17 फ़रवरी 2011

क्या रावण ने काल को बाँध लिया था ?


ही ही ही..क्या हाल है ? जनाव का । अंकल जी ( वैसे तो मैं आपका अंकल हूँ । ) मैंने आपको कुछ दिन पहले दो सवाल भेजे थे । तुमने आंसर नहीं भेजा । अरे यार तुम तो ग्यानी हो । प्लीज आंसर दे दिया करो । हम जैसे पापी लोगों का भला करो ?? अब दोबारा सवाल सुनो ?? एन्ड इनका आंसर अपने ब्लाग में आर्टीकल के रूप में छापो ???
Q 1 क्या गीता 4 वेद का सार है ?
Q 2 क्या रावण ने काल को बाँध लिया था ?
Q 3 ये शून्य 0 या महाशून्य 0 या परमशून्य 0 अवस्था क्या होती है ? ये शून्य 0 का लफ़ङा मैंने बुद्धिज्म के आर्टीकल में पढा था । लेकिन ससुर समझ कुछ नहीं आया । वहाँ लिखा था । बुद्ध जी परमशून्य अवस्था 0 में पहुँच गये ( आप बता दो कि वो कहीं टट्टी करने तो नहीं चले गये थे ? )
Q 4 मुझे टीथ टूटने का सपना कई बार आ चुका है । पिछले 3 या 4 साल से ( सिर्फ़ टीथ टूटने का सपना ही ज्यादा क्यों आया ? ऐसा सपना मंथ या 2 मंथ में 1 बार आता है । )
लालाजी मजाक तो मैं इसलिये करता हूँ । क्योंकि मैं हँसमुख आदमी हूँ । अगर कुछ सीरीयस काम भी करना है । तो स्मायल से । ये रोना धोना । ( आई डोन्ट लाइक ) ज्यादा चुटकले मेरे को आते नहीं । मैं खुद जैसा फ़ड्डू हूँ । वैसी ही फ़ड्डू बात करके दूसरे को हँसाने की कोशिश करता हूँ । तुम माइंड मत करना । मुझे आशा है कि इन आंसर के जवाव ?? आप नेक्स्ट आर्टीकल में जरूर दोगे । अब चलते हैं । क्योंकि जय जवान । जय किसान । ही ही ही ही ।.. विनोद त्रिपाठी । ई मेल से ।
ANS 1 वेद की बातें बहुत लोग करते हैं । पर सच्चाई जानने वाले गिनेचुने ही होंगे । वेद तीनों लोकों का संविधान है । जिसमें यहाँ के कानून । साइंस । पदाधिकारी और वस्तुओं का निर्माण । वनस्पतियों आदि के गुण अवगुण । अलौकिक बिग्यान आदि की जानकारी है । यहाँ आपके प्रश्नानुसार उसमें भक्ति का वर्णन केवल इसीलिये है कि वो चीज या शक्ति या ग्यान आप उसके नियत देवता या अधिकारी द्वारा कैसे प्राप्त करेंगे । यानी वेद स्वयँ उस ग्यान के बारे में साइंस की तरह । ये साधारण जिग्यासा उठने पर..कि ऐसा हो तो जायेगा । पर क्यों ?? हो जायेगा । के लिये " नेति नेति " कहता है । यानी बात इतनी ही नहीं है । इसलिये वेद कहता है कि मेरी सीमा बस यही है । अन्य ग्यान के लिये मैं नहीं हूँ । गीता को वेदों का सार । नये टीकाकारों ने ही कहा है । और वो भी इसलिये कि वेदों में जीवन मूल के आत्मतत्व और उनकी जिग्यासा उस तरह नहीं मिलती । जैसी कि गीता में है । वेद जिसके लिये " नेति नेति " कहते हैं । गीता उससे आगे की बात करती है । और संक्षिप्त शब्दों में करती है । इसलिये उससे प्रभावित लोगों ने अपने ग्यान के आधार पर गीता को वेदों का " सार " कहा है । जबकि गीता और वेदों का आपस में इस विषय पर कोई रिश्ता नहीं है । वेद अलग और गीता अलग बात कह रही है ।
ANS 2 पहले ये समझिये कि रावण की बैकग्राउन्ड क्या थी ? और इसके लिये फ़्लैशबैक में जाना होगा । भगवान श्रीकृष्ण के " गोलोक " में " जय और विजय " नाम के दो द्वारपाल थे । जिन्हें किसी गलती के चलते गोलोक से निकाल दिया गया था । अपमान और बदले की भावना लिये इन्हें इस मृत्युलोक में आना पङा । जहाँ इनका पहला जन्म हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप के रूप में हुआ । और इनका वध वराह अवतार द्वारा..हिरण्याक्ष । नृसिंह अवतार द्वारा..हिरण्यकश्यप का हुआ । प्रतिशोध की इसी भावना के साथ इनका अगला जन्म रावण और कुम्भकरण के रूप में हुआ । और वध श्रीराम द्वारा हुआ । इनका तीसरा जन्म मथुरा नरेश कंस और शिशुपाल के रूप में हुआ । और इन दोनों का वध भी भगवान श्रीकृष्ण द्वारा हुआ । इस तरह क्रिया..प्रतिक्रिया के आधार पर रावण पहले ही मृत्युलोक की कालसीमा ? से बाहर था । लेकिन आपके प्रश्नानुसार जो कथा लोक प्रचलन में आयी । उसकी वजह थी । रावण का अपनी शक्तियों के कारण तीनों लोक 1 प्रथ्वीलोक 2 स्वर्गलोक 3 पाताललोक में बेहद आंतक था । वह निर्वाध रूप से स्वर्ग जाता था । जहाँ प्राणी मरने के बाद जाता है ।
