29 अक्टूबर 2016

दैवी-विधान सत्य और सब मिथ्या

राम किसी मिशन (खुदाई पैगाम, पंथ आदि) का दावा नही करता । यह कर्म सम्पूर्ण परमात्मा का ही है । हमें भगवान बुद्ध तथा अन्य लोगों के आदर्श और उदाहरणों से क्या करना है । हमारे मनों को तो दैवी-विधान की प्रत्यक्ष आज्ञाओं का पालन करना चाहिये । किन्तु भगवान बुद्ध और ईसामसीह भी अपने अनुयाईयों और मित्रों से त्यागे गये ।
इस प्रकार सात वर्ष के वनवास में से पिछले दो वर्ष बुद्ध भगवान ने नितान्त एकान्त में व्यतीत किये और तब एक दीप्तमान ज्योति प्राप्त (अनुभव) हुयी । जिसके बाद शिष्य लोग बुद्ध भगवान के पास एकत्र होने लगे । और बुद्ध भगवान ने भी आनन्द से उन्हें अपने पास आने दिया ।
प्यारे सदाशयवान ! माननीय सम्मतिदाताओं के मत और विचारों से प्रभावित मत हों । यदि इनके विचार ईश्वरीय नियमाकूल होते तो आज तक इन्होंने हजारों बुद्ध भगवान उत्पन्न कर दिये होते ।
धीरे धीरे किन्तु दृढ़तापूर्वक जिस प्रकार मधु में फ़ंसी हुयी मक्खी अपनी टांगे मधु से निकाल लेती है । इसी प्रकार रूप और व्यक्तिगत आसक्ति के एक एक कण को हमें अवश्य दूर करना होगा । सब संबन्ध एक दूसरे के बाद छिन्न भिन्न करने होंगे । सब बन्धन चट से तोङने होंगे । जब तक कि अन्तिम ईश्वर कृपा मृत्यु के रूप में आकर सारे अनिच्छित त्यागों की पूर्णाहुति न कर दे ।

दैवी-विधान का चक्र बङी निर्दयता से घूमता फ़िरता है । जो इस विधान (नियम) को आचरण में लाता है । वही इस पर आरूढ़ होता है अर्थात वही उस पर अनुशासन रखता है और जो अपनी इच्छा को दैवेच्छा के विरुद्ध खङा करता है । वह अवश्य कुचला जाता है और दारुण पीङायें झेलता है ।
दैवी-विधान त्रिशूल है । यह क्षुद्र अहंकार (अहंभाव) को छेद देता है । जो जानबूझ कर इस त्रिशूल रूपी सूली पर चढ़ता है । उसके लिये यह जगत स्वर्गवाटिका हो जाता है । अन्य सबके लिये यह जगत भ्रष्ट स्वर्ग है । 
यह दैवी-विधान अग्नि है । जो सबके सांसारिक स्नेह को भस्म कर देती है । मूढ़ मन को झुलसा देती है । और इससे बढ़कर अंतःकरण को शुद्ध करती तथा आध्यात्मिक रोग के सर्व प्रकार के कीङों को नष्ट कर देती है ।
धर्म इतना विश्व व्यापक (सार्वलौकिक) है और हमारे जीवन से इतना मार्मिक संबन्ध रखता है जितना कि भोजन क्रिया । सफ़ल नास्तिक व्यक्ति मानों अपने ही भीतर की इस पाचन विधि को नही जानता है ।
दैवी-विधान हमें छुरे की नोक के जोर से धार्मिक बनाता है । कोङे लगाकर हमें जगाता है । इस विधान से निस्तारा (छुटकारा) नही ।
दैवी-विधान सत्य है और अन्य सब मिथ्या है । समस्त रूप और व्यक्ति दैवी-विधान के सागर में केवल बुलबुले से हैं । 
सत्य की व्याख्या ऐसे की गयी है कि - सत्य वह है जो (एकरूप, एकरस) निरन्तर रहे । अथवा रहने का आग्रह करे ।
अब इस नाम रूप मय संसार में ये सब संबन्ध, देहें  व पदार्थ, संस्थायें और सभायें कोई भी ऐसा नहीं, जो इस त्रिशूल के विधान के समान सदा एकरस रह सके ।

20 अक्टूबर 2016

पासवर्ड का एक यूज यह भी

एक बार एक अजनबी ने एक 8 साल की लङकी से कहा - बेटा तुम मेरे साथ चलो । तुम्हारी मम्मी ने तुम्हें बुलाया है । उनकी तबियत खराब है और उन्होंने मुझे तुम्हें
लेने भेजा है ।
लङकी ने कहा - ठीक है, मैं आपके साथ चलूंगी पर मेरी माँ ने आपको एक ‘पासवर्ड’ बताया होगा । जो सिर्फ़ उन्हें और मुझे ही पता है । आप पहले वह पासवर्ड मुझे बतायें ।
अजनबी सकपकाया और वहाँ से खिसक लिया ।

दरअसल इस बच्ची और उसकी माँ ने तय किया हुआ था कि अगर कभी बच्ची को लेने किसी 
अजनबी को भेजने की नौबत आई । तो माँ उसे पासवर्ड बतायेगी और बच्ची भी पासवर्ड 
को जान लेने के बाद ही उस अजनबी के साथ जायेगी । 
देखा कितना आसान तरीका है, बच्चों को किसी दुर्घटना से बचाने का । आप भी अपने बच्चों के
साथ ऐसा पासवर्ड तय कर सकते हैं ।

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सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय 
सहज योग (क्रिया योग) ध्यान, समाधि
जनहितार्थ में प्रकाशित - मुक्तमंडल आगरा

आवश्यक जानकारियां

यद्यपि यह ब्लाग पूर्णतया आध्यात्म (आत्मज्ञान, ध्यान, क्रियायोग, समाधि) केन्द्रित है । तथापि ‘सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय’ भी इसका उद्देश्य है । अतः आवश्यक सूचनायें और उपयोगी जानकारी भी समय समय पर साझा/प्रकाशित की जाती रही हैं ।   




                                                         सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय 
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12 अक्टूबर 2016

अदल कबीर गुरु प्रणाली

कबीर साहिब का चेतावनी युक्त सुन्दर भजन जो जीवन की निस्सारता और निजत्व के सदा स्मरण कर निज घर वापसी का आह्वान करता है ।

क्या सोया उठ जाग मन मेरा, भई भजन की बेरा रे ।
रंगमहल तेरा पङा रहेगा, जंगल होगा डेरा रे ।
सौदागर सौदा को आया, हो गया रैन बसेरा रे ।
कंकर चुन चुन महल बनाया, लोग कहें घर मेरा रे ।
ना घर मेरा ना घर तेरा, चिङिया रैन बसेरा रे ।
अजावन का सुमिरण कर लें, शब्द स्वरूपी नामा रे ।
भंवर गुफ़ा से अमृत चुवे, पीवे सन्त सुजाना रे ।
अजावन वे अमर पुरुष हैं, जावन सब संसारा रे ।
जो जावन का सुमिरन करिहै, पङो चौरासी धारा रे ।
अमरलोक से आया बन्दे, फ़िर अमरापुरु जाना रे ।
कहें कबीर सुनो भाई साधो, ऐसी लगन लगाना रे ।
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श्री गुरु रामानन्द जू, तिनके दास कबीर ।
तत्वा जीवा शिष्य भये, तिनके ज्ञान गंभीर ।
सत्वा जीवा शिष्य भये, तिनहुँ के मतिमान ।
‘पुरुषोत्तम’ जीवा भये, अति पुनीत परधान ।
‘कुन्तादास’ तिनके भये, सकल ज्ञान के धाम ।
सुखानन्द सुख रूप ही, रत विचार गत काम ।
‘सम्बोधदास’ पुनि तिनके, शिष्य भये बुध भूप ।
‘देवादास’ सु देवही, जिनकी कथा अनूप ।
‘विश्वरूपदास’ जु भये, सो तो जगदाधार ।
‘विक्रोधदास’ जु कोपगत, विगत सदा मद मार ।
‘ज्ञान मुकुन्ददास’ भये, सुगति देत सब काहु ।
‘सुरूपदास’ सब शिष्य को, जगजीवन लाहु ।
‘निर्मलदास’ निर्मल मति, ‘कोमलदास’ मृदुचित्त ।
‘गणेशदास’ जु विघ्न हरि, शरणागत को चित्त ।
‘गुरुदयालदास’ जु भये, सो वैराग्य निधान ।
‘घनश्यामदासो भये, घनश्याम इव मान ।
‘भरतदास’ विश्व के भरण, ‘मोहनदास’ सुखैन ।
‘रघुवरदास’ रघुवर सम, सब जग मंगल दैन ।
‘दयालदास’ भये जगत, विदित दया आगार ।
‘ज्ञानीदास’ उदार मति, दीनन करत उद्धार ।
‘केशवदास’ केशव सम, सब विभूति के खान ।
शान्त चित्त सो सन्त हित, सदा सन्त परमान ।
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भक्ति भावना को जाग्रति करती यह विनती भक्ति भाव को प्रगाढ़ करती है और गहरे ध्यान में ले जाने में सहयोग करती है । पठनीय ही नही, संग्रहणीय भी ।

