या परस्त्री से सम्भोग करना व्यभिचार और पाप के अन्तर्गत नहीं आता ?
उत्तर - सामान्य स्थिति में परस्त्री से सहवास पाप और व्यभिचार के अन्तर्गत ही कहा जायेगा पर शंकराचार्य जी के प्रकरण में यह बात सिर्फ़ शारीरिक आनन्द, इच्छा के ध्येय से नही है । अतः वह एक भिन्न स्थिति हो जाती है ।
लगभग सभी सन्तों ने परस्त्री सम्बन्ध के लिये निन्दा ही की है और इसे सर्वदा वर्जित बताया है पर नियोग या आपत्तिकाले या कोई धर्म विषयक वाद बन जाने पर धर्मशास्त्रों में ‘परस्त्री सम्बन्धित’ प्रसंग खूब मिलते हैं । वृन्दा (पत्नी जालंधर) का सतीत्व भंग करना इसका प्रसिद्ध उदाहरण है ।
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प्रश्न - कर्म का भोक्ता कौन होता है आत्मा या शरीर ? यदि आत्मा होती है ।
उत्तर - कर्म का भोक्ता न आत्मा होती है न शरीर होता हैं बल्कि मन होता है । जीव भाव में ये तीनों संयुक्त होते हुये भी यथार्थ स्थिति में अलग ही हैं । लेकिन यह जीव शरीर के कष्टों को मन द्वारा अनुभव अवश्य करता है ।
कुछ कर्म गलत कर्मों की परिभाषा में अवश्य आते हैं । परन्तु फ़िर भी विलक्षण सृष्टि और होनी के चलते साधारण जीव तो क्या बङे बङे ज्ञानी उन्हें करने को लगभग विवश हो जाते हैं ।
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प्रश्न - यह कहानी आपने कहाँ पढ़ी और किस महापुरुष द्वारा लिखी गयी है ? इसकी क्या प्रमाणिकता है ?
उत्तर - बहुप्रसिद्ध शंकराचार्य जी और काशी के विद्वान मंडन मिश्र जी के प्रसिद्ध शास्त्रार्थ जिसमें मिश्र जी की धर्मपत्नी सरस्वती भी शामिल हुयी थीं, में इसका विशद वर्णन है ।
google search में शंकराचार्य और मंडन मिश्र हिंदी में type करें । प्राप्त result से आपकी शंका का समाधान हो जायेगा ।
इसकी प्रमाणिकता - परकाया प्रवेश योग और संयम ज्ञाता के लिये कोई ज्यादा बङी बात नहीं ।
पतंजलि योग दर्शन में ही इसके बारे में स्पष्ट वर्णन है । समय समय पर इस विद्या के योगी भी चर्चा में आते रहे हैं ।
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प्रश्न - सबसे पहले तो कामकला नाम की कोई चीज़ धर्मशास्त्रों में नहीं है ?
उत्तर - यह बङी अजीब सी ही बात लगती है । सृष्टि की महत्वपूर्ण क्रिया ‘कामकला’ को धर्म के अंतर्गत न मानना ।
श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधार ।
बरनउ रघुवर विमल जसु, जो दायक फ़ल चार ।
ये चार फ़ल कौन से हैं । जीवन के चार पुरुषार्थ कौन से हैं ?
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष ।
धर्म वो कार्य है जो हमारे शरीर से जुङा है । जिसके लिये शरीर धारण किया है ।
अब मुख्य विषय काम या कामकला का । यदि कामकला सृष्टि का प्रमुख आकर्षण न होती तो आज तमाम परिवार न होते, समाज न होता । इंटरनेट 70% कामकला के ऊपर ही जीवित है ।
धर्म तो बाद में आया आदम, इवा, मनु, श्रद्धा, पहला मर्द, पहली औरत के द्वारा वर्जित फ़ल खाने से काम पहले आया । रही बात शास्त्रों की तो शास्त्रों में काम की उपयोगिता और उसके महत्व है ।
मेरे एक मित्र ने कहा - आप जानते हैं ये संगीत नृत्य आदि एक प्रकार की कामभावना ही है । उसी कामभावना से इसमें मधुर रस पैदा होता है अन्यथा बहुत कम लोग फ़िल्म देखते या संगीत सुनते ।
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प्रश्न - धर्मशास्त्रों में और महापुरुषों ने स्त्री और पुरुष का संयोग सन्तान उत्पत्ति के लिये बताया है न कि मनोरंजन के लिये ?
उत्तर - थोङी देर के लिये आदमी औरत को छोड दें तो पशु पक्षी तक केवल संभोग के बजाय प्रणय क्रियायों को भी बखूबी करते हैं ।
मोर मोरनी को नृत्य करके इसीलिये रिझाता है । कुछ पक्षी युद्ध कौशल का प्रदर्शन अपनी प्रियतमा को रिझाने के लिये करते है । कुछ पक्षी गाना गाते हैं । कुछ अठखेलियां करते हैं । बसन्त आने पर पूरी प्रकृति कामोन्मादी होकर झूमने लगती है ।
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प्रश्न - शंकराचार्य ने सम्भोग करने के लिये राजा के शरीर में प्रवेश क्यों किया ?
उत्तर - धर्म और कुन्डलिनी ज्ञान अत्यन्त सूक्ष्म विषय है जिसको हरेक कोई नहीं समझ सकता । शंकराचार्य ने सम्भोग करने के लिये राजा के शरीर में प्रवेश इसलिये किया । क्योंकि शंकराचार्य उस समय अद्वैत की जिस स्थिति में पहुँच चुके थे । वहाँ दो नहीं होते । एक चेतन ही सर्वत्र विभिन्न लीलाएं कर रहा है और फ़िर यह उसी नियन्ता द्वारा तय नियत थी ।
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