सितारों से आगे जहाँ और भी है ।
पूजा-पाठ, इन दो शब्दों पर अर्थाभाव (इनका अर्थ ज्ञात न) होने से ‘सनातन धर्म’ जैसे जङ तक मुर्झा गया । लेकिन शायद ही किसी का हिन्दू समाज में अति प्रचलित इन दो विनाशक (बन गये) शब्दों पर ध्यान गया है ।
पूजा तमिल भाषा का शब्द है । इसके मूल अर्थ से क्या ध्वनित है ? खुद मुझे भी अभी नही पता ।
यह ‘शब्द’ कब और कैसे हमारे सभी ‘भक्ति’ शब्दों को हटाकर स्थापित हुआ, बेहद आश्चर्य और खोज का विषय है । क्योंकि आज भी इस शब्द की विभक्ति, भाव और अर्थ समझने में हम असमर्थ हैं ।
दूसरा शब्द पाठ है, जो पठन विषय, पठन लेख के लिये है ।
अतः इन दोनों ‘पूजा पाठ’ का अर्थ आज सिर्फ़ भक्ति सम्बन्धी आर्त (आदि) शब्दों को उच्चारना और तत्सम्बन्धित कुछ क्रियाकलाप कर लेना भर रह गया ।
अध्ययन, मनन, चिन्तन, स्वाध्याय, फ़िर कृमशः यज्ञ, हवन, व्रत, ज्ञान, सिद्धि होना आदि के बारे में तो हमें दूर दूर तक नही पता ।
यज्ञ (यह जानना) हवन, हव्य, (अंतर) ज्योति, आराधना (सुरति चढ़ाना) उपासना (समीप आसन) व्रत (बरतना) उपवास (समीप होना) एकादशी (5 ज्ञान 5 कर्मेंदिय 1 मन का एकीकरण) स्तुति (भाव पूर्ण शब्द) वन्दना, आरती (आर्त या दुख निवारण हेतु कहे शब्द) प्रार्थना, मन्त्र, तन्त्र आदि भी ।
इसलिये भक्ति जैसे सनातन ‘सृष्टि विज्ञान’ और ‘स्वयंसत्ता’ को जानने का ज्ञान अधिकतर सिर्फ़ किसी प्रिय लग गये देव, इष्ट के चित्र, मूर्ति, मन्दिर आदि में अगरबत्ती जलाना, फ़ूल चढ़ाने भर तक सीमित होकर रह गया ।
यह तो हिन्दू और कुछ अन्य समुदायों की बात रही ।
--------------
मुस्लिमों के नूर, रूह, कलमा (अंतर्धुनि, गैबी या आसमानी सदा) अजान, नमाज, रोजा, इबादत, बन्दगी, बन्दा, खुदा (खुद, स्वयं, मन) आदि आदि कुछ आम प्रचलित शब्दों को छोङकर अन्य के बारे में मुझे ज्ञात नही ।
लेकिन मुस्लिम समाज को भी काफ़ी निकट से देखने के अनुभव से मुझे ज्ञात है कि उनके भी मजहबी क्रियाकलाप सिर्फ़ बाहरी तौर पर अधिक हैं यानी बेचून (निराकार) ‘एकेश्वर’ का मुख्य सिद्धांत होते हुये भी उनका अल्लाह से ‘एकीकरण’ सिर्फ़ भावनात्मक है ज्ञानात्मक (यानी उसे जानना, महसूस करना) नही ।
और देखा जाये तो भारत की मुख्य समस्या ‘हिन्दू-मुस्लिम का वैचारिक धार्मिक अलगाव’ जो विकास को बाधित करने वाला और अन्य सभी समस्याओं का मूल है । इसी ‘नाजानकारी’ की वजह से है । जबकि ‘धर्मग्रन्थों’ में ऐसा कुछ विरोध नही है बल्कि एक ही बात कही है ।
