यह सत्य है कि भगवान या परमात्मा के बारे में एकदम निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है । गौतम बुद्ध को सबसे ज्यादा इसी प्रश्न का सामना करना पङा था ।.. क्या आपने भगवान को देखा है ? बुद्ध इस प्रश्न पर मौन हो जाते थे । उत्तर दें । तो आखिर क्या दें । ना कह नही सकते थे । हाँ कहने पर ढीठ प्रश्नकर्ता कहेगा । है..तो हमें भी दिखाओ । तुलसी को भी इसी प्रश्न का सामना अपने सतसंग में अक्सर करना पङता था । हारकर तुलसीदास जी ने कहा ।.. घट में है । सूझत नहीं । लानत ऐसी जिंद । तुलसी जा संसार को भओ मोतियाबिंद । तब किसी सतसंगी ने फ़िर कहा । महाराज..ये मोतियाबिंद हो तो गया । मगर अब कटेगा कैसे ? तब तुलसी ने कहा ।.. सतगुरु पूरे वैध हैं । अंजन है सतसंग । ग्यान सलाई जब लगे । तो कटे मोतियाबिंद ।
नानक देव को भी इस प्रश्न का सामना करना पङा था ।.. क्या आपने भगवान को देखा है ? लेकिन नानक जी अपने स्वभाव के अनुसार मौन नहीं होते थे । बल्कि कह देते थे । हाँ देखा है । तब सामने वाला कहता ।.. देखा है । तो मुझे भी दिखाओ । नानक जी कहते । दिखा तो मैं दूँगा । पर इस दिखाने की कीमत तू क्या देगा ? क्या तू भगवान को देखा जाना साधारण बात मानता है ।.. मम दर्शन फ़ल परम अनूपा । जीव पाय जब सहज सरूपा ।.. सनमुख होय जीव मोहि जबहीं । कोटि जन्म अघ नासों तबहीं ।.. मामूली बात है । भगवान का देखा जाना ? तुमने तो जीभ उठाकर पटक दी । संत के सामने । मानों भगवान न हुआ । कोई छोटी मोटी वस्तु हो गयी । बता कितनी कीमत मानता है ? इस दर्शन की ।.. नानक जी बङे अच्छे लेकिन आलोचकों के लिये विचित्र स्वभाव के भी थे ।
जिस स्थान पर मैं रहता हूँ । नानक के समय में यहाँ घना जंगल था । एक दिन नानक जी ने अपनी मंडली के साथ एक पेङ के नीचे डेरा जमा लिया । और बैठे हुये तमाम चरवाहों से कहा । बालको कुछ भोजन मिलेगा । इस पर किसी चरवाहे ने व्यंग्य से कहा ।..हाँ गल्ला ( अनाज ) आप पैदा करके रख गये होगे । नानक जी ने कहा । बस इतनी बात । कितना गल्ला चाहिये । वह भी उसी टोन में बोला । गाँव का भंडारा हो जाता महाराज । नानक जी ने चार दाने हथेली के बीच रखे । और फ़िर दोनों हाथ जोङे हुये ही हथेली से अनाज गिराने लगे । अनाज के ढेर लग गये ।
खैर..यही प्रश्न विवेकानन्द जी ने रामकृष्ण परमहँस से किया था । .. क्या आपने भगवान को देखा है ?
परमहँस ने उत्तर दिया । हाँ नरेन्द्र । बिल्कुल उसी तरह जिस तरह तुम्हें देख रहा हूँ । आगे विवेकानन्द जी के पास कहने को कुछ बचा ही नहीं था ।..हाँ कहो तो.. है नहीं । ना कही ना जाय । हाँ ना के बीच में साहिब रहा समाय । रामकृष्ण के बारे में यह तो प्रसिद्ध ही हो चुका था कि वे काली देवी का तुरन्त साक्षात कर लेते थे ।
इतिहास गवाह है कि अत्यंत धार्मिक ? इस प्रथ्वीलोक में जब भी किसी संत ने प्रभु दर्शन के बारे में या साक्षात्कार विधि के बारे में बात कही है । उसे कई स्तरों पर आलोचना झेलनी पङी । ये बात अलग है कि बाद में जीत हमेशा उस प्रभु के प्यारे की ही हुयी । कबीर । बुद्ध । महावीर । नानक । नये संतों में रजनीश आदि की काफ़ी थुक्का फ़जीहत लोगों ने की । और ये भी इतिहास है कि बाद में जय जयकार भी की ।
हैरत इसी बात की है । बेहद पूजा करने वाले भी जब दर्शन की बात करो । तो वाद विवाद पर उतर आते हैं ।..मुझे उन दिनों की बात याद आती है । जब मैं कक्षा सात आठ में पढता था । तो बीजगणित के अनोखे सवाल देखकर मुझे बङी उलझन होती थी । राम के पिता की उमर य वर्ष है । राम की उमर 10 साल की है । 10 वर्ष बाद राम के पिता की उमर उसकी दुगनी हो जायेगी आदि ।..मुझे हैरानी इस बात की होती थी कि य मान लेने के बाद इसमें सूत्र लगा देने से उमर निकल आती थी ।..आज इसका रहस्य समझ में आया । तब झूँझल होती थी । आज उन सवालों का सही रहस्य समझ में आया । परमात्मा भी अग्यात है ।..माना परमात्मा य है । बस अब इसको सही ग्यात करने का सूत्र जोङना है ।
लेकिन आलोचक इसको भी हजम नहीं कर पाते । तब इसके लिये थोङा पीछे जाना होगा । कुछ देर के लिये आदिमानव बनना होगा । कभी किसी ने तो पहली बार दुधारू पशु पाला होगा ? दूध गर्म किया होगा । दही भी जमाया होगा । फ़िर किसी प्रेरणा से दही को मथा होगा । तब उसमें से मक्खन निकला होगा । फ़िर घी बना होगा । क्रिया दर क्रिया । अब घी का बहुविधि इस्तेमाल तो हो सकता है । पर और कुछ नहीं बन सकता ।..अब कल्पना कीजिये । दूध से घी का ये आविष्कारक इस विधि से अनजान किसी अन्य आदिमानव के पास जाकर कहे । देखो इस दूध से ही यह बहुमूल्य पदार्थ प्राप्त हुआ है ।
असंभव । दूसरा यही तो कहेगा । पर वास्तव में ऐसा ही हुआ था ।
बात और भी है ।.. कभी माचिस भी पहले किसी ने बनायी ही होगी । और तब उसने जाकर किसी से कहा होगा । अब देर तक पत्थर से पत्थर या लकङी से लकङी रगङने की आवश्यकता नहीं । ये तीली फ़ुर्र करो । और आग जली । तब भी कहा होगा । असंभव ?? असंभव कहने की हमें जन्मजात आदत जो पङ गयी है । आज नया जमाना है । मुझे नये उदाहरण देने होते हैं । मैं लोगों को यह कहकर चौंका देता हूँ । ये सामने खाली जगह । ऊपर आसमान में देखो । करोङों अरबों आदमी । औरत । आवाजें । अक्षर । चित्र आदि यहाँ सब हवा में खन्ड खन्ड तैर रहे हैं । अपने बुलाने वाले के पास चले जाते हैं । उस माध्यम में उतर जाते हैं । उस तरीके में उतर जाते हैं । जो इनके लिये तय है । जिस वे में ये भृमण कर रहें हैं । क्या ये बात पहले कभी आपने सोची थी ?
आप यकीन करिये । अच्छे अच्छे पढे लिखे भी चौंक जाते । कहाँ महाराज ?? हमें तो कुछ भी नजर नहीं आ रहा ? ..और ये भी पहले मानने से ही हुआ था । कभी किसी ने सोचा ही होगा कि चीजों को तोङकर वायु के माध्यम से भेजा जा सकता है । जहाँ वे गंतव्य पर पहुँचकर पुनः रिसीवर में अपने मूल रूप में आ जायेंगी । यही साइंस है । यही योग है । साइंस कोई आसमान से तो टपकी नहीं ? कब । क्यों । कैसे । पर निर्भर साइंस केवल जान ही तो लेती है कि ऐसा करने पर ऐसा हो जाता है ।
आज के सुविधाजनक सामान क्या आसमान से टपके हैं ? इसी प्रथ्वी से ही तो सब उत्पन्न हुआ है । धातु । प्लास्टिक आदि कई चीजों को मिलाकर असंख्य चीजों का निर्माण हो गया । सबाल ये है कि ये सब पहले से थीं । केवल इनका तरीका ही तो जान गये हम । ये अब सिद्ध हो गयीं । महत्वपूर्ण तो तरीका ही है । लोग कहते । कहाँ हैं ? हवा में आदमी औरत आदि ? आदिमानव के पास भी यही सब सामान होता । तरीका ग्यात होता । तो उस समय भी TV फ़ोन इंटरनेट सब कुछ बन सकता था । इससे यही साबित होता है कि ये सब पहले से था । केवल हम तरीका ही जान गये हैं । इसलिये तरीका जानना ही महत्वपूर्ण हैं । बिना तरीके के तो सब कुछ असंभव है । मैं कहता । कमाल है । आपके TV । इंटरनेट । फ़ोन में जो इकठ्ठे हो जाते हैं । वो खंडित आसमान में ही तो तैरते हैं ।
अब दूध से घी सिद्ध हो गया । माचिस से आग सिद्ध हो गयी । लेकिन क्या ये सब सच है ? वास्तव में दूध से घी कभी नहीं सिद्ध हुआ । बिना क्रिया कराये आज भी दूध से घी का काम नहीं लिया जा सकता । माचिस से आग कभी सिद्ध नहीं हुयी । दूध अब भी दूध है । घी उसी तरह अब भी दूध में छिपा हुआ है । बस क्रिया सिद्ध हो गयी । हम दूध से घी बनाना जान गये । दूध भी हमेशा था । और उसमें घी भी हमेशा ही था । बस हम जानते नहीं थे । जान गये तो सब सरल सहज हो गया । यही संत कहते हैं । हमेशा मानते ही मत रहो । उसको जानों । उसको सिद्ध करो । एक बार सिद्ध हो गया । फ़िर सब सरल है । सब सहज है ।
नानक देव को भी इस प्रश्न का सामना करना पङा था ।.. क्या आपने भगवान को देखा है ? लेकिन नानक जी अपने स्वभाव के अनुसार मौन नहीं होते थे । बल्कि कह देते थे । हाँ देखा है । तब सामने वाला कहता ।.. देखा है । तो मुझे भी दिखाओ । नानक जी कहते । दिखा तो मैं दूँगा । पर इस दिखाने की कीमत तू क्या देगा ? क्या तू भगवान को देखा जाना साधारण बात मानता है ।.. मम दर्शन फ़ल परम अनूपा । जीव पाय जब सहज सरूपा ।.. सनमुख होय जीव मोहि जबहीं । कोटि जन्म अघ नासों तबहीं ।.. मामूली बात है । भगवान का देखा जाना ? तुमने तो जीभ उठाकर पटक दी । संत के सामने । मानों भगवान न हुआ । कोई छोटी मोटी वस्तु हो गयी । बता कितनी कीमत मानता है ? इस दर्शन की ।.. नानक जी बङे अच्छे लेकिन आलोचकों के लिये विचित्र स्वभाव के भी थे ।
जिस स्थान पर मैं रहता हूँ । नानक के समय में यहाँ घना जंगल था । एक दिन नानक जी ने अपनी मंडली के साथ एक पेङ के नीचे डेरा जमा लिया । और बैठे हुये तमाम चरवाहों से कहा । बालको कुछ भोजन मिलेगा । इस पर किसी चरवाहे ने व्यंग्य से कहा ।..हाँ गल्ला ( अनाज ) आप पैदा करके रख गये होगे । नानक जी ने कहा । बस इतनी बात । कितना गल्ला चाहिये । वह भी उसी टोन में बोला । गाँव का भंडारा हो जाता महाराज । नानक जी ने चार दाने हथेली के बीच रखे । और फ़िर दोनों हाथ जोङे हुये ही हथेली से अनाज गिराने लगे । अनाज के ढेर लग गये ।
खैर..यही प्रश्न विवेकानन्द जी ने रामकृष्ण परमहँस से किया था । .. क्या आपने भगवान को देखा है ?
परमहँस ने उत्तर दिया । हाँ नरेन्द्र । बिल्कुल उसी तरह जिस तरह तुम्हें देख रहा हूँ । आगे विवेकानन्द जी के पास कहने को कुछ बचा ही नहीं था ।..हाँ कहो तो.. है नहीं । ना कही ना जाय । हाँ ना के बीच में साहिब रहा समाय । रामकृष्ण के बारे में यह तो प्रसिद्ध ही हो चुका था कि वे काली देवी का तुरन्त साक्षात कर लेते थे ।
इतिहास गवाह है कि अत्यंत धार्मिक ? इस प्रथ्वीलोक में जब भी किसी संत ने प्रभु दर्शन के बारे में या साक्षात्कार विधि के बारे में बात कही है । उसे कई स्तरों पर आलोचना झेलनी पङी । ये बात अलग है कि बाद में जीत हमेशा उस प्रभु के प्यारे की ही हुयी । कबीर । बुद्ध । महावीर । नानक । नये संतों में रजनीश आदि की काफ़ी थुक्का फ़जीहत लोगों ने की । और ये भी इतिहास है कि बाद में जय जयकार भी की ।
हैरत इसी बात की है । बेहद पूजा करने वाले भी जब दर्शन की बात करो । तो वाद विवाद पर उतर आते हैं ।..मुझे उन दिनों की बात याद आती है । जब मैं कक्षा सात आठ में पढता था । तो बीजगणित के अनोखे सवाल देखकर मुझे बङी उलझन होती थी । राम के पिता की उमर य वर्ष है । राम की उमर 10 साल की है । 10 वर्ष बाद राम के पिता की उमर उसकी दुगनी हो जायेगी आदि ।..मुझे हैरानी इस बात की होती थी कि य मान लेने के बाद इसमें सूत्र लगा देने से उमर निकल आती थी ।..आज इसका रहस्य समझ में आया । तब झूँझल होती थी । आज उन सवालों का सही रहस्य समझ में आया । परमात्मा भी अग्यात है ।..माना परमात्मा य है । बस अब इसको सही ग्यात करने का सूत्र जोङना है ।
लेकिन आलोचक इसको भी हजम नहीं कर पाते । तब इसके लिये थोङा पीछे जाना होगा । कुछ देर के लिये आदिमानव बनना होगा । कभी किसी ने तो पहली बार दुधारू पशु पाला होगा ? दूध गर्म किया होगा । दही भी जमाया होगा । फ़िर किसी प्रेरणा से दही को मथा होगा । तब उसमें से मक्खन निकला होगा । फ़िर घी बना होगा । क्रिया दर क्रिया । अब घी का बहुविधि इस्तेमाल तो हो सकता है । पर और कुछ नहीं बन सकता ।..अब कल्पना कीजिये । दूध से घी का ये आविष्कारक इस विधि से अनजान किसी अन्य आदिमानव के पास जाकर कहे । देखो इस दूध से ही यह बहुमूल्य पदार्थ प्राप्त हुआ है ।
असंभव । दूसरा यही तो कहेगा । पर वास्तव में ऐसा ही हुआ था ।
बात और भी है ।.. कभी माचिस भी पहले किसी ने बनायी ही होगी । और तब उसने जाकर किसी से कहा होगा । अब देर तक पत्थर से पत्थर या लकङी से लकङी रगङने की आवश्यकता नहीं । ये तीली फ़ुर्र करो । और आग जली । तब भी कहा होगा । असंभव ?? असंभव कहने की हमें जन्मजात आदत जो पङ गयी है । आज नया जमाना है । मुझे नये उदाहरण देने होते हैं । मैं लोगों को यह कहकर चौंका देता हूँ । ये सामने खाली जगह । ऊपर आसमान में देखो । करोङों अरबों आदमी । औरत । आवाजें । अक्षर । चित्र आदि यहाँ सब हवा में खन्ड खन्ड तैर रहे हैं । अपने बुलाने वाले के पास चले जाते हैं । उस माध्यम में उतर जाते हैं । उस तरीके में उतर जाते हैं । जो इनके लिये तय है । जिस वे में ये भृमण कर रहें हैं । क्या ये बात पहले कभी आपने सोची थी ?