सुरति करो मेरे साईयां, हम हैं भव जल माहिं ।
आपहि से बहि जायेंगे, जो नही पकङो बांह ।
मैं अपराधी जन्म का, नख शिख भरा विकार ।
तुम दाता दुख भंजना, मेरी करो उबार ।
अवगुण मेरे बाप जी, बख्सो गरीब निवाज ।
जो मैं पूत कपूत हौं, तउ पिता कों लाज ।
मुझ में औगुण तुझहि गुण, तुझ गुण अवगुण मुझ्झ ।
जो मैं बिसरूँ तुझ्झ को, तुम नहि बिसरो मुझ्झ ।
साहिब तुम मत बिसरो, लाख लोग मिल जायं ।
हम सम तुम्हरे बहुत हैं, तुम सम हमरे नायं ।
साहिब तुम दयाल हो, तुम लगि मेरी दौर ।
जैसे काग जहाज को, सूझै और न ठौर ।
अब के जब साईं मिलें, सब दुख आँखों रोय ।
चरणों ऊपर सिर धरूँ, कहूँ जो कहना होय ।
अन्तर्यामी एक तुम, आतम के आधार ।
जो तुम छोङो साथ को, कौन उतारे पार ।
कर जोरे विनती करूं, भवसागर है अपार ।
बन्दा ऊपर महर करो, आवागवन निवार ।

इश्क शरा दा वैरी

आओ मित्रो, हमें मिलो हमारा दुख सुख जानो । स्वपन में हम एक दूसरे से बिछुङ गये थे । अब तुम्हारा कोई पता नही लग पा रहा है । 
मेरे स्वामी, मैं वन में अकेली हूँ और तरह तरह के (धार्मिक) लुटेरों से लुट रही हूँ । मुल्ला और काजी तरह तरह के कर्मकांडी राह दिखाते हैं । जिससे दीन (इस्लाम) और धर्म (हिन्दू) सम्बन्धी भ्रम पैदा होते हैं । ये तो चिङीमार ठग की भांति हैं जो संसारी जीवों को फ़ंसाने को जाल बिछाते हैं ।
ये लोग बाहरी कर्मकांड और शरीअत को धर्म (आंतरिक अध्यात्म) बताते हैं और इस तरह से पैरों में जंजीरें डाल देते हैं । खुदा के इश्क के दरबार में कोई धर्म (सम्प्रदाय) के विषय में प्रश्न नही पूछता । सच कहूँ तो सच्चे इश्क का शरीअत से वैर है । 
प्रिय का देश नदी (भवजल) के पार है । नदी में लोभ की तरह तरह की लहरें उठ रही हैं । सतिगुरु (मुर्शिद) नाव लेकर खङे हैं । उसी के सहारे पार हो सकते हो । तब नाव में चढ़ने में देरी क्यों कर रहे हो ?
बुल्लेशाह कहते हैं कि (नाव में चढ़ जाओ) तुम्हें प्रिय अवश्य मिलेंगे । दिल में भरोसा रखो, प्रिय तो तुम्हारे पास ही है । तब तुम भरी दोपहरी के समय उसे खोजने की भूल क्यों कर रहे हो ?
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आ मिल यारा सार लै मेरी, मेरी जान दुखां ने घेरी ।
अन्दर ख्वाव बिछोङा होया, खबर न पैंदी तेरी ।
सुज्जी वन विच लुट्टी साइयां, चोर-शंग ने घेरी ।
मुल्लां काजी राह बतावण, दीन धरम दे फ़ेरे ।
एह तां ठग ने जग दे झांवर, लावण जाल चुफ़ेरे ।
करम शरां दे धरम बतावण, संगल पावण पैरी ।
जात मजब एह इश्क न पुछदा, इश्क शरा दा वैरी ।
नदियों पार ए मुलक सजण दा, लोभ लहर ने घेरी ।
सतिगुरु बेङी पङी खलोत, तैं क्यों लाई ए देरी ।
बुल्ले शाह शौह तैंनूं मिलसी, दिल नू देह दलेरी ।
प्रीतम पास ते टोलणा किस नूं, भुलिओ सिखर दुपहरी ।

