09 दिसंबर 2015

शिकरा बाज

शिकरा बाज या लग्गङ ग्रामीण भाषा में एक शिकारी स्वभाव के पक्षी नाम है । जो वास्तव में "शिकारी बाज" का अपभ्रंश हो सकता है । आमतौर पर यह पक्षी कबूतरों, चूहों और छोटी चिङियों को अपना शिकार बनाता है । यह बाज से आकार में लगभग आधा और एक बङे उल्लू के समान होता है । तथा कुछ कुछ उसी जैसा दिखता भी है । मैंने इसे कई बार देखा है । 
यदि आप अपने आसपास की प्राकृतिक घटनाओं पर भी सावधान नजर रखते हैं । तो आपने कभी न कभी इसे देखा होगा । पेङों पर बैठी चिङियों का झुण्ड इसके आकृमण के समय तेजी से चहचहाता इधर से उधर उङता है ।
पशु पक्षी जगत के अन्य तमाम रहस्यों की भांति शिकरा बाज का भी एक अनोखा रहस्य पुराने लोगों द्वारा सुनने में आता है ।
पूर्व समय में कुछ लोग शिकरा बाज का घोंसला खोजते थे । और देखते थे कि उसमें छोटे बच्चे हैं या नहीं । बच्चे होने पर वे किसी एक बच्चे के पैर में लोहे की जंजीर बांध देते थे । शिकरा बाज जब बच्चे को जंजीर में बंधा 

देखता था । तो वह किसी ( अज्ञात ) पेङ पौधे आदि की लकङी लाता था । और उसके स्पर्श से वह जंजीर काट देता था । बाद में वह लकङी और जंजीर वह लोग उठा लाते थे । 
फ़िर उस लकङी के स्पर्श से लोहा कट जाता था ।
वास्तव में ऐसी कई जङी बूटियां हैं । जो अनोखे कार्य करती हैं । वनवासी ऋषियों मुनियों को इनमें से बहुतों के बारे में जानकारी थी । पर विलक्षण कार्य वाली वस्तुओं के नाम और उपयोग आदि जानकारी को उन्होंने दुरुपयोग के भय से उजागर नहीं किया ।
इनमें से कई का सम्बन्ध प्राचीन दिव्यताओं से भी है । जो इनकी शक्ति से भी जुङा है ।
हुआ हुआ करने वाला साधारण सियार, पूज्य और उपयोगी होने के बाद भी मानव मल को खा लेने वाली गाय, प्रथ्वी को स्पर्श करते समय हमेशा पैर में लकङी दबाये हारिल पक्षी ( ताकि प्रथ्वी का स्पर्श न हो, अलल पक्षी, शार्दूल, गुणकारी शक्तिशाली पौधा तुलसी, केतकी, केवङा आदि, इन सबका सम्बन्ध प्राचीन दिव्य विभूतियों के शाप या स्थिति च्युत घटनाओं से हैं ।
84 लाख योनियों में अधिकांश देहधारी इसी के चलते शरीर आकार, रंग, खानपान और रहनी को लेकर विवश हैं । बाद में उनके कर्मफ़ल के आधार पर इस देह के भी सुख या कष्ट अलग से होते हैं ।

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326