21 जून 2019

रासलीला




                                                  रासलीला (योगद्रष्टि)

जीव का ह्रदय ही वृंदावन धाम है। चैतन्य ही श्रीकृष्णः है। अंतःकरण की वृतिया ही गोपियां हैं। विकार रहित पूर्ण प्रसन्न खिला हुआ परम शीतल मन ही पूर्ण उदित पूर्णिमा का चंद्रमा है।
भीतर से उठता हुआ अनाहत नाद ही वेणु है। उस नाद का श्रवण करके अंतकरण की वृतियां अंतर्मुख हो आत्म चैतन्य के साथ रमण करती हैं। योगी समाधिस्थ हो जाता है। यही रासलीला है।




जिस प्रकार प्रथम उदर विकार निदान बिना अन्य रोग निदान निरर्थक हैं। उसी प्रकार सोऽहम बीज, मूल सिद्ध किये बिना सभी जप-तप, पूजा-पाठ, तीर्थ-वृत, दान-धर्म, ज्ञान-ध्यान निरर्थक है।
इसलिये प्रथम जीव, बाद (आत्म) मूल शोधो।

नाम लिया तिन सब लिया, चार वेद का भेद।
बिना नाम नरकै पङा, पढ़ि-पढ़ि चारो वेद॥




जिस प्रकार अरंड तेल के नस्य से कटिस्नायुशूल (साइटिका) व्याधि का नाश हो जाता है। ठीक उसी प्रकार सार-शब्द के आघात/पछाङ से समस्त आदि-व्याधि सहित भवरोग का समूल नाश हो जाता है।
हे मोक्षधर्मियों जीव के मूल, सार-शब्द हेतु प्रयत्नशील बनो।

सार-शब्द जाने बिना, कागा हंस न होय।

कोटि नाम संसार में, तिन ते मुक्ति न होय।
आदि-नाम जो गुप्त है, बूझत बिरला कोय॥

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326