~ यहाँ एक प्रमुख विरोधी तर्क के रूप में कुर’आन और मनुस्मृति आदि जैसे कुछ ग्रन्थों में, जो बाद में सामाजिक नियम, व्यवहार लगभग मनमाने ढंग और साजिश या स्वार्थवश जोङे लगते हैं, की बात कही जा सकती है ।
पर यदि विवेक से विचारा जाये तो इसका मूलभक्ति और मूलज्ञान से कुछ लेना देना नही ।
- हिन्दुओं में अच्छे सन्तों, योगियों तथा मुस्लिमों में नामी सूफ़ी फ़कीरों और ईसाई आदि अन्य समुदायों में भी समय समय पर महापुरुषों का होना इसका सबल प्रमाण है ।
----------------
अतः इस लेख में खास उन ‘शब्दों’ और ‘मुकामों’ की वैज्ञानिक स्थिति और वर्णन है, जो मूल भक्ति और मूल ज्ञान से सम्बन्धित हैं ।
इनका अध्ययन कर गहरे विचार करने पर पूर्वाग्रह और धारणा बदल सकती है ।
--------------
मनुष्य शरीर सृष्टि (के विराट माडल) का मूर्तरूप है । इसमें मौजूद सभी भाग सृष्टि का (symbloic) प्रतिनिधित्व करते हैं । इस शरीर रूपी यन्त्र को खास विधि से योग प्रविष्टि करने पर ‘योग अभ्यासक’ (शगल-शागिल) सभी आसमानों से सम्बन्ध स्थापित कर सकते हैं ।
-------------
15 आसमान - राधास्वामी धाम, (कुल मालिक) परमपिता (फारसी में) ‘आसमान-ए-राधा स्वामी’
स्थान - 14वें चक्र से ठीक 2 उंगली ऊपर दिमाग वाला हिस्सा (जहाँ बाहर सर पर भवंरा रहता है)
हरपल हरदम ध्वनि - राधा स्वामी !
इसी स्थान से निम्न सृष्टि-रचना, ‘कुल-मालिक’ की मौज से अस्तित्व में आई ।
नीचे बताए सभी 14 आसमान इस आसमान के एक किनके के बराबर हैं ।
--------------
14वां आसमान - ‘अगम देश’ (फारसी में) ‘आलम-ए-हस्तीहस्त’
स्थान - 12वें चक्र से ठीक 2 उंगली ऊपर दिमाग वाला हिस्सा ।
आसमानी शब्द - गुप्त ।
---------------
13वां आसमान - ‘अलख देश’ (फारसी में) ‘आलम-ए-हस्त’
स्थान - 12वें चक्र से ठीक 2 उंगली ऊपर दिमाग वाला हिस्सा ।
आसमानी शब्द - गुप्त ।
--------------
12वां आसमान - ‘सत्तदेश’ (फारसी में) ‘आलम-ए-हुत’ यानि ‘आसमान-ए-हक’
स्थान - 11वें चक्र से ठीक 1 उंगली ऊपर दिमाग वाला हिस्सा ।
खुदा - ‘सत्तपुरुष’ (संतमत अनुसार)
हरदम ध्वनि - ‘सत्त..सत्त’ और ‘हक..हक’
उपलब्धि - गुरुनानक, मौलाना रुम, जगजीवन साहब, चरणदासजी, पलटू साहब ।
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नीचे बताए सभी आसमान (संतमत) महाकाल (फारसी में) ‘हैवान-ए-बुलंद’ ने पैदा किये
--------------
11वां आसमान - ‘भवंरगुफा’ (फारसी में) ‘आलम-ए-हुतलहूत’
स्थान - 10वें चक्र से ठीक 1 उंगली ऊपर दिमाग वाला हिस्सा
खुदा - ‘महाकाल’ यानी ‘हैवान-ऐ-बुलंद’ !
