sir i want to talk to u about paras stone. i need it's information for humanity sake. pleasee sir help me. ( ईमेल द्वारा )
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ये सत्य है कि मुझे सुरति शब्द योग या आत्मज्ञान के बजाय..सोना बनाने की विधि, पारस पत्थर, आयुर्वेदिक उपचार, भूत प्रेत बाधाओं, कोई सिद्धि करने हेतु तथा सबसे अन्त में सट्टे का नम्बर जानने हेतु तुलनात्मक सर्वोच्च ‘सुरति शब्द योग’ अधिक फ़ोन आते हैं । जबकि मेरे लेखन का सही अध्ययन करने वालों को पता होगा । इनमें से मेरी किसी में कोई दिलचस्पी नही है ।
फ़िर भी हम जो जानते हैं । वह जनहितार्थ दूसरे को साझा करते हैं । यही समाज का चलन है ।
- सर्वप्रथम यह जानिये कि मेरे पास न तो पारस पत्थर है और न मैंने इसे देखा है । और किसी की खोज के आधार पर जानकारी देने स्पष्ट करने के अतिरिक्त मैं और कोई सहायता नहीं कर सकता ।
- आगे मैं जो लिख रहा हूँ । यह जानकारी किसी ग्रन्थ या सुने हुये के आधार पर न होकर मेरे स्रोतों पर आधारित है ।
- अभी का नहीं पता, पर भूतकाल में यह पत्थर कुछ लोगों के पास था । जिनमें राजा परमाल के पास निश्चित था । परमाल के पास सोना भी काफ़ी था । उसके किले में दरवाजों चौखटों आदि में ही काफ़ी सोना था । प्रसिद्ध ऐतहासिक प्रथ्वीराज युद्ध और बाद में सब खास के मारे जाने के बाद ये पत्थर समुद्र में फ़िकवा दिया गया । जिसे खोजने की अंग्रेजों ने बहुत कोशिश की । पर नहीं मिला ।
- सबसे पहले यह जानिये कि पत्थर शब्द से रेतकणों से बने आम पत्थर का आभास अधिक होता है । लेकिन हीरे को भी मूल भाव में पत्थर ही कहा जाता है । और पारस पत्थर या पारसमणि एक हीरा पत्थर ही होता है । न कि कोई आम पत्थर जैसा ।
- यह एक खरबूजे जैसा बङा भी हो सकता है । और मध्यम आलू या बेर जैसा भी । पर छोटे की सम्भावना अधिक रहती है ।
- इसकी कोई उमृ और क्षमता नहीं होती । कितना भी लोहा लगाते रहो । यह काम करेगा ।
- यह पहाङी और तराई क्षेत्रों में अधिक हो सकता है । मेरे अनुमान के अनुसार ये नेपाल के तराई क्षेत्र में हो सकता है । ( यद्यपि मैंने नेपाल और उसका तराई कभी नहीं देखा )
- जैसा कि बहुत स्थानों पर लिखा है कि यह किसी भी वस्तु को सोना बना सकता है । यह सही नहीं है । यह सिर्फ़ शुद्ध जंगरहित ‘लोहे’ को ही स्वर्ण में बदलता है ।
- इसकी सबसे बङी पहचान इसका स्व प्रकाशित होना है । बहुत से सर्प इसको प्राप्त कर लेते हैं । फ़िर अंधेरे में इसका प्रयोग करते हैं । लेकिन यह उनके मस्तक आदि में नहीं होता । बल्कि मुंह में दबाकर चलते हैं । इसीलिये नागमणि जैसे शब्दों और कहानियों का चलन हुआ ।
अतः इसको खोजने में पथरीले स्थान और अंधेरा ही प्रमुख है । क्योंकि इसकी रोशनी दिखेगी । जो इसके दबे या खुले होने पर कम ज्यादा हो सकती है ।
- कुछ चिङियां भी ऐसा प्रकाशी पत्थर घोंसलें में ले आती हैं । पर वह हो भी सकता है और नहीं भी ।
- पहाङी क्षेत्रों में इसके जानकार कुछ लोग अक्सर पशुओं के खुरों में लोहा लगवा देते हैं । और जब कभी विचरते हुये उनका खुर इससे स्पर्श हो जाता है । तो वे सोने के हो जाते हैं । फ़िर वे सोना अलग कर लेते है । ऐसा कई बार हुआ है ।
- पारस पत्थर को खोजने का यह भी एक सरल तरीका है । अपने जूतों और हाथ में ऐसी छङ जिसके निचले हिस्से पर लोहा हो । लेकर खोजना ।