उसने सभी देवताओं को अपनी तप से अर्जित ताकत के बल पर बन्दी बना लिया था । जिसमें यमराज जैसे भी थे । यमराज और इनके जैसे तमाम देवता उसकी चौखट पर सलाम बन्दगी करते थे । रावण शंकर जी और बह्मा जी का भक्त था ही । उसकी नाभि में अमृतग्यान होने से अमृत स्थिति थी । शंकर जी को सिर काटकर अर्पित करने से उसे वरदान द्वारा इस तरह से भी नहीं मारा जा सकता था । उस पर शंकर और बृहमा द्वारा दिये वरदानों की भरमार थी । उसने अपने तप से अनेक मायावी शक्तियाँ हासिल कर ली थीं । बृह्मा ने सिर्फ़ उसका एक अति इच्छित वरदान देने से मना कर दिया था । जिसके अनुसार वह चाहता था कि उसकी कभी मृत्यु ही न हो ? क्योंकि यह वरदान देने की पावर बह्मा या शंकर या विष्णु के पास नहीं थी । विष्णु से वह वैसे ही द्रोह करता था । क्योंकि देवताओं से उसकी लङाई में विष्णु उसे कङी टक्कर देते थे ।..अब जैसा कि लोग समझते हैं कि विष्णु जी ने राम अवतार लेकर उसे मारा था । यह गलत है । क्योंकि उसका तो जय विजय वाला त्रिलोकी के मालिक कालपुरुष से श्रीकृष्ण के रूप में वैर था । अतः कालपुरुष याने श्रीकृष्ण याने राम ने उसका वध किया था । अब साधारण मृत्यु के आर्डर चित्रगुप्त यमराज आदि के यहाँ से होते हैं । और इनके ही कार्यकर्ता जीव का प्राणीनाम लेने आते है । तो जिनका मालिक ही किसी से डरता हो । उसके प्रतिनिधि की क्या बिसात कि वो उस इंसान के प्राण हरण कर लायें । ऐसी ही बातों के आधार पर यह कहा जाने लगा कि रावण ने काल को भी वश में कर लिया था । काल यानी यहाँ के ? समय और उसकी गतिविधियों पर रावण का पूरा नियंत्रण था । क्योंकि ये पूरी सरकार ही एक तरह से लगभग उसके कब्जे में थी ।
ANS 3 शून्य 0 महाशून्य 0 परमशून्य 0 ।.. सभी लोक किसी बहुमंजिला इमारत की तरह से ऊँचाई और नीचाई पर स्थित हैं । इस तरह से लगभग दस मंजिल के बाद जो फ़्लोर ( यहाँ आकाश ) आता है । उस पहले आकाश को यहाँ शून्य 0 कहा गया है । ये स्थान एकदम खाली और सृष्टि और लोक के नियमों यथा गुरुत्वाकर्षण आदि से रहित होता है । जिसे संतों की भाषा में सुन्न न कि शून्य 0 कहा जाता है । इसी आधार पर काफ़ी ऊपर जाने पर महाशून्य 0 आता है । परमशून्य 0 जैसी कोई जगह या स्थिति नहीं होती । परम का अर्थ ही परे है । तो फ़िर परे के बाद भी अगर शून्य है । तो फ़िर वो परे या परम कैसे हुआ ??
बुद्ध परमशून्य में पहुँच गये थे ? ऐसी हजारों नहीं बल्कि लाखों बातें किसी भी महात्मा या ग्यानी के अनुयाइयों और बाद के लोगों ने उनकी कहानी में जोङ दी । जिनका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं था । इसीलिये कहा जाता है कि.. रहिमन तेरे देश में भांति भांति के लोग..???
ANS 4 अगर दाँत में कीङा लगना । पायरिया । केविटीज या उमर अधिक होने से दाँत की जङ कमजोर होने से हिलने पर ऐसा सपना आता है । तो ये कोई अजीब बात नहीं है । भूखे अवस्था में सोने पर भोजन के । मूत्र त्याग की जरूरत होने पर लघुशंका के । कामातुर भाव रहने पर संभोग के । बच्चों को खेल के । विध्यार्थियों को इम्तहान के । गरीब को धन प्राप्त होने के आदि..मन की तीवृ चाहत के अनुसार सपने आते ही हैं । पर कोई सपना बिना किसी कारण के बारबार आता हो । तो वह भविष्य में घटने वाली घटना का संकेतक ही होता है । दाँत टूटने का सपना । किसी गंभीर बीमारी । उसी स्तर के अपयश । या किसी भी कारणवश धनहानि की ओर इशारा करता है । विशेष कारणों में यह आने वाली अपंगता भी दर्शाता है । अतः फ़ायनली कोई एक बात कहना कठिन है ।..ऐसा भी हो सकता है । ज्यादा ही ही करने से भगवान चेतावनी देता हो कि ज्यादा ही ही करोगे बच्चू । तो दाँत ही तोङ दूँगा । जाकी रही भावना जैसी । हरि मूरत देखी तिन तैसी ।

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326