हरदम ध्वनि - ‘सोंऽहं..सोंऽहं’ और ‘अनाहू-अनाहू’
उपलब्धि - सूरदास, रैदास जैसे महायोगी
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10वां आसमान - ‘महासुन्न’ (फारसी में) ‘आलम-ए-हाहुत’
स्थान - 9वें चक्र से ठीक 1 उंगली ऊपर दिमाग वाला हिस्सा
शब्द - गुप्त ।
--------------
9वां आसमान - ‘सुन्न’ [परब्रह्म पद] (फारसी फ़कीरों ने) ‘आलम-ऐ-लाहुत’
स्थान - 8वें चक्र से ठीक 1 उंगली ऊपर दिमाग वाला हिस्सा !
हरदम ध्वनि - ‘राँ..राँ’
‘रामलोक’ (रामायण में) श्रीराम, श्रीकृष्ण अवतार स्थान, स्थिति !
श्रीमदभगवत गीता इसी स्थान से सम्बन्धित है । गीता में इस स्थान को ‘बैकुंठ’ कहा है ।
हिन्दू धर्मं में वर्णित सबसे ऊँचा और आखिरी आसमान !
हिन्दू धर्मं यही तक की जानकारी देता है ।
उपलब्धि - ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती, हजरत मंसूर, हाफिज शिराजी, हजरत सरमद
नीचे बताये सभी आसमानों का इसी आसमान के खुदा ने निर्माण किया है ।
------------
8वां आसमान - ‘ब्रह्मलोक’ या ‘त्रिकुटी’ (त्रिकोण) (मुस्लिम फ़कीरों ने) ‘मुसल लसी’ कहा ।
(मुसल-लसी यानी त्रिकोण)
मुसल-लसी मानने वालों को मुसलमान कहा जाता है ।
स्थान - 7वें चक्र से ठीक 1 उंगली ऊपर दिमाग वाला हिस्सा
हरदम ध्वनि - ‘ओं..ओं’ या ‘हु..हु’
वेद व्यास ने वेदों में ब्रह्मलोक यानि 8वें आसमान तक का जिक्र है और ‘ओउम-ॐ’ शब्द को ईश्वर ।
इसे ‘अर्श कुर्सी’ या ‘अर्श आजिम’ भी कहते हैं ।
कुर’आन में इस ‘हु-हु’ मंत्र को ‘अल्लाह’ (श्रेष्ठ) और ‘अकबर’ (महान) कहा है ।
‘ब्रह्मदेव’ [जिब्राइल] (मुस्लिम ग्रंथों में) ‘खुदा-ए-अजीम’ (अल्लाह-हु-अकबर)
ब्रह्मदेव की स्थिति हजार पंखुडियों वाले कमल के ऊपर होती है ।
यहीं से 5 तत्व - काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार (जिब्राइल) पैदा होते हैं ।
संतमत में इसे ‘कालदूत’ और कुर’आन में ‘पाँच फ़रिश्ते’ कहा है ।
इस्लाम में इसका वर्णन बेहद संक्षिप्त और पेचीदा शब्दों में है । इस्लाम यहीं तक है ।
उपलब्धि - कई महायोगी, धर्माचार्य, अवतार, पैगम्बर इस दुनिया में समय समय पर प्रगट हुये । सभी ने योग साधना के बल पर यह सिद्धि (स्थिति) प्राप्त की ।
उदाहरण
भारत में - वेदव्यास जी, परशुराम, लंकाधीश रावण, शिवजी, जैन मुनि ऋषभ देव ।
मध्य एशिया - पैगम्बर मुहम्मद साहब ।
नीचे बताये सभी आसमानों का इस आसमान के खुदा ने निर्माण किया है ।
------------
7वां आसमान - ‘सहस्त्रदल कँवल’ [स्वर्ग लोक, जन्नत] (मुस्लिम ग्रंथों में) ‘अर्श’
स्थान - 6ठें चक्र से ठीक 1 उंगली ऊपर दिमाग वाला हिस्सा
हरदम ध्वनि - ‘निरंजन-निरंजन’
वेदों में इसे चन्द्रलोक भी कहा है । रूहानी चाँद के दर्शन यहीं होते है ।
‘कुर’आन शरिया’ में मुहम्मद साहब ने इस आसमान को पार करने के जिक्र को ‘शक्क-उल-कमर’ (यानि चाँद को काट कर पार जाना) कहा है ।
नीचे के 6 आसमान असल में इस 7वें और अन्य बताये जाने वाले आसमानों यानी रुहानी लोकों की छायाएं हैं । इसीलिए ‘संतमत’ में उन्हें मुख्य आसमान नहीं माना जाता ।
7वें आसमान से ही आसमानों की गिनती की जाती है ।
नीचे बताये सभी आसमानों का निर्माण इसी आसमान के खुदा ने किया है ।
(एक बहु-प्रचलित कहावत ‘खुदा सातवें आसमान पर बैठा/रहता है’ ध्यान करें)
----------------
6वां आसमान - ‘छठवां’ लोक’
स्थान - दोनों आँखों के बीच (जहाँ नाक का उदगम है) पौन इंच अन्दर से लेकर एक इंच अन्दर तक के हिस्से में ।
शरीर में (भ्रमर रूप जीवात्मा) रूह की बैठक इसी हिस्से में होती है और मृत्यु के वक्त रूह (चेतना) इसी चक्र पर सिमट जाने से शरीर की मृत्यु हो जाती है ।
ईसामसीह यहीं से आये थे । ईसाईयों का ‘क्रोस’ यही है ।
मुहम्मद साहब का ‘बुराक’ यहीं से शुरू होता है ।
इन 3 आसमानों (आसमान 4-5-6) और मानव शरीर में उनकी स्थिति, स्थान को ‘मुस्किम’ और फ़कीरों ने ‘आलम-ए-मलकुत’ कहा है ।
--------------
5वां आसमान - वेदों में ‘पंचम लोक’
स्थान - शरीर में इसका प्रतिनिधि स्थान ‘कंठ’ यानि ‘गला’ है ।
-----------------
4 आसमान - वेदों में ‘चतुर्थ लोक’
स्थान - वो भाग जहाँ ‘ह्रदय’ होता है ।
इस स्थान पर चैतन्यता का समूह बनने पर पशु-पक्षी वगैरा जीवों की मृत्यु हो जाती है ।
बुद्ध और शिवजी का पशुपति अवतार यहीं से था ।
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नीचे बताये पहले 3 आसमानों को मुस्लिम संतो ने ‘आलम-ए-नासूत’ कहा ।
इस तरह गुदा चक्र, इंद्री चक्र और नाभि चक्र (यह) तीनों मानव शरीर में ‘आलम-ए-नासूत’ के भाग हैं ।
--------------
3 आसमान - वेदों में ‘तीसरा लोक’
स्थान - वो हिस्सा जहाँ नाभि होती है (नाभि चक्र)
हिन्दू देवों में वर्णित ‘वराह देव’ का अवतार यहीं से हुआ ।
---------------
2 आसमान - वेदों में ‘दूसरा लोक’
स्थान - गुदा चक्र से थोङा ऊपर वाला रीढ़ का हिस्सा (इंद्री चक्र) है ।
हिन्दू देवों में वर्णित ‘मच्छ देव’ का अवतार यहीं से हुआ ।
--------------
1 आसमान - वेदों में ‘प्रथम लोक’
इस स्थान से ‘कच्छ देव’ का अवतार हुआ था और गणेशजी भी इसी आसमान यानि लोक के खुदा का रूप थे ।
(सभी वर्णन सूफ़ी/संतमत के अनुसार)
---------------
इससे नीचे 7 लोक या आसमान या सुन्न (तुपक) पाताल रूप में 7 खंडों में हैं ।
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अब अन्त में कुछ माथापच्ची - ‘आसमान’ इस शब्द के अर्थ पर कभी गौर किया है ?