- अनेक रहस्यमय प्रकृति के क्रियाकलापों में से एक यह भी प्रकृति निर्मित प्राकृतिक वस्तु है । और किसी भी काल में पारस पत्थर प्रथ्वी पर हजारों और लाखों भी हो सकते हैं । गौर करें । हम कौन सा हर चीज से लोहे को स्पर्श कराकर परीक्षण करते हैं । बहुत संभव है ये अनेक लोगों ने अनायास उठाकर ढेले की भांति उछाल दिया हो ।
- यह कहीं भी हो सकता है । आपके पुराने घर से लेकर किसी सुनसान टापू या समुद्र आदि के पास भी ।
- सबसे मजे की बात, पौराणिक स्यमंतक मणि यानी आधुनिक कोहिनूर हीरा भी पारसमणि हो सकता है ।
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पारस पत्थर के बारे में इंटरनेट से प्राप्त कुछ तथ्य ।
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- आज से 831 साल पहले दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान ने राजकुमारी चंद्रावल को पाने और पारस पत्थर व नौलखा हार लूटने के इरादे से चंदेल शासक राजा परमाल देव के राज्य महोबा पर चढ़ाई की थी ।
किवदन्तियां - कहते हैं कि यह पहाड़ों पर कहीं होता है । पहाड़ी चरवाहे बकरियों के खुरों में लोहे के नाल ठोक देते हैं । वे कभी पारस के ऊपर होकर निकल जाती हैं । तो लोहे के नाल सोने के हो जाते हैं ।
- सुअरिया का दूध यदि ईंटों पर पड़ जाय । तो वह सोने की हो जाती हैं ।
- विज्ञान खोजियों को अभी तक इस प्रकार की किसी वस्तु का संसार भर में पता नहीं लगा है । जिसे छूने से लोहा सोना हो जाता हो ।
- कुछ अलकेमिस्टस के अनुसार ये पत्थर चंद्रमा या किसी दूसरे गृह पर बना था । जो धरती पर गिरा था ।
- कुछ को लगता है कि ये किसी अंडे के भीतर सही मटेरियल मिलने पर बनता है ।
दुनिया के अधिकांश धर्म संप्रदायों - हिंदू, बौद्ध और ईसाई धर्म में भी इसके बारे में लिखा गया है । ये पत्थर कैसा नजर आता है ? इस बारे में भी अलग अलग जानकारी मिलती है । किसी में इसे लाल, जामुनी किसी में पारदर्शी बताया गया है ।
- तीमंगढ़ किले से जहाँ किले के पास स्थित सागर झील में मौजूद पारस पत्थर के स्पर्श से कोई भी चीज सोने की हो सकती है । जोधपुर के तीमंगढ़ किला, मसलपुर उप तहसील के अन्दर आने वाले करौली के पास स्थित है । 1100 ई में बने इस किले को नष्ट करवा के यदुवंशी राजा तीमंपल द्वारा 1244 ई में इस किले का निर्माण कराया गया ।
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पारस पत्थर पारे का ठोस रूप होता है । जो प्रकृति में गंधक के साथ मिलकर उच्चदाब और उच्चताप की परिस्थितियों में बनता है । उसी उच्चदाब और उच्चताप की परिस्थितियों में तेलिया कंद पारे को ठोस रूप में बदलने में सहायक होता है ।
2Hg+ S = Hg2S ( -2e ) ( सोना )
आयुर्वेद के हिसाब से पारा शिव और गंधक पार्वती का रूप है । उसी तर्ज पर पारा
( hg, 80 ) + गंधक ( sulphar ) -> उत्प्रेरक ( तेलिया कंद )
तेलिया कंद
Hg + S => gold
उत्प्ररेक
पारे को गंधक के तेल में घोटकर उसमें तेलिया कंद मिलाकर बंद crucible में गरम करते हैं । इस क्रिया में पारे का 1 अणु गंधक खा जाता है । गंधक पारे में अपना पीला रंग देता है । तेलिया कंद पारे को उड़ने नहीं देता । तथा पारा मजबूर होकर ठोस रूप में बदल जाता है । और वो सोना बन जाता है ।
