15 जून 2019

ह्रदय वाणी





जिस प्रकार नीम चढ़ी गिलोय का अतिकटु एक बूंद रस नख से शिख तक कङवाहट प्रसार कर शारीरिक विकारों का नाश कर देता है।
उसी प्रकार सत्यशब्द की एक चिनगी कोटि जन्म के पापों/विकारों में से अनेकों का नाश कर देती है।
इसलिये सदैव इस प्रथम-शब्दका ध्यान करो।

दोऊ काम न होंय भुआला, हसो ठठाव फ़ुलाओ गाला।
--------------------------------



जिस प्रकार चीनी, नमक, लाल मिर्च, खटाई, बादी व बासी भोजन अनेकों शारीरिक विकार उत्पन्न कर दारुण कष्टों, एवं मृत्यु का कारण है।
उसी प्रकार काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद ये पंचविकार अनेकों मनःविकार उत्पन्न कर दारुण जन्म-मरण, त्रयशूल एवं भव-रोग के कारण हैं।

पूर्वजन्म के पाप सों, हरिचर्चा न सुहाय।
जैसे विषम ज्वर में, भूख विदा हो जाय॥
----------------------------------------------



“होय बुद्धि जो परम सयानी

सनमुख होय जीव मोहि जबहीं, जनम कोटि अघ नासों तबहीं।

मम दरसन फ़ल परम अनूपा, जीव पाय जब सहज सरूपा

औरउ एक गुपुत मत, सबहि कहउँ कर जोरि।
संकर भजन बिना नर, भगति न पावइ मोरि॥


कोई टिप्पणी नहीं:

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326