चलो संकेत देता हूँ = आस-मान !
अब तो आसान है न ?
पूजा-पाठ, इन दो शब्दों पर अर्थाभाव (इनका अर्थ ज्ञात न) होने से ‘सनातन धर्म’ जैसे जङ तक मुर्झा गया । लेकिन शायद ही किसी का हिन्दू समाज में अति प्रचलित इन दो विनाशक (बन गये) शब्दों पर ध्यान गया है ।
पूजा तमिल भाषा का शब्द है । इसके मूल अर्थ से क्या ध्वनित है ? खुद मुझे भी अभी नही पता ।
यह ‘शब्द’ कब और कैसे हमारे सभी ‘भक्ति’ शब्दों को हटाकर स्थापित हुआ, बेहद आश्चर्य और खोज का विषय है । क्योंकि आज भी इस शब्द की विभक्ति, भाव और अर्थ समझने में हम असमर्थ हैं ।
दूसरा शब्द पाठ है, जो पठन विषय, पठन लेख के लिये है ।
अतः इन दोनों ‘पूजा पाठ’ का अर्थ आज सिर्फ़ भक्ति सम्बन्धी आर्त (आदि) शब्दों को उच्चारना और तत्सम्बन्धित कुछ क्रियाकलाप कर लेना भर रह गया ।
अध्ययन, मनन, चिन्तन, स्वाध्याय, फ़िर कृमशः यज्ञ, हवन, व्रत, ज्ञान, सिद्धि होना आदि के बारे में तो हमें दूर दूर तक नही पता ।
यज्ञ (यह जानना) हवन, हव्य, (अंतर) ज्योति, आराधना (सुरति चढ़ाना) उपासना (समीप आसन) व्रत (बरतना) उपवास (समीप होना) एकादशी (5 ज्ञान 5 कर्मेंदिय 1 मन का एकीकरण) स्तुति (भाव पूर्ण शब्द) वन्दना, आरती (आर्त या दुख निवारण हेतु कहे शब्द) प्रार्थना, मन्त्र, तन्त्र आदि भी ।
इसलिये भक्ति जैसे सनातन ‘सृष्टि विज्ञान’ और ‘स्वयंसत्ता’ को जानने का ज्ञान अधिकतर सिर्फ़ किसी प्रिय लग गये देव, इष्ट के चित्र, मूर्ति, मन्दिर आदि में अगरबत्ती जलाना, फ़ूल चढ़ाने भर तक सीमित होकर रह गया ।
यह तो हिन्दू और कुछ अन्य समुदायों की बात रही ।
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मुस्लिमों के नूर, रूह, कलमा (अंतर्धुनि, गैबी या आसमानी सदा) अजान, नमाज, रोजा, इबादत, बन्दगी, बन्दा, खुदा (खुद, स्वयं, मन) आदि आदि कुछ आम प्रचलित शब्दों को छोङकर अन्य के बारे में मुझे ज्ञात नही ।
लेकिन मुस्लिम समाज को भी काफ़ी निकट से देखने के अनुभव से मुझे ज्ञात है कि उनके भी मजहबी क्रियाकलाप सिर्फ़ बाहरी तौर पर अधिक हैं यानी बेचून (निराकार) ‘एकेश्वर’ का मुख्य सिद्धांत होते हुये भी उनका अल्लाह से ‘एकीकरण’ सिर्फ़ भावनात्मक है ज्ञानात्मक (यानी उसे जानना, महसूस करना) नही ।
और देखा जाये तो भारत की मुख्य समस्या ‘हिन्दू-मुस्लिम का वैचारिक धार्मिक अलगाव’ जो विकास को बाधित करने वाला और अन्य सभी समस्याओं का मूल है । इसी ‘नाजानकारी’ की वजह से है । जबकि ‘धर्मग्रन्थों’ में ऐसा कुछ विरोध नही है बल्कि एक ही बात कही है ।
~ यहाँ एक प्रमुख विरोधी तर्क के रूप में कुर’आन और मनुस्मृति आदि जैसे कुछ ग्रन्थों में, जो बाद में सामाजिक नियम, व्यवहार लगभग मनमाने ढंग और साजिश या स्वार्थवश जोङे लगते हैं, की बात कही जा सकती है ।
पर यदि विवेक से विचारा जाये तो इसका मूलभक्ति और मूलज्ञान से कुछ लेना देना नही ।
- हिन्दुओं में अच्छे सन्तों, योगियों तथा मुस्लिमों में नामी सूफ़ी फ़कीरों और ईसाई आदि अन्य समुदायों में भी समय समय पर महापुरुषों का होना इसका सबल प्रमाण है ।
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अतः इस लेख में खास उन ‘शब्दों’ और ‘मुकामों’ की वैज्ञानिक स्थिति और वर्णन है, जो मूल भक्ति और मूल ज्ञान से सम्बन्धित हैं ।
इनका अध्ययन कर गहरे विचार करने पर पूर्वाग्रह और धारणा बदल सकती है ।
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मनुष्य शरीर सृष्टि (के विराट माडल) का मूर्तरूप है । इसमें मौजूद सभी भाग सृष्टि का (symbloic) प्रतिनिधित्व करते हैं । इस शरीर रूपी यन्त्र को खास विधि से योग प्रविष्टि करने पर ‘योग अभ्यासक’ (शगल-शागिल) सभी आसमानों से सम्बन्ध स्थापित कर सकते हैं ।
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15 आसमान - राधास्वामी धाम, (कुल मालिक) परमपिता (फारसी में) ‘आसमान-ए-राधा स्वामी’
स्थान - 14वें चक्र से ठीक 2 उंगली ऊपर दिमाग वाला हिस्सा (जहाँ बाहर सर पर भवंरा रहता है)
हरपल हरदम ध्वनि - राधा स्वामी !
इसी स्थान से निम्न सृष्टि-रचना, ‘कुल-मालिक’ की मौज से अस्तित्व में आई ।
नीचे बताए सभी 14 आसमान इस आसमान के एक किनके के बराबर हैं ।
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14वां आसमान - ‘अगम देश’ (फारसी में) ‘आलम-ए-हस्तीहस्त’
स्थान - 12वें चक्र से ठीक 2 उंगली ऊपर दिमाग वाला हिस्सा ।
आसमानी शब्द - गुप्त ।
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13वां आसमान - ‘अलख देश’ (फारसी में) ‘आलम-ए-हस्त’
स्थान - 12वें चक्र से ठीक 2 उंगली ऊपर दिमाग वाला हिस्सा ।
आसमानी शब्द - गुप्त ।
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12वां आसमान - ‘सत्तदेश’ (फारसी में) ‘आलम-ए-हुत’ यानि ‘आसमान-ए-हक’
स्थान - 11वें चक्र से ठीक 1 उंगली ऊपर दिमाग वाला हिस्सा ।
खुदा - ‘सत्तपुरुष’ (संतमत अनुसार)
हरदम ध्वनि - ‘सत्त..सत्त’ और ‘हक..हक’
उपलब्धि - गुरुनानक, मौलाना रुम, जगजीवन साहब, चरणदासजी, पलटू साहब ।
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नीचे बताए सभी आसमान (संतमत) महाकाल (फारसी में) ‘हैवान-ए-बुलंद’ ने पैदा किये
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11वां आसमान - ‘भवंरगुफा’ (फारसी में) ‘आलम-ए-हुतलहूत’
स्थान - 10वें चक्र से ठीक 1 उंगली ऊपर दिमाग वाला हिस्सा
खुदा - ‘महाकाल’ यानी ‘हैवान-ऐ-बुलंद’ !
हरदम ध्वनि - ‘सोंऽहं..सोंऽहं’ और ‘अनाहू-अनाहू’
उपलब्धि - सूरदास, रैदास जैसे महायोगी
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10वां आसमान - ‘महासुन्न’ (फारसी में) ‘आलम-ए-हाहुत’
स्थान - 9वें चक्र से ठीक 1 उंगली ऊपर दिमाग वाला हिस्सा
शब्द - गुप्त ।
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9वां आसमान - ‘सुन्न’ [परब्रह्म पद] (फारसी फ़कीरों ने) ‘आलम-ऐ-लाहुत’
स्थान - 8वें चक्र से ठीक 1 उंगली ऊपर दिमाग वाला हिस्सा !
हरदम ध्वनि - ‘राँ..राँ’
‘रामलोक’ (रामायण में) श्रीराम, श्रीकृष्ण अवतार स्थान, स्थिति !
श्रीमदभगवत गीता इसी स्थान से सम्बन्धित है । गीता में इस स्थान को ‘बैकुंठ’ कहा है ।
हिन्दू धर्मं में वर्णित सबसे ऊँचा और आखिरी आसमान !
हिन्दू धर्मं यही तक की जानकारी देता है ।
उपलब्धि - ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती, हजरत मंसूर, हाफिज शिराजी, हजरत सरमद
नीचे बताये सभी आसमानों का इसी आसमान के खुदा ने निर्माण किया है ।
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8वां आसमान - ‘ब्रह्मलोक’ या ‘त्रिकुटी’ (त्रिकोण) (मुस्लिम फ़कीरों ने) ‘मुसल लसी’ कहा ।
(मुसल-लसी यानी त्रिकोण)
मुसल-लसी मानने वालों को मुसलमान कहा जाता है ।
स्थान - 7वें चक्र से ठीक 1 उंगली ऊपर दिमाग वाला हिस्सा
हरदम ध्वनि - ‘ओं..ओं’ या ‘हु..हु’
वेद व्यास ने वेदों में ब्रह्मलोक यानि 8वें आसमान तक का जिक्र है और ‘ओउम-ॐ’ शब्द को ईश्वर ।
इसे ‘अर्श कुर्सी’ या ‘अर्श आजिम’ भी कहते हैं ।
कुर’आन में इस ‘हु-हु’ मंत्र को ‘अल्लाह’ (श्रेष्ठ) और ‘अकबर’ (महान) कहा है ।
‘ब्रह्मदेव’ [जिब्राइल] (मुस्लिम ग्रंथों में) ‘खुदा-ए-अजीम’ (अल्लाह-हु-अकबर)
ब्रह्मदेव की स्थिति हजार पंखुडियों वाले कमल के ऊपर होती है ।
यहीं से 5 तत्व - काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार (जिब्राइल) पैदा होते हैं ।
संतमत में इसे ‘कालदूत’ और कुर’आन में ‘पाँच फ़रिश्ते’ कहा है ।
इस्लाम में इसका वर्णन बेहद संक्षिप्त और पेचीदा शब्दों में है । इस्लाम यहीं तक है ।
उपलब्धि - कई महायोगी, धर्माचार्य, अवतार, पैगम्बर इस दुनिया में समय समय पर प्रगट हुये । सभी ने योग साधना के बल पर यह सिद्धि (स्थिति) प्राप्त की ।
उदाहरण
भारत में - वेदव्यास जी, परशुराम, लंकाधीश रावण, शिवजी, जैन मुनि ऋषभ देव ।
मध्य एशिया - पैगम्बर मुहम्मद साहब ।
नीचे बताये सभी आसमानों का इस आसमान के खुदा ने निर्माण किया है ।
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7वां आसमान - ‘सहस्त्रदल कँवल’ [स्वर्ग लोक, जन्नत] (मुस्लिम ग्रंथों में) ‘अर्श’
स्थान - 6ठें चक्र से ठीक 1 उंगली ऊपर दिमाग वाला हिस्सा
हरदम ध्वनि - ‘निरंजन-निरंजन’
वेदों में इसे चन्द्रलोक भी कहा है । रूहानी चाँद के दर्शन यहीं होते है ।
‘कुर’आन शरिया’ में मुहम्मद साहब ने इस आसमान को पार करने के जिक्र को ‘शक्क-उल-कमर’ (यानि चाँद को काट कर पार जाना) कहा है ।
नीचे के 6 आसमान असल में इस 7वें और अन्य बताये जाने वाले आसमानों यानी रुहानी लोकों की छायाएं हैं । इसीलिए ‘संतमत’ में उन्हें मुख्य आसमान नहीं माना जाता ।
7वें आसमान से ही आसमानों की गिनती की जाती है ।
नीचे बताये सभी आसमानों का निर्माण इसी आसमान के खुदा ने किया है ।
(एक बहु-प्रचलित कहावत ‘खुदा सातवें आसमान पर बैठा/रहता है’ ध्यान करें)
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6वां आसमान - ‘छठवां’ लोक’
स्थान - दोनों आँखों के बीच (जहाँ नाक का उदगम है) पौन इंच अन्दर से लेकर एक इंच अन्दर तक के हिस्से में ।
शरीर में (भ्रमर रूप जीवात्मा) रूह की बैठक इसी हिस्से में होती है और मृत्यु के वक्त रूह (चेतना) इसी चक्र पर सिमट जाने से शरीर की मृत्यु हो जाती है ।
ईसामसीह यहीं से आये थे । ईसाईयों का ‘क्रोस’ यही है ।
मुहम्मद साहब का ‘बुराक’ यहीं से शुरू होता है ।
इन 3 आसमानों (आसमान 4-5-6) और मानव शरीर में उनकी स्थिति, स्थान को ‘मुस्किम’ और फ़कीरों ने ‘आलम-ए-मलकुत’ कहा है ।
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5वां आसमान - वेदों में ‘पंचम लोक’
स्थान - शरीर में इसका प्रतिनिधि स्थान ‘कंठ’ यानि ‘गला’ है ।
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4 आसमान - वेदों में ‘चतुर्थ लोक’
स्थान - वो भाग जहाँ ‘ह्रदय’ होता है ।
इस स्थान पर चैतन्यता का समूह बनने पर पशु-पक्षी वगैरा जीवों की मृत्यु हो जाती है ।
बुद्ध और शिवजी का पशुपति अवतार यहीं से था ।
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नीचे बताये पहले 3 आसमानों को मुस्लिम संतो ने ‘आलम-ए-नासूत’ कहा ।
इस तरह गुदा चक्र, इंद्री चक्र और नाभि चक्र (यह) तीनों मानव शरीर में ‘आलम-ए-नासूत’ के भाग हैं ।
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3 आसमान - वेदों में ‘तीसरा लोक’
स्थान - वो हिस्सा जहाँ नाभि होती है (नाभि चक्र)
हिन्दू देवों में वर्णित ‘वराह देव’ का अवतार यहीं से हुआ ।
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2 आसमान - वेदों में ‘दूसरा लोक’
स्थान - गुदा चक्र से थोङा ऊपर वाला रीढ़ का हिस्सा (इंद्री चक्र) है ।
हिन्दू देवों में वर्णित ‘मच्छ देव’ का अवतार यहीं से हुआ ।
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1 आसमान - वेदों में ‘प्रथम लोक’
इस स्थान से ‘कच्छ देव’ का अवतार हुआ था और गणेशजी भी इसी आसमान यानि लोक के खुदा का रूप थे ।
(सभी वर्णन सूफ़ी/संतमत के अनुसार)
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इससे नीचे 7 लोक या आसमान या सुन्न (तुपक) पाताल रूप में 7 खंडों में हैं ।
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अब अन्त में कुछ माथापच्ची - ‘आसमान’ इस शब्द के अर्थ पर कभी गौर किया है ?
चलो संकेत देता हूँ = आस-मान !
अब तो आसान है न ?