आप यकीन करिये । अच्छे अच्छे पढे लिखे भी चौंक जाते । कहाँ महाराज ?? हमें तो कुछ भी नजर नहीं आ रहा ? ..और ये भी पहले मानने से ही हुआ था । कभी किसी ने सोचा ही होगा कि चीजों को तोङकर वायु के माध्यम से भेजा जा सकता है । जहाँ वे गंतव्य पर पहुँचकर पुनः रिसीवर में अपने मूल रूप में आ जायेंगी । यही साइंस है । यही योग है । साइंस कोई आसमान से तो टपकी नहीं ? कब । क्यों । कैसे । पर निर्भर साइंस केवल जान ही तो लेती है कि ऐसा करने पर ऐसा हो जाता है ।
आज के सुविधाजनक सामान क्या आसमान से टपके हैं ? इसी प्रथ्वी से ही तो सब उत्पन्न हुआ है । धातु । प्लास्टिक आदि कई चीजों को मिलाकर असंख्य चीजों का निर्माण हो गया । सबाल ये है कि ये सब पहले से थीं । केवल इनका तरीका ही तो जान गये हम । ये अब सिद्ध हो गयीं । महत्वपूर्ण तो तरीका ही है । लोग कहते । कहाँ हैं ? हवा में आदमी औरत आदि ? आदिमानव के पास भी यही सब सामान होता । तरीका ग्यात होता । तो उस समय भी TV फ़ोन इंटरनेट सब कुछ बन सकता था । इससे यही साबित होता है कि ये सब पहले से था । केवल हम तरीका ही जान गये हैं । इसलिये तरीका जानना ही महत्वपूर्ण हैं । बिना तरीके के तो सब कुछ असंभव है । मैं कहता । कमाल है । आपके TV । इंटरनेट । फ़ोन में जो इकठ्ठे हो जाते हैं । वो खंडित आसमान में ही तो तैरते हैं ।
अब दूध से घी सिद्ध हो गया । माचिस से आग सिद्ध हो गयी । लेकिन क्या ये सब सच है ? वास्तव में दूध से घी कभी नहीं सिद्ध हुआ । बिना क्रिया कराये आज भी दूध से घी का काम नहीं लिया जा सकता । माचिस से आग कभी सिद्ध नहीं हुयी । दूध अब भी दूध है । घी उसी तरह अब भी दूध में छिपा हुआ है । बस क्रिया सिद्ध हो गयी । हम दूध से घी बनाना जान गये । दूध भी हमेशा था । और उसमें घी भी हमेशा ही था । बस हम जानते नहीं थे । जान गये तो सब सरल सहज हो गया । यही संत कहते हैं । हमेशा मानते ही मत रहो । उसको जानों । उसको सिद्ध करो । एक बार सिद्ध हो गया । फ़िर सब सरल है । सब सहज है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें