24 फ़रवरी 2011

यहां दूर के ढोल सुहावने हैं

संन्यास क्या वे ही लोग लेते हैं । जिन्हें जीवन की व्यर्थता का बोध हो गया ?
- और कौन लेगा ? संन्यास कोई खिलवाड़ तो नहीं । संन्यास कोई बच्चों का खेल तो नहीं । जिन्हें जीवन की व्यर्थता का बोध हो गया है । जिन्हें यह बात दिखायी पड़ गयी कि जीवन में दौड़ो कितना ही । पहुंचोगे कहीं भी नहीं । कमाओ कितना ही । अंततः सब कमाना गंवाना सिद्ध होगा । जिन्हें यह दिख गया है कि यहां दूर के ढोल सुहावने हैं । पास आने पर सब व्यर्थ हो जाते हैं । जिन्हें जीवन की मृगमरीचिका का बोध हो गया है । वे ही तो संन्यासी होते हैं । संन्यास का अर्थ ही क्या है ? संसार की व्यर्थता का बोध ही संन्यास है । संन्यास का अर्थ ही इतना है कि जहां हमें कल तक आशा थी । वहां आशा न रही । यह 1 रूपांतरण है । जहां जहां हमने सोचा था - सुख है । वहां सुख नहीं है । धन में सोचा । पद में सोचा । प्रतिष्ठा में सोचा । मोह में । मद मत्सर में सोचा । नहीं है । नहीं है । तब भी तो 1 जीवन होगा । संसार में सुख नहीं है । तब 1 नए जीवन की शुरुआत होती है । सुख भीतर है । सुख स्वयं में है । सुख आंतरिक संपदा है । स्वभाव है ।
*************
हास्य की क्षमता स्वयं की ओर इंगित होनी चाहिए । स्वयं पर हंसना बहुत बड़ी बात है । और जो स्वयं पर हंस सकता है । वह धीरे धीरे दूसरों के प्रति करूणा और उत्तरदायित्व से भर जाता है । पूरी दुनिया में कोई घटना । कोई विषय हास्य को इस भांति से नहीं लेता है । ओशो
******
ध्यान - गैर यांत्रिक होना ही रहस्य है । अगर हम अपनी क्रियाओं को गैर यांत्रिक ढंग से कर सकें । तो हमारी पूरी जिंदगी ही 1 ध्यान बन जाएगी । तब कोई भी छोटा सा कृत्य जैसे स्नान करना । भोजन करना । मित्रों से बातचीत करना । ध्यान बन जाएगा । ध्यान 1 गुणवत्ता है । जो किसी भी चीज के साथ जोड़ी जा सकती है । यह 

कोई अलग से किया गया काम नहीं है । लोग सोचते हैं कि ध्यान भी 1 कृत्य है । जब हम पूर्व दिशा में मुंह करके बैठते हैं । किसी मंत्र का जाप करते हैं । धूप अगरबत्ती जलाते हैं । किसी विशेष समय पर । विशेष मुद्रा में । किसी विशेष ढंग से कुछ करते हैं । ध्यान का इन बातों से कोई संबंध नहीं है । ये सब ध्यान को यांत्रिक बनाने के तरीके हैं । और ध्यान यांत्रिकता के विरोध में है । तो अगर हम होश को संभाले रखें । तो कोई भी कार्य ध्यान है । कोई भी क्रिया हमें बहुत सहयोग देगी । ओशो
***********
प्रेम को जानने का उपाय - पत्थर को सुंदर मूर्ति में निर्मित कर लेना । प्रेम को जानने का 1 उपाय है । साधारण शब्दों को जोड़ कर 1 गीत रच लेना । प्रेम को जानने का 1 उपाय है । नाचना कि सितार बजाना कि बांसुरी पर 1 तान छेड़ना । ये सब प्रेम के ही रूप है । ओशो
**********
जिसको तुम प्रेम करते हो । जिसकी जरा जरा सी बात की तुम चिन्ता फिकर करते हो कि उसके पैर में मोच न आ जाए । इसकी फिकर लेते हो । तुम उसी को गोली मार सकते हो । अगर उसका व्यवहार तुम्हारे अहंकार के विपरीत हो जाए । तो उसको जहर पिला सकते हो । उसी को तुम पहाड़ से ढकेल सकते हो । ऐसा तुम्हारा प्रेम । प्रेम नहीं हैं । जो प्रेम घृणा बन सकता है । वह प्रेम नहीं है । प्रेम यदि सच में ही प्रेम है । तो वह घृणा कैसे बन सकता है ? ओशो
************
उदासी - उदासी उतना उदास नहीं करती । जितना उदासी आ गई । यह बात उदास करती है । उदासी की तो अपनी कुछ खूबियां हैं । अपने कुछ रहस्य हैं । अगर उदासी स्वीकार हो । तो उदासी का भी अपना मजा है । मुझे कहने दो इसी तरह कि उदासी का भी अपना मजा है । क्योंकि उदासी में 1 शांति है । 1 शून्यता है । उदासी में 1 गहराई है । आनंद तो छिछला होता है । आनंद तो ऊपर ऊपर होता है । आनंद तो ऐसा होता है । जैसे नदी भागी जाती है । और उसके ऊपर पानी का झाग । उदासी ऐसी होती है । जैसी नदी की गहराई - अंधेरी और काली । आनंद तो प्रकाश जैसा है । उदासी अंधेरे जैसी है । अंधेरी रात का मजा देखा ? अमावस की रात का मजा देखा ? अमावस की रात का रहस्य देखा ? अमावस की रात की गहराई देखी ? मगर जो अंधेरे से डरता है । वह तो आंख ही बंद करके बैठ जाता है । अमावस को देखना ही नहीं चाहता । जो अंधेरे से डरता है । वह तो अपने द्वार दरवाजे बंद करके खूब रोशनी जला लेता है । वह अंधेरे को झुठला देता है । अमावस की रात आकाश में चमकते तारे देखे ? दिन में वे तारे नहीं होते । दिन में वे तारे नहीं हो सकते । दिन की वह क्षमता नहीं है । वे तारे तो रात के अंधेरे में । रात के सन्नाटे में ही प्रकट होते हैं । वे तो रात की पृष्ठभूमि में ही आकाश में उभरते हैं । और नाचते हैं । ऐसे ही उदासी के भी अपने मजे हैं । अपने स्वाद हैं । अपने रस हैं । ओशो
************
तुम ध्यान करते हो । लेकिन तुम इस उद्देश्य के साथ ध्यान करते हो कि ध्यान के द्वारा तुम कहीं किसी लक्ष्य तक पहुंच जाओगे । तुम बात चूक रहे हो । ध्यान में डूबो । और उसका आनंद लो । कोई लक्ष्य नहीं है । कोई भविष्य नहीं है । आगे कुछ नहीं है । ध्यान करो । अगर आनंद मनाओ । बिना किसी उद्देश्य के ।
**********
X ray vision - The flame of awareness functions like an X-ray. It sees things through and through, and in that very seeing there is freedom. In that light the darkness is no more there. You attain to buddhalike clarity. OSHO

कोई टिप्पणी नहीं:

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326