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तेलिया कंद - एक चमत्कारिक पौधा है । जिसका पहला गुण परिपक्वता की स्थिति में जहरीले से जहरीले सांप से काटे हुए इंसान का जीवन बचा सकता है । दूसरा ये पारे को सोने में बदल सकता है । इसके पौधे के आसपास की जमीन का क्षेत्र तेलिय हो जाता है । तथा उस क्षेत्र में आने वाले छोटे मोटे कीड़े मकोड़े उसके तैलीय असर से मर जाते हैं ।
तेलिया कंद का पौधा 12 वर्ष उपरांत अपने गुण दिखाता है । तेलिया कंद male और female 2 प्रकार का होता है । इसके चमत्कारी गुण सिर्फ male में ही होते है । इसके male कंद में सुई चुभोने पर इसके तेजाबी असर से वो गलकर नीचे गिर जाती है । पहचान स्वरुप जबकि female जड़ी बूटी में ऐसा नहीं होता ।
इसका कंद शलजम जैसा रंग आकृति का तथा पौधा सर्पगंधा से मिलती जुलती पत्ती जैसा होता है । पौधा वर्षा ऋतु में फूटता है । वर्षा ऋतु के बाद ख़त्म हो जाता है । इसका कंद जमीन में ही सुरक्षित रह जाता है । इस तरह से हर मौसम में ऐसा 12 वर्षों तक लगातार होने के बाद इसमें चमत्कारिक गुण आते हैं ।
ये बूटी भारत के कई जंगलों में पायी जाती है । 1982 तक भीलों का डेरा mount abu में बालू भील से देश के सभी क्षेत्र के लोग ये बूटी खरीद के ले जाते थे । बालू भील का देहांत हो चुका है । तथा उसके बच्चे इसकी अधिक जानकारी नहीं रखते ।
इस बूटी का चमत्कार करते हुए अंतिम बार बूंदी में बाबा गंगादास के आश्रम 1982 में देखा गया था । आज भी देश में लोग खासकर कालबेलिये और साधू इसके चमत्कारिक गुण का उपयोग करते हैं । तेलिया कंद की जगह देश में अन्य चमत्कारिक बूटियां भी काम में ली जाती हैं । जैसे रुद्रबंती, अंकोल का तेल, तीन धार की हादजोद आदि ।
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ये सत्य है कि मुझे सुरति शब्द योग या आत्मज्ञान के बजाय..सोना बनाने की विधि, पारस पत्थर, आयुर्वेदिक उपचार, भूत प्रेत बाधाओं, कोई सिद्धि करने हेतु तथा सबसे अन्त में सट्टे का नम्बर जानने हेतु तुलनात्मक सर्वोच्च ‘सुरति शब्द योग’ अधिक फ़ोन आते हैं । जबकि मेरे लेखन का सही अध्ययन करने वालों को पता होगा । इनमें से मेरी किसी में कोई दिलचस्पी नही है ।
फ़िर भी हम जो जानते हैं । वह जनहितार्थ दूसरे को साझा करते हैं । यही समाज का चलन है ।
- सर्वप्रथम यह जानिये कि मेरे पास न तो पारस पत्थर है और न मैंने इसे देखा है । और किसी की खोज के आधार पर जानकारी देने स्पष्ट करने के अतिरिक्त मैं और कोई सहायता नहीं कर सकता ।
- आगे मैं जो लिख रहा हूँ । यह जानकारी किसी ग्रन्थ या सुने हुये के आधार पर न होकर मेरे स्रोतों पर आधारित है ।
- अभी का नहीं पता, पर भूतकाल में यह पत्थर कुछ लोगों के पास था । जिनमें राजा परमाल के पास निश्चित था । परमाल के पास सोना भी काफ़ी था । उसके किले में दरवाजों चौखटों आदि में ही काफ़ी सोना था । प्रसिद्ध ऐतहासिक प्रथ्वीराज युद्ध और बाद में सब खास के मारे जाने के बाद ये पत्थर समुद्र में फ़िकवा दिया गया । जिसे खोजने की अंग्रेजों ने बहुत कोशिश की । पर नहीं मिला ।
- सबसे पहले यह जानिये कि पत्थर शब्द से रेतकणों से बने आम पत्थर का आभास अधिक होता है । लेकिन हीरे को भी मूल भाव में पत्थर ही कहा जाता है । और पारस पत्थर या पारसमणि एक हीरा पत्थर ही होता है । न कि कोई आम पत्थर जैसा ।
- यह एक खरबूजे जैसा बङा भी हो सकता है । और मध्यम आलू या बेर जैसा भी । पर छोटे की सम्भावना अधिक रहती है ।
- इसकी कोई उमृ और क्षमता नहीं होती । कितना भी लोहा लगाते रहो । यह काम करेगा ।
- यह पहाङी और तराई क्षेत्रों में अधिक हो सकता है । मेरे अनुमान के अनुसार ये नेपाल के तराई क्षेत्र में हो सकता है । ( यद्यपि मैंने नेपाल और उसका तराई कभी नहीं देखा )
- जैसा कि बहुत स्थानों पर लिखा है कि यह किसी भी वस्तु को सोना बना सकता है । यह सही नहीं है । यह सिर्फ़ शुद्ध जंगरहित ‘लोहे’ को ही स्वर्ण में बदलता है ।
- इसकी सबसे बङी पहचान इसका स्व प्रकाशित होना है । बहुत से सर्प इसको प्राप्त कर लेते हैं । फ़िर अंधेरे में इसका प्रयोग करते हैं । लेकिन यह उनके मस्तक आदि में नहीं होता । बल्कि मुंह में दबाकर चलते हैं । इसीलिये नागमणि जैसे शब्दों और कहानियों का चलन हुआ ।
अतः इसको खोजने में पथरीले स्थान और अंधेरा ही प्रमुख है । क्योंकि इसकी रोशनी दिखेगी । जो इसके दबे या खुले होने पर कम ज्यादा हो सकती है ।
- कुछ चिङियां भी ऐसा प्रकाशी पत्थर घोंसलें में ले आती हैं । पर वह हो भी सकता है और नहीं भी ।
- पहाङी क्षेत्रों में इसके जानकार कुछ लोग अक्सर पशुओं के खुरों में लोहा लगवा देते हैं । और जब कभी विचरते हुये उनका खुर इससे स्पर्श हो जाता है । तो वे सोने के हो जाते हैं । फ़िर वे सोना अलग कर लेते है । ऐसा कई बार हुआ है ।
- पारस पत्थर को खोजने का यह भी एक सरल तरीका है । अपने जूतों और हाथ में ऐसी छङ जिसके निचले हिस्से पर लोहा हो । लेकर खोजना ।
- अनेक रहस्यमय प्रकृति के क्रियाकलापों में से एक यह भी प्रकृति निर्मित प्राकृतिक वस्तु है । और किसी भी काल में पारस पत्थर प्रथ्वी पर हजारों और लाखों भी हो सकते हैं । गौर करें । हम कौन सा हर चीज से लोहे को स्पर्श कराकर परीक्षण करते हैं । बहुत संभव है ये अनेक लोगों ने अनायास उठाकर ढेले की भांति उछाल दिया हो ।
- यह कहीं भी हो सकता है । आपके पुराने घर से लेकर किसी सुनसान टापू या समुद्र आदि के पास भी ।
- सबसे मजे की बात, पौराणिक स्यमंतक मणि यानी आधुनिक कोहिनूर हीरा भी पारसमणि हो सकता है ।
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पारस पत्थर के बारे में इंटरनेट से प्राप्त कुछ तथ्य ।
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- आज से 831 साल पहले दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान ने राजकुमारी चंद्रावल को पाने और पारस पत्थर व नौलखा हार लूटने के इरादे से चंदेल शासक राजा परमाल देव के राज्य महोबा पर चढ़ाई की थी ।
किवदन्तियां - कहते हैं कि यह पहाड़ों पर कहीं होता है । पहाड़ी चरवाहे बकरियों के खुरों में लोहे के नाल ठोक देते हैं । वे कभी पारस के ऊपर होकर निकल जाती हैं । तो लोहे के नाल सोने के हो जाते हैं ।
- सुअरिया का दूध यदि ईंटों पर पड़ जाय । तो वह सोने की हो जाती हैं ।
- विज्ञान खोजियों को अभी तक इस प्रकार की किसी वस्तु का संसार भर में पता नहीं लगा है । जिसे छूने से लोहा सोना हो जाता हो ।
- कुछ अलकेमिस्टस के अनुसार ये पत्थर चंद्रमा या किसी दूसरे गृह पर बना था । जो धरती पर गिरा था ।
- कुछ को लगता है कि ये किसी अंडे के भीतर सही मटेरियल मिलने पर बनता है ।
दुनिया के अधिकांश धर्म संप्रदायों - हिंदू, बौद्ध और ईसाई धर्म में भी इसके बारे में लिखा गया है । ये पत्थर कैसा नजर आता है ? इस बारे में भी अलग अलग जानकारी मिलती है । किसी में इसे लाल, जामुनी किसी में पारदर्शी बताया गया है ।
- तीमंगढ़ किले से जहाँ किले के पास स्थित सागर झील में मौजूद पारस पत्थर के स्पर्श से कोई भी चीज सोने की हो सकती है । जोधपुर के तीमंगढ़ किला, मसलपुर उप तहसील के अन्दर आने वाले करौली के पास स्थित है । 1100 ई में बने इस किले को नष्ट करवा के यदुवंशी राजा तीमंपल द्वारा 1244 ई में इस किले का निर्माण कराया गया ।
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पारस पत्थर पारे का ठोस रूप होता है । जो प्रकृति में गंधक के साथ मिलकर उच्चदाब और उच्चताप की परिस्थितियों में बनता है । उसी उच्चदाब और उच्चताप की परिस्थितियों में तेलिया कंद पारे को ठोस रूप में बदलने में सहायक होता है ।
2Hg+ S = Hg2S ( -2e ) ( सोना )
आयुर्वेद के हिसाब से पारा शिव और गंधक पार्वती का रूप है । उसी तर्ज पर पारा
( hg, 80 ) + गंधक ( sulphar ) -> उत्प्रेरक ( तेलिया कंद )
तेलिया कंद
Hg + S => gold
उत्प्ररेक
पारे को गंधक के तेल में घोटकर उसमें तेलिया कंद मिलाकर बंद crucible में गरम करते हैं । इस क्रिया में पारे का 1 अणु गंधक खा जाता है । गंधक पारे में अपना पीला रंग देता है । तेलिया कंद पारे को उड़ने नहीं देता । तथा पारा मजबूर होकर ठोस रूप में बदल जाता है । और वो सोना बन जाता है ।
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तेलिया कंद - एक चमत्कारिक पौधा है । जिसका पहला गुण परिपक्वता की स्थिति में जहरीले से जहरीले सांप से काटे हुए इंसान का जीवन बचा सकता है । दूसरा ये पारे को सोने में बदल सकता है । इसके पौधे के आसपास की जमीन का क्षेत्र तेलिय हो जाता है । तथा उस क्षेत्र में आने वाले छोटे मोटे कीड़े मकोड़े उसके तैलीय असर से मर जाते हैं ।
तेलिया कंद का पौधा 12 वर्ष उपरांत अपने गुण दिखाता है । तेलिया कंद male और female 2 प्रकार का होता है । इसके चमत्कारी गुण सिर्फ male में ही होते है । इसके male कंद में सुई चुभोने पर इसके तेजाबी असर से वो गलकर नीचे गिर जाती है । पहचान स्वरुप जबकि female जड़ी बूटी में ऐसा नहीं होता ।
इसका कंद शलजम जैसा रंग आकृति का तथा पौधा सर्पगंधा से मिलती जुलती पत्ती जैसा होता है । पौधा वर्षा ऋतु में फूटता है । वर्षा ऋतु के बाद ख़त्म हो जाता है । इसका कंद जमीन में ही सुरक्षित रह जाता है । इस तरह से हर मौसम में ऐसा 12 वर्षों तक लगातार होने के बाद इसमें चमत्कारिक गुण आते हैं ।
ये बूटी भारत के कई जंगलों में पायी जाती है । 1982 तक भीलों का डेरा mount abu में बालू भील से देश के सभी क्षेत्र के लोग ये बूटी खरीद के ले जाते थे । बालू भील का देहांत हो चुका है । तथा उसके बच्चे इसकी अधिक जानकारी नहीं रखते ।
इस बूटी का चमत्कार करते हुए अंतिम बार बूंदी में बाबा गंगादास के आश्रम 1982 में देखा गया था । आज भी देश में लोग खासकर कालबेलिये और साधू इसके चमत्कारिक गुण का उपयोग करते हैं । तेलिया कंद की जगह देश में अन्य चमत्कारिक बूटियां भी काम में ली जाती हैं । जैसे रुद्रबंती, अंकोल का तेल, तीन धार की हादजोद आदि ।
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सर आप जड़ी बुटी उपलब्ध करा देंगे क्या ?
सर आप जडीबुटी उपलब्ध कर देंगे क्या ?
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