11 अक्टूबर 2016

कुण्डलिनी जागरण हेतु

भारत जैसे महान देश में आज महान शाश्वत आध्यात्मिक विज्ञान ‘कुण्डलिनी जागरण’ और मन्त्र तन्त्र के नाम पर जो हँसी मजाक सा प्रचलित हो गया है । उसे देखकर हँसी और रोना ही आता है । विभिन्न प्राचीन हिन्दू धर्म ग्रन्थों से अपनी अपनी अल्प बुद्धि से व्यवसायी प्रवृत्ति के लोगों ने खुद के विद्वान होने का लबादा ओढ कर ऐसी ऐसी सत्यानाशी पुस्तकों का सृजन किया । जिनसे आम जनमानस किसी भी प्रकार से लाभान्वित होने के बजाय भारी भृम और अज्ञानता के महासागर में और डूब गया ।
महाकुण्डलिनी शक्ति को इन तुच्छ बुद्धि लोगों ने कोई ऐसा योग ज्ञान या साधारण क्रियात्मक ज्ञान समझ लिया (और लोगों को समझा दिया) मानों ये किसी छोटे मोटे उपकरण को नियन्त्रित संचालित करना मात्र हो ।
वास्तव में कुण्डलिनी महामाया योग शक्ति है । जिसे योगमाया शक्ति भी कहते हैं । जिसका सीधा सा अर्थ है कि विभिन्न पिंडी (शरीर या विराट) चक्रों को चक्र अनुसार ऊर्जा और शक्ति (से जोङने) देने वाली - एक इकाई, एक तन्त्र, एक बृह्माण्डिय स्थिति और प्रतीक गो रूप (शरीर इन्द्रिय रूप) में महादेवी भी । जो परम चेतना से शक्ति लेकर समग्र परिपथ को जरूरत अनुसार चेतना का वितरण करती है ।
मनुष्य शरीर और विराट (पुरुष में स्थिति) सृष्टि का सरंचना रूपी ढांचा आंतरिक और बाह्य रूप से एकदम समान ही है । फ़र्क केवल इतना है कि इस माडल में - असंख्य लोक लोकान्तर, असंख्य शून्य, असंख्य क्षेत्र, असंख्य मार्ग, असंख्य स्थितियां, असंख्य दरवाजे आदि विभिन्न स्थितियों पर स्थिति हैं और एक अदभुत तन्त्र द्वारा लाक्ड है । 
यह भी एक बेहद अदभुत बात है कि वहाँ (पूरी अखिल सृष्टि में कहीं भी) कोई दरवाजा और कोई ताला नहीं है । फ़िर भी एक क्षेत्र स्थिति से दूसरी स्थिति या क्षेत्र बङे चमत्कारिक तरीके से लाक्ड है । और विभिन्न चेतन पुरुषों (जैसे - दिव्य, बृह्म, सिद्ध, योगी, तांत्रिक आदि आदि अपनी प्राप्त स्थिति या पद के अनुसार ही किसी भी क्षेत्र या एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में विचरण आदि कर सकते हैं ।
जैसे इस प्रथ्वी पर ही एक राज्य या देश से दूसरे राज्य या देश में जाने रहने कार्य करने की स्थिति में तमाम प्रशासनिक औपचारिकताओं और कागजी कार्यवाही की प्रक्रिया से गुजरना होता है । ठीक ऐसा ही शासन प्रशासनिक नियम इस विराट सृष्टि की विभिन्न गतिविधियों पर लागू होता है । और इन सबकी आज्ञा अधिकार पत्र आदि देने का मुख्य अधिकार उस क्षेत्र विशेष के द्वैत या अद्वैत सत्ता द्वारा नियुक्त सिर्फ़ समर्थ गुरु को ही प्राप्त होता है ।
अतः आपको आश्चर्य हो सकता है । अलग अलग स्थितियों क्षेत्रों और पद ज्ञान के अनुसार समर्थ आंतरिक पहुँच वाले गुरुओं की संख्या अनगिनत होती है । विराट के इन अनगिनत गुरुओं में भी इस प्रथ्वी पर देहधारी होकर प्रकट रूप गुरु गिने चुने ही होते हैं । क्योंकि अलौकिक ज्ञान किसी भी युग में इतने बङे पैमाने पर कभी नहीं फ़ैलता कि हजारों की संख्या में सच्चे गुरुओं की आवश्यकता हो । उदाहरण के तौर पर इस समूची प्रथ्वी के लिये इस घोर कलिकाल में भी 500 गुरु अधिकतम कहे जा सकते हैं । 
लेकिन बेहद आश्चर्यजनक रूप से किसी भी एक समय में देहधारी सदगुरु सिर्फ़ एक ही होता है । यानी सदगुरु कभी भी दो या अधिक नहीं हो सकते । सिर्फ़ समय के देहधारी सदगुरु में ही ये सामर्थ्य होती है कि वह किसी को भी (उसकी पात्रता अनुसार) परमात्मा से मिला सकता है । या साक्षात्कार करा सकता है । जबकि इस प्रथ्वी पर काल माया के जाल से अनेकानेक नकली पाखंडी सदगुरु पैदा हो जाते हैं । जो सदगुरु तो बहुत दूर सही अर्थों में छोटे मोटे गुरु या तांत्रिक मांत्रिक भी नहीं होते । तब कुण्डलिनी जैसे महाज्ञान को रेवङियों की तरह बाँटने वालों के लिये क्या कहा जाये । क्या ऐसा संभव है ? कदापि नहीं ।
जैसा कि मैंने ऊपर कहा । मनुष्य का और इस विराट सृष्टि का ढांचा एकरूप ही है । पर मनुष्य (जीवात्मा) माया के आवरण में ढका होने से (बद्ध) अल्पज्ञ और अल्प शक्ति वाला है । क्योंकि इसका परिपथ समस्त ज्ञान विज्ञान या ऊर्जा स्रोतों से नहीं जुङा है । अतः जब कभी इसमें पुण्य कर्मफ़ल और भक्तिफ़ल आदि के फ़लस्वरूप जागरूकता, चैतन्यता का उदय होता है । तब यह अपने उत्थान और उद्धार हेतु प्रत्यनशील हो उठता है । ऐसा होते ही यह तत सम्बन्धी अलौकिक ज्ञान के सत साहित्य और सन्त समागम आदि से जुङने लगता है और कृमशः ही अलौकिक ज्ञान को जानने हेतु उन्मुख हो उठता है ।
संक्षेप में देखा जाये । तो यहीं से कुण्डलिनी ज्ञान की शुरूआत होने लगती है और कृमशः झूठे सच्चे गुरुओं से गुजरता हुआ मनुष्य असली, नकली और सार, असार का फ़र्क जानने लगता है । और फ़िर सच्चे सन्तों का शरणागति होने लगता है । इसलिये कुण्डलिनी या धारणा ध्यान समाधि जैसे योग बिना सच्चे गुरु के कभी संभव नहीं हैं । चाहें खुद के प्रयास से इसको सिद्ध करने में आप कितने ही जन्म क्यों न लगा दें ।
अलग अलग स्तर और पहुँच के गुरुओं के अनुसार कुण्डलिनी जागरण के तरीके भी भिन्न भिन्न से हो जाते हैं । और इस विषय से पूर्णतया अनभिज्ञ शिष्य किसी मामूली ऊर्जा आवेश या योग क्रिया को कुण्डलिनी जागरण समझने की भूल कर जाते हैं । जबकि किसी भी एक चक्र पर कुण्डलिनी का जागरण आपकी कल्पना से बहुत अधिक ऊर्जा पैदा करता है और ऐसे अलौकिक अनुभवों से शिष्य गुजरता है कि उसे ध्यान मस्ती का एक अदभुत नशा सा छाने लगता है और ये मैं सिर्फ़ मूलाधार चक्र की ही बात कर रहा हूँ ।
तब क्या ऐसे किसी व्यक्ति या गुरु को आपने देखा है या सुना है ? या फ़िर आप कैसे तय कर पायेंगे कि आपकी कुण्डलिनी पूर्ण हो गयी या सिर्फ़ एक ही चक्र खुला है । जबकि आपका गुरु सिर्फ़ मूलाधार चक्र का ही सिद्ध गुरु हो । आप पुस्तकों के आधार पर ये मिथ्या भ्रामक कल्पना कतई न करें कि मूलाधार जाग्रत हुआ तो आपको गुदा लिंग स्थान के आसपास ही विभिन्न अनुभूतियां होंगी । कोई छोटा अलौकिक आवेश भी आपके मष्तिष्क ह्रदय और पूरे शरीर में ही ऊर्जा सी दौङा देता है । 
तब आसानी से ये भृम हो सकता है कि आपकी कुण्डलिनी पूर्ण रूप से जाग्रत हो गयी और आप भारी भृम में उत्थान के बजाय तेजी से विनाश की ओर अग्रसर होने लगते हैं । क्योंकि निचले मंडल सिद्ध स्थितियां हैं । जिनमें भोग विलासिता का बाहुल्य है और जो आपको बहुत तेजी से कुमार्गी बनाता हुआ अन्त में नर्क जैसे परिणाम को देता है । क्योंकि सिद्धि और अलौकिक शक्ति बिना अच्छे गुरु और सटीक ज्ञान के आपको निर्माण की बजाय विध्वंस की ओर उन्मुख करती है । सरल शब्दों में खुद के द्वारा खुद का ही पतन । अतः ये मार्ग बङी सावधानी का है ।

अभी और भी जुङेगा ।

दान की महत्ता

सर्वप्रथम तो मैं यही स्पष्ट कर दूँ कि हम किसी से कोई दान आदि नही लेते और न ही किसी संस्था विशेष, व्यक्ति विशेष या (धर्म) गुरु विशेष को दान देने का ही आग्रह (और सिफ़ारिश) करते हैं । 
फ़िर भी इस पेज पर बेव डिजायनर की चूक से लिख गया Donate Us दरअसल ‘दान महत्ता’ शब्द होना चाहिये था । जो कि अवसर और डिजायनर का संयोग बनने पर ठीक किया जायेगा ।
फ़िर भी दान एक ऐसा सृष्टिगत कार्य है । जिसकी बेहद महत्ता है और जो बहु जीवन के पक्षों पर सूक्ष्म अवलोकन करने से स्वयं ही समझ में आ जाता है कि - दान क्या है और उसका क्या महत्व है ?
गांठी दाम न बांधहि । नहि नारी से नेह ।
कहि कबीर उन सन्तन की । हम चरनन की खेह ।
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सबसे पहली बात तो यही है कि कोई भी दान हम तभी कर सकते हैं । जबकि वैसा करने लायक हमारी स्थिति और वैसी ही धर्मार्थ भावना का संयोग बने । अन्यथा दान का हो पाना संभव ही नही ।
दान या पुण्यार्थ कार्यों में सिर्फ़ बङे मूल्यांकन वाले जैसे धन, जमीन, वस्तु, वस्त्रादि ही नहीं बल्कि प्यासे को पानी, भूखे को भोजन, नंगे को वस्त्र और जरूरत मन्द को शारीरिक, मानसिक मदद करना भी दान की ही श्रेणी में आता है ।

एक बात (या सूत्र) सदैव ध्यान में रखें कि परस्पर जीव पूरक सृष्टि में आप किसी के लिये ‘एक तिनका’ जैसा भी कुछ सहयोग या कोई कार्य नही कर सकते । क्योंकि कोई भी जो कुछ भी करेगा । वह अभी या भविष्य में सिर्फ़ ‘उसी के लिये’ होगा ।
कंचन दीया करन ने । द्रोपदी दीया चीर ।
जो दीया सो पाईया । ऐसे कहे कबीर ।
अतः जैसा कि मैंने कहा ‘परस्पर जीव पूरक सृष्टि’ में आप कुछ भी, कर भी तभी सकते हैं । जब सृष्टिकर्ता आपको इसका अवसर और साधन उपलब्ध करायेगा और ऐसा वह तभी करता है । जब इससे पूर्व के धन का आपने परमार्थिक सदुपयोग किया हो । अन्यथा अवसर बनेगा ही नही ।  
धर्म किये धन ना घटे । नदी ना घट्टै नीर ।
अपनी आँखों देखि ले । यों कथि कहहिं कबीर ।
सनातन आदि परम्परा से ही धर्मार्थ विषय का कहना है कि - एक रोटी के चार भाग किये जाने चाहिये । एक अतिथि के लिये, एक भिक्षुक के लिये, एक परिवार हेतु और शेष एक ग्रहस्वामी हेतु । ये नियम है । एक रोटी का अर्थ यहाँ एक दिन के उपार्जन से है । अतः सीधी सी बात है कि हमें 25% दान (भिक्षुक आदि) और 25% जागतिक व्यवहार (अतिथि आदि) हेतु करना चाहिये । भिक्षुक, जरूरत मन्द को किया हुआ ही आगे फ़लित होकर पुण्य फ़ल के रूप में प्राप्त होता है और अतिथि आदि को किया हुआ आगे के जागतिक व्यवहार में संस्कार बनकर लौटता है ।
सहज मिले तो दूध है । माँगि मिलै सौ पानि ।
कहैं कबीर वह रक्त है । जामे ऐंचातानि ।
यह वह दान हुआ जो हम सामान्य और निगुरा अवस्था में करते हैं ।
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गुरु धारण करने पर - अज्ञान से ज्ञान भूमि में आ जाने पर यानी निगुरा से सगुरा हो जाने की स्थिति में (यदि सच्चा गुरु मिल जाये) आप यदि समर्पित शिष्य की श्रेणी में आ जाते हैं । तो फ़िर जीवन के 4 पुरुषार्थों में से धर्म और मोक्ष की आपकी चिन्ता गुरु की हो जाती है । शेष दो पुरुषार्थ काम (नाओं पर नियन्त्रण) और अर्थ का संचालन, उपार्जन और निस्तारण आपके मुख्य कर्तव्य रह जाते हैं । मतलब अब आपको परलोक के लिये जप, तप, तीर्थ, वृत, दान आदि कुछ नहीं करना । बल्कि शास्त्र और धर्मग्रन्थ सम्मत उपार्जित का दसवां भाग 10% गुरु को स्थिति अनुसार अर्पित करते रहना है ।
अनमांगा उत्तम कहा । मध्यम माँगि जो लेय ।
कहैं कबीर निकृष्टि सो । पर घर धरना देय ।
गुरु को ये धन क्यों, इसका क्या उपयोग और क्या प्राप्ति - इस पर दरअसल बहुत विस्तार से लिखना होगा । परन्तु संक्षेप में, यह धन गुरु स्थान, खानपान की व्यवस्था और स्थान सम्बन्धी अन्य परमार्थिक कार्यों में व्यय होता है । फ़िर भी आप ये न समझें कि आप इस व्यवस्था में कुछ सहयोग कर रहे हैं । मैंने पहले ही कह दिया है - एक बात (या सूत्र) सदैव ध्यान में रखें कि परस्पर जीव पूरक सृष्टि में आप किसी के लिये ‘एक तिनका’ जैसा भी कुछ सहयोग या कोई कार्य नही कर सकते ।
प्रीति रीति सब अर्थ की । परमारथ की नहिं ।
कहैं कबीर परमारथी । बिरला कोई कलि माहिं ।
गुरु द्वारा दान नियोजन का अर्थ है । आपने एक स्थायी सुखद सुदृढ़ भविष्य के लिये निवेश किया है । लेकिन रहस्य की बात यह है कि आपका द्वारा किया सभी दान सिर्फ़ खाते में जमा नही होता । बल्कि शुरूआती बहुत सा दृव्य आपके काल ऋण को उतारने में ही व्यय हो जाता है । इस बात को थोङा गहराई से समझें ।
खाय पकाय लुटाय के । करि ले अपना काम ।
चलती बिरिया रे नरा । संग न चले छदाम ।
क्योंकि मैंने स्वयं बहुत से लोगों का आया हुआ दान बरबाद और निष्प्रयोज्य व्यय होते देखा है । अक्सर यह 80% तक भी हो जाता है । एकदम शुद्ध सात्विक प्रकृति और लगभग धर्मात्मा की श्रेणी में आने वाले लोगों का भी 20 से 35% तक यूँ ही नष्ट हो जाते देखा है । यहाँ पर ‘चोरी का माल मोरी में’ और ‘मेहनत की कमाई, सकै ना लुटाई’ वाली कहावत पर ध्यान दें ।
परमारथ पाको रतन । कबहुँ न दीजै पीठ ।
स्वारथ सेमल फूल है । कली अपूठी पीठ ।
ऐसा नही कि आप एक संकल्प कर लें कि ये हो जाने पर या इतना हो जाने पर आप दान धर्म की शुरूआत करेंगे । 99 का खेल ऐसा कभी करने ही नही देता । घोर गरीबी होने पर भी आप किसी अभीष्ट की प्राप्ति हेतु उसे बेहद संकुचित स्थिति में 1-2 पैसा करके जोङते हैं और दैव अनुकूल होने पर अभीष्ट पाते हैं । यही दान धर्म का भी मर्म है ।
 सत ही में सत बाटई । रोटी में ते टूक ।
कहै कबीर ता दास को । कबहुँ न आवै चूक ।
और ये भी नही कि आप एक निश्चित आयु तय कर लें कि 30 या 40 या 50 वर्ष पर या फ़लाना कार्य पूरा हो जाने पर ही कोई धर्मादि कार्य शुरू करेंगे । क्योंकि जीवन का कोई पता नही । जैसे ही जन्म हुआ । काल घात लगाकर बैठ गया ।
सुमिरन करहु राम का । काल गहे है केस ।
ना जाने कब मारि है । क्या घर क्या परदेस ।
और एक बार कूच का बिगुल बज गया । फ़िर 2 स्वांसों की भी मोहलत नही मिलती । याद करें, सिकन्दर ने 1 दिन के जीवन के लिये आधी सम्पत्ति का प्रस्ताव रखा था । लेकिन उसके चिकित्सकों ने कहा - पूरी भी देने पर 5 मिनट भी देना हमारे लिये संभव नही ।
देह खेह होय जागती । कौन कहेगा देह ।
निश्चय कर उपकार ही । जीवन का फल येह ।
अतः जैसा कि किसी भी गैर लाभकारी संस्था के साथ हमेशा ही होता है कि वह धर्मार्थ और सामाजिक हितार्थ दानकर्ताओं के सहयोग से ही चलती है । विश्व के अनेकानेक लोग किसी सच्ची और ईमानदार संस्था को परमार्थ और परोपकार के उद्देश्य से अपना बहुमूल्य धन दान करना चाहते हैं । अतः यदि आप दान करने के इच्छुक हैं । तो पूर्ण विवेक, पूर्ण भावना, निष्काम भाव से स्व इच्छा, स्व विवेक से जहाँ भी आपकी भावना बने । अंतरात्मा की आवाज उठे । वहाँ आगामी समय और आगामी जन्मों हेतु श्रद्धा सामर्थ्य अनुसार कुछ न कुछ दान अवश्य करें ।
सत साहेब !

कबीर साहिब और सत्साहित्य पुस्तकों के लिंक

अक्सर ही मेरे पास कबीर साहिब के अनमोल साहित्य.. बीजक, अखरावती, अनुराग सागर आदि और अन्य आत्मज्ञान के सन्तों की वाणियों की पुस्तकों की प्राप्ति हेतु प्रकाशन के नाम, पता और इंटरनेट पर उपलब्ध pdf पुस्तकों के लिंक की जानकारी के लिये फ़ोन, संदेश आते रहते हैं ।
जिज्ञासुओं और शोधकर्ताओं की इसी मांग को देखते हुये हमने इंटरनेट पर उपलब्ध सत्साहित्य पुस्तकों के विभिन्न लिंकों की यह सूची प्रकाशित की है ।
जिसे संजोया और उपलब्ध कराया है - दीपक अरोरा ने ।  
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स्रोत:

https://www.scribd.com/collections/4532201/SANT-MAT
संत-मत

http://www.scribd.com/doc/256991583/Mool-Bijak-Tika-Sahit
कबीर साहिब का मुख्य ग्रन्थ मूल बीजक टीका सहित - कबीरपंथी महात्मा पूरन साहेब

https://ia800302.us.archive.org/3/items/Bijak.Kabir.Saheb.with.Hindi.Tika/Bijak.Kabir.Saheb.with.Hindi.Tika.pdf
or Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/253960445/Anurag-Sagar-46-Grantho-Dwara-Sansodhit
अनुराग सागर (46) ग्रंथों द्वारा संशोधित

https://ia801508.us.archive.org/27/items/AnuragSagar46GranthoDwaraSansodhit/Anurag %20Sagar%20(46)%20Grantho%20Dwara%20Sansodhit.pdf
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http://www.scribd.com/doc/230016087/Kabir-Saheb-Ka-Anurag-Sagar
कबीर साहब का असली अनुराग सागर

http://www.scribd.com/doc/267274829/AnuragSagar
अनुराग सागर

https://ia601500.us.archive.org/2/items/AnuragSagar/AnuragSagar.pdf
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http://webstock.in/001-Epics-PDF/Anurag-Sagr-Hindi/001-Anurag-Sagr- Hindi.pdf
अनुराग सागर Part-1

http://webstock.in/001-Epics-PDF/Anurag-Sagr-Hindi/002-Anurag-Sagr-Hindi.pdf
अनुराग सागर Part-2

http://www.scribd.com/doc/176786624/Hindi-Book-Bijak-kabir-saheb-by- Shri-Vishav-Nath-Singh
बीजक कबीर साहब

http://www.scribd.com/doc/104391128/Hindi-Book-Bijak-kabir-saheb-by- Shri-Khemraj-Shri-Krishandas
बीजक कबीर साहब

http://www.scribd.com/doc/117612557/kabir-bijak
बीजक कबीर साहब

http://www.scribd.com/doc/176792754/Hindi-Book-Kabir-Sahab-Ka- Beejak-by-Belvadiar-Press
कबीर साहेब का बीजक

https://ia801509.us.archive.org/7/items/bijak
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http://www.scribd.com/doc/19290688/Kabir-Sahab-Ka-Beejak-Hindi
कबीर साहेब का बीजक

http://www.scribd.com/doc/227116860/Sarlarth-Kabir-Saheb-Ki- Shabdavliyan-1
कबीर साहेब की शब्दावलियाँ

http://www.scribd.com/doc/230819338/Akharawati
अखरावती (कबीर साहेब का पूरा ग्रन्थ)

http://www.scribd.com/doc/230018170/Kabir-Saheb-Ki-Shabdavali-Part-1
कबीर साहब की शब्दावली भाग -1

http://www.scribd.com/doc/230015224/Kabir-Sahab-Ki-Gyan-Gudadi- Rekhte-Aur-Jhulane
कबीर साहिब की ज्ञान गुदड़ी रेख्ते और झूलने

https://www.scribd.com/doc/306476101/Sadguru-Kabir-Sahab-Ka-Sakhi- Granth
सदगुरु कबीर साहब का साखी ग्रन्थ

https://ia801508.us.archive.org/26/items/SadguruKabirSahabKaSakhiGranth/Sadguru %20Kabir%20Sahab%20Ka%20Sakhi%20Granth.pdf
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http://www.scribd.com/doc/230010381/Dharmadas-Ji-Ki-Shabdawali
धनी धर्मदास जी की शब्दावली (जीवन चरित्र सहित)

https://app.box.com/s/f3q393ej1h4ir3wpmc9g1ko0udn1d5am
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http://www.scribd.com/doc/265962979/Mita-Granthawali
मीता ग्रंथावली

https://ia801508.us.archive.org/21/items/MitaGranthawali/Mita%20Granthawali.pdf
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http://www.scribd.com/doc/246197828/Ghat-Ramayan
घट रामायण (तुलसी साहिब हाथरस वाले जी)

https://ia601307.us.archive.org/35/items/HindiBookGhatRamayan/Hindi%20Book- Ghat-Ramayan.pdf
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http://www.scribd.com/doc/261223158/Ramayan-Ka-Gudh-Rahsya
रामायण का गूढ़ रहस्य

https://ia801507.us.archive.org/6/items/RamayanKaGudhRahsya/Ramayan%20Ka %20Gudh%20Rahsya.pdf
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http://www.scribd.com/doc/261223587/Tulsi-Sahib-Ki-Bani
तुलसी साहिब (हाथरस वाले) की बानी

https://ia601505.us.archive.org/17/items/TulsiSahebJiKiBani/Tulsi%20Saheb%20Ji %20Ki%20Bani.pdf
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http://www.scribd.com/doc/230014951/Ratan-Sagar
रत्नसागर तुलसी साहिब (हाथरस वाले) का जीवन चरित्र सहित

https://ia601504.us.archive.org/9/items/RatanSagar/RatanSagar.pdf
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https://app.box.com/s/10c2vfu683jv805rabl1e88f6uit4noj
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http://www.scribd.com/doc/230014029/Tulsi-Sahib-Hathras-Vale-Ki- Shabdavali-Part-1
तुलसी साहिब हाथरस वाले की शब्दावली भाग - 1

https://ia801507.us.archive.org/23/items/TulsiSahibHathrasValeKiShabdavaliPart1/Tulsi %20Sahib%20Hathras%20vale%20ki%20Shabdavali%20Part%20-%201.pdf
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http://www.scribd.com/doc/230014453/Tulsi-Sahib-Hathras-Vale-Ki- Shabdavali-Part-2
तुलसी साहिब हाथरस वाले की शब्दावली भाग - 2

https://ia801509.us.archive.org/1/items/TulsiSahibHathrasValeKiShabdavaliPart2/Tulsi %20Sahib%20Hathras%20vale%20ki%20Shabdavali%20Part%20-%202.pdf
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http://www.scribd.com/doc/229320164/Pran-Sangli-Part-1-And-2
प्राण संगली भाग -1 और 2 (गुरुनानक जी का दुर्लभ ग्रन्थ)

https://ia601508.us.archive.org/17/items/PranSangliPartIII/Pran%20Sangli%20Part %20-%20I,%20II.pdf
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http://www.scribd.com/doc/260842248/Nanak-Vani
नानक वाणी

http://www.scribd.com/doc/266104810/Nanak-Suryoday-Janamsakhi
नानक सूर्योदय जन्मसाखी

https://www.scribd.com/doc/306476102/Shri-Dasam-Gurugranth-Sahib-Ji
श्री दसम ग्रन्थ साहिब जी

https://ia601502.us.archive.org/24/items/ShriDasamGurugranthSahibJi/Shri %20Dasam%20Gurugranth%20Sahib%20Ji.pdf
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http://www.scribd.com/doc/292797508/Sukhmani-Sahib-Shabdarth-Samet
सुखमनी साहिब (शब्दार्थ समेत)

https://ia801506.us.archive.org/20/items/SukhmaniSahibShabdarthSamet/Sukhmani %20Sahib%20Shabdarth%20Samet.pdf
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http://www.scribd.com/doc/131571711/Hindi-Book-Ath-shridadudayalji-ki- bani-by-shri-sukh-dev-ji-pdf
श्री दादूदयाल जी की वाणी

http://www.scribd.com/doc/165184853/Shri-Daduvani
श्री दादू वाणी

https://ia601505.us.archive.org/34/items/ShriDaduvani/Shri%20Daduvani.pdf
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http://www.pdf-archive.com/2013/10/24/shri-daduvani/shri-daduvani.pdf  
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https://www.scribd.com/doc/268359518/Daduvani-दादूवाणी
दादू वाणी

https://ia801509.us.archive.org/1/items/Daduvani/Daduvani- %E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%82%E0%A4%B5%E0%A4%BE %E0%A4%A3%E0%A5%80.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/131574074/Hindi-Book-Dadu-Dayal-Ki-Bani
दादूदयाल की बानी

https://ia601501.us.archive.org/10/items/DaduDayalKiBani/dadu%20dayal%20ki %20bani%20.pdf
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http://www.scribd.com/doc/131575900/Hindi-Book-Shri-Dadu-Dayal-Ki- Bani-by-shri-sudhakar-dwadi-pdf
श्री दादूदयाल की बानी

http://www.scribd.com/doc/131592780/Hindi-Book-Shri-Dadu-Dayal-Ki- Bani-part-1-2-by-Belvadiar-Press-Prayag-pdf
दादूदयाल की वाणी (जीवन चरित्र सहित) भाग-1 और 2

https://ia801003.us.archive.org/32/items/HindiBookShriDaduDayalKiBaniPart12ByBelvadiarP ressPrayag/Hindi%20Book=Shri%20Dadu%20Dayal%20Ki%20Bani%20part %201%20%26%202%20by%20Belvadiar%20Press,%20Prayag.pdf
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http://www.scribd.com/doc/260674572/Sri-Dadudayal-Ji-Ki-Vaani
श्री दादूदयाल जी की वाणी

https://www.scribd.com/doc/268354473/Shree-Harisingh-Granthawali  
श्री हरि सिंह ग्रंथावली

http://www.scribd.com/doc/246198548/Sundar-Bilas
सुन्दर बिलास, सुन्दरदास जी के जीवन चरित्र सहित

https://ia801502.us.archive.org/30/items/SundarBilas/Sundar%20Bilas.pdf
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http://www.scribd.com/doc/230539562/Shri-Sundar-Vilas
श्री सुन्दर विलास

https://app.box.com/s/p0jdr7g8r9okp18zugkt1mjl71wm3otn
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http://www.scribd.com/doc/266105719/Sunder-Sar
सुन्दर सार

http://www.scribd.com/doc/261330990/Sunder-Das
सुन्दरदास

http://www.scribd.com/doc/260760722/Sundar-Granthawali-Part-1
सुन्दर ग्रंथावली (प्रथम खण्ड)

https://ia801500.us.archive.org/20/items/SundarGranthawaliPart1/Sundar %20Granthawali%20Part-1.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/260760721/Sunder-Granthavali-Part-2
सुन्दर ग्रंथावली (द्वितीय खण्ड)

https://ia601508.us.archive.org/6/items/SunderGranthavaliPart2/Sunder %20Granthavali%20Part-2.pdf
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http://www.scribd.com/doc/265710194/Kavivar-Sant-Rajjab
कविवर संत रज्जब

http://www.scribd.com/doc/260570321/Sri-Rajjab-Vani
श्री रज्जब बानी

https://ia800203.us.archive.org/12/items/HindiBookRajjabVani/Hindi%20Book%20- Rajjab-Vani.pdf
Alternative Link

https://ia801508.us.archive.org/26/items/RajjabBaani/Rajjab%20Baani.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/265967802/Sant-Patludas-Aur-Patlu-Panth
संत पलटूदास और पलटू पंथ

http://www.scribd.com/doc/265967629/Sant-Paltu
संत पलटू

http://www.scribd.com/doc/230542754/Paltu-Sahib-Ki-Bani-Part-1
पलटू साहिब की बानी Part-1

https://ia801502.us.archive.org/11/items/PaltuSahibKiBaniPart1/Paltu%20Sahib %20Ki%20Bani%20Part-1.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/230543274/Paltu-Sahib-Ki-Bani-Part-2
पलटू साहिब की बानी Part-2

https://ia601501.us.archive.org/17/items/PaltuSahibKiBaniPart2/Paltu%20Sahib %20Ki%20Bani%20Part-2.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/230543825/Paltu-Sahib-Ki-Bani-Part-3
पलटू साहिब की बानी Part-3

https://ia601505.us.archive.org/17/items/PaltuSahibKiBaniPart3/Paltu%20Sahib %20Ki%20Bani%20Part-3.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/230542077/JagJivan-Sahab-Ki-Bani-Part-2
जगजीवन साहब की बानी Part-1

https://ia601509.us.archive.org/11/items/JagJivanSahabKiBaniPart1/JagJivan %20Sahab%20Ki%20Bani%20Part-1.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/230542077/JagJivan-Sahab-Ki-Bani-Part-2
जगजीवन साहब की बानी Part-2

https://ia801501.us.archive.org/4/items/JagJivanSahabKiBaniPart2/JagJivan %20Sahab%20Ki%20Bani%20Part-2.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/230540599/Gulal-Sahab-Ki-Bani
गुलाल साहेब की बानी (जीवन चरित्र सहित

https://ia601502.us.archive.org/24/items/GulalSahabKiBani/Gulal%20Sahab%20Ki %20Bani.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/230538653/Bheekha-Sahab-Ki-Bani
भीखा साहब की बानी (जीवन चरित्र सहित)

https://ia801509.us.archive.org/24/items/BheekhaSahabKiBani/Bheekha%20Sahab %20Ki%20Bani.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/230538163/Malukdasji-Ki-Bani
मलूकदासजी की बानी (जीवन चरित्र सहित)

https://app.box.com/s/0dv308ae1jj0fvbyk4ekzx9aeu1q52rg
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/265966860/Sant-Kavi-Malukdas
संत कवि मलूकदास

http://www.scribd.com/doc/230537528/Dulandasji-Ki-Bani
दूलनदास जी की बानी (जीवन चरित्र सहित)

https://ia601505.us.archive.org/13/items/DulandasKiBani/Dulandas%20Ki %20Bani.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/230536924/Yari-Sahab-Ki-Ratnavali
यारी साहब की रत्नावली

https://ia601508.us.archive.org/0/items/YariSahabKiRatnavali/Yari%20Sahab%20Ki %20Ratnavali.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/230536721/Keshavdas-Ji-Ki-Amighunt
केशवदास जी की अमीघूँट

https://ia801509.us.archive.org/22/items/KeshavdasJiKiAmighut/Keshavdas%20Ji %20Ki%20Amighut.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/265968090/Sant-Raidas
संत रैदास

http://www.scribd.com/doc/230535772/Raidas-Ji-Ki-Bani
रैदास (रविदास) जी की बानी

https://ia601509.us.archive.org/1/items/RaidasJiKiBani_201604/Raidas%20Ji%20Ki %20Bani.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/230009974/Meera-Bai-Ki-Shabdawali
मीराबाई की शब्दावली

https://ia601502.us.archive.org/20/items/MeeraBaiKiShabdawli/Meera%20Bai%20Ki %20Shabdawli.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/260467803/Meera-Bai-Ki-Padhyali
मीराबाई की पदावली

https://ia801505.us.archive.org/14/items/MeeraBaiKiPadhyali/Meera%20Bai%20Ki %20Padhyali.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/230013629/Gareebdas-Ji-Ki-Bani
गरीबदास जी की बानी जीवन-चरित्र सहित

https://ia601503.us.archive.org/3/items/GareebdasJiKiBaani/Gareebdas%20Ji%20Ki %20Baani.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/230010549/Dharnee-Das-Ji-Ki-Bani
धरनीदास जी की बानी (जीवन-चरित्र सहित)

http://www.scribd.com/doc/264606761/Ath-Shriswami-Charandas-Ka- Granth
अथ श्रीस्वामी चरणदास का ग्रन्थ

http://www.scribd.com/doc/260571368/Bhakti-Sagar
भक्तिसागर - चरणदास

https://ia801504.us.archive.org/5/items/BhaktiSagar/Bhakti%20Sagar.pdf
Alternative Link

https://ia801501.us.archive.org/14/items/BhaktiSagarGranthSwamiCharandas/Bhakti %20sagar%20granth%20-%20Swami%20Charandas.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/260350027/Charandas
संत चरणदास

http://www.scribd.com/doc/230822238/Charandas-Ji-Ki-Bani-Part-1
चरनदास जी की बानी भाग-1

https://ia601508.us.archive.org/16/items/CharandasJiKiBaniPart1/Charandas%20Ji %20Ki%20Bani%20Part-1.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/230824143/Charandas-Ji-Ki-Bani-Part-2
चरनदास जी की बानी भाग-2

https://ia801507.us.archive.org/6/items/CharandasJiKiBaniPart2/Charandas%20Ji %20Ki%20Bani%20Part-2.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/230537196/Dayabai-Ki-Bani
दयाबाई की बानी

https://ia601507.us.archive.org/27/items/DayabaiKiBani/Dayabai%20Ki%20Bani.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/13958504/Sahjo-Bai-Ki-Bani-Hindi
सहजोबाई की बानी

https://ia801504.us.archive.org/7/items/SahjoBaiKiBani/Sahjo%20Bai%20Ki %20Bani.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/230012796/Dariya-Sahab-Marvad-Vale-Ki-Bani
दरिया साहेब मारवाड़ वाले की बानी और जीवन चरित्र

http://www.scribd.com/doc/230011449/Dariya-Saheb-Bihar-Vale-Ke- Chune-Hue-Sabad
दरिया साहेब (बिहार वाले) के चुने हुए शब्द

http://www.scribd.com/doc/230010867/Dariya-Sagar
दरिया  सागर बिहार वाले दरिया साहिब का

http://www.scribd.com/doc/265986062/Santkavi-Dariya-Ek-Anusheelan
संतकवि दरिया-एक अनुशीलन

http://www.scribd.com/doc/259411112/Beejak
बीजक - दरिया साहब बिहार वाले

http://measdot.github.io/dariya/assets/pdf/beejak.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/259411111/KaalCharitra
कालचरित्र - दरिया साहब बिहार वाले

http://measdot.github.io/dariya/assets/pdf/kaalcharitra.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/259411109/Bhakti-Hetu
भक्ति हेतु - दरिया साहब बिहार वाले

http://measdot.github.io/dariya/assets/pdf/bhaktihetu.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/259411108/JangsSaangi
जनसांगी - दरिया साहब बिहार वाले

http://measdot.github.io/dariya/assets/pdf/jagsaangi.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/259411107/GyanDeepak
ज्ञानदीपक - दरिया साहब बिहार वाले

http://measdot.github.io/dariya/assets/pdf/gyandeepak.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/259411106/VivekSagar
विवेकसागर - दरिया साहब बिहार वाले

http://measdot.github.io/dariya/assets/pdf/viveksagar.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/259411105/DaariyaNama
दरियानामा - दरिया साहब बिहार वाले

http://measdot.github.io/dariya/assets/pdf/daariyanama.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/259411103/GyanRatan
ज्ञानरतन  - दरिया साहब बिहार वाले

http://measdot.github.io/dariya/assets/pdf/gyanratan.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/259411101/Prem-Moola
प्रेममूला - दरिया साहब बिहार वाले

http://measdot.github.io/dariya/assets/pdf/premmoola.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/259411099/Sahasrani
सहस्रानी - दरिया साहब बिहार वाले

http://measdot.github.io/dariya/assets/pdf/sahasrani.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/259411098/Dariya-Sagar
दरियासागर - दरिया साहब बिहार वाले

http://measdot.github.io/dariya/assets/pdf/dariyasagar.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/259411097/NirbhayGyan
निर्भयज्ञान - दरिया साहब बिहार वाले

http://measdot.github.io/dariya/assets/pdf/nirbhaygyan.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/259411096/RameshwarGoshthi
रामेश्वर गोष्ठि - दरिया साहब बिहार वाले

http://measdot.github.io/dariya/assets/pdf/rameshwargoshthi.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/259411095/Bramha-Vivek
ब्रह्म विवेक - दरिया साहब बिहार वाले

http://measdot.github.io/dariya/assets/pdf/bramhavivek.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/259411092/AgraGyan
अग्रज्ञान - दरिया साहब बिहार वाले

http://measdot.github.io/dariya/assets/pdf/agragyan.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/259411091/Amar-Saar
अमरसार  - दरिया साहब बिहार वाले

http://measdot.github.io/dariya/assets/pdf/amarsaar.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/259411090/GyanSarvoday
ज्ञान स्वरोदय - दरिया साहब बिहार वाले

http://measdot.github.io/dariya/assets/pdf/gyansarvoday.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/259411089/GaneshGoshthi
ग़णेश गोष्ठी - दरिया साहब बिहार वाले

http://measdot.github.io/dariya/assets/pdf/ganeshgoshthi.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/259411088/GyanMool
ज्ञानमूल - दरिया साहब बिहार वाले

http://measdot.github.io/dariya/assets/pdf/gyanmool.pdf
Alternative Link

http://www.scribd.com/doc/256927642/Panch-Nam-Ki-Vyakhya  
पांच नाम की व्याख्या - फ़कीर चन्द

http://www.scribd.com/doc/130223388/NaamDaan-by-Faqir-Chand- Maharaj
नामदान - फ़कीर चन्द

http://www.scribd.com/doc/266102800/Swami-Ramcharan
स्वामी रामचरण

http://www.scribd.com/doc/261219699/Shri-Ramsnehi-Sampraday
श्री रामस्नेही सम्प्रदाय

http://www.scribd.com/doc/260992971/Shri-Ramdasji-Maharaj-Ki-Bani
श्री मदाध रामस्नेहि सम्प्रदायाचार्य श्री 1008 श्री रामदासजी महाराज की वाणी

https://ia801507.us.archive.org/12/items/ShriRamdasjiMaharajKiBani/Shri %20Ramdasji%20Maharaj%20Ki%20Bani.pdf
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http://www.scribd.com/doc/264483291/Anand-Shabd-Sar
आनन्द शब्द सार

https://ia801502.us.archive.org/20/items/AnandShabdSar/Anand%20Shabd %20Sar.pdf
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http://www.scribd.com/doc/265964649/Niranjani-Sampraday-Aur-Sant- Turasidas-Niranjani
निरंजनी संप्रदाय और संत तुरसीदास निरंजनी

http://www.scribd.com/doc/260673278/Haridas-Ki-Vani
श्री महाराज हरिदासजी की वाणी सटिप्पणी व अपर निरंजनी महात्माओं की रचना के अंशांश

http://www.scribd.com/doc/266106966/Swami-Haridas-Ji
स्वामी हरिदास जी

http://www.scribd.com/doc/260992392/Peerdan-Lalas-Granthawali
पीरदान लालस ग्रंथावली

http://www.scribd.com/doc/265966602/Nimad-Ke-Sant-Kavi-Singaji
निमाड़ के संत कवि सिंगाजी

https://ia601500.us.archive.org/30/items/NimadKeSantKaviSingaji/Nimad%20Ke %20Sant%20Kavi%20Singaji.pdf
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http://www.scribd.com/doc/260992686/Sant-Singaji-Ek-Adhayayan
संत सिंगाजी एक अध्ययन

https://ia601507.us.archive.org/24/items/SantSingajiEkAdhayayan/Sant%20Singaji %20Ek%20Adhayayan.pdf
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http://www.scribd.com/doc/260467722/Jambhoji-Ki-Vani
जांभोजी की वाणी

https://ia801507.us.archive.org/31/items/JambhojiKiVani/Jambhoji%20Ki%20Vani.pdf
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http://www.scribd.com/doc/260762798/Sant-Sudha-Saar
संत - सुधासार

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http://www.scribd.com/doc/195655425/Samarth-Ramdas-Swami
समर्थ रामदास स्वामी

http://www.scribd.com/doc/30776134/Amrit-Bani-Guru-Ravidass-Ji
अमृतवाणी गुरु रविदास जी

http://www.scribd.com/doc/266493157/Shri-Haripurushaji-Ki-Bani
श्री हरिपुरुष जी की बानी

https://www.scribd.com/doc/306476100/Muktidwar
मुक्तिद्वार

http://www.scribd.com/doc/18020631/Gorakh-Bani-Hindi
गोरखबानी

http://www.scribd.com/doc/265968657/Sant-Vani
संतवाणी

http://www.scribd.com/doc/254669590/SANTO-KI-BANI-pdf
संतों की बानी

http://www.scribd.com/doc/253965489/Santbani-Sangrehye-Part-1-And-2
संतबानी संग्रह भाग 1 और 2

https://ia801504.us.archive.org/25/items/SantbaniSangrehyePart1And2/Santbani %20Sangrehye%20Part-1%20and%202.pdf

http://www.scribd.com/doc/265968817/Santbani-Sangrah-Part-2
संतबानी संग्रह भाग-2

http://www.scribd.com/doc/261224319/Sant-Sangrah-Part-1
संत संग्रह भाग - 1

http://www.scribd.com/doc/261224318/Sant-Sangrah-Part-2
संत संग्रह भाग - 2

http://www.scribd.com/doc/230536611/Sant-Mhatmao-Ka-Jivan-Charitr- Sangrah
संत महात्माओं का जीवन चरित्र संग्रह

https://ia601504.us.archive.org/15/items/SantMhatmaoKaJivanCharitrSangrah/Sant %20Mhatmao%20Ka%20Jivan%20Charitr%20Sangrah.pdf
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http://www.scribd.com/doc/264606944/Hamare-Sant
हमारे संत

http://www.scribd.com/doc/264608472/Bharat-Ke-Sant-Mahatma
भारत के संत महात्मा

http://www.scribd.com/doc/266103306/Uttari-Bharat-Ki-Sant-Parampara
उत्तरी भारत की संत-परम्परा

http://www.scribd.com/doc/265705082/Hariyana-Ka-Sant-Sahitya
हरियाणा का सन्त-साहित्य

http://www.scribd.com/doc/265706795/Hindi-Ko-Marathi-Santo-Ki-Den
हिन्दी को मराठी संतो की देन

http://www.scribd.com/doc/265967389/Sant-Kavya-Dhara
संत काव्यधारा

https://ia601503.us.archive.org/5/items/SantKavyaDhara/Sant%20Kavya %20Dhara.pdf
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http://www.scribd.com/doc/265707465/Hindi-Sant-Kabhya-Sangrha
हिन्दी संतकाव्य-संग्रह

https://ia801509.us.archive.org/29/items/HindiSantKavyaSangrha/Hindi%20Sant %20Kavya%20Sangrha.pdf
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http://www.scribd.com/doc/265706103/Hindi-Ke-Janpad-Sant
हिन्दी के जनपद संत

http://www.scribd.com/doc/264609323/Sant-Sahitya
संत साहित्य

https://ia801506.us.archive.org/34/items/SantSahitya/Sant%20Sahitya.pdf
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06 अक्टूबर 2016

ईश्वर का सार्थक नाम क्या है ?

अहंवृति के सूत्र को पकङ कर आत्मा का अनुसंधान करना ऐसा है । जैसे कुत्ता सूंघकर अपने मालिक को पा लेता है । मालिक चाहे अनजाने दूर के स्थान में हो । लेकिन यह कुत्ते के मार्ग में विघ्न नही बनता । उस प्राणी के लिये अपने मालिक की गंध ही पर्याप्त संकेत है । उसके वेष की, आकार की ऊँचाई इत्यादि की जानकारी जरा भी आवश्यक नही है । कुत्ता उसे ढ़ूंढ़ते समय उसकी गन्ध को एकाग्रता से सूत्र की तरह पकङे रहता है और अन्त में उसे पाने में सफ़ल होता है ।
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प्रश्न - ईश्वर के कई नामों में सार्थक नाम कौन सा है ?
उत्तर - ईश्वर के कई हजार नामों में ‘अहम’ अथवा ‘अहमस्मि’ जितना कोई भी नाम अन्वर्थ उचित और सुन्दर नही है । क्योंकि वह निर्विचार ह्रदय में इसी रूप में रहता है । ईश्वर के प्रसिद्ध असंख्य नामों में केवल ‘अहम-अहम’ नाम अहंकार नष्ट होने पर आत्मलक्षी पुरुषों के ह्रदयावकाश में मौन, परावाणी के रूप में विजेता की तरह गूंजता है । यदि कोई निरन्तर ‘अहम-स्फ़ुरण’ के प्रति लक्ष रखकर ‘अहम-अहम’ नाम पर ध्यान करता है । तो ऐसा ध्यान उसे विचार के जन्म स्थान पर ले जाकर वहाँ लीन कर देता है । तथा शरीर से जुङा हुआ उसका अहंकार नष्ट हो जाता है ।
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प्रश्न - साधक प्राणशक्ति को सुष्मणा मार्ग में कैसे ले जा सकता है । जिससे वह ‘श्री रमणगीता’ में कही हुयी ‘चिज्जड ग्रन्थि’ का भेदन कर सके ?

उत्तर - मैं कौन हूँ ? की तलाश करके । योगी कुन्डलिनी का उत्थान करके अवश्य उसे सुष्मणा मार्ग में ले जाना चाहेगा । ज्ञानी का यह लक्ष्य नही है । लेकिन दोनों एक परिणाम प्राप्त करते हैं अर्थात प्राणशक्ति को सुष्मणा में ले जाकर ‘चिज्जड ग्रन्थि’ का भेदन करते हैं ।
कुन्डलिनी आत्मा अथवा शक्ति का दूसरा नाम है । चूंकि हम स्वयं को शरीर से मर्यादित मानते हैं । हम उसके शरीर में रहने की बात कहते हैं । वस्तुतः वह बाहर भीतर दोनों जगह है । क्योंकि वह आत्मा या आत्मशक्ति से भिन्न नही है ।
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प्रश्न - आत्मानुसंधान से ध्यान अच्छा नही है ?
उत्तर - ध्यान मानसिक कल्पना पर आधार रखता है । जबकि आत्मानुसंधान सत्य का अन्वेषण है । ध्यान का आधार वस्तुसत्ता है । अन्वेषण का आधार आत्मसत्ता है ।
प्रश्न - सत्य के अन्वेषण की कोई वैज्ञानिक पद्धति होनी ही चाहिये ।
उत्तर - असत्य का त्याग और सत्य का अन्वेषण वैज्ञानिक है ।
प्रश्न - मेरा मतलब है कृमशः त्याग की वैज्ञानिक प्रक्रिया अवश्य होनी चाहिये । पहले मन का, तब बुद्धि का उसके बाद अहंकार का त्याग ।
उत्तर - आत्मा ही एकमात्र सत्य है और सब असत्य है । मन तथा बुद्धि आत्मा से अलग नही रह सकते । बाइबल कहता है - निश्चल बनो और जानो कि ‘मैं ईश्वर हूँ’ । आत्मा को ईश्वर रूप जानने के लिये सिर्फ़ निश्चलता जरूरी है ।
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प्रश्न - कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि हमें किसी ठोस पदार्थ पर ही एकाग्रता का अभ्यास करना चाहिये । क्योंकि मन के नाश का प्रयत्न खतरनाक हो सकता है ?
उत्तर - खतरनाक किसके लिये ? आत्मा से भिन्न कोई खतरा हो सकता है । मैं-मैं अनन्त सागर है । अहंकार उस पर एक तरंग मात्र है । जिसे जीव या वैयक्तिक आत्मा कहा जाता है । तरंग भी पानी ही है । क्योंकि मिटने पर वह सागर में मिल जाता है । जब वह तरंग होता है । तब भी वह सागर का भाग है । इस सादे सत्य के अज्ञान के कारण अनेक नामवाली असंख्य पद्धतियां ‘योग’ ‘भक्ति’ ‘कर्म’ बताई जाती हैं । इनमें से प्रत्येक के कई भेद हैं । जिनका उपदेश बङी चतुरता से, बङे विस्तार से लोगों के मन को लुभाने और भ्रम में डालने के लिये किया जाता है । विभिन्न धर्म, सम्प्रदाय तथा वाद भी ऐसे ही हैं । उन सबका प्रयोजन क्या है ? केवल आत्मा को जानना । वे आत्मा को जानने के लिये आवश्यक साधन या अभ्यास हैं ।
इन्द्रियों से जाने गये पदार्थ प्रत्यक्ष कहे जाते हैं । क्या आत्मा जैसी कोई प्रत्यक्ष वस्तु है । जो हमेशा और इन्द्रियों की सहायता के बिना अनुभव की जा सकती हो ? इन्द्रिय प्रत्यक्ष परोक्ष ज्ञान है, प्रत्यक्ष नही । केवल अपनी सभानता ही सीधा या प्रत्यक्ष ज्ञान है और वह सबके लिये समान है । अपनी आत्मा को जानने के लिये कोई सहायता जरूरी नही है ।

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