जिस प्रकार नीम
चढ़ी गिलोय का अतिकटु एक बूंद रस नख से शिख तक कङवाहट प्रसार कर शारीरिक विकारों का
नाश कर देता है।
उसी प्रकार “सत्यशब्द”
की एक चिनगी कोटि जन्म के पापों/विकारों में से
अनेकों का नाश कर देती है।
इसलिये सदैव इस
“प्रथम-शब्द” का ध्यान करो।
दोऊ काम न होंय
भुआला, हसो ठठाव फ़ुलाओ गाला।
--------------------------------
जिस प्रकार चीनी, नमक,
लाल मिर्च, खटाई, बादी व
बासी भोजन अनेकों शारीरिक विकार उत्पन्न कर दारुण कष्टों, एवं
मृत्यु का कारण है।
उसी प्रकार काम, क्रोध,
लोभ, मोह, मद ये पंचविकार
अनेकों मनःविकार उत्पन्न कर दारुण जन्म-मरण, त्रयशूल एवं भव-रोग
के कारण हैं।
पूर्वजन्म के
पाप सों,
हरिचर्चा न सुहाय।
जैसे विषम ज्वर
में, भूख विदा हो जाय॥
----------------------------------------------
“होय बुद्धि जो
परम सयानी”
सनमुख होय जीव
मोहि जबहीं,
जनम कोटि अघ नासों तबहीं।
मम दरसन फ़ल परम
अनूपा, जीव पाय जब सहज सरूपा।
औरउ एक गुपुत
मत, सबहि कहउँ कर जोरि।
संकर भजन बिना
नर, भगति न पावइ मोरि॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें