08 दिसंबर 2016

फ़क्कङ साधु की मौज

एक साधु की गुदढ़ी (कन्था) चोरी हो गयी । चोरी क्या हो गयी, हँसी हँसी में वहीं के एक कांस्टेबल ने छुपा ली । साधु पुलिस स्टेशन के आसपास ही रहता था ।
मौज में आकर रिपोर्ट लिखाने गया - अरे मैं लुट गया ! लुट गया ! गरीब बेचारा लुट गया ।
थानेदार - तुम्हारा क्या चोरी हो गया ?
साधु - सब कुछ ! एक तो रजाई गयी है ।
- और क्या ? - चादर ।
- और क्या ? - कोट और अंगरखा ।
- और क्या ? - तकिया ।
- और क्या ? - आसन ।
थानेदार - कुछ और भी ?
साधु - हाँ छतुरी भी चली गयी ।
थानेदार - बस इतना ही कि कुछ और भी ?
साधु - हजूर !

थानेदार - और भी कुछ, खूब स्मरण कर लो ।
साधु - और...और...और..(बताता गया)
वह कांस्टेबल जिसने चोरी की थी, पास ही खङा था । 
चोरी गये सामान की इतनी लम्बी लिस्ट सुनकर बेबस सा हँसा और गाली देकर बोला - और.. और.. और..बोले जाता है । तेरा चोरी गया माल ‘बस’ होगा कि नहीं । तेरी झोपङी है कि सौदागर की कोठी ? इतना (माल) असबाव कहाँ से आ गया ?
इतना कहकर कांस्टेबल साधु की गुदढ़ी उठा लाया और बोला - हजूर, बस इसका इतना माल चोरी हुआ है और इसने दर्जनों चीजें गिना दी ।
थानेदार (साधु से) - क्या तुम पहचान सकते हो कि ये गुदढ़ी तुम्हारी है ?
साधु - हाँ मेरी है और किसकी है ।
इतना कहकर झटपट गुदढ़ी कन्धे पर डाल थाने से बाहर दौङ गया ।
थानेदार ने सिपाहियों को आज्ञा दी - इसे फ़टाफ़ट पकङो, जाने न पाये ।
और साधु को धमका कर कहा - तेरा चालान होगा बाबा, तूने झूठी रिपोर्ट लिखाई । हमें धोखा देने की कोशिश की ।
फ़क्कङ साधु जो देह और प्राण की चिन्ता एवं पाप-पुण्य के बन्धन से बिलकुल मुक्त था ।
भय और आशा से आबद्ध (थानेदार) की रुष्टता को क्या समझता ।
मुस्करा कर बोला - हम झूठ नही बोलते हैं ।

यह कहकर उसने गुदढ़ी को ओढ़कर दिखाया और बोला - यह देखो मेरी रजाई ।
उसी गुदढ़ी को नीचे बिछाकर बोला - यह देखो मेरा बिछौना ।
उसी गुदढ़ी को सिर के ऊपर तानकर बोला - यह देखो मेरी छतुरी ।
गुदढ़ी को तह करके नीचे डाला और ऊपर बैठता हुआ बोला - यह मेरा आसन, आदि आदि ।
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वह व्यक्ति जिसने विश्व के आश्रयदाता (ब्रह्म) का जाना है, उसका तो सभी कुछ ब्रह्म ही ब्रह्म हो गया । 
सम्बन्धी और निकटवर्ती है तो ब्रह्म !
शासक और शासित हैं तो ब्रह्म !
प्रेम करने वाले या वैर रखने वाले हैं तो ब्रह्म !
माता, बहन, भाई, हैं तो ब्रह्म !
उसके बाग और बिटप ब्रह्म !
उसकी लेखनी और कृपाण ब्रह्म !
उसके लिये तो ब्रह्म ही साधु की गुदढ़ी है । सारा घरबार जायदाद ब्रह्म है ।
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काला हरना जंगल चरना, ओह भी छलबल खूब करे ।
काला हस्ती रहे फ़ौजन में, फ़ौजन का श्रंगार करे ।
काला बादल लरजे गरजे, जहाँ पङे तहाँ छल्ल करे ।
काला खांडा रहे म्यान में, जहाँ पङे दो टूक करे ।
काली ढाल मर्द के कन्धे, जहाँ लढ़े तहाँ ओट करे ।
काला नाग बांबी का राजा, जिसका काटा तुरत मरे ।
काला डोल कुंयें के अन्दर, जिसका पानी शान्त करे ।
काली भैंस बजर का बट्ट, दूध शक्ति बल अधिक करे ।
काला तवा रसोई भीतर, खाकर रोटी खलक जिये ।
काली कोकिल कूके हूके, जिसका शब्द तन मन हरे ।
काला है तेरे नैनन सुरमा, तू काले का नाम धरे ।
काला है तेरे नैनन तारा, तू काले का नाम धरे ।
काले तेरे बाल सांप से, तू काले का नाम धरे ।
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गोरी री तुम गोरम गोरी, बात करे गुरु ज्ञान की चेरी ।
दाँत दामिनी चमक दमक में, नैन बने जानों आम की कैरी ।
इतना गुमान कहा करे राधा, खोल घूंघट मुख देखन दे